कक्षा 10वी सामाजिक विज्ञान लोकतंत्र का संपूर्ण महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर CLASS 10Th Social Science Democracy All Questions and Answer in Hindi - ULTIMATE STUDY SUPPORT
प्रश्न 1.
‘Democracy’ शब्द ग्रीक भाषा के किन शब्दों के संयोग से बना है और उसका प्रचलित व स्वीकृत अर्थ क्या है?
उत्तर:
अंग्रेजी शब्द Democracy का हिन्दी अनुवाद है-लोकतंत्र, जनतंत्र अथवा प्रजातंत्र। अंग्रेजी शब्द Democracy ग्रीक भाषा के दो शब्दों ‘डेमोस’ तथा ‘क्रेटिया’ के संयोग से बना है। यद्यपि ‘डेमोस’ का मूल अर्थ है भीड़ किंतु आधुनिक काल में इसका अर्थ जनता से लिया जाने लगा है और ‘क्रेटिया’ का अर्थ है ‘शक्ति’। इस प्रकार शब्दार्थ की दृष्टि से ‘डेमोक्रेसी’ का अर्थ है ‘जनता की शक्ति’। इस डेमोक्रेसी का अर्थ है जनता की शक्ति पर आधारित शासनतंत्र।
प्रश्न 2.
लोकतांत्रिक शासन प्रणाली के दो प्रमुख भेद कौन-से हैं?
उत्तर:
लोकतांत्रिक शासन प्रणालियों के दो प्रमुख प्रकार स्वीकार किये जाते हैं-
प्रत्यक्ष लोकतंत्र
अप्रत्यक्ष लोकतंत्र।
प्रत्यक्ष लोकतंत्र-प्रत्यक्ष लोकतंत्र के अंतर्गत जनता स्वयं प्रत्यक्ष रूप से राज्य की प्रभुत्व शक्ति का पूर्ण प्रयोग | करती है। वह नीति संबंधी फैसले लेती है, कानून बनाती है तथा प्रशासनिक अधिकारियों को नियुक्त करती है।
अप्रत्यक्ष लोकतंत्र-इस शासन में जनता स्वयं प्रत्यक्ष रूप से शासन की शक्ति का प्रयोग नहीं करती है अपितु अपने प्रतिनिधियों के माध्यम से प्रभुत्व शक्ति का प्रयोग करती है।
प्रश्न 3.
उदारवादी प्रतिनिधि (अप्रत्यक्ष) लोकतांत्रिक शासन प्रणाली के दो प्रमुख प्रकार कौन से हैं?
उत्तर:
उदारवादी विचारकों ने समस्त राजनीतिक लोकतंत्र के दो रूपों का उल्लेख किया है
राज्य के एक प्रकार के रूप में लोकतंत्र
शासन के एक प्रकार के रूप में लोकतंत्र।
राज्य के एक प्रकार के रूप में लोकतंत्र का अर्थ लोकतांत्रिक राज्य से है। लोकतांत्रिक राज्य की अवधारणा के अनुसार प्रभुसत्ता का निवास जनता में होता है और इसलिए जनता को सरकार के निर्माण, उसके नियंत्रण तथा उसको पदच्युत करने की पूर्ण व अंतिम शक्ति भी प्राप्त होती है।
शासन के एक प्रकार के रूप में लोकतंत्र का अर्थ लोकतांत्रिक शासन से है। वास्तव में लोकतांत्रिक शासन की अवधारणा लोकतांत्रिक राज्य की अवधारणा के सैद्धांतिक पक्ष का ही विकसित एवं व्यवहारिक रूप है। यह उल्लेखनीय है कि राजनीतिक लोकतंत्र से संबंधित ये दोनों अवधारणाएँ कानूनी प्रभुसत्ता पर राजनीतिक प्रभुसत्ता की श्रेष्ठता को स्वीकार करती है।
प्रश्न 4.
लोकतंत्र के एक रूप ‘सामाजिक लोकतंत्र’ का क्या अर्थ है?
उत्तर:
सामाजिक लोकतंत्र का अर्थ है कि समाज में नस्ल, रंग (वर्ण), जाति, धर्म, भाषा, लिंग, धन, जन्म आदि के आधार पर व्यक्तियों के बीच विभेद नहीं किया जाना चाहिए और सभी व्यक्तियों के बीच विभेद नहीं किया जाना चाहिए और सभी व्यक्तियों को व्यक्ति के रूप में समान समझा जाना चाहिए। हर्नशा के अनुसार लोकतांत्रिक समाज वह है जिसमें समानता के विचार की प्रबलता हो तथा जिसमें समानता का सिद्धांत प्रचलित हो। सामाजिक लोकतंत्र की अवधारणा मुख्यतः सामाजिक समानता पर जोर देती है।
इसका सामान्य अर्थ यही है कि सभी व्यक्तियों को समाज में समान महत्व प्राप्त होना चाहिए और किसी भी व्यक्ति को अन्य किसी भी व्यक्ति के सुख का साधन मात्र नहीं समझा जाना चाहिए। व्यवहार में सामाजिक लोकतंत्र की स्थापना के लिए दो बातें आवश्यक है
धर्म, जाति, नस्ल, भाषा, लिंग, धन आदि के आधार पर समाज में मौजूद विशेषाधिकारों की व्यवस्था का अंत किया जाए।
सभी व्यक्तियों को सामाजिक प्रगति के समान अवसर प्रदान किए जाए।
प्रश्न 5.
लोकतंत्र के एक रूप नैतिक लोकतंत्र से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
कुछ विद्वानों ने लोकतंत्र को एक नैतिक व अध्यात्मिक जीवन दर्शन के रूप में स्वीकार किया है। लोकतंत्र के प्रति इस नैतिक दृष्टिकोण को ही नैतिक लोकतंत्र कहा जाता है। नैतिक लोकतंत्र समस्त लोकतांत्रिक दर्शन का व्यावहारिक रूप है जिसमें मानव मूल्यों को ही समाज व शासन का मूल आधार माना जाता है।
इस रूप में नैतिक लोकतंत्र की सर्वोत्तम अभिव्यक्ति सन 1789 की फ्रांस की उदार लोकतंत्रवादी क्रांति स्वतंत्रता, समानता व भाई चारे के नारे के रूप में हुई थी। इन तीनों में भाईचारे का विशेष महत्व है क्योंकि इसके बगैर व्यक्तियों में समानता नहीं हो सकती है।
और समानता नहीं होती तो स्वतंत्रता भी नहीं पायी जा सकती है।
प्रश्न 6.
