NCERT कक्षा 09वी सामाजिक विज्ञान अध्याय 02 विश्व की प्रमुख दर्शन का संपूर्ण महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर NCERT CLASS 09TH Social Science world's main philosophy All Questions and Answer in Hindi - ULTIMATE STUDY SUPPORT
प्रश्न 1.
प्राचीनकाल में सोने की चिड़िया कौन-से देश को कहा जाता था?
(अ) चीन
(ब) भारत
(स) मिस्र
(द) यूनान
उत्तर:
(ब) भारत
प्रश्न 2.
निष्क क्या है?
(अ) सोने का सिक्का
(ब) चाँदी का सिक्का
(स) ताँबे का सिक्का
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(अ) सोने का सिक्का
प्रश्न 3.
कुमारसंभवम् और रघुवंश नामक महाकाव्य लिखे हैं
(अ) कालिदास ने
(ब) कौटिल्य ने
(स) भारवी ने
(द) विशाखदत्त ने
उत्तर:
(अ) कालिदास ने
प्रश्न 4.
प्रस्तर स्तम्भ कहाँ स्थित है जो समतल भूमि पर बिना गाढ़े खड़ा है?
(अ) सारनाथ में
(ब) दिल्ली में
(स) बैलूर (कर्नाटक) में
(द) मन्कुवर में
उत्तर:
(स) बैलूर (कर्नाटक) में
प्रश्न 5.
‘लीलावती’ एवं ‘सिद्धांत शिरोमणि’ नामक ग्रन्थ किसने लिखे हैं?
(अ) भास्कराचार्य
(ब) बोधायन
(स) आर्यभट्ट
(द) नागार्जुन
उत्तर:
(अ) भास्कराचार्य
अति लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
अंगकोरवाट का मंदिर कहाँ पर स्थित है?
उत्तर:
कम्बोडिया नामक देश में।
प्रश्न 2.
वियतनाम का प्राचीन नाम क्या है?
उत्तर:
चम्पा।
प्रश्न 3.
वृहत्तर भारत के किस क्षेत्र में नगरों के नाम भारत के नगरों की तरह थे?
उत्तर:
फूनान (वर्तमान कम्बोडिया) में।
प्रश्न 4.
व्यावसायिक संगठनों को क्या कहा जाता था?
उत्तर:
श्रेणी’ या ‘गण’।
प्रश्न 5.
विश्व का पहला विश्वविद्यालय कौन-सा है?
उत्तर:
तक्षशिला विश्वविद्यालय।
प्रश्न 6.
लौह स्तम्भ कहाँ स्थित है?
उत्तर:
दिल्ली में
प्रश्न 7.
‘पाई’ का यथार्थ मान किसने ज्ञात किया?
उत्तर:
आर्यभट्ट ने।
प्रश्न 8.
चित्ति प्रमेय का प्रतिपादन कौन-से गणितज्ञ ने किया?
उत्तर:
बोधायन ने।
प्रश्न 9.
सूर्य और चन्द्रग्रहण के कारणों को सर्वप्रथम किसने स्पष्ट किया?
उत्तर:
आर्यभट्ट ने।
प्रश्न 10.
भारत के प्रमुख दो खगोलशास्त्रियों के नाम बताइए।
उत्तर:
वराहमिहिर
कणाद।
प्रश्न 11.
विश्व की सबसे प्राचीन चिकित्सा पद्धति कौन-सी है?
उत्तर:
आयुर्वेद।
प्रश्न 12.
रस चिकित्सा प्रणाली का आविष्कार किसने किया?
उत्तर:
नागार्जुन ने।
प्रश्न 13.
विश्व का प्रथम सर्जन किसे माना गया है?
उत्तर:
सुश्रुत को।
प्रश्न 14.
थाईलैण्ड का प्राचीन नाम क्या था?
उत्तर:
स्याम।
प्रश्न 15.
तिब्बत भारत की कौन-सी दिशा में स्थित है?
उत्तर:
उत्तर दिशा में।
लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
वृहत्तर भारत में विदेशी व्यापार का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
वृहत्तर भारत में विदेशी व्यापार बहुत विकसित अवस्था में था। वृहत्तर भारत के गाँव आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर थे। यहाँ विश्व के विभिन्न भागों से व्यापारी भारत का निर्मित माल खरीदने आते थे। विदेशों से जल व थल दोनों मार्गों से व्यापार होता था। तिब्बत, चीन, ईरान व अरब आदि देशों से स्थल मार्ग से व्यापार होता था। ताम्रलिप्ति प्रमुख बंदरगाह था। चीन, लंका, जावा व सुमात्रा आदि देशों में भारतीय व्यापारी इसी बंदरगाह के माध्यम से सामान भेजते थे। विदेशी व्यापारी अपने साथ, सोना, चाँदी, लाले मणि एवं हीरे-जवाहरात लाते थे और इसके बदले भारत से सूती, रेशमी व जरी के वस्त्र, तम्बाकू व मसाले आदि ले जाते थे।
प्रश्न 2.
