कक्षा 10वी सामाजिक विज्ञान राज्य सरकार का संपूर्ण महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर CLASS 10Th Social Science State Government All Questions and Answer in English+Hindi - ULTIMATE STUDY SUPPORT

कक्षा 10वी सामाजिक विज्ञान राज्य सरकार का संपूर्ण महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर CLASS 10Th Social Science State Government All Questions and Answer in Hindi - ULTIMATE STUDY SUPPORT




प्रश्न 1.
जनसंख्या में वृद्धि के बावजूद राज्य विधानसभा की सदस्य संख्या कब तक स्थिर रहेगी?
उत्तर:
जनसंख्या में वृद्धि के बावजूद राज्य विधानसभा की सदस्य संख्या तक तक स्थिर रहेगी, जब तक संविधान में संशोधन न हो जाए।
प्रश्न 2.
भारतीय संघ के किन राज्यों में दो सदनोंवाला विधानमंडल है?
उत्तर:
वर्तमान समय में भारतीय संघ के केवल 7 राज्यों-उत्तर प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, महाराष्ट्र, कर्नाटक, बिहार, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में दो सदनोंवाला विधानमंडल है।
प्रश्न 3.
विधानपरिषद के कितने सदस्यों को राज्यपाल मनोनीत करता है?
उत्तर:
विधानपरिषद की कुल सदस्य संख्या के लगभग 1/6 सदस्य राज्यपाल द्वारा मनोनीत किए जाते हैं।
प्रश्न 4.
राज्य की विधानसभा तथा विधानपरिषद के मुख्य पदाधिकारियों के पदनाम बताइए।
उत्तर:
राज्य की विधानसभा के मुख्य पदाधिकारी अध्यक्ष तथा उपाध्यक्ष होते हैं। विधानपरिषद के मुख्य पदाधिकारी सभापति और उपसभापति होते हैं।
प्रश्न 5.
राज्य की मंत्रिपरिषद के विरुद्ध अविश्वास का प्रस्ताव पारित करने का अधिकार राज्य विधानमंडल के किस सदन को नहीं है?
उत्तर:
राज्य की मंत्रिपरिषद के विरुद्ध अविश्वास का प्रस्ताव पारित करने का अधिकार विधानपरिषद को नहीं है।
प्रश्न 6.
अध्यापकों का निर्वाचक मंडल विधानपरिषद में कितने सदस्यों का निर्वाचन करता है?
उत्तर:
अध्यापकों का निर्वाचक मंडल विधानपरिषद के 1/12 भाग को चुनता है।
प्रश्न 7.
राज्यपाल किसकी इच्छापर्यंत अपने पद पर बना रहता है?
उत्तर:
राज्यपाल राष्ट्रपति के इच्छापर्यंत अपने पद पर बना रहता है।
प्रश्न 8.
संविधान के अनुसार राज्य की कार्यपालिका शक्ति किसमें निहित है?
उत्तर:
संविधान के अनुसार राज्य की कार्यपालिका शक्ति राज्यपाल में निहित है।
प्रश्न 9.
राज्य के विधानमंडल के सत्रावसान में राज्यपाल विशेष परिस्थितियों में जो आदेश जारी करता है, उसे क्या कहते हैं?
उत्तर:
राज्य के विधानमंडल के सत्रावसान में राज्यपाल विशेष परिस्थितियों में जो आदेश जारी करता है, उसे अध्यादेश कहते
प्रश्न 10.
पद-ग्रहण के पूर्व मुख्यमंत्री को राज्यपाल के समक्ष किस आशय की शपथ लेनी होती है?
उत्तर:
पद-ग्रहण से पूर्व मुख्यमंत्री को राज्यपाल के समक्ष दो शपथ लेनी होती है-पहली, पद के कर्तव्य पालन की तथा दूसरी, गोपनीयता की।
प्रश्न 11.
उच्च न्यायालय के गठन का प्रावधान संविधान के किस अनुच्छेद के अंतर्गत किया गया है?
उत्तर:
उच्च न्यायालय के गठन का प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 214 के अंतर्गत किया गया है।
प्रश्न 12.
उच्च न्यायालय का न्यायाधीश अपना त्यागपत्र किसे संबोधित कर देता है?
उत्तर:
उच्च न्यायालय का न्यायाधीश राष्ट्रपति को संबोधित करके अपना त्याग पत्र दे सकता है।
राज्य सरकार लघूत्तरात्मक प्रश्न (Short Answer Type Questions)
प्रश्न 1.
किन्हीं तीन ऐसी परिस्थितियों का उल्लेख कीजिए, जिससे किसी विधानसभा के सदस्य की सदस्यता का अंत हो जाता
उत्तर:
विधानमंडल के दोनों सदनों की सदस्यता का अंत निम्न में से किसी भी परिस्थिति में हो जाता है|
कोई भी व्यक्ति यदि राज्य विधानमंडल के दोनों सदनों का सदस्य निर्वाचित हो जाता है, तो उसे एक सदन से त्यागपत्र देना होगा। इसी प्रकार कोई भी व्यक्ति राज्य के विधानमंडल और संसद दोनों का एक साथ सदस्य नहीं रह सकता है।
 कोई भी सदस्य यदि विधानमंडल के संबंधित सदन की बैठक में सदन की आज्ञा के बिना लगातार 60 दिन तक अनुपस्थित रहता है।
यदि किसी व्यक्ति के सदन का सदस्य हो चुकने के बाद उसमें सदस्यता के लिए निर्धारित योग्यता नहीं रह जाती है या उसमें कोई निर्धारित अयोग्यता पैदा हो जाती है।
प्रश्न 2.
विधानसभा के अध्यक्ष के कार्यों को संक्षेप में समझाइए।
उत्तर:
विधानसभा के अध्यक्ष के अधिकार तथा कार्य निम्न हैं
वह विधानसभा की बैठकों की अध्यक्षता करता है और सदन की कार्यवाही का संचालन करता है।
सदन में शांति और व्यवस्था बनाए रखना उसका मुख्य उत्तरदायित्व है तथा इस हेतु उसे समस्त आवश्यक कार्यवाही करने का अधिकार है।
सदन का कोई सदस्य सदन में उसकी आज्ञा से ही भाषण दे सकता है।
 वह सदन की कार्यवाही में ऐसे शब्दों को निकाले जाने का आदेश दे सकता है, जो असंसदीय या अशिष्ट हैं।
सदन के नेता के परामर्श से वह सदन की कार्यवाही का क्रम निश्चित कर सकता है।
वह प्रश्नों को स्वीकार करता है या नियम विरूद्ध होने पर उन्हें अस्वीकार करता है।
 वह मतदान पश्चात परिणाम की घोषणा करता है।।
सामान्य परिस्थिति से वह सदन के मतदान में भाग नहीं लेता, लेकिन यदि किसी प्रश्न पर पक्ष और विपक्ष में बराबर मत आए तो वह निर्णायक मत का प्रयोग करता है।
कोई विधेयक धन विधेयक है अथवा नहीं, इसका निर्णय अध्यक्ष ही करता है।
दल-बदल संबंधी याचिकाओं पर निर्णय देता है। अध्यक्ष की अनुपस्थिति में इन सभी कार्यों का संपादन उपाध्यक्ष करता है।
प्रश्न 3.