लोकतंत्र के बहुलवादी सिद्धांत एवं दृष्टिकोण की आलोचना के दो तरीके दीजिए।
उत्तर:
लोकतंत्र के बहुलवादी सिद्धांत की आलोचना
संप्रभुता के परंपरावादी लोकतंत्र के बहुलवादी सिद्धांत की आलोचना करते हुए कहा राज्य संप्रभु संस्था है। समुदाय और नागरिक राज्य के अधीन होते हैं न कि उसके बराबर होती है। बहुलवादी लोकतंत्र को बहुलतंत्र कहा गया है, जिसमें सत्ता निजी समूह तथा हित समूह के बीच हो।
बहुलवादी सत्ता के विभाजन की वकालत करता है जबकि बहुलवादी के आलोचक इस तर्क से सहमत नहीं हैं। आलोचकों का मानना है कि लोकतंत्र में भी किसी न किसी के पास संप्रभु शक्ति होना चाहिए। जिससे राज्य या देश की एकता और अखंडता बनी रहे।
प्रश्न 7.
लोकतंत्र के विशिष्ट (अभिजन) वर्गीय सिद्धांत के लोकतांत्रिक होने के बारे में क्यों संदेह किया जाता है?
उत्तर:
लोकतंत्र के विशिष्ट वर्गीय सिद्धांत के लोकतांत्रिक होने के बारे में इसलिए संदेह किया जाता है क्योंकि लोकतंत्र के विशिष्ट वर्गीय सिद्धांत के समर्थक दो तथ्यों पर जोर देते हैं। पहला यह कि लोकतंत्र जनसाधरण का शासन नहीं है। बल्कि एक अल्पसंख्यक विशिष्ट वर्ग का शासन है। दूसरा तथ्य यह कि शासन का संचालन जनसाधरण के हितों के लिए ही चलाया जाता है जिसके हाथों में सत्ता है। लेकिन जिसके हाथों में सत्ता होगी वे जनता द्वारा चुने हुए नहीं होते। ऐसी स्थिति में विशिष्ट वर्गीय सिद्धांत के लोकतांत्रिक होने के बारे में संदेह है।
प्रश्न 8.
लोकतांत्रिक शासन के किन्हीं तीन अवगुणों को इंगित कीजिए।
उत्तर:
लोकतंत्र की व्यक्ति संबंधी धारणा भ्रमपूर्ण-लोकतंत्र व्यक्ति को बुद्धि व विवेक सम्पन्न मानता है। अत: उसे मताधिकार देता है। और मानता है कि वह राजनीतिक मामलों में परिपक्व निर्णय देने में समर्थ होगा, किंतु आलोचकों का मत है कि व्यक्ति मूलत: ऐसा अबौद्धिक प्राणी है जो अपने मूल आवेगों से चालित होता है और इसलिए व्यक्तियों को जब मताधिकार दे दिया जाता है तो हमें व्यवहार में लोकतंत्र की जगह भीड़तंत्र मिलता है।
अयोग्यता का शासन-लोकतंत्र में बिना किसी भेदभाव के सभी व्यक्तियों को मताधिकार प्राप्त होता है। किसी भी समाज में विद्वानों की तुलना में मूर्ख की संख्या अधिक होती है। अतः लोकतंत्र में बहुसंख्यक मूर्खा द्वारा एक मूर्ख सरकार का निर्वाचन होता है।
शैक्षणिक महत्व का दावा भ्रमपूर्ण-लोकतंत्र के बारे में यह दावा पूरी तरह से भ्रमपूर्ण है कि यह व्यक्ति को । नागरिक शिक्षा, नैतिक शिक्षा तथा राष्ट्रप्रेम की शिक्षा देता है।
प्रश्न 9.
लोकतांत्रिक शासन के किन्हीं तीन गुणों को इंगित कीजिए।
उत्तर:
लोकतांत्रिक शासन के तीन गुण
सार्वजनिक हित में वृद्धि-प्रजातांत्रिक शासन का संचालन जनता के प्रतिनिधियों द्वारा किया जाता है। वे सार्वजनिक हित में वृद्धि करने के वायदे के आधार पर चुनाव जीतते हैं और उन्हें भविष्य में पुनः चुनाव लड़ना होता है।
कार्य कुशल शासन-लोकतंत्र को सबसे अधिक कार्यकुशल शासन प्रणाली माना जाता है।
समानता और स्वतंत्रता पर आधारित शासन-लोकतंत्र व्यक्ति की समता व स्वतंत्रता की धारणा को स्वीकार करता है। यह व्यक्तियों में जाति, धर्म, भाषा, लिंग आदि के आधार पर भेदभाव नहीं करता है। अपितु सभी व्यक्तियों के लिए विधि की समानता तथा विधि के समान संरक्षण में विश्वास करता है।
प्रश्न 10.
लोकतंत्र के सफल संचालन के लिए आवश्यक तीन शर्तो (परिस्थितियों) का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
लोकतंत्र के सफल संचालन के लिए आवश्यक शर्त
शान्ति तथा व्यवस्था-लोकतंत्र की सभलता के लिए जरूरी है कि देश में आंतरिक व्यवस्था समान्य हो और युद्ध बाहरी आक्रमण का भय नहीं हो। ऐसी स्थिति में सत्ता का विकेंद्रीकरण बना रहता है और व्यक्ति अपनी स्वतंत्रता का उपभोग करते हैं।
सुदृढ़ राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था-लोकतंत्र की सफलता के लिए यह जरूरी है कि राष्ट्र की अर्थव्यवस्था पर्याप्त मजबूत हो। यदि राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था औद्योगिक संकट से गुज़र रही होती है अर्थव्यवस्था लड़खड़ा जाती है।
आर्थिक समानता की स्थापना-लोकतंत्र के सफल संचालन के लिए केवल इतना ही जरूरी नहीं है कि राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था शक्तिशाली हो अपितु यह भी जरूरी है कि राज्य में यथासंभव आर्थिक समानता हो अर्थात गरीबी व अमीरी के बीच की खाई चौड़ी न हो। यह तभी सम्भव है जब देश में बड़ी मात्रा में मध्यवर्ग मौजूद हो।
प्रश्न 11. भारत में लोकतंत्र के संचालन के मार्ग की तीन प्रमुख बाधाओं को इंगित कीजिए।
उत्तर:
भारत में लोकतंत्र के संचालन के मार्ग में बाधाएँ
अशिक्षा-भारत में अभी भी काफी संख्या में लोग अशिक्षित हैं। अशिक्षा के कारण लोग जाति, धर्म के नाम पर मत डालते हैं जिससे उचित प्रतिनिधि चुनाव में जीतकर नहीं आ पाते।
परिवारवाद – भारत के राजनीतिक दलों में परिवारवाद को बढ़ावा मिला है जो कि लोकतंत्र के लिए उचित नहीं
अपराधी प्रवृत्ति के लोगों का चुनाव लड़ना-वर्तमान समय में अपराधी प्रवृत्ति के लोगों की चुनाव में भागीदारी बढ़ती जा रही है जो कि लोकतंत्र के संचालन में एक बाधा है।
प्रश्न 12.