वृहत्तर भारत में मुख्य उद्योग कौन-कौन से थे? उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
वृहत्तर भारत में उद्योग-धन्धे उन्नत अवस्था में थे। भारत में सबसे उन्नत उद्योग वस्त्र उत्पादन था। बनारस, वत्स, बंग व मदुरा में सूती वस्त्र के कारखाने थे। द्वितीय मुख्य उद्योग धातु सम्बन्धी था। खानों से विभिन्न प्रकार की धातु निकालकर उन्हें पिघलाकर बर्तन, अस्त्र-शस्त्र, आभूषण एवं मूर्तियाँ बनायी जाती थीं। सोना, चाँदी, ताँबा, लोहा, जस्ता आदि प्रमुख धातु थे। समुद्रों से निकाले गये रत्नों मणि, मुक्ता, सीप आदि का उपयोग आभूषणों में होता था। इसके अतिरिक्त अन्य प्रमुख उद्योग-धन्धे लकडी व्यवसाय, लुहार का व्यवसाय, चमडा उद्योग, हाथी दाँत उद्योग, भवन निर्माण एवं चीनी, नमक व नील उत्पादन आदि उद्योग उन्नत अवस्था में थे।
प्रश्न 3.
स्तम्भ भारतीय स्थापत्य कला के उत्कृष्ट नमूने क्यों हैं? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
स्तम्भ भारतीय स्थापत्य कला के उत्कृष्ट नमूने हैं। भारतीय व विदेशी कला विशेषज्ञ स्तम्भों को प्राचीन काल की स्थापत्य कला का सर्वोत्तम प्रतिनिधि मानते हैं। प्राचीन भारत के ये स्तम्भ पत्थर के सैंडाकार किन्तु ऊपर की ओर पतले और नीचे की ओर मोटे हैं। इनकी लम्बाई 40 से 50 फीट तक है। प्रत्येक स्तम्भ एक ही पाषाण खंड से बना है। इन स्तम्भों पर एक विशेष प्रकार का लेप किया गया है, जिसकी चिकनाई, पालिश एवं चमक आश्चर्यचकित करने वाली है। इनकी पालिश आज भी शीशे के समान चमकती है। उदाहरण के रूप में, सम्राट अशोक द्वारा बनवाया गया सारनाथ का पाषाण स्तम्भ। उक्त कारणों से स्तम्भ भारतीय स्थापत्य कला के उत्कृष्ट नमूने कहे जाते हैं।
प्रश्न 4.
ज्योतिष व खगोल के क्षेत्र में भारत की उपलब्धियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
वृहत्तर भारत में ज्योतिष व खगोल के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति हुई। इस काल के प्रमुख ज्योतिषाचार्य एवं खगोलशास्त्री वराहमिहिर, कणाद, नागार्जुन, वाग्भट्ट व आर्यभट्ट आदि थे। आर्यभट्ट ने पृथ्वी के अपनी धुरी पर चारों ओर घूमने के सिद्धांत का प्रतिपादन किया एवं विभिन्न ग्रहों व नक्षत्रों का पता लगाकर सूर्य ग्रहण व चन्द्र ग्रहण के कारणों को स्पष्ट किया। प्राचीन ज्योतिष विद्वानों ने चंद्रमा का पृथ्वी के चारों ओर एवं पृथ्वी का अपने अक्ष पर भ्रमण देखकर बारह राशियाँ, सत्ताईस नक्षत्र, तीस दिन का चन्द्रकोल, बारह मास का वर्ष, चन्द्र व सौर वर्ष के अंतर को समन्वित करने हेतु प्रति तीसरे वर्ष अधिक मास द्वारा समायोजित आदि शास्त्रे प्रतिपादित किए।
प्रश्न 5.
प्राचीन भारत में संस्कृत साहित्य में कौन-कौन सी रचनाएँ लिखी गयीं?
उत्तर:
प्राचीनकाल में संस्कृत साहित्य में निम्नलिखित रचनाएँ लिखी गयीं
विशाखदत्त का मुद्राराक्षस
भारवि का किरातार्जुनियम
भरत का स्वप्न वासवदत्ता
कौटिल्य का अर्थशास्त्र
भर्तृहरि के वाक्यदीप, श्रृंगारशतक व नीतिशतक,
कालिदास की कुमारसम्भवम्, रघुवंशम्, मेघदूतम्, ऋतुसंहार, विक्रमोर्वशीयम, मालविकाग्निमित्रम, अभिज्ञानशाकुन्तलम,
विष्णु शर्मा की पंचतंत्र
प्रश्न 6.
वृहत्तर भारत में भारतीय सभ्यता व संस्कृति के प्रमुख केन्द्र कौन-कौन से थे ? नाम बताइए।
उत्तर:
वृहत्तर भारत में भारतीय सभ्यता व संस्कृति का मध्य एशिया एवं उत्तरी-पूर्वी तथा दक्षिण-पूर्वी एशिया के देशों में प्रसार हुआ। प्राचीनकाल में सांस्कृतिक दृष्टि से मध्य एशिया का प्रदेश भारत के पूर्ण प्रभाव में था। इस प्रदेश के खोतान, कूचा, काराशहर व तूफन आदि स्थल भारतीय संस्कृति के प्रमुख केन्द्र थे। इसके अतिरिक्त अफगानिस्तान, चीन, तिब्बत, श्रीलंका, बर्मा, कम्बोडिया, वियतनाम, मलाया, जावा, सुमात्रा, बाली, बोर्निया व लाओस आदि भी भारतीय सभ्यता व संस्कृति के अन्य प्रमुख केन्द्र थे।
प्रश्न 7.