मान लीजिए आप विधानसभा के अध्यक्ष हैं और आपको सदन के सदस्यगण हटाना चाहते हैं। इसके लिए उन्हें जिस विधि का अनुसरण करना होगा, उसे संक्षेप में समझाइए।
उत्तर:
अगर सदस्यगण विधानसभा के अध्यक्ष को उसके कार्यकाल से पहले हटाना चाहते हैं, तो अध्यक्ष को विधानसभा सदस्यों के बहुमत द्वारा स्वीकृत प्रस्ताव के आधार पर हटाया जा सकता है, किंतु इस प्रकार के प्रस्ताव की सूचना 14 दिन पूर्व अध्यक्ष या उपाध्यक्ष को देना आवश्यक है। अध्यक्ष को विधानसभा सदस्यों के बहुमत द्वारा हटाया जा सकता है। इसके बाद अध्यक्ष अपना त्यागपत्र उपाध्यक्ष को तथा उपाध्यक्ष अपना त्यागपत्र अध्यक्ष को दे सकता है।
प्रश्न 4.
यदि राजस्थान में विधानपरिषद की स्थाना करनी हो, तो क्या विधि अपनानी होगी?
उत्तर:
विधानसभा को विधानपरिषद की उत्पत्ति तथा समाप्ति के लिए संसद से सिफारिशें करने का अधिकार है। अनुच्छेद 169 के अनुसार यदि विधानसभा अपनी पूरी सदस्य संख्या के बहुमत से तथा उपस्थित व मतदान करने वाले सदस्यों की संख्या के दो-तिहाई बहुमत से प्रस्ताव पारित कर देती है तो संसद उस राज्य के लिए विधानपरिषद का सृजन | अथवा समाप्ति के लिए कानून बनाएगी।
प्रश्न 5.
राज्यपाल पद के उम्मीदवार में कौन-सी योग्यताएँ आवश्यक हैं?
उत्तर:
राज्यपाल के पद पर नियुक्ति के लिए दो योग्यताएँ होनी आवश्यक हैं। प्रथम वह भारत का नागरिक हो और द्वितीय, उसकी आयु 35 वर्ष से अधिक हो, राज्यपाल संसद अथवा राज्य के विधानमंडल का सदस्य नहीं हो सकता है और यदि वह किसी सदन का सदस्य है तो राज्यपाल के पद पर नियुक्ति की तिथि से पहले उसे अपनी सदस्यता का त्याग करना होगा। राज्यपाल कोई लाभ का पद धारण नहीं कर सकता।
प्रश्न 6.
राज्यपाल की स्वविवेकीय शक्तियाँ बतलाइए।।
उत्तर:
राज्यपाल स्वविवेक की शक्तियों का उपयोग निम्नलिखित परिस्थितियों में करता है
विशेष परिस्थितियों में मुख्यमंत्री का चयन
 मंत्रिपरिषद को अपदस्थ करना
 विधानसभा का अधिवेशन बुलाना या सत्रावसान करना
 विधानसभा का विघटन
मुख्यमंत्री से सूचना प्राप्त करना
राष्ट्रपति को राज्य की संवैधानिक स्थिति के संबंध में रिपोर्ट भेजना
 राज्य विधानमंडल द्वारा पारित किसी विधेयक को राष्ट्रपति की स्वीकृति हेतु भेजना
विधानमंडल द्वारा पारित किसी विधेयक को स्वीकृति न देकर उसे पुनर्विचार के लिए लौटा देना
 किसी अध्यादेश को प्रस्तुत करने से पूर्व राष्ट्रपति से अनुदेश की याचना करना।
प्रश्न 7.
राज्य मंत्रिपरिषद का गठन किस प्रकार होता है?
उत्तर:
मुख्यमंत्री की नियुक्ति राज्य की मंत्रिपरिषद के गठन का प्रथम चरण है। अनुच्छेद 164 में कहा गया है कि राज्यपाल मुख्यमंत्री की नियुक्ति करेगा और मुख्यमंत्री की सलाह से अन्य मंत्रियों की नियुक्ति करेगा। इस संबंध में निश्चित परम्परा यह है कि राज्य की विधानसभा में बहुमत दल के नेता को राज्यपाल मुख्यमंत्री पद पर नियुक्ति करता है।
अन्य मंत्रियों का चयन मुख्यमंत्री ही करता है और वह मंत्रियों के नामों तथा उनके विभागों की सूची राज्यपाल को देता है। मंत्रिपरिषद का गठन करना मुख्यमंत्री का विशेषाधिकार माना जाता है। मंत्रिपरिषद में कितने सदस्य हों, इसका निर्णय भी मुख्यमंत्री करता है। 91वें संविधान संशोधन अधिनियम द्वारा मंत्रिपरिषद के आकार को विधानसभा सदस्य संख्या का 15 प्रतिशत तक सीमित कर दिया गया है।
प्रश्न 8.
राज्य मंत्रिपरिषद की कार्यप्रणाली को संक्षेप में समझाइए।
उत्तर:
संविधान के द्वारा राज्यपाल को राज्य शासन के संबंध में जो शक्तियाँ प्रदान की गई हैं, व्यवहार में उन सबका उपयोग मंत्रिपरिषद के द्वारा ही किया जाता है। मंत्रिपरिषद शासन संबंधी सभी महत्वपूर्ण निर्णय लेती है और मुख्यमंत्री इन निर्णयों से राज्यपाल को सूचित करता है।
(i) शासन की नीति-निर्धारित करना- मंत्रीपरिषद का सबसे महत्वपूर्ण कार्य शासन की नीति-निर्धारित करना है। चाहे गृह विभाग हो या शिक्षा, स्वास्थ्य अथवा कृषि, शासन की नीति का निर्धारण मंत्रीपरिषद के द्वारा ही किया जाता है। मंत्रिपरिषद न केवल नीति-निर्धारित करती है वरन उसे कार्य-रूप में परिणित करती है।
(ii) उच्च पदों पर नियुक्ति के संबंध में राज्यपाल को परामर्श- संविधान के अनुसार राज्यपाल महाधिवक्ता, राज्य लोकसेवा आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों तथा अन्य उच्च अधिकारियों की नियुक्ति करता है। व्यवहार के अंतर्गत राज्यपाल के द्वारा ये सभी नियुक्तियाँ मंत्रिपरिषद के परामर्श के आधार पर ही की जाती हैं। मंत्रिपरिषद ही राष्ट्रपति को उच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की नियुक्ति के संबंध में परामर्श देती है।
(iii) विधानमंडल में शासन का प्रतिनिधित्व- मंत्रिगण विधानसभा और विधानपरिषद में उपस्थित होकर सदस्यों के प्रश्नों तथा आलोचकों का उत्तर देते हैं और शासन की नीति का समर्थन करते हैं।
(iv) कानून-निर्माण का कार्यक्रम निश्चित करना- मंत्रीपरिषद न केवल शासन वरन कानून-निर्माण के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। विधानमंडल में कौन-कौन से विधेयक तथा किस क्रम में प्रस्तुत किए जाएँगे, इसका निर्णय मंत्रीपरिषद को ही करना होता है।
(v) बजट तैयार करवाना- राज्य का वार्षिक बजट वित्तीय वर्ष के आरंभ होने से पूर्व वित्त मंत्री द्वारा विधानसभा में प्रस्तुत किया जाता है। यह बजट मंत्रीपरिषद द्वारा निश्चित की गई नीति के आधार पर ही तैयार किया जाता है। बजट को पारित कराने का उत्तरदायित्व भी मंत्रीपरिषद का ही होता है।
प्रश्न 9.
उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की नियुक्ति हेतु कोई दो योग्यताएँ बताइए।
उत्तर:
उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की नियुक्ति हेतु योग्यताएँ
भारत का नागरिक हो।
भारत के राज्य क्षेत्र में कम से कम 10 वर्ष न्यायिक पद धारण कर चुका हो।
उच्च न्यायालय का या ऐसे दो या अधिक न्यायालयों का लगातार कम से कम 10 वर्ष तक अधिवक्ता रहा हो।
राज्य सरकार निबंधात्मक प्रश्न (Long Answer Type Questions)
प्रश्न 1.
विधानसभा के गठन, अधिकारों तथा कार्यों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
विधानसभा विधानमंडल का प्रथम और लोकप्रिय सदन है। संविधान में राज्य की विधानसभा के सदस्यों को केवल न्यूनतम और अधिकतम संख्या निश्चित की गई है। संविधान के अनुच्छेद 170 के अनुसार राज्य की विधानसभा के सदस्यों की अधिकतम संख्या 500 और न्यूनतम संख्या 60 होगी। चुनाव के लिए प्रत्येक राज्य को भौगोलिक आधार पर अनेक निर्वाचन क्षेत्रों में इस प्रकार विभाजित किया जाता है कि विधानसभा का प्रत्येक सदस्य कम से कम 75 हजार जनसंख्या का प्रतिनिधित्व करें। विधानसभा की शक्तियाँ और कार्य-राज्य विधानमंडल राज्य की व्यवस्थापिका है और संविधान के द्वारा राज्य विधानमंडल को व्यापक शक्तियाँ प्रदान की गई हैं।
(i) विधायी शक्ति- राज्य के विधानमंडल को सामान्यतया उन सभी विषयों पर कानून-निर्माण की शक्ति प्राप्त है, जो राज्य सूची में और समवर्ती सूची में दिए गए हैं। साधारण विधेयक राज्य विधानमंडल के किसी भी सदन में प्रस्तावित किए जा सकते हैं, किंतु इसके संबंध में अंतिम शक्ति विधानसभा को ही प्राप्त है।
(ii) वित्तीय शक्ति- विधानमंडल मुख्यतया विधानसभा को राज्य के धन पर पूर्ण नियंत्रण प्राप्त होता है। आय-व्यय का वार्षिक लेखा (बजट) विधानसभा से स्वीकृत होने पर ही शासन के द्वारा आय-व्यय से संबंधित कोई कार्य किया जा सकता है। विधानमंडल से विनियोग विधेयक पास होने पर ही सरकार संचित निधि से व्यय हेतु धन निकाल सकती है।
(iii) प्रशासनिक शक्ति- संविधान द्वारा राज्यों के क्षेत्र में भी संसदात्मक व्यवस्था स्थापित किए जाने के कारण राज्य मंत्रिमंडल अपनी नीति और कार्यों के लिए विधानमंडल, विशेषता विधानसभा के प्रति उत्तरदायी होता है। विधानसभा या विधानपरिषदों के सदस्यों द्वारा मंत्रियों से उनके विभागों के संबंध में प्रश्न पूछे जा सकते हैं। मंत्रिमंडल के विरुद्ध निंदा या आलोचना का प्रस्ताव पास किया जा सकता है या काम रोको प्रस्ताव पास किया जा सकता है। इन सबके अतिरिक्त विधानसभा के द्वारा अविश्वास प्रस्ताव पास किया जा सकता है, जिसके कारण मंत्रिमंडल को पद त्याग करना पड़ सकता है।
(iv) संविधान में संशोधन की शक्ति- हमारे संविधान की कुछ धाराएँ ऐसी हैं, जिनमें संशोधन के लिए जरूरी है कि संसद द्वारा विशेष बहुमत के आधार पर पारित प्रस्ताव को कम से कम आधे राज्यों के विधानमंडलों द्वारा स्वीकार किया जाए। राज्य विधानमंडलों को संविधान संशोधन प्रस्तावित करने का अधिकार नहीं है। राज्य विधानमंडल तो केवल अनुसमर्थन या अस्वीकृत कर सकते हैं।
(v) निर्वाचन संबंधी शक्ति- राज्य की विधानसभा के निर्वाचित सदस्य राष्ट्रपति तथा राज्यसभा के सदस्यों के निर्वाचन में भाग लेते हैं।
प्रश्न 2.
विधानपरिषद के गठन, अधिकारों तथा कार्यों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
विधानसभा को विधानपरिषद की उत्पत्ति तथा समाप्ति के लिए संसद से सिफारिशें करने का अथिकार है। अनुच्छेद 169 के अनुसार यदि विधानसभा अपनी पूरी सदस्य संख्या के बहुमत से तथा उपस्थित व मतदान करने वाले सदस्यों की संख्या के दो-तिहाई बहुमत से प्रस्ताव पारित कर देती है, तो संसद उस राज्य के लिए विधानपरिषद का सृजन अथवा समाप्ति के लिए कानून बनाएगी। संविधान में व्यवस्था की गई है कि प्रत्येक राज्य के विधानपरिषद के सदस्यों की संख्या उसकी विधानसभा की संख्या के 1/3 से अधिक नहीं होगी, पर साथ ही यह भी कहा गया है किसी भी दशा में उसकी सदस्य संख्या 40 से कम नहीं होनी चाहिए। जम्मू-कश्मीर को इस संबंध में अवश्य अपवाद रखा गया है। विधानपरिषद के सदस्यों को निम्नलिखित लोग चुनते हैं
(i) स्नातकों के निर्वाचक मंडल- यह ऐसे शिक्षित व्यक्तियों का निर्वाचक मंडल होता है, जो उस राज्य में रहते हों, जिन्होंने स्नातक स्तर की परीक्षा पास कर ली हो और जिन्हें यह परीक्षा पास किए तीन वर्ष से अधिक हो। चुके हों। यह निर्वाचक मंडल विधानपरिषद के 1/12 भाग को चुनता है।
(ii) अध्यापकों का निर्वाचक मंडल- इसमें वे अध्यापक होते हैं, जो राज्य के अंतर्गत किसी माध्यमिक विद्यालय या इससे उच्च शिक्षण संस्था में 3 वर्ष से पढ़ा रहे हों। यह मंडल विधानपरिषद के 1/12 भाग को चुनता है।
(iii) राज्यपाल द्वारा मनोनीत सदस्य- राज्यपाल द्वारा मनोनीत सदस्यों की संख्या 1/6 होती है, जो साहित्य, कला, विज्ञान, सहकारिता और समाज-सेवा के क्षेत्रों में विशेष रुचि रखते हों।
(iv) अन्य तरीके से निर्वाचित- कुल सदस्यों का 5/6 भाग सदस्यों का चुनाव अन्य तरीके से होता है। विधानपरिषद के अधिकार और शक्तियाँ-विधानपरिषद के अधिकार तथा कार्यों का उल्लेख निम्न रूपों में किया जा सकता है.