ऐसे तीन तथ्यात्मक तर्क दीजिए जो भारत के लोकतंत्र के उज्ज्वल भविष्य को प्रकट करते हैं।
उत्तर:
भारत के लोकतंत्र के उज्ज्वल भविष्य को प्रकट करने वाले तथ्य
निष्पक्ष चुनाव-भारत में चुनाव का प्रावधान इस प्रकार किया गया है जिससे निष्पक्ष चुनाव करने के लिए चुनाव । आयोग का गठन किया गया है।
सशक्त तथा लिखित संविधान-भारत का संवैधानिक ढाँचा काफी मजबूत है। जो लोकतांत्रिक व्यवस्था को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है।
स्वतंत्र न्यायपालिका-चुनाव से संबंधी किसी भी तरह के विवाद का हल न्यायपालिका में किया जाता है तथा सरकार का कोई भी अंग अपनी शक्तियों या अधिकारों का दुरूपयोग करता है तो उसका भी निर्णय न्यायालय में किया जाता है।
लोकतंत्र निबंधात्मक प्रश्न (Long Answer Type Questions)
प्रश्न 1.
लोकतंत्र से आप क्या समझते हैं? इसके विभिन्न रूपों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
लोकतंत्र में वयस्क जनता अपने मतदान के माध्यम से अपने प्रतिनिधि का चुनाव करती है। वही प्रतिनिधि सरकार को गठन करते हैं। आधुनिक काल में लोकतंत्र को केवल शासन का एक रूप ही नहीं माना जाता है बर्क्स के अनुसार लोकतंत्र एक ऐसा शब्द है जिसके अनेक अर्थ हैं और इसके साथ भावनात्मक अर्थ भी जुड़ा है। लोकतंत्र के विभिन्न रूप
राजनीतिक लोकतंत्र-राजनीतिक लोकतंत्र को अतीत में व्यक्तिवादी लोकतंत्र कहा जाता था, किंतु आधुनिक युग में इसे उदारवादी लोकतंत्र कहा जाता है। आधुनिक युग में राजनीतिक लोकतंत्र की उत्पत्ति पश्चिमी देशों में हुई।
सामाजिक लोकतंत्र-समाज के एक प्रकार के रूप में लोकतंत्र को सामाजिक लोकतंत्र कहा जाता है। सामाजिक लोकतंत्र एक प्रमुख लक्ष्य है-सामाजिक समता की भावना। संक्षेप में सामाजिक लोकतंत्र का अर्थ है कि समाज में नस्ल, रंग, जाति, धर्म, भाषा, लिंग, धन, जन्म आदि के आधार पर व्यक्तियों के बीच विभेद नहीं किया जाना चाहिए।
आर्थिक लोकतंत्र-अर्थव्यवस्था के एक प्रकार के रूप में लोकतंत्र को आर्थिक लोकतंत्र कहा जाता है। वर्तमान सदी में आर्थिक लोकतंत्र का विचार मार्क्सवादियों एवं समाजवादियों ने प्रस्तुत किया है।
नैतिक लोकतंत्र-कुछ विद्वानों ने लोकतंत्र को एक नैतिक व आध्यत्मिक जीवन दर्शन के रूप में स्वीकार किया है।
लोकतंत्र के प्रति इस नैतिक दृष्टिकोण को ही नैतिक लोकतंत्र कहा जाता है। नैतिक लोकतंत्र समस्त लोकतांत्रिक समस्त लोकतांत्रिक दर्शन का व्यावहारिक रूप है, जिसमें मानव मूल्यों को ही समाज व शासन का मूल आधार माना जाता है।
प्रश्न 2.
लोकतंत्र को शासन का एक रूप ‘सामाजिक संगठन का एक सिद्धांत तथा जीवन की एक पद्धति माना जाता हैं क्यों?
उत्तर:
लोकतंत्र का समाजवादी सिद्धांत लोकतंत्र के उदारवादी सिद्धांत तथा मार्क्सवादी सिद्धांत के समन्वय से बना सिद्धांत है। यह उदारवादी लोकतंत्र में निहित व्यक्ति की राजनीतिक स्वतंत्रता के मार्क्सवादी लोकतंत्र में निहित आर्थिक समानता के आदर्शों को एक साथ प्राप्त करना चाहता है।
लोकतंत्र का समाजवादी सिद्धांत लोकतंत्र के जिस स्वरूप पर बल देता है उसे प्रायः लोकतांत्रिक समाजवाद भी कहा जाता है।। यह सिद्धांत क्रांति एवं हिंसा के साधनों के स्थान पर विकासवादी एवं संवैधानिक साधनों में विश्वास करता है। इसके अनुसार संसदीय व्यवस्था वाले उदारवादी लोकतंत्र के माध्यम से व्यक्ति की राजनीतिक स्वतंत्रता की रक्षा भी संभव है और इसके द्वारा आर्थिक समानता के आदर्श को भी प्राप्त किया जाता सकता है।
प्रश्न 3.
लोकतांत्रिक शासन से आप क्या समझते हैं? इसका आलोचनात्मक परीक्षण कीजिए।
उत्तर:
लोकतंत्र में राज्य की सत्ता एक व्यक्ति अथवा कुछ व्यक्तियों के हाथों में नहीं, बल्कि जनसाधारण के हाथों में केंद्रित मानी जाती है। अमेरिकी राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन के अनुसार “लोकतंत्र जनता का, जनता के लिए, जनता द्वारा शासन होता है।” लोकतंत्र केवल एक शासन प्रणाली ही नहीं है, यह एक सामाजिक आदर्श भी है। लोकतंत्र की आलोचना-जनसाधारण का लोकतंत्र निर्वाचनों के दौरान उम्मीदवारों को मत देने तक सीमित रहता है। प्रतिनिधि एक बार निर्वाचित होने पर मतदाताओं को भूल जाते हैं।
मतदाताओं को उनके ऊपर कोई नियंत्रण नहीं रहता। लोकतंत्र अयोग्य और अनुत्तरदायी जनता को शासन है। शासन एक कला है और कुछ चुने हुए व्यक्ति ही शासनकला में पारंगत हो सकते हैं। प्लेटो, सर हेनरी मेन, फैजेट और लेकी जैसे चिंतकों ने यही विचार व्यक्त किया है। लोकतंत्र की एक बड़ी त्रुटि यह है कि समाज के विभिन्न वर्गों के बीच विद्वेष बढ़ता है। सत्ता वास्तविक रूप में पूँजीपतियों के नियंत्रण में रहता है। लोकतंत्र अत्यंत महँगा शासन है। निर्वाचन बड़े महँगे होते हैं। लोकतंत्र में विरोधी दल एक दूसरे के ऊपर कीचड़ उछालते हैं। अपराधी प्रवृत्ति के लोग राजनीति को अपना पेशा बना लेते हैं जिससे अपराध को बढ़ावा मिलता है। लोकतंत्र बहुमत का शासन है और इक्यावन प्रतिशत जनता 49 प्रतिशत जनता को पीड़ित कर सकती है।
प्रश्न 4.