बौद्ध व जैन साहित्य किस-किस भाषा में लिखा गया?
उत्तर:
बौद्ध धर्म के अनुयायियों ने पाली एवं संस्कृत भाषा में बौद्ध दर्शन एवं विचारधारा से सम्बन्धित साहित्य की रचना की। साथ ही महात्मा बुद्ध के जीवन को आधार बनाकर संस्कृत व जन भाषाओं में साहित्य की रचना की गई। जैन धर्म का आगम साहित्य प्राकृत भाषा में लिखा गया। जैन लेखकों ने प्राकृत, संस्कृत, अपभ्रंश, कन्नड़, तमिल व तेलुगू भाषा में भी जैन साहित्य लिखा।
निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
वृहत्तर भारत क्या है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
वृहत्तर भारत-सिंधु-सरस्वती सभ्यता काल से लेकर गुप्तवंशी शासकों के काल तक मेसोपोटामिया, मिस्र, यूनान एवं रोम आदि पश्चिमी देशों के साथ भारत के व्यापारिक एवं सांस्कृतिक सम्बन्ध थे। पुष्यभूति वंश के हर्षवर्द्धन के पश्चात् दक्षिणी भारत में चोल साम्राज्य के विस्तार के समय ईसा की दसवीं शताब्दी तक पश्चिमी देशों के मुकाबले मध्य एशिया तथा दक्षिणी-पूर्वी एशिया के साथ भारत के ऐसे घनिष्ठ राजनैतिक, व्यापारिक एवं सांस्कृतिक सम्बन्ध थे, जिस कारण भारत को वृहत्तर भारत के रूप में पहचाना जाता है। प्राचीनकाल में भारत की भौगोलिक सीमाएँ बहुत अधिक विस्तारित थीं।
भारत के उत्तर-पश्चिम में स्थित वर्तमान का अफगानिस्तान भारत का ही भाग था।सम्पूर्ण मध्य एशिया के भू-भाग में भारत की संस्कृति और जीवन प्रणाली फैली हुई थी। इधर पूर्व में भारत की भौगोलिक सीमाएँ बर्मा (म्यांमार) तक फैली हुई थीं। इसके अतिरिक्त मलाया, जावा, सुमात्रा, बर्मा (म्यांमार) बोर्नियो, बाली, चम्पा, हिन्दचीन, इंडोनेशिया, स्याम, कम्बोडिया और सूरीनाम आदि द्वीप समूह तथा श्रीलंका भारत के ही अंग थे।
यहाँ भारत के राजाओं का अधिकार था। इन द्वीपों में निवास करने वाले निवासी भारतीयों की तरह ही जीवनयापन करते थे, तब प्राचीनकाल से लेकर लगभग दसवीं शताब्दी तक वास्तविक स्थिति यह थी कि भारत के पश्चिम में मध्य एशिया के भूभागों से लेकर पूर्व में बर्मा (म्यांमार) और दक्षिणी पूर्वी एशिया के द्वीप समूह तक और उत्तर में तिब्बत से लेकर दक्षिण में श्रीलंका तक के भूभाग में भारतीय परचम लहराता था।
जीवन के विविध पक्षों में भारत और भारत की संस्कृति ही दिखाई देती थी। तब भारत बड़ा नजर आता था। बड़ा शब्द को संस्कृत में ‘बृहत्तर’ बोला जाता है, इसीलिए इतिहासकार एशिया के इस भूभाग को जहाँ प्राचीनकाल से लेकर दसर्वी शताब्दी तक भारत की संस्कृति फैली हुई थी, बड़े-से-बड़ा भारत अथवा वृहत्तर भारत के नाम से पुकारते हैं। संक्षेप में, वृहत्तर भारत के अन्तर्गत भारत के भू-भाग के साथ उन देशों को सम्मिलित माना जाता है, जहाँ प्राचीनकाल में भारतीयों का राजनीतिक और सांस्कृतिक प्रभुत्व था।
प्रश्न 2.