कानून-निर्माण संबंधी कार्य-धन विधेयक को छोड़कर अन्य विधेयक राज्य में विधानमंडल के किसी भी सदन प्रस्तावित किए जा सकते हैं। धन विधेयक को छोड़कर अन्य विधेयक में विधानपरिषद को उतना ही अधिकार प्राप्त है, जितना विधानसभा को।
कार्यपालिका संबंधी कार्य- विधानपरिषद के सदस्य मंत्रिपरिषद के सदस्य हो सकते हैं। विधानपरिषद प्रश्नों,
प्रस्तावों तथा वाद-विवाद के आधार पर मंत्रिपरिषद को नियंत्रित कर सकती है, किंतु उसे मंत्रिपरिषद को पदच्युत करने का अधिकार नहीं है। यह कार्य केवल विधानसभा के ही द्वारा किया जा सकता है।
 वित्त संबंधी कार्य- संविधान में स्पष्ट रूप से उल्लेख कर दिया गया है कि धन विधेयक केवल विधानसभा में ही प्रस्तावित किए जा सकते हैं, विधानपरिषद में नहीं। विधानसभा जब किसी धन विधेयक को पारित कर सिफारिशों के लिए विधानपरिषद के पास भेजती है, तो विधानपरिषद 14 दिन तक धन विधेयक को अपने पास रोक सकती है। यदि वह 14 दिन के भीतर अपनी सिफारिशों सहित विधेयक विधानसभा को नहीं लौटाती है, तो वह विधेयक उस रूप में दोनों सदनों से पारित समझा जाता है, जिस रूप में उसे विधानसभा ने पारित किया था।
प्रश्न 3.
राज्य विधानमंडल में साधारण विधेयक के पारित होने की प्रक्रिया बतलाइए।
उत्तर:
राज्य के विधानमंडल को सामान्यतया उन सभी विषयों पर कानून-निर्माण की शक्ति प्राप्त है, जो राज्य सूची में और समवर्ती सूची में दिए गए हैं। साधारण विधेयक राज्य विधानमंडल के किसी भी सदन में प्रस्तावित किए जा सकते हैं, किंतु इसके संबंध में अंतिम शक्ति विधानसभा को ही प्राप्त है। साधारण विधेयक दोनों सदनों द्वारा स्वीकृत होने चाहिए। लेकिन इसके साथ ही संविधान के अनुच्छेद 197 में कहा गया है कि यदि कोई विधेयक विधानसभा में पारित होने के पश्चात विधानपरिषद द्वारा अस्वीकृत कर दिया जाता है या परिषद् विधेयक में ऐसे संशोधन करती है, जो विधानसभा को स्वीकार्य नहीं होते या परिषद के समक्ष विधेयक रखे जाने की तिथि से तीन माह तक विधेयक पारित नहीं किया जाता है, तो विधानसभा उस विधेयक को पुनः स्वीकृत करके विधानपरिषद को भेजती है। यदि परिषद विधेयक को पुनः अस्वीकृत कर देती है
अथवा विधेयक रखे जाने की तिथि से एक माह बाद तक विधेयक पास नहीं करती या परिषद विधेयक में पुनः ऐसे संशोधन करती है, जो विधानसभा को स्वीकार नहीं होते, तो विधेयक विधानपरिषद द्वारा पारित किए जाने के बिना ही दोनों सदनों द्वारा पारित समझा जाता है। इस प्रकार विधानपरिषद किसी साधारण विधेयक को केवल चार माह तक रोक सकती है। विधानपरिषद किसी विधेयक को समाप्त नहीं कर सकती। दोनों सदनों में साधारण विधेयक पारित होने के बाद उसे राज्यपाल के पास हस्ताक्षर के लिए भेजा जाता है। राज्यपाल के हस्ताक्षर के उपरांत कोई भी विधेयक कानून का रूप ले लेता है।
प्रश्न 4.