प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष लोकतंत्र का अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष लोकतंत्र का अन्तर
प्रत्यक्ष लोकतंत्र में समस्त नागरिक स्वयं ही राज्य कार्यों में भाग लेते हैं और वे अपने निर्वाचित प्रतिनिधियों पर निर्भर नहीं रहते। अप्रत्यक्ष लोकतंत्र में जनता अपने प्रतिनिधि का चुनाव करती है। प्रतिनिधि ही शासन के सभी महत्वपूर्ण निर्णय लेते हैं।
प्रत्यक्ष लोकतंत्र में सरकार द्वारा बनाए जाने वाले महत्वपूर्ण कानून, नीतियों और कार्यक्रमों में जनता की राय लेती है। अप्रत्यक्ष लोकतंत्र में सरकार द्वारा बनाए जाने वाले कानून और नीतियों, कार्यक्रमों में जनता की राय नहीं ली जाती।
प्रत्यक्ष लोकतंत्र का उदाहरण स्वीट्जरलैंड अप्रत्यक्ष लोकतंत्र का उदाहरण भारत, कनाड़ा, अमेरिका, जैसे अनेक देश हैं।
प्रश्न 5.
अप्रत्यक्ष लोकतंत्र के गुण-दोषों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
अप्रत्यक्ष लोकतंत्र के गुण-दोष निम्नलिखित हैं अप्रत्यक्ष लोकतंत्र के गुण
यह प्रत्यक्ष लोकतंत्र की अपेक्षा कम खर्चीला होता है।
इस लोकतंत्र में शासन का संचालन योग्य व्यक्ति द्वारा किया जाता है।
इस लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था में जनता शासन अपने प्रतिनिधियों के माध्यम से करती है।
अप्रत्यक्ष लोकतंत्र के दोष
अप्रत्यक्ष लोकतंत्र में जनता मतदान तक ही अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। मतदान के बाद प्रतिनिधि का चरित्र ठीक नहीं है या भ्रष्ट है जनता तो अगले चुनाव से पहले हटा नहीं सकती।
अप्रत्यक्ष लोकतंत्र में जनता की शासन में कोई भागीदारी नहीं होती।।
अप्रत्यक्ष लोकतंत्र में निर्णय की प्रक्रिया काफी देर से ली जाती है। इसलिए जनता के हित के कार्य में समय लग जाता है।
प्रश्न 6.
लोकतंत्र के कुल कितने प्रमुख सिद्धांत एवं दृष्टिकोण हैं? इनमें से लोकतंत्र के उदारवादी, मार्क्सवादी एवं समाजवादी सिद्धांतों का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
उत्तर:
लोकतंत्र के निम्नलिखित प्रमुख सिद्धांत एवं दृष्टिकोण है
लोकतंत्र का परम्परागत उदारवादी सिद्धांत एवं दृष्टिकोण-लोकतंत्र के इस सिद्धांत का विकास पश्चिमी जगत में पिछली तीन शताब्दियों के उदारवादी राजनीतिक चिंतन द्वारा किया गया है। इसे अक्सर लोकतंत्र का पश्चिमी सिद्धांत अथवा लोकतंत्र का लोकप्रिय सिद्धांत भी कह दिया जाता है। हॉब्स, लोक, रूसो, बैन्थम, जे०एस०मिल, टी०एच०ग्रीन, माण्टेस्क्यू, अब्राहम लिंकन, जैफरसन, हरबर्ट स्पैंसर आदि लोकतंत्र के परंपरागत उदारवादी सिद्धांत के प्रमुख विचारक माने जाते हैं।
लोकतंत्र का मार्क्सवादी सिद्धांत एवं दृष्टिकोण-लोकतंत्र का मार्क्सवादी सिद्धांत लोकतंत्र के एक विशिष्ट | रूप को प्रस्तुत करता है, जो अपनी प्रकृति से एक प्रकार का आर्थिक लोकतंत्र है किंतु मार्क्सवादियों ने इसे जनवादी लोकतंत्र कहना पसन्द किया है। मार्क्सवादी लोकतंत्र का मूल विचार कार्लमार्क्स तथा फ्रेडरिक एंगिल्स की विचारधारा में दीख पड़ता है और इसे व्यावहारिक रूप स्टालिन, लेनिन, माओत्से तुंग आदि ने दिया है।
लोकतंत्र का समाजवादी सिद्धांत एवं दृष्टिकोण-लोकतंत्र का समाजवादी सिद्धांत लोकतंत्र के उदारवादी सिद्धांत तथा मार्क्सवादी सिद्धांत के समन्वय से बना है। यह उदारवादी लोकतंत्र में निहित आर्थिक समानता के आदर्शों को एक साथ ही प्राप्त करना चाहता है। लोकतंत्र का समाजवादी सिद्धांत लोकतंत्र के जिसे स्वरूप पर बल देता है, उसे प्राय: लोकतांत्रिक समाजवाद भी कहा जाता है। यह सिद्धांत क्रांति एवं हिंसा के साधनों के स्थान पर विकासवादी एवं संवैधानिक साधनों में विश्वास करता है।
प्रश्न 7.
निम्नलिखित पर टिप्पणियाँ लिखिए(अ) उदारवादी प्रतिनिधि लोकतंत्र के प्रमुख लक्षण।
उत्तर:
उदारवादी प्रतिनिधि लोकतंत्र के प्रमुख लक्षण
व्यक्ति बुद्धिमान प्राणी है, अतः अपना हित-अहित समझने की शक्ति रखता है।
सभी व्यक्ति मूलतः समान हैं।
शासन को गठन उदारवादी एवं लोकतांत्रिक संविधानवाद के अनुसार होना चाहिए अर्थात सीमित शासन के सिद्धांत का पालन किया जाना चाहिए।
शासन की शक्ति का आधार जनता की इच्छा होती है, अतः सरकार राजनीतिक सत्ता की मात्र न्यासी होती है।
शासन का संचालन जनता द्वारा किया जाना चाहिए। शासन के गठन एवं संचालन में बहुमत के सिद्धांत का पालन किया जाना चाहिए।
व्यक्ति को नागरिक स्वतंत्रताएँ व अधिकार प्राप्त होने चाहिए तथा उनकी रक्षा के लिए स्वतंत्र व निष्पक्ष न्यायपालिका की स्थापना की जानी चाहिए।
निश्चित अवधि के बाद स्वतंत्र व निष्पक्ष चुनाव होने चाहिए और एक से अधिक राजनीतिक दल होने चाहिए।
सरकार को जनमत का आदर करना चाहिए।
प्रश्न 8.