वृहत्तर भारत के स्वरूप को समझाइए।
उत्तर:
वृहत्तर भारत का स्वरूप
वृहत्तर भारत का स्वरूप बहुत विशाल था। इसकी भौगोलिक सीमाएँ काफी विस्तृत थीं। वृहत्तर भारत के अन्तर्गत भारत के भू-भाग के साथ उन देशों को सम्मिलित किया जाता है, जहाँ प्राचीनकाल में भारतीयों का राजनीतिक एवं सांस्कृतिक प्रभुत्व था।
1. मध्य एशिया-प्राचीनकाल से सांस्कृतिक दृष्टि से मध्य एशिया क्षेत्र भारत के पूर्ण प्रभाव में था। इस प्रदेश के खोतान, कूचा, काराशहर, तूफन आदि स्थल भारतीय संस्कृति के प्रमुख केन्द्र थे। इन क्षेत्रों में हुई खुदाई में भारतीय सभ्यता व संस्कृति के अनेक अवशेष प्राप्त हुए हैं।
2. अफगानिस्तान-प्राचीनकाल में अफगानिस्तान उत्तर भारत का एक प्रमुख भाग था जहाँ के लोग, मध्य भारत की भाषा बोलते थे। बौद्ध धर्म के अतिरिक्त यहाँ हिन्दू धर्म का भी प्रचार-प्रसार हुआ।
3. श्रीलंका-भारत व श्रीलंका का सम्बन्ध प्राचीनकाल से ही है। रामायण में भी इसका उल्लेख है। सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म के प्रचार हेतु अपने पुत्र महेन्द्र व पुत्री संघमित्रा को यहाँ भेजा था।
4. चीन-चीन में बौद्ध धर्म के व्यापक प्रचार-प्रसार के साथ भारतीय स्थापत्य कला, मूर्तिकला एवं चित्रकला का बहुत अधिक प्रभाव पड़ा। यहाँ कई बौद्ध मंदिर एवं गुहा मंदिर बनाए गए। चीन होकर ही बौद्ध धर्म कोरिया व जापान तक फैला।
5. तिब्बत-तिब्बत के राजा स्रोसांग नेम्पो ने भारत से वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित किए। यहाँ बौद्ध धर्म का बहुत प्रचार-प्रसार हुआ। कई तिब्बती छात्रों ने भारतीय विद्यालयों में आकर अध्ययन किया।
6. म्यांमार (बर्मा)-यहाँ प्रथम शताब्दी से भी पहले भारतीय संस्कृति का प्रसार हो चुका था।
7. कम्बोडिया (कम्बोज)-यहाँ के राजा सूर्य वर्मा द्वितीय ने अंगकोरवाट विष्णु मंदिर का निर्माण कराया। यह मंदिर भारतीय स्थापत्य कला का एक उत्कृष्ट नमूना है।
8. वियतनाम (चम्पा)-यहाँ के ऐतिहासिक अवशेषों व परम्पराओं से ज्ञात होता है कि यहाँ भारत के समान वर्ण व्यवस्था विद्यमान थी और विवाह की पद्धति भी भारत जैसी ही थी। यहाँ सीता व राम की पूजा होती थी।
9. मलेशिया (मलाया)-इस देश के अनेक भागों में प्राचीन मंदिरों के खंडहर में मूर्तियों पर संस्कृत भाषा में उत्कीर्ण लेख आदि प्राप्त हुए हैं, जिससे यह जानकारी मिलती है कि यहाँ भारतीय संस्कृति का पर्याप्त प्रचार-प्रसार था।
10. इंडोनेशिया-इस देश के जावा, सुमात्रा, बाली व बोर्नियो आदि द्वीप समूहों पर हिंदुओं ने अपने राज्य स्थापित किए। यहाँ से कई देवी-देवताओं की मूर्तियाँ प्राप्त हुई हैं।
11. लाओस (लवदेश)-प्राचीन काल में भगवान राम के पुत्र लव के नाम से यह देश ‘लवपुरी’ कहलाता था। यहाँ का प्रथम राजा श्रुतवर्मन था। यहाँ हिन्दू व बौद्ध धर्म का पर्याप्त प्रचार हुआ। उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट होता है कि इस्लाम के उदय से पहले मध्य एशिया और दक्षिणी-पूर्वी द्वीप समूह में भारतीय सभ्यता व संस्कृति का प्रेम व सहानुभूति द्वारा पर्याप्त प्रचार-प्रसार हुआ।
प्रश्न 3.