राज्यपाल की नियुक्ति एवं शक्तियों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
राज्यपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। उसकी नियुक्ति 5 वर्ष की अवधि के लिए की जाती है, लेकिन वह अपने उत्तराधिकारी के पद ग्रहण करने तक अपने पद पर बना रह सकता है। राज्यपाल को उसकी कार्य अवधि 5 वर्ष पूर्व भी राष्ट्रपति के द्वारा हटाया जा सकता है या एक राज्य से दूसरे राज्य में स्थानांतरण किया जा सकता है। राज्यपाल यदि चाहे तो समय से पूर्व भी स्वयं अपना पद त्याग सकता है। राज्यपाल की शक्तियाँ और कार्य-संविधान के द्वारा राज्यपाल को पर्याप्त और व्यापक शक्तियाँ प्रदान की गई हैं। राज्य में राज्यपाल की वही स्थिति है, जो केंद्र में राष्ट्रपति की है।
(i) कार्यपालिका शक्तियाँ- राज्य की कार्यपालिका शक्तियाँ राज्यपाल में निहित है, जिनका प्रयोग वह स्वयं तथा | अधीनस्थ पदाधिकारियों द्वारा करता है। वह मुख्यमंत्री की नियुक्ति करता है तथा उसके परामर्श पर अन्य मंत्रियों की। वह राज्य लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति करता है।
(ii) विधायी शक्तियाँ- राज्यपाल राज्य की व्यवस्थापिका का एक अविभाज्य अंग है। वह व्यवस्थापिका को अधिवेशन बुलाता है, स्थगित करता है और व्यवस्थापिका के निम्न सदन विधानसभा को भंग कर सकता है। आम चुनाव के बाद वह विधानमंडल की पहली बैठक को संबोधित करता है। राज्य विधानसभा द्वारा पारित विधेयक पर राज्यपाल की स्वीकृति आवश्यक है। वह विधेयक को अस्वीकृत कर सकता है या उसे पुनर्विचार के लिए विधानमंडल को लौटा सकता है।
यदि विधानमंडल दूसरी बार विधेयक पारित कर देता है, तो राज्यपाल को स्वीकृति देनी ही होगी। कुछ विधेयकों को वह राष्ट्रपति के विचार के लिए रक्षित रख सकता है। यदि राज्य के विधानमंडल का अधिवेशन न हो रहा हो, तो राज्यपाल अध्यादेश जारी कर सकता है। यह अध्यादेश विधानमंडल की बैठक आरंभ होने के 6 सप्ताह के बाद तक लागू रहता है। राज्यपाल विधानपरिषद के 1/6 भाग सदस्यों को मनोनीत करता है।
(iii) वित्तीय शक्तियाँ- राज्यपाल को कुछ वित्तीय शक्तियाँ भी प्राप्त हैं। राज्य विधानसभा में राज्यपाल की पूर्व स्वीकृति के बिना कोई भी धन विधेयक प्रस्तुत नहीं किया जा सकता। वह व्यवस्थापिका के समक्ष प्रति वर्ष बजट प्रस्तुत करवाता है और उसकी अनुमति के बिना किसी भी अनुदान की माँग नहीं की जा सकती है। राज्यपाल विधानमंडल से पूरक, अतिरिक्त तथा अधिक अनुदानों की भी माँग कर सकता है। राज्य की संचित निधि राज्यपाल के ही अधिकार में रहती है।
(iv) न्यायिक शक्तियाँ- फौजदारी मामले में न्यायालय द्वारा सजा दिए गए व्यक्ति की सजा को राज्यपाल कम कर सकता है या माफ कर सकता है।
(v) स्वविवेक की शक्तियाँ- राज्यपाल को स्वविवेक की शक्तियाँ प्राप्त हैं।
प्रश्न 5.
राज्य मंत्रिपरिषद के गठन एवं शक्तियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
संविधान द्वारा राज्यों में भी संसदात्मक शासन-व्यवस्था स्थापित की गई है और संसदात्मक शासन में राज्य की वास्तविक कार्यपालिका शक्ति मंत्रिपरिषद में निहित होती है, जो कि राज्य की विधानसभा के प्रति उत्तरदायी होती है। मंत्रिपरिषद का गठन-मुख्यमंत्री की नियुक्ति राज्य के मंत्रिपरिषद के गठन का प्रथम चरण है। राज्यपाल मुख्यमंत्री की नियुक्ति करता है और मुख्यमंत्री की सलाह से अन्य मंत्रियों की नियुक्ति करता है। मंत्रिपरिषद का गठन करना मुख्यमंत्री का विशेषाधिकार माना जाता है। मंत्रिपरिषद में कितने सदस्य हों, इसका निर्णय भी मुख्यमंत्री करता है। राज्यों की मंत्रिपरिषद में तीन श्रेणियाँ होती है-
 कैबिनेट मंत्री
 राज्य मंत्री
 उपमंत्री।
मंत्रिपरिषद की शक्तियाँ एवं कार्य
शासन की नीति निर्धारित करना-मंत्रिपरिषद का सबसे महत्वपूर्ण कार्य शासन की नीति निर्धारण करना है।
 उच्च पदों पर नियुक्ति के संबंध में राज्यपाल को परामर्श।
विधानमंडल में शासन का प्रतिनिधित्व।
कानून-निर्माण का कार्यक्रम निश्चित करना।
बजट तैयार करना।
प्रश्न 6.
राज्य प्रशासन में मुख्यमंत्री की भूमिका की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
मुख्यमंत्री राज्य के बहुमत दल का नेता होता है। वह राज्य के प्रशासन में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। मुख्यमंत्री को निम्न शक्तियाँ प्राप्त हैं
(i) मंत्रिपरिषद का निर्माण- मुख्यमंत्री का मुख्य कार्य अपने मंत्रिपरिषद का निर्माण करना होता है। मुख्यमंत्री मंत्रियों का चयन कर सूची राज्यपाल को देता है, जिसे राज्यपाल स्वीकार कर लेता है। मंत्रियों के चयन में मुख्यमंत्री बहुत कुछ सीमा तक अपने विवेक के अनुसार कार्य करता है।
(ii) मंत्रियों के कार्य का बँटवारा- मुख्यमंत्री मंत्रिपरिषद के अपने सहयोगियों के बीच विभागों का बँटवारा करता
(iii) मंत्रिमंडल का कार्य संचालन- मुख्यमंत्री ही मंत्रिमंडल की बैठकें बुलाता है तथा उनकी अध्यक्षता करता है। । बैठक के लिए ऐजेंडा या कार्यसूची मुख्यमंत्री द्वारा ही तैयार की जाती है। मंत्रिमंडल की समस्त कार्यवाही मुख्यमंत्री के निर्देशानुसार होती है।
(iv) मंत्रिपरिषद और राज्यपाल के बीच संबंध स्थापित- कर्ता-संविधान के अनुसार मुख्यमंत्री पर भार है कि मंत्रिपरिषद और राज्यपाल के बीच संपर्क स्थापित करे। वह मंत्रिमंडल के निर्णयों की सूचना राज्यपाल को देता
(v) विधानसभा का नेता- मुख्यमंत्री सदन का नेता होता है। विधानसभा के नेता के रूप में उसे कानून-निर्माण
के क्षेत्र में महत्वपूर्ण स्थिति प्राप्त होती है और बहुत कुछ सीमा तक कानून-निर्माण कार्य उसकी इच्छानुसार ही संपन्न होता है। विधानसभा के नेता के रूप में वह राज्यपाल को विधानसभा भंग करने का परामर्श भी दे सकता है।
प्रश्न 7.