लोकतंत्र अयोग्यता का शासन है।
उत्तर:
लोकतंत्र में सभी वयस्क व्यक्ति मत देता है। उनके मत द्वारा चुने गए प्रतिनिधि ही शासन का संचालन करते हैं। वयस्क व्यक्तियों में अशिक्षित लोग भी मत देते हैं। जिनके अंदर जागरूकता की कमी है, वे सही प्रतिनिधि नहीं चुन पाते। वे जाति, धर्म, भाषा, क्षेत्र के आधार पर अपना मत देते हैं। ऐसे में अपराधी प्रवृत्ति, गलत चरित्र, भ्रष्ट व्यक्ति भी चुनाव जीत सकते हैं।
लोकतांत्रिक व्यवस्था में अधिकांश मत देने वाली जनता सरकार के कामकाज का सही तरीके से पता नहीं लगा पाती। ऐसी स्थिति में वह सभी राजनीतिक दल को एक जैसा समझती है और वह जाति, धर्म, भाषा, क्षेत्र के आधार पर पहले से ही किसी दल के पक्ष और किसी दल के विपक्ष में अपना मन बना लेती है और चुनाव के समय अपने पक्ष वाले दल को मत दे देती है। ऐसी स्थिति में योग्य प्रतिनिधि चुनकर संसद, विधानसभा और स्थानीय निकाय में चुनकर नहीं जा पाते। इसलिए कहा गया है कि लोकतंत्र अयोग्यता का शासन है।
प्रश्न 9.
लोकतंत्र शासन का सबसे अच्छा रूप है क्योंकि व्यक्ति को इससे श्रेष्ठ शासन का अभी भी ज्ञान नहीं है।
उत्तर:
लोकतंत्र शासन का सबसे अच्छा रूप है क्योंकि इस शासन में व्यक्ति को स्वतंत्रता, समानता, गरिमा या प्रतिष्ठा आदि प्राप्त होता है। लोग इसलिए लोकतांत्रिक शासन को पसंद करते हैं। लोकतंत्र जनता की सहमति का भी शासन है। इसके अंतर्गत स्वतंत्र निर्वाचन होते हैं और जनता अपने प्रतिनिधियों को अपने-आप चुनती है। ये प्रतिनिधि जिन कानूनों का निर्माण करते हैं वे जनता की इच्छाओं के अनुसार होती है और उन्हें जनता का समर्थन प्राप्त रहता है। यह जनता का लोकप्रिय या उसके अनुरूप शासन होता है।
जनता के अनुरूप शासन न होने पर जनता चुनाव के पहले अपना विरोध सरकार के खिलाफ करती है तथा चुनाव में उस सरकार को हटा देती है। लोकप्रिय शासन का मूल्य यह है। कि वह उन साधनों को प्रदान करता है जिनके द्वारा जनता की इच्छाओं का ज्ञान और अनुभव प्राप्त किया जा सकता है और इस प्रकार राज्य के व्यवहार को अपने अनुकूल बनाया जा सकता है। व्यक्ति ने अभी तक कई शासनों के बारे में सुना और पढ़ा है; जैसे राजतांत्रिक शासन व्यवस्था, सैनिक शासन व्यवस्था, औपनिवेशिक शासन व्यवस्था आदि। इनमें से सबसे बेहतर शासन व्यवस्था लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था ही है। लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था से बेहतर किसी और शासन के बारे में व्यक्ति को ज्ञान नहीं है।
प्रश्न 10.
लोकतंत्र के दोषों के अंत के लिए प्रमुख सुझाव दीजिए।
उत्तर:
लोकतंत्र के दोषों के अंत के लिए प्रमुख सुझाव निम्न हैं
जनशिक्षा या जनता को जागरूक बनाना।
जनप्रतिनिधियों को कानून के माध्यम से जनता के प्रति और अधिक जिम्मेदार और जवाबदेह बनाना।
ऐसे कानून का निर्माण किया जाना चाहिए, जिससे भ्रष्ट, गलत आचरण, अपराधी प्रवृत्ति के लोग चुनाव नहीं लड़ सके।
एक चुनाव अवधि तथा जनप्रतिनिधि के कार्यकाल (पाँच वर्ष) तक विकास की एक निश्चित रूपरेखा जनप्रतिनिधियों के लिए निश्चित करना।
शासन का स्वरूप केंद्रीयकृत न होकर स्थानीय स्तर का होना चाहिए। स्थानीय निकायों को अधिक शक्ति और अधिकार प्रदान किया जाना चाहिए।
जनप्रतिनिधियों के लिए एक नैतिक आचरण निर्धारित किया जाना चाहिए, जिस पर अमल करना जनप्रतिनिधियों के लिए अनिवार्य हो।
लोकतांत्रिक शासन में चुनाव को कम खर्चीला बनाया जाना चाहिए जिससे कि एक गरीब और साधारण व्यक्ति भी किसी तरह के चुनाव लड़ सके।
अतिरिक्त प्रश्नोत्तर (More Questions Solved)
लोकतंत्र अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)
प्रश्न 1.
प्रत्यक्ष लोकतंत्र किसे कहते हैं? इसके उदाहरण दें।।
उत्तर:
प्रत्यक्ष लोकतंत्र में जनता सरकार के कई निर्णयों में प्रत्यक्ष रूप से भाग लेती है तथा कानून के निर्माण के समय अपना निर्णय (जनमत) देती है। प्रत्यक्ष लोकतंत्र का उदाहरण स्वीटजरलैंड है।
प्रश्न 2.
अप्रत्यक्ष लोकतंत्र किसे कहते हैं? इसके उदाहरण दें।
उत्तर:
अप्रत्यक्ष लोकतंत्र में जनता अपने प्रतिनिधियों को चुनती है और प्रतिनिधि ही शासन का संचालन करते हैं। अप्रत्यक्ष लोकतंत्र का उदाहरण-भारत, अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन, फ्रांस, आस्ट्रेलिया, बांग्लादेश आदि प्रमुख हैं।
प्रश्न 3.
लोकतंत्र के परंपरागत उदारवादी सिद्धांत क्या हैं?
उत्तर:
लोकतंत्र के परंपरागत उदारवादी सिद्धांत के अनुसार व्यक्ति की सुख-शांति, स्वतंत्रता एवं अधिकार पर अधिक बल दिया जाना चाहिए।
प्रश्न 4.
लोकतंत्र का अभिजनवादी (विशिष्ट वर्गीय) सिद्धांत क्या है?
उत्तर:
लोकतंत्र का अभिजनवादी सिद्धांत के अनुसार समाज में दो तरह के लोग होते हैं।
गिने-चुने विशिष्ट लोग
विशाल जनसमूह। गिने-चुने विशिष्ट लोग ही विशाल जनसमूह पर शासन करते हैं।
प्रश्न 5.
राजनीतिक लोकतंत्र या उदारवादी लोकतंत्र को किसने पूँजीवादी लोकतंत्र कहा है?
उत्तर:
राजनीतिक लोकतंत्र या उदारवादी लोकतंत्र को मार्क्सवादियों ने पूँजीवादी लोकतंत्र कहना पसंद किया है।
प्रश्न 6.
आधुनिक युग में प्रतिनिधि लोकतंत्र के कितने रूप प्रचलित हैं?