प्राचीन भारत की कला का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
प्राचीन भारत की कला का वर्णन निम्न प्रकार से है-
1. स्थापत्य कला-भारत की स्थापत्य कला के स्मारक हमें चार रूपों में दिखाई पड़ते हैं-
स्तम्भ
स्तूप
भवन
गुहागृह
स्तम्भ-भारतीय स्थापत्य कला के सर्वोत्तम नमूने मौर्य स्थापत्य कला के अन्तर्गत सम्राट अशोक के स्तम्भ हैं, जिनका निर्माण धर्म प्रचार हेतु करवाया गया था। इन स्तम्भों पर उनके लेख अंकित हैं। प्रत्येक स्तम्भ के शीर्ष पर पशुओं की आकृतियाँ हैं। इन स्तम्भों की पॉलिश व चिकनाहट से। इनके धातु का बना होने का भ्रम पैदा होता है। सारनाथ को स्त-१, सर्वश्रेष्ठ माना जाता है।
स्तूप एवं भवन-‘स्तूप’ ईंटों या पत्थर के ऊँचे टीले सदृश गुरबदाकार स्मारक हैं। अशोक ने स्तूपों का भी निर्माण करवाया। स्तूपों में साँची एवं भरहुत के स्तूप आज भी दर्शनीय हैं।
गुरूगृह-स्थापत्य कल स्मारकों के अंतर्गत गुहागृहों का अपना अलग ही महत्व है। पर्वतों की कठोर चट्टानों को काटकर उन्हें निवास गृह, पूजा गृह एवं सभा भवनों का आकार प्रदान करना भारतीय स्थापत्य कला की एक अलग विशिष्टता है
2. मूर्तिकला-भारतीय मूर्तिकला का प्रारम्भ सैन्धव काल से माना जाता है। काँसे की नर्तकी की मूर्ति आज भी मूर्तिकला का सर्वोत्तम उदाहरण है। मौर्योत्तर काल में मूर्तिकला की गन्धार शैली, मथुरा शैली एवं अमरावती शैली का विकास हुआ गुप्त काल में मूर्तिकला के तीन केन्द्र मथुरा, सारनाथ एवं पाटलिपुत्र थे।
3. संगीत कला-अन्य कलाओ की भाँति संगीत कला का भी विकास भारतीय कला के रूप में हुआ। हड़प्पा संस्कृति से प्राप्त मुहरों पर अंकित ढोल, वीणा, मृदंग और तुरही के चित्र संगीत के महत्वपूर्ण प्रमाण हैं। प्राचीन काल में संगीत की शिक्षा के कई केन्द्र विद्यमान थे।
4. चित्रकला-चित्रकला के क्षेत्र में उपलब्धियों का श्रेय गुप्तकाल को जाता है। गुप्तकालीन चित्रकला का उत्कृष्ट प्रदर्शन अजन्ता एवं बाघ की गुफाओं में देखने को मिलता है। अकबर के समय में ईरानी भारतीय चित्र शैली ने एक नया समन्वित रूप प्रस्तुत किया।
प्रश्न 4.
गणित के क्षेत्र में भारत की क्या देन है? उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
गणित के क्षेत्र में भारत का अतुलनीय योगदान है, जिसका वर्णन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत प्रस्तुत है
भारत ने गणित के क्षेत्र में शून्य का आविष्कार किया। शून्य का प्रयोग पाँचवीं शताब्दी में महान भारतीय विद्वान आर्यभट्ट ने किया था।
पूर्णाक के साथ अपूर्णांक (भिन्न) को व्यक्त करने के लिए दशमलव के प्रयोग द्वारा गणित के विकास का क्रांतिकारी आधार प्रस्तुत करने वाली दाशमिक प्रणाली का विकास भी भारत में ही हुआ था।
वर्गमूल और घनमूल निकालने की पद्धति, त्रिभुज, चतुर्भुज व वृत्त की परिधि, क्षेत्रफल निकालने का सूत्र, चक्रीय चतुर्भुजों के परस्पर छेदने वाले विकर्ण एवं उनका उपयोग, समानान्तर, गुणोत्तर श्रेणी तथा उनके समाकलन का ज्ञान छठी शतान्दी में आर्यभट्ट ने ही दिया था।
वृत्त की परिधि एवं व्यास के अनुपात दर्शक नियतांक ‘पाई’ का चार दशमलव स्थान तक यथार्थ मान भी आर्यभट्ट ने ही ज्ञात किया था।
सातवीं शताब्दी में आर्यभट्ट के चार ग्रन्थों के लैटिन भाषा में अनुवाद हुए हैं।
प्राचीनकाल में भास्कराचार्य नामक भारतीय विद्वान ने समस्त विश्व को ज्ञान दिया था कि धनात्मक संख्या को शून्य से भाग देने पर भागफल ‘अनन्त’ होता है। इनके द्वारा लिखे ग्रन्थ ‘लीलावती’ व ‘सिद्धान्त शिरोमणि’ विश्व प्रसिद्ध हैं।
विश्व में काल गणना का प्रथम कलेंडर भी 500 ई. पू. आचार्य लतादेव ने बनाया था।
बोधायन नामक विद्वान ने वर्तमान में गणित के क्षेत्र में प्रचलित पाइथागोरस प्रमेय का प्रतिपादन 2700 वर्ष पूर्व ही कर दिया था, जिसे चित्ति प्रमेय के नाम से जाना जाता था।
पुरी के शंकराचार्य भारती कृष्णतीर्थ ने 8 वर्ष की साधना से वैदिक गणित की खोज की थी। इस प्रकार, गणित के क्षेत्र में भारत का योगदान अविस्मरणीय है।
प्रश्न 5.