उच्च न्यायालय के संगठन एवं क्षेत्राधिकार को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारत में एकीकृत न्यायपालिका है, जिसके सर्वोच्च स्तर पर उच्चतम न्यायालय है। उच्चतम न्यायालय के पश्चात न्यायपालिका में उच्च न्यायालय का स्थान आता है। राज्य स्तर पर सर्वोच्च न्यायिक संस्था उच्च न्यायालय है। अनुच्छेद 216 के अनुसार प्रत्येक उच्च न्यायालय मुख्य न्यायमूर्ति और ऐसे अन्य न्यायाधीशों से मिलकर बनेगा, जिनको राष्ट्रपति समय-समय पर नियुक्त करना आवश्यक समझे। इस प्रकार उच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की संख्या राष्ट्रपति निर्धारित करेगा। उच्च न्यायालय के क्षेत्राधिकार-इसका तात्पर्य प्रथमतः उच्च न्यायालय द्वारा विवादों की सुनवाई करने के क्षेत्र से है। ये क्षेत्र हैं|
(i) संसद एवं राज्य विधानमंडल सदस्यों के निर्वाचन संबंधी विवाद।
(ii) मौलिक अधिकार व वसीयत, विवाह से संबंधित विवाद, कंपनी कानून आदि।
(iii) याचिका- अनुच्छेद 226 के अंतर्गत उच्च न्यायालय बंदी प्रत्यक्षीकरण, परमादेश, प्रतिषेध, उत्प्रेषण तथा अधिकार पृच्छा याचिका जारी कर सकता है। जहाँ सर्वोच्च न्यायालय अनुच्छेद 32 के तहत केवल मौलिक अधिकारों के लिए याचिका जारी कर सकता है। वहीं उच्च न्यायालय मौलिक अधिकारों के साथ-साथ अन्य मामलों के लिए याचिका जारी कर सकता है।
(iv) अपीलीय क्षेत्राधिकार- उच्च न्यायालय के अपीलीय क्षेत्राधिकार को निम्न भागों में बाँटा जा सकता है
(क) सिविल अपीलीय क्षेत्राधिकार- आयकर, पेटेन्ट, डिजाइन, उत्तराधिकार आदि मामलों में जिला न्यायालय के विरुद्ध उच्च न्यायालय में अपील की जा सकती है।
(ख) आपराधिक अपीलीय क्षेत्राधिकार- जब अपराधी को सेशन न्यायालय ने चार वर्ष के लिए कारावास दंड दिया है या मृत्यु दंड दिया है, तो उसके विरुद्ध उच्च न्यायालय में ही अपील की जा सकती है।
(ग) संवैधानिक अपीलीय क्षेत्राधिकार- कोई भी ऐसा मुकदमा, जिसमें संविधान की व्याख्या का प्रश्न हो, तो उच्च न्यायालय में अपील की जा सकती है।
अतिरिक्त प्रश्नोत्तर (More Questions Solved)
राज्य सरकार अति लघूत्तरात्मक प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)
प्रश्न 1.
राज्य का वैधानिक प्रधान कौन है?
उत्तर:
राज्यपाल।
प्रश्न 2.
राज्य का वास्तविक प्रधान कौन है?
उत्तर:
मुख्यमंत्री।
प्रश्न 3.
संविधान के अनुच्छेद 170 के अनुसार राज्य विधानसभा की अधिकतम और न्यूनतम संख्या कितनी होगी?
उत्तर:
संविधान के अनुच्छेद 170 के अनुसार राज्य विधानसभा की अधिकतम संख्या 500 और न्यूनतम संख्या 60 होगी।
प्रश्न 4.
राज्यपाल विधानसभा में किस स्थिति में और कितने सदस्यों को मनोनीत कर सकता है?
उत्तर:
राज्य की विधानसभा के निर्वाचन के बाद यदि संबंधित राज्य का राज्यपाल यह अनुभव करता है कि विधानसभा में आंग्ल-भारतीय समुदाय को उचित प्रतिनिधित्व नहीं मिला है, तो वह उस समुदाय के एक सदस्य को विधानसभा में मनोनीत कर सकता है।
प्रश्न 5.
संविधान के 95वें संशोधन के अनुसार अनुसूचित जातियों व जनजातियों के लिए विधानसभाओं में कब तक आरक्षण कर दिया गया है?
उत्तर:
राज्य की विधानसभाओं में अनुसूचित जातियों व जनजातियों के लिए स्थानों के आरक्षण की व्यवस्था (95वें संवैधानिक संशोधन 2009 के अनुसार) जनवरी 2020 ई० तक के लिए कर दी गई है।
प्रश्न 6.
विधानसभा के सदस्यों के चुनाव की निर्वाचन पद्धति क्या है?
उत्तर:
विधानसभा के सदस्यों का चुनाव मतदाताओं द्वारा प्रत्यक्ष रूप से होता है। चुनाव के लिए वयस्क मताधिकार और संयुक्त निर्वाचन प्रणाली तथा साधारण बहुमत की पद्धति अपनाई गई है।
प्रश्न 7.
विधानपरिषद का चुनाव किस पद्धति से कराया जाता है?
उत्तर:
विधानपरिषद के सदस्य अप्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित होते हैं तथा इनका चुनाव आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति के अनुसार एकल संक्रमणीय मत पद्धति द्वारा होता है।
प्रश्न 8.
भारत में स्थापित होने वाले प्रथम चार उच्च न्यायालयों के नाम बताएँ।
उत्तर:
भारत में सर्वप्रथम उच्च न्यायालय 1862 में कलकत्ता, बॉम्बे एवं मद्रास में स्थापित किए गए। 1866 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय की स्थापना की गई।
प्रश्न 9.
वर्तमान में भारत में कितने उच्च न्यायालय हैं?
उत्तर:
वर्तमान में भारत में 24 उच्च न्यायालय हैं।
प्रश्न 10.
उच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की संख्या कौन निर्धारित करता है?
उत्तर:
उच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की संख्या राष्ट्रपति निर्धारित करता है।
प्रश्न 11.
राज्यपाल और मंत्रिपरिषद के बीच कौन संपर्क स्थापित करता है?
उत्तर:
राज्यपाल और मंत्रिपरिषद के बीच मुख्यमंत्री संपर्क स्थापित करता है।
प्रश्न 12.
विधानसभा का प्रत्येक सदस्य कम से कम कितनी जनसंख्या का प्रतिनिधित्व करता है?
उत्तर:
विधानसभा का प्रत्येक सदस्य कम से कम 75 हजार जनसंख्या का प्रतिनिधित्व करता है।
प्रश्न 13.
91वें संविधान संशोधन अधिनियम के द्वारा मंत्रिपरिषद् का आकार कितना निश्चित किया गया है?
उत्तर:
91वें संविधान संशोधन अधिनियम के द्वारा मंत्रिपरिषद के आकार को विधानसभा सदस्य संख्या का 15 प्रतिशत तक सीमित कर दिया गया है।
प्रश्न 14.
किस अनुच्छेद के अंतर्गत राज्य में राष्ट्रपति शासन की सिफारिश की जा सकती है?
उत्तर:
अनुच्छेद 356 के अंतर्गत राज्य में राष्ट्रपति शासन की सिफारिश केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा की जा सकती है।
प्रश्न 15.
विधानसभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष को उसके पद से हटाने की सूचना कितने दिन पहले देना आवश्यक है?
उत्तर:
विधानसभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष को उसके पद से हटाने की सूचना 14 दिन पहले देना आवश्यक है।
प्रश्न 16.
विधानसभा जब किसी धन विधेयक को पारित कर सिफारिशों के लिए विधानपरिषद के पास भेजती है तो विधानपरिषद उसे कितने दिन तक रोक सकती है?
उत्तर:
विधानसभा जब किसी धन विधेयक को पारित कर सिफारिशों के लिए विधानपरिषद के पास भेजती है तो विधानपरिषद उसे 14 दिन तक रोक सकती है।
राज्य सरकार लघूत्तरात्मक प्रश्न (Short Answer Type Questions)
प्रश्न 1.