उत्तर:
आधुनिक युग में प्रतिनिधि लोकतंत्र के दो रूप प्रचलित हैं
संसदीय लोकतंत्र
अध्यक्षात्मक लोकतंत्र
प्रश्न 7.
संसदीय एवं अध्यक्षात्मक लोकतंत्र क्या है?
उत्तर:
संसदीय लोकतंत्र में कार्यपालिका और व्यवस्थापिका दोनों एक दूसरे से घुले-मिले होते हैं। यह संसदीय लोकतंत्र कहलाता है; जैसे-भारत, ब्रिटेन आदि। अध्यक्षात्मक शासन वाले लोकतंत्र में कार्यपालिका और व्यवस्थापिका अलग-अलग होते हैं। कार्यपालिका का चुनाव प्रत्यक्ष रूप से जनता द्वारा किया है। जैसे अमेरिका।
प्रश्न 8.
लोकतंत्र का बहुलवादी सिद्धांत क्या है?
उत्तर:
लोकतंत्र का बहुलवादी सिद्धांत के अनुसार सत्ता को समाज के एक छोटे से समूह तक सीमित करने के बदले वह सत्ता का विकेंद्रीयकरण या प्रसारित करना चाहते हैं।
प्रश्न 9.
आधुनिक युग में राजनीतिक लोकतंत्र की उत्पत्ति किन देशों से हुई है? ।
उत्तर:
आधुनिक युग में राजनीतिक लोकतंत्र की उत्पत्ति पश्चिमी देशों से हुई है।
प्रश्न 10.
किस विद्वान ने पूर्ण लोकतंत्र को लज्जाहीन धारणा तथा किस विद्वान ने पूर्ण लोकतंत्र को सर्वश्रेष्ठ शासन माना है?
उत्तर:
बर्क जैसे विद्वान ने पूर्ण लोकतंत्र को लज्जाहीन धारणा माना है तथा लॉवेज जैसे विद्वान लोकतंत्र को सर्वश्रेष्ठ शासन माना है।
लोकतंत्र लघूत्तरात्मक प्रश्न (Short Answer Type Questions)
प्रश्न 1.
लोकतांत्रिक राज्य एवं लोकतांत्रिक शासन अर्थात संपूर्ण राजनीतिक लोकतंत्र की कौन-कौन सी मान्यताएँ हैं?
उत्तर:
लोकतांत्रिक राज्य एवं लोकतांत्रिक शासन अर्थात संपूर्ण राजनीतिक लोकतंत्र की कुछ आधारभूत मान्यताएँ हैं
राजनीतिक लोकतंत्र उदारवादी संविधानवाद में विश्वास करता है।
यह प्रभुसत्ता का निवास जनता में मानता है।
राजनीतिक लोकतंत्र सैद्धांतिक पक्ष लोकतांत्रिक शासन है।
जनता सरकार को नियुक्त करती है उस पर नियंत्रण करती है तथा उसे हटा भी सकती है।
जनीतिक लोकतंत्र स्वयं में साध्य नहीं होता है, अपितु लोकतांत्रिक साध्यों एवं मूल्यों की प्राप्ति का साधन होता
प्रश्न 2.
व्यवहार में सामाजिक लोकतंत्र की स्थापना के लिए कौन-सी बातें आवश्यक हैं?
उत्तर:
व्यवहार में सामाजिक लोकतंत्र की स्थापना के लिए दो बातें आवश्यक हैं
धर्म, जाति, नस्ल, भाषा, लिंग, धन आदि के आधार पर समाज में मौजूद विशेषाधिकारों की व्यवस्था का अंत किया जाए।
सभी व्यक्तियों को सामाजिक प्रगति के समान अवसर प्रदान किए जाएँ।
प्रश्न 3.
लोकतंत्र की परिभाषा दें।
उत्तर:
लोकतंत्र की परिभाषा को लेकर विद्वान एकमत नहीं हैं। विभिन्न विद्वानों ने इसे निम्न प्रकार से परिभाषित करने की कोशिश की है
लार्ड ब्राइस के अनुसार-लोकतंत्र शासन का वह रूप है जिसमें राज्य की शासन शक्ति, कानूनी तौर पर किसी विशेष वर्ग या वर्गों में नहीं अपितु संपूर्ण समाज के सदस्यों में निहित होती है।
प्रो० डायसी के अनुसार-लोकतंत्र वह शासन व्यवस्था है जिसमें राष्ट्र का अधिकांश भाग शासक होता है।
सीले के अनुसार-लोकतंत्र वह शासन है, जिसमें प्रत्येक व्यक्ति का शासन कार्य में भाग हो।
अब्राहम लिंकन के अनुसार-लोकतंत्र जनता का, जनता के लिए तथा जनता द्वारा शासन है।
प्रश्न 4.
लोकतंत्र के बहुलवादी सिद्धांत एवं दृष्टिकोण के बारे में व्याख्या करें।
उत्तर:
लोकतंत्र के बहुलवादी सिद्धांत जनसामान्य के बदले समूहों की भूमिका पर बल देता है। बहुलवादी सिद्धांत की उत्पत्ति अभिजन सिद्धांत की आंशिक प्रतिक्रिया के रूप में हुई है। सामान्य अर्थ में बहुलवाद सत्ता को समाज में एक छोटे से समूह तक सीमित करने के बदले उसे प्रसारित और विकेंद्रीकरण पर बल देता है।
लोकतंत्र की बहुलवादी अवधारणा का विकास 20वीं सदी में मुख्य रूप से अमेरिका में हुआ। लोकतंत्र के इस सिद्धांत का विकास लॉस्की, अर्नेस्ट बार्कर, मिस फॉलेट, जी०डी०एच०कोल, डिग्वी आदि ने किया है। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद रॉबर्ट डहल ने भी इसके विकास में योगदान दिया।
प्रश्न 5.
लोकतंत्र के विशिष्ट वर्गीय (अभिजनवादी) सिद्धांत की व्याख्या करें।
उत्तर:
लोकतंत्र के सबंध में अभिजन सिद्धांत का उदय द्वितीय विश्व युद्ध के बाद हुआ। इस सिद्धांत का प्रतिपादन करने वाले प्रमुख विचारकों में रॉबर्ट मिचेल्स, मोस्का, पैरेटो, बर्नहम, सी० राइट मिल्स आदि प्रमुख थे। इस सिद्धांत के अनुसार समाज में दो तरह के लोग होते हैं-
गिने-चुने विशिष्ट लोग
विशाल जनसमूह विशिष्ट लोग हमेशा शिखर पर पहुँचते हैं क्योंकि वे सारी सुविधाओं से सम्पन्न सर्वोत्तम लोग होते हैं। विशिष्ट वर्ग के लोग ही विशाल जनसमूह पर शासन करते हैं। बहुसंख्यक लोग जीविका कमाने में व्यस्त रहते हैं।
लोकतंत्र निबंधात्मक प्रश्न (Long Answer Type Questions)
प्रश्न 1.