विज्ञान व चिकित्सा के क्षेत्र में भारत की उपलब्धियों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
विज्ञान के क्षेत्र में भारत की उपलब्धियाँ-विज्ञान के क्षेत्र में भारत का समस्त विश्व को महत्वपूर्ण योगदान है। प्राचीनकाल में भारत विज्ञान व तकनीकी की दृष्टि से बहुत अधिक समृद्ध था, जिसका प्रमाण 1600 वर्ष से दिल्ली में स्थित लौह स्तम्भ है, जिस पर आज तक जंग नहीं लगी है। भारतीयों के गुरुत्वाकर्षण एवं भौतिक विज्ञान के उच्च ज्ञान का उदाहरण हमें बेल्लूर (कर्नाटक) के केशव मंदिर में भी देखने को मिलता है। यहाँ 40 फीट ऊँचा व 20,000 किलोग्राम का एक प्रस्तर स्तम्भ है जो बिना सहारे के समतल भूमि में बिना गाड़े आज तक खड़ा हुआ है। इसके अतिरिक्त भौतिकी, रसायन एवं वनस्पति विज्ञान के क्षेत्र में भी भारतीयों का ज्ञान उच्च कोटि का था। आसवन प्रक्रिया से कच्चे जस्ते से शुद्ध जस्ता निकालने की प्रक्रिया की खोज भारतीयों ने ही की थी।
चिकित्सा के क्षेत्र में भारत की उपलब्धियाँ-चिकित्सा के क्षेत्र में भारत की महत्वपूर्ण देन है। विश्व का प्रथम औषध विज्ञान आयुर्वेद के रूप में भारत ने ही दिया। धन्वन्तरि को आयुर्वेद का जनक माना जाता है। भारत में धातुओं को शुद्ध करना, भस्म बनाना, जड़ी-बूटियों से औषधियों का निर्माण करना, अनेक प्रकार के प्राकृतिक रंग बनाना आदि प्राचीनकाल से ही किया जाता रहा है। नागार्जुन ने विभिन्न धातुओं एवं अन्य वस्तुओं की भस्म बनाकर औषधि के रूप में उनका प्रयोग किया। सुश्रुत को विश्व की प्रथम शल्य चिकित्सक माना जाता है। इन्हें सिजेरियन, मोतियाबिंद, अंग प्रत्यारोपण एवं पथरी आदि की शल्य क्रियाओं के साथ-साथ बेहोशी की दवा का भी ज्ञान था। चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में चरक का भी महत्वपूर्ण योगदान है। चरक ने चरक संहिता की रचना की। चरक के पश्चात् नागार्जुन ने रस शास्त्र को निर्मित किया।
प्रश्न 6.
वृहत्तर भारत में व्यापार व वाणिज्य का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
वृहत्तर भारत में व्यापार-प्राचीनकाल में भारत एक धनी देश था। इसे सोने की चिड़िया’ के नाम से जाना जाता था। भारत का ग्रामीण क्षेत्र आर्थिक दृष्टि से आत्मनिर्भर था। विश्व के विभिन्न क्षेत्रों से व्यापारी भारत में निर्मित सामान खरीदने यहाँ आते थे। विदेशों से जल व थल दोनों मार्गों से व्यापार होता था। पूर्व में ताम्रलिप्ति का बंदरगाह प्रमुख था, जिसके माध्यम से चीन, श्रीलंका, जावी व सुमात्रा आदि देशों से व्यापार होता था। विदेशी व्यापारी अपने साथ सोना, चाँदी, हीरे, जवाहरात एवं लाल मणि आदि लाते थे और उसके बदले में भारत से सूती, रेशमी व जरी के कपड़े, तम्बाकू व मसाले आदि ले जाते थे।
बाहरी देशों के साथ व्यापार को जाने वाले व्यापारी वर्ग के मुखिया को भारत में ‘सार्थवाह’ कहा जाता था। पश्चिमी देशों से मीठी शराब व अंजीर, चीन से रेशम व नेपाल से अन्न मँगाया जाता था तथा मोती, बहुमूल्य पत्थर, सुगंधित पदार्थ, वस्त्र, मसाले, नील, दवाइयाँ व नारियल आदि सामग्री का निर्यात किया जाता था इन वस्तुओं के बदले विदेशों से स्वर्ण सिक्के भी मंगाये जाते थे। आंतरिक व्यापार के लिए भी देश में उत्तम व्यवस्था थी।
गंगा, ब्रह्मपुत्र, गोदावरी, कृष्णा व कावेरी आदि नदियों द्वारा जल मार्ग से व्यापार होता था। इसके अतिरिक्त थल मार्ग से भी व्यापार होता था। वृहत्तर भारत में वाणिज्य-प्राचीन भारत के आरम्भिक काल में व्यापार वस्तु विनिमय के माध्यम से होता था। इसके बाद सिक्कों का प्रचलन आ गया। व्यापारिक लेन-देन का कार्य सिक्कों से होता था। सोने, चाँदी, ताँबे के सिक्कों का प्रचलन था।
स्वर्ण के सिक्के को ‘निष्क’ चाँदी के सिक्के को ‘धरण’ एवं ताँबे के सिक्के को ‘माषक’ व काकणी कहा जाता था। मुद्रा ढालने का कार्य राजकोय टकसाल में होता था। प्राचीनकाल में व्यापारिक संगठनों को श्रेणी या गण कहा जाता था। ये संगठन अपने-अपने व्यावसायिक हितों की सुरक्षा करते थे। वे आधुनिक बैंकों का कार्य भी करते थे। इस प्रकार प्राचीनकाल में भारत में व्यापार एवं वाणिज्य शिखर पर था।
प्रश्न 7.