विधानसभा के सदस्यों की क्या योग्यताएँ होनी चाहिए?
उत्तर:
विधानसभा के सदस्यों की निम्न योग्यताएँ होनी चाहिए
वह भारत का नागरिक हो।
उसकी आयु कम से कम 25 वर्ष हो।
वह भारत सरकार या राज्य सरकार के अधीन लाभ का पद धारण किए हुए न हो।
वह पागल या दिवालिया घोषित न किया जा चुका हो।
वह संसद या राज्य के विधानमंडल द्वारा निर्धारित शर्तों की पूर्ति करता हो।
प्रश्न 2.
विधानसभा का कार्यकाल कितना होता है। इसे कार्यकाल से पहले कब भंग किया जा सकता है?
उत्तर:
राज्य विधानसभा का कार्यकाल 5 वर्ष होता है। मुख्यमंत्री की सिफारिश पर राज्यपाल विधानसभा को 5 वर्ष से पहले भी भंग कर सकता है या राज्य सरकार अल्पमत में आ गई हो या राज्य की शांति-व्यवस्था भंग होने पर या राज्य का शासन संविधान के अनुकूल नहीं चलने पर, राज्यपाल राज्य में 5 वर्ष से पहले राष्ट्रपति शासन की। घोषणा कर सकता है।
यदि संकटकाल की घोषणा प्रवर्तन में हो, तो संसद विधि द्वारा विधानसभा का कार्यकाल बढ़ा सकती है जो एक बार में एक वर्ष से अधिक नहीं होगा तथा किसी भी अवस्था में संकटकाल की घोषणा समाप्त हो जाने के बाद 6 माह की अवधि से अधिक नहीं होगा।
प्रश्न 3.
भारतीय संविधान के अनुसार विधानपरिषद के सदस्यों की अधिकतम और न्यूनतम सीमा क्या है?
उत्तर:
राज्य के विधानमंडल का द्वितीय या उच्च सदन विधानपरिषद होता है। संविधान में व्यवस्था की गई है कि प्रत्येक राज्य | की विधानपरिषद के सदस्यों की संख्या उसकी विधानसभा के सदस्यों की संख्या के 1/3 से अधिक नहीं होगी, पर साथ ही यह भी कहा गया है कि किसी भी दशा में उसकी सदस्य संख्या 40 से कम नहीं होनी चाहिए। जम्मू-कश्मीर को इस संबंध में अवश्य ही अपवाद रखा गया है।
प्रश्न 4.
विधानपरिषद के सदस्यों की योग्यताएँ तथा कार्यकाल के बारे में व्याख्या करें।
उत्तर:
विधानपरिषद के सदस्यों की योग्यताएँ- विधानपरिषद की सदस्यता के लिए वे ही योग्यताएँ हैं, जो विधानसभा की सदस्यता के लिए हैं, अंतर केवल यह है कि विधानपरिषद की सदस्यता के लिए आयु 30 वर्ष होनी चाहिए। इसके अतिरिक्त निर्वाचित सदस्य को उस राज्य की विधानसभा के निर्वाचन क्षेत्र का निर्वाचक होना चाहिए।
कार्यकाल- विधानपरिषद स्थायी सदन है। पूरी विधानपरिषद कभी भी भंग नहीं होती और उसे राज्यपाल द्वारा भी भंग नहीं किया जा सकता। विधानपरिषद के सदस्यों का कार्यकाल 6 वर्ष है। प्रति दो वर्ष के पश्चात एक-तिहाई सदस्य अपना पद छोड़ देते हैं और उनके स्थान के लिए नए निर्वाचन होते हैं।
प्रश्न 5.
राजस्थान विधानपरिषद के गठन की प्रक्रिया व वर्तमान स्थिति क्या है?
उत्तर:
राजस्थान में वर्तमान में राज्य विधानमंडल का प्रथम सदन ही है, जिसे विधानसभा के नाम से जाना जाता है। विधानपरिषद के गठन संबंधी प्रस्ताव विधानसभा ने पास कर केंद्र सरकार की अनुमति एवं अनुमोदन हेतु भेजा है। वर्तमान में गठन संबंधी प्रस्ताव केंद्र सरकार के पास है। अत: राजस्थान में विधानमंडल का द्वितीय सदन नहीं है। केंद्र सरकार के अनुमोदन के पश्चात गठन की प्रक्रिया प्रारंभ की जाएगी।
प्रश्न 6.
राज्यपाल की नियुक्ति के संबंध में स्वस्थ परंपराएँ क्या है तथा राज्यपाल को कितना वेतन मिलता है?
उत्तर:
राज्यपाल की नियुक्ति के संबंध में भारतीय संविधान लागू होने के बाद से अब तक कुछ स्वस्थ परंपराएँ विकसित हुई हैं|
राज्यपाल उस राज्य का निवासी नहीं होना चाहिए, जिस राज्य में उसे राज्यपाल बनाया जा रहा है।
राज्यपाल की नियुक्ति से पूर्व केंद्रीय सरकार संबंधित राज्य के मुख्यमंत्री से परामर्श करे तथा उससे सहमति प्राप्त करे। वेतन व भत्ते-वर्तमान में राज्यपाल को 1 लाख 10 हजार रुपये मासिक वेतन प्राप्त होता है। इसके अतिरिक्त उसे नि:शुल्क निवास स्थान, भत्ते एवं अन्य सब सुविधाएँ प्राप्त होती हैं, जिन्हें संसद ने कानून के द्वारा निर्धारित किया है। राज्यपाल के वेतन तथा भत्ते भारत की संचित निधि पर भारित होने के कारण मत निरपेक्ष हैं।
प्रश्न 7.
उच्च न्यायालय की स्वतंत्रता के लिए क्या व्यवस्था की गई है?
उत्तर:
उच्च न्यायालय की स्वतंत्रता के लिए निम्न व्यवस्थाएँ की गई हैं।
नियुक्ति के लिए विशेष प्रक्रिया।
निश्चित कार्यकाल।
संसद में न्यायाधीशों के आचरण पर महाभियोग के अतिरिक्त चर्चा नहीं।
उच्च न्यायालय का न्यायाधीश अवकाश ग्रहण करने के बाद उन न्यायालयों में निजी प्रैक्टिस नहीं करेगा, जहाँ | वह स्थायी न्यायाधीश रह चुका हो।
कार्यपालिका से पृथक्करण।
राज्य सरकार निबंधात्मक प्रश्न (Long Answer Type Questions)
प्रश्न 1.
विधानपरिषद के सदस्यों का निर्वाचन तथा मनोनयन किस प्रकार होता है?