लोकतंत्र की प्रमुख विशेषताएँ कौन-कौन सी हैं?
उत्तर:
लोकतंत्र की प्रमुख विशेषताएँ निम्न हैं
जनता का शासन-शासन की एक प्रणाली के रूप में लोकतंत्र संपूर्ण जनता का शासन होती है। जनता का अर्थ | संपूर्ण जन-समूह एवं प्रत्येक व्यक्ति से है।
जनता द्वारा निर्मित शासन-लोकतंत्र में सरकार का निर्माण जनता द्वारा किया जाता है। इसमें जनता अपने प्रतिनिधि चुनती है और वे प्रतिनिधि सरकार का निर्माण करते हैं।
लोकतंत्र शासन एक साधन है साध्य नहीं-लोकतंत्र में शासन को कभी भी साध्य नहीं माना जाता है, अपितु शासन को एक साधन माना जाता है। वास्तव में लोकतंत्र में शासन निम्नलिखित साध्यों की प्राप्ति का साधन माना जाता है।
जनता के प्रति उत्तरदायी शासन-लोकतंत्र में शासन प्रणाली लोक प्रभुत्व के सिद्धांत को स्वीकारती है। अतः लोकतंत्र में शासन अपने कार्यों के लिए जनता के प्रति उत्तरदायी होता है।
लोकतंत्र विकासशील शासन है-आधुनिक काल तक लोकतांत्रिक शासन प्रणाली विकास की कई अवस्थाओं से गुजरी है। प्रारंभ में यह व्यक्तिवादी लोकतंत्र था जो बाद में उदारवादी लोकतंत्र में बदल गया और वर्तमान में यह लोक कल्याणकारी राज्य की अवधारणा से संबंधित हो गया है। इस विकास का परिणाम यह हुआ है कि प्रारंभ में लोकतंत्र ने व्यक्ति की राजनीतिक स्वतंत्रता एवं समानता तथा संवैधानिक शासन पर ही बल दिया था।
प्रश्न 2.
लोकतंत्र के गुण कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
लोकतंत्र के निम्नलिखित गुण हैं
सार्वजनिक हित में वृद्धि-प्रजातांत्रिक शासन का संचालन जनता के प्रतिनिधियों द्वारा किया जाता है। वे सार्वजनिक | हित में वृद्धि करने के वायदे के आधार पर चुनाव जीतते हैं और उन्हें भविष्य में पुनः चुनाव लड़ना होता है। अतः ये जन प्रतिनिधि सार्वजनिक हित में शासन करते हैं।
सार्वजनिक शिक्षा का साधन-लोकतांत्रिक शासन में जनता सार्वजनिक समस्याओं पर अपनी राय प्रकट करती है। सामान्य जनता जनमत निर्माण के साधनों तथा आम चुनावों के माध्यम से विभिन्न समस्याओं पर अपना मत । प्रकट करती है। सामान्य नागरिक अपने अधिकारों व कर्तव्यों के प्रति जागरूक रहता है और बड़े हितों के लिए छोटे हितों का त्याग करना सीख जाता है।
नैतिक शिक्षा का साधन-लोकतांत्रिक शासन व्यक्ति को नैतिक शिक्षा भी प्रदान करता है। लॉवेल के अनुसार लोकतंत्र व्यक्ति की नैतिकता व पवित्रता की भावना को मजबूत करता है।
देश भक्ति की भावना-लोकतंत्र राष्ट्रप्रेम की भावना का भी विकास करता है। लोकतंत्र में राज्य को किसी शासक वर्ग की सम्पत्ति नहीं माना जाता, अपितु इसे जनता की सम्पत्ति माना जाता है। इससे जनता में राष्ट्र के प्रति प्रेम व अपनत्व की भावना का विकास होता है।
क्रांति से सुरक्षा-क्रांति की आवश्यकता ऐसे राज्यों में होती है, जहाँ शासन की शक्ति किसी एक वर्ग के हाथों में होती है। लोकतंत्र में स्थिति इससे एकदम विपरीत होती है। इसमें क्रांति की आवश्यकता नहीं होती है। लोकतंत्र में शासन जनता के प्रति उत्तरदायी होता है।
संविधानवाद में आस्था-लोकतंत्र संविधानवाद में आस्था रखता है। इसका अर्थ है कि लोकतंत्र व्यक्ति की स्वेच्छाचारी शासन के स्थान पर विधि के शासन में विश्वास करता है और वह ऐसी विधि को स्वीकार करता है। जो व्यक्ति की स्वतंत्रता को स्वीकारता हो।
कला, साहित्य, संस्कृति व विज्ञान की प्रगति में सहायक-लोकतंत्र, कला, साहित्य, संस्कृति व विज्ञान पर किसी प्रकार का अनुचित नियंत्रण नहीं करता है अपितु इनका विकास चाहता है। लोकतंत्र की तुलना में अधि नायकवाद में इन सभी क्षेत्रों पर नियंत्रण होता है।
विश्व शांति का समर्थक-राजतंत्र, कुलीनतंत्र तथा अधिनायक तंत्र का इतिहास बताता है कि इन शासन प्रणालियों ने समय-समय पर विश्व की शांति को खतरा उत्पन्न किया है।
शक्तिशाली शासन व्यवस्था-लोकतंत्र व्यक्ति में राष्ट्रप्रेम पैदा करता है और यह जन सहमति पर आधारित है।
अतः जब भी राष्ट्र पर संकट आता है तो संपूर्ण जनता एक व्यक्ति के रूप में संकट के विरुद्ध खड़ी हो जाती
प्रश्न 3.
लोकतंत्र के दोष कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
लोकतंत्र के निम्नलिखित दोष हैं
लोकतंत्र की व्यक्ति संबंधी धारणा भ्रमपूर्ण-लोकतंत्र व्यक्ति को बुद्धि व विवेक सम्पन्न मानता है। अत: उसे मताधिकार देता है और मानता है कि वह राजनीतिक मामलों में परिपक्व निर्णय देने में समर्थ होगा किंतु आलोचकों का मत है कि व्यक्ति ऐसा अबौद्धिक प्राणी है जो अपने मूल संवेगों से चालित होता और इसलिए व्यक्ति को जब मताधिकार दे दिया जाता है तो हमें व्यवहार में लोकतंत्र की जगह भीड़तंत्र मिलता है।
लोकतांत्रिक स्वतंत्रता व समानता भ्रमपूर्ण है-लोकतंत्र व्यक्तियों को राजनीतिक स्वतंत्रता व समानता प्रदान करता है किंतु यह व्यक्तियों को आर्थिक स्वतंत्रता व समानता प्रदान नहीं करता है। आर्थिक स्वतंत्रता व समानता के अभाव में व्यक्ति की राजनीतिक स्वतंत्रता व समानता भी अर्थहीन हो जाती है।
शैक्षणिक महत्व का दावा भ्रमपूर्ण-लोकतंत्र के बारे में यह दावा पूरी तरह से भ्रमपूर्ण है कि यह व्यक्ति को नागरिक शिक्षा, नैतिक शिक्षा तथा राष्ट्रप्रेम की शिक्षा देता है। वास्तविक स्थिति इससे भिन्न है।
राजनीतिक दलों का दुष्प्रभाव-लोकतंत्र के संचालन के लिए राजनीतिक दल आवश्यक माने जाते हैं किंतु राजनैतिक दल प्रणाली में अनेक दोष भी होते हैं और इनके कारण लोकतंत्र में खामी आती है। सिद्धांत रूप में सभी राजनीतिक दलों का निर्माण राष्ट्रीय हित में होता है और वे जनता के उत्थान के लिए विभिन्न सामाजिक व आर्थिक नीतियों व कार्यक्रमों का प्रचार करते हैं किंतु व्यवहार में सभी राजनीतिक दल राष्ट्रभक्ति की जगह दलभक्ति को महत्व देते हैं।
अनुत्तरदायी शासन प्रणाली-सिद्धांत रूप में लोकतंत्र को जनता के प्रति उत्तरदायी शासन बताया जाता है किंतु व्यवहार रूप में लोकतंत्र अनुत्तरदायी दिखाई पड़ता है। लोकतंत्र शासन में असफलताओं की जिम्मेदारी कोई भी पक्ष अपने ऊपर नहीं लेता है।
सार्वजनिक धन व समय का अपव्यय-लोकतंत्र में नीतियों के निर्धारण में तथा कानून के निर्माण में अत्यधिक धन व्यय होता और समय की बर्बादी होती है। सभी कार्य विभिन्न समितियों के द्वारा तथा व्यवस्थापिका की लंबी चौड़ी बहस द्वारा किए जाते हैं। लोकतंत्र की यह प्रक्रिया समय व धन की दृष्टि से अत्यधिक खर्चीली होती है।
भ्रष्टाचार को बढ़ावा-लोकतंत्र में राजनीतिक दल चुनावों में ऐसे धनी व्यक्तियों को अपना उम्मीदवार बनाते हैं। जो चुनावों में अपनी जीत के लिए अत्यधिक धन व्यय कर सकें। जब ऐसे व्यक्ति चुनाव जीत जाते हैं तो भ्रष्ट तरीके से वे उससे भी अधिक धन कमाते हैं जिससे भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता है।
बहुमत की तानाशाही-लोकतंत्र बहुमत का शासन है। जो राजनीतिक दल शासन पर अधिकार प्राप्त कर लेता है। वह अपने बहुमत का लाभ उठाकर अल्पमत की उचित बातों को भी स्वीकार नहीं करता है।
उदासीन मतदाता-लोकतंत्र जनता का शासन कहलाता है किंतु लोकतंत्र में होने वाले चुनावों में मतदाता पर्याप्त रुचि नहीं रखते हैं। राजनीतिक दलों तथा उनके उम्मीदवारों के अत्यधिक प्रयत्नों के बावजूद मतदान में 50 से 60 प्रतिशत के बीच में मतदाता भाग लेते हैं।
प्रश्न 4.
लोकतंत्र के सफल संचालन में कौन-कौन सी परिस्थितियाँ हो सकती हैं?
उत्तर:
निम्नलिखित परिस्थितियाँ लोकतंत्र के सफल संचालन में सहायक हो सकती हैं
शांति तथा व्यवस्था-लोकतंत्र की सफलता के लिए जरूरी है कि देश में आंतरिक व्यवस्था सामान्य हो और युद्ध या बाहरी आक्रमण का भय नहीं हो।
सुदृढ़ राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था-लोकतंत्र की सफलता के लिए यह जरूरी है कि राष्ट्र की अर्थव्यवस्था काफी मजबूत हो।
आर्थिक समानता की स्थापना-राज्य में गरीबी व अमीरी के बीच खाई चौड़ी न हो यह तभी संभव है जब देश में बड़ी मात्रा में मध्य वर्ग मौजूद हो।
सामाजिक न्याय की स्थापना-लोकतंत्र की सफलता के लिए जरूरी है कि व्यक्तियों के बीच धर्म, जाति, भाषा, रंग, नस्ल, लिंग, जन्म आदि के आधार पर भेदभाव नहीं किया जाए। सभी व्यक्ति कानून के सामने समान माने जाएँ और उन्हें न्यायालय समान कानूनी संरक्षण दें।
शिक्षित व जागरूक जनता-लोकतंत्र की सफलता के लिए जनता का शिक्षित एवं जागरूक होना आवश्यक है। शिक्षित जनता ही लोकतंत्र की समस्याओं को तथा इसकी प्रक्रिया को समझने में समर्थ होती है और स्वस्थ जनमत का निर्माण कर सकती है।
जनमत का निर्माण-लोकतंत्र की सफलता के लिए जनमत निर्माण के साधनों की स्वतंत्रता भी आवश्यक है। इसका अर्थ है कि प्रेस, साहित्य, रेडियो, सिनेमा, दूरदर्शन आदि पर सरकारी नियंत्रण नहीं होना चाहिए।
नागरिक, नैतिक व राष्ट्रीय चरित्र-जब किसी समाज में नागरिक, नैतिक व राष्ट्रीय चरित्र श्रेष्ठ होता है तो वहाँ लोकतंत्र की सफलता की बहुत उम्मीद होती है। ऐसे समाज में व्यक्ति अपने अधिकारों व कर्तव्यों का उचित प्रयोग करते हैं।
सत्ता का विकेंद्रीकरण तथा स्थानीय स्वशासन-सत्ता का विकेंद्रीकरण होने पर ही जनता के विभिन्न वर्ग शासन के कार्यों में भाग लेते हैं और लोकतंत्र को सफल बनाते हैं। लोकतंत्र में विकेंद्रीकरण का एक अच्छा रूप स्थानीय स्वशासन है जिसमें सामान्य व्यक्ति अधिक-से-अधिक शासन में भाग लेता है।
नागरिक स्वतंत्रताएँ-लोकतंत्र सीमित शासन के सिद्धांत को मानता है जिसका अर्थ है कि संविधान द्वारा नागरिकों को मौलिक स्वतंत्रताएँ प्रदान की जानी चाहिए और इन स्वतंत्रताओं की रक्षा का प्रबंध भी किया जाना चाहिए।
लिखित संविधान तथा लोकतांत्रिक परंपराएँ-लिखित संविधान का अर्थ है कि संविधान की भाषा बहुत स्पष्ट होनी चाहिए ताकि उसकी व्याख्या को लेकर विवाद एवं भ्रम उत्पन्न नहीं हो इसके अलावा संविधान में संशोधन की पद्धति कठोर होनी चाहिए ताकि कोई राजनीतिक दल अपने बहुमत का लाभ उठाकर लोकतंत्र को अधिनायकतंत्र में नहीं बदल दे।