कम्बोडिया (कम्बोज) में भारतीय संस्कृति के प्रसार का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
कम्बोडिया या कम्बोज को प्राचीनकाल में ‘फूनान’ कहा जाता था। यहाँ भारतीय संस्कृति का बहुत अधिक प्रचार-प्रसार हुआ। यहाँ ईस्वी सन् की प्रथम शताब्दी में कौडिन्य नामक एक भारतीय ने अपना राज्य स्थापित किया था तथा फूनान की नागा जाति की सोभा नामक कन्या से विवाह किया था। इसी ने फूनान के निवासियों को वस्त्र पहनना सिखाया। कौडिन्य के वंशजों के शासनकाल में कम्बोडिया की बहुत अधिक प्रगति हुई। साथ-ही-साथ भारतीय संस्कृति का भी प्रसार हुआ।
नवीं शताब्दी के प्रारम्भ में जय वर्मा के वंशजों के शासनकाल में कम्बोडिया में भारतीय भाषा संस्कृत, दर्शन, साहित्य, गणित एवं ज्योतिष के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति हुई। इसी वंश के एक अन्य शासक सूर्य वर्मा द्वितीय ने अंगकोरवाट में विष्णु मंदिर का निर्माण करवाया, जो विश्व प्रसिद्ध है। जय वर्मा सप्तम ने अंगकोरथोम में एक वैष्णव मंदिर का निर्माण करवाया। प्राचीनकाल में कम्बोडियो के नगरों के नाम भारतीय नगरों के नाम पर थे; जैसे-ताम्रपुर, आयपुर, विक्रमपुर आदि। यहाँ प्राचीन भारतीय शिक्षा प्रणाली के अनुरूप आश्रमों में शिक्षा का कार्य किया जाता था।
इसके अतिरिक्त यज्ञों का भी प्रचलन था। यहाँ के मंदिरों में शिव, विष्णु, उमा, ब्रह्मा, गंगा, सरस्वती, लक्ष्मी, चण्डी, गणेश आदि देवी-देवताओं की मूर्तियों की पूजा की जाती थी तथा वेद, पुराण, रामायण एवं महाभारत आदि ग्रन्थों का अध्ययन किया जाता था। इस प्रकार कहा जा सकता है कि कम्बोडिया में भारतीय संस्कृति का बहुत अधिक प्रसार हुआ।
अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1.
वृहत्तर भारत में भारतीय संस्कृति का प्रमुख केन्द्र था
(अ) खोतान
(ब) कूचा
(स) तूफन
(द) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी
प्रश्न 2.
निम्न में से किस देश का उल्लेख वाल्मिकी रामायण में आता है
(अ) चीन
(ब) भारत
(स) कम्बोज
(द) श्रीलंका
उत्तर:
(द) श्रीलंका
प्रश्न 3.
निम्न में से किस देश का वर्तमान नाम ‘म्यांमार’ है?
(अ) भारत
(ब) बर्मा
(स) कम्बोडिया
(द) चम्पा।
उत्तर:
(ब) बर्मा
प्रश्न 4.
कम्बोज यो कम्बोडिया का प्राचीन नाम था
(अ) फूनान
(ब) चम्पा
(स) बर्मा
(द) स्याम्।
उत्तर:
(अ) फूनान
प्रश्न 5.
वियतनाम का प्राचीन नाम था
(अ) चम्पी
(ब) मलायो
(स) स्याम
(द) जावा।
उत्तर:
(अ) चम्पी
प्रश्न 6.
मलमल के कपड़े के लिए प्रसिद्ध था
(अ) मलाया
(ब) बंगाल
(स) लवदेश
(द) बाली।
उत्तर:
(ब) बंगाल
प्रश्न 7.
अजंता, ग्वालियर व बाघ की गुफाएँ प्रसिद्ध हैं
(अ) चित्रकला के लिए
(ब) नृत्यकला के लिए।
(स) स्तम्भ के लिए
(द) मूर्तिकला के लिए।
उत्तर:
(अ) चित्रकला के लिए
प्रश्न 8.
प्राचीनकाल में उच्च शिक्षा का केन्द्र था
(अ) तक्षशिला
(ब) नालन्दा
(स) पाटलिपुत्र
(द) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी
अति लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
वृहत्तर भारत में भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति का सबसे बड़ा केन्द्र कौन-सा था?
उत्तर:
खोतान।
प्रश्न 2.
भारत के किस सम्राट ने अपने पुत्र महेन्द्र व पुत्री संघमित्रा को बौद्ध धर्म के प्रचार हेतु श्रीलंका भेजा था ?
उत्तर:
सम्राट अशोक ने
प्रश्न 3.
प्राचीन भारत के एक प्रमुख बंदरगाह का नाम बताइए।
उत्तर:
ताम्रलिप्ति।
प्रश्न 4.
प्राचीन भारत का सबसे उन्नत उद्योग कौन-सा था ?
उत्तर:
वस्त्र उत्पादन।
प्रश्न 5.
प्राचीन भारत में ताँबे के सिक्के क्या कहलाते थे ?
उत्तर:
माषक या काकणी।
प्रश्न 6.
सार्थवाह क्या था ?
उत्तर:
बाहरी देशों के साथ व्यवहार को जाने वाले व्यापारी वर्ग के मुखिया को सार्थवाह कहा जाता था।
प्रश्न 7.
स्तूप किसे कहा जाता है ?
उत्तर:
ईंटों या पत्थर के ऊँचे टीले सदृश गुम्बदाकार स्मारक स्तूप कहलाते हैं।
प्रश्न 8.
शेष-शैय्या पर सोए विष्णु की मूर्ति कहाँ की प्रसिद्ध है ?
उत्तर:
देवगढ़ के मंदिर की।
प्रश्न 9.
भारतीय चित्रकला के अनुपम उदाहरण कहाँ की गुफाओं में देखने को मिलते हैं ?
उत्तर:
अजन्ता, ग्वालियर एवं बाघ की गुफाओं में।
प्रश्न 10.
कालीदास द्वारा लिखित दो महाकाव्यों के नाम लिखिए।
उत्तर:
कुमारसम्भवम्
रघुवंशम्
प्रश्न 11.
किन्हीं दो प्राचीन बौद्ध ग्रन्थों के नाम लिखिए।
उत्तर:
विनयपिटक
दिव्यावदान
प्रश्न 12.
पृथ्वी का अपनी कीली पर चारों ओर घूमने के सिद्धान्त का प्रतिपादन किसने किया ?
उत्तर:
आर्यभट्ट ने।
प्रश्न 13.
आयुर्वेद का जनक किसे माना जाता है ?
उत्तर:
धन्वन्तरि को।
प्रश्न 14.
भारतीय मूर्तिकला का श्रेष्ठ नमूना कौन-सा है ?
उत्तर:
अशोक के सारनाथ स्तम्भ पर बनी मूर्ति भारतीय मूर्तिकला का श्रेष्ठ नमूना है।
लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
वृहत्तर भारत में भारतीय संस्कृति के प्रचार-प्रसार के आर्थिक कारण का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
प्राचीन काल में भारत एक उन्नत देश था। इसे सोने की चिड़िया कहा जाता था। यहाँ के निर्मित सामान की विदेशों में बहुत अधिक माँग थी। भारत के व्यापारी विदेशों में अपना माल बेचने जाते थे। भारत से जाने वाले कई व्यापारी विदेशों में जाकर बस गए तथा कई भारत आते-जाते रहते थे। इने व्यापारियों के विदेशों में आने-जाने और वहाँ बसने के कारण एक उन्नत भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति का उन देशों में प्रचार-प्रसार हुआ।
प्रश्न 2.
अजन्ता की चित्रकला का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
अजन्ता की गुफाओं के चित्रों में विभिन्न प्रकार के अंग विन्यास मुख-मुद्रा, भाव-भंगिमा, वेशभूषा, विविध केश विन्यास, रूप रंग आदि अति सुन्दरता से चित्रित की गयी हैं। अजन्ता के चित्रों में मरणासन्न राजकुमारी चित्र की भावाभिव्यक्ति मन को छू लेने वाली है। यहाँ की गुफाओं में महलों, पेड़-पौधों, फूल-पत्तियों एवं बुद्ध के जीवन के विभिन्न दृश्य चित्रित हैं। इस गुफा में चित्रित चित्रों के माध्यम से भारतीय कलाकारों ने मानव जीवन का कोई क्षेत्र अछूता नहीं छोड़ा है।
निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
वृहत्तर भारत में भारतीय संस्कृति के प्रचार-प्रसार के प्रमुख कारणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
वृहत्तर भारत में भारतीय संस्कृति के प्रचार-प्रसार के कारण
वृहत्तर भारत में भारतीय संस्कृति के प्रचार-प्रसार के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे-
1. भौगोलिक कारण-भारत एशिया महाद्वीप के दक्षिणी भाग के मध्य में स्थित है। भारत की इस अनुकूल भौगोलिक स्थिति के कारण इसका विश्व के अन्य देशों के साथ सम्बन्ध स्थापित हो गया। इस अनुकूल भौगोलिक स्थिति ने वृहत्तर भारत में भारतीय संस्कृति के प्रचार-प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी।
2. धार्मिक कारण-दक्षिणी-पूर्वी एशिया में बसी जातियों ने हिन्दू धर्म की मान्यताओं का प्रसार किया। बौद्ध धर्म के उदय के पश्चात् भारत से कई बौद्ध धर्म प्रचारक विभिन्न देशों में धर्म प्रचार के लिए गए। इन धर्म प्रचारकों ने विदेशों में धर्म प्रचार के साथ-साथ भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति का भी प्रचार किया। इसके अतिरिक्त चोल राजाओं ने दक्षिणी-पूर्वी द्वीप समूह में हिन्दू धर्म के प्रचारक भेजे थे। इसके अतिरिक्त कई भारतीय साहित्यकारों, कलाकारों ने भी विदेशी धरती पर पहुँचकर वहाँ भारतीय संस्कृति, भाषा, साहित्य, कला एवं धर्म का प्रचार किया।
3. आर्थिक कारण-प्राचीन काल में भारत आर्थिक दृष्टि से एक उन्नत देश था। इसे सोने की चिड़िया कहा जाता था। यहाँ से निर्मित सामानों की विदेशों में बहुत अधिक माँग थी। भारतीय