उत्तर:
विधानपरिषद के लगभग 5/6 सदस्यों को निर्वाचित किया जाता है तथा शेष लगभग 1/6 सदस्यों को मनोनीत किया जाता है। विधानपरिषद के सदस्य अप्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित होते हैं तथा चुनाव आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति के अनुसार एकल संक्रमणीय मत पद्धति द्वारा होता है। निम्नलिखित निर्वाचक मंडल विधानपरिषद के सदस्यों का चुनाव करते हैं।
स्थानीय संस्थाओं का निर्वाचक मंडल- समस्त सदस्यों का निकटतम एक-तिहाई उस राज्य की नगरपालिकाओं, जिला परिषदों और ऐसी अन्य स्थानीय संस्थाओं द्वारा चुना जाता है, जैसा कि संसद कानून द्वारा निर्धारित किया जाता है।
विधानसभा का निर्वाचक मंडल- कुल संख्या के एक-तिहाई सदस्यों का निर्वाचन विधानसभा के सदस्य ऐसे व्यक्तियों में से करते हैं, जो विधानसभा के सदस्य न हों।
 स्नातकों का निर्वाचन मंडल- यह ऐसे शिक्षित व्यक्तियों का निर्वाचक मंडल होता है, जो उस राज्य में रहते हों और जिन्होंने स्नातक स्तर की परीक्षा पास कर ली हो तथा जिन्हें यह परीक्षा पास किए तीन वर्ष से अधिक हो चुके हों, यह निर्वाचक मंडल कुल सदस्यों के यथाशक्य निकटतम 1/12 भाग को चुनता है।
अध्यापकों का निर्वाचक मंडल- इसमें वे अध्यापक होते हैं, जो राज्य के अंतर्गत किसी माध्यमिक विद्यालय या इससे उच्च शिक्षण संस्था में 3 वर्ष से पढ़ा रहे हों। यह निर्वाचक मंडल कुल सदस्यों के 1/12 भाग को चुनता है।
राज्यपाल द्वारा मनोनीत सदस्य- उपर्युक्त प्रकार के कुल सदस्य संख्या के लगभग 5/6 सदस्यों को तो निर्वाचित किया जाता है, शेष अर्थात कुल संख्या के लगभग 1/6 सदस्य राज्यपाल द्वारा उन व्यक्तियों में से मनोनीत किए जाते हैं, जो साहित्य, विज्ञान, कला, सहकारिता और समाज सेवा के क्षेत्रों में विशेष रुचि रखते हों।
प्रश्न 2.
उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के कार्यकाल, शपथ, स्थानांतरण तथा वेतन के बारे में व्याख्या करें।
उत्तर:
कार्यकाल-अनुच्छेद 217(1) के अंतर्गत न्यायाधीश के कार्यकाल संबंधी प्रावधान हैं
वह 62 वर्ष की आयु तक पद धारण करेगा।
न्यायाधीश राष्ट्रपति को संबोधित करके अपना त्याग-पत्र दे सकता है।
 न्यायाधीश को गलत आचरण, भ्रष्टाचार आदि के कारण संसद के दोनों सदनो के दो-तिहाई बहुमत से पारित प्रस्ताव के बाद राष्ट्रपति के आदेश द्वारा हटाया जा सकता है।
न्यायाधीश द्वारा शपथ- अनुच्छेद 219 के अनुसार उच्च न्यायालय का न्यायाधीश राज्य के राज्यपाल या उसके द्वारा नियुक्त व्यक्ति के समक्ष शपथ लेगा।
न्यायाधीशों का स्थानांतरण- उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों का स्थानांतरण राष्ट्रपति उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के परामर्श के बाद करता है।
न्यायाधीशों के वेतन- अनुच्छेद 221 के अनुसार उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के वेतन संसद द्वारा तय की जाएगी। वर्तमान में मुख्य न्यायाधीश को 90,000 रुपये व अन्य न्यायाधीशों को 80,000 रुपये मासिक वेतन मिलता है।
प्रश्न 3.
उच्च न्यायालय के कार्यक्षेत्र एवं शक्तियों के बारे में व्याख्या करें।
उत्तर:
उच्च न्यायालय के कार्यक्षेत्र एवं शक्तियाँ निम्न हैं
(i) मूल क्षेत्राधिकार- उच्च न्यायालय संसद एवं राज्य विधानमंडल सदस्यों के निर्वाचन संबंधी विवाद, राजस्व एकत्रीकरण संबंधी विवाद, मौलिक अधिकार व वसीयत, विवाह विधि, कंपनी कानून तथा विवाह विच्छेद आदि के मुकदमे की सुनवाई करता है।
(ii) याचिका अधिकारिता- अनुच्छेद 226 के अंतर्गत उच्च न्यायालय बंदी प्रत्यक्षीकरण, परमादेश, प्रतिषेध, उत्प्रेषण तथा अधिकार पृच्छा याचिका जारी कर सकता है।
(iii) अपीलीय क्षेत्राधिकार- उच्च न्यायालय के अपीलीय क्षेत्राधिकार को निम्न भागों में बाँटा जा सकता है सिविल अपीलीय क्षेत्राधिकार-आयकर, पेटेण्ट, डिजाइन, उत्तराधिकार आदि मामलों में जिला न्यायालय के विरुद्ध उच्च न्यायालय में अपील की जा सकती है। आपराधिक अपीलीय क्षेत्राधिकार-जब अपराधी को सेशन न्यायालय ने चार वर्ष के लिए कारावास दंड दिया है या मृत्यु दंड दिया है, तो उसके विरुद्ध अपील उच्च न्यायालय में हो सकती है। संवैधानिक अपीलीय क्षेत्राधिकार-कोई भी ऐसा मुकदमा, जिसमें संविधान की व्याख्या का प्रश्न हो, तो उच्च न्यायालय में अपील की जा सकती है।
(iv) अभिलेख न्यायालय- अनुच्छेद 215 के अंतर्गत प्रत्येक उच्च न्यायालय अभिलेख न्यायालये होगा और उसको अवमानना के लिए दंड देने की शक्ति है। उच्च न्यायालय के निर्णय रिकॉर्ड की तरह सुरक्षित रखे जाएँगे और वे अधीनस्थ न्यायालय के लिए कानून की तरह कार्य करेंगे।
(v) प्रशासन संबंधी अधिकार- उच्च न्यायालय अपने अधीन किसी न्यायालय के पत्रों/निर्णय को मँगवा सकता है। और उनकी जाँच पड़ताल करवा सकता है। उच्च न्यायालय यह निगरानी रखता है कि अधीनस्थ न्यायालय अपनी शक्ति-सीमा का उल्लंघन तो नहीं कर रहा तथा अपने कर्तव्यों का ठीक से निर्वाह कर रहा है। वह किसी भी अभियोग को एक न्यायालय से हटाकर दूसरे न्यायालय में विचार तथा निर्णय के लिए भेज सकता है।
(vi) न्यायिक पुनरावलोकन- उच्च न्यायालय केंद्र व राज्य विधायिका व कार्यपालिका के कार्यों को वैध या अवैध घोषित कर सकता है।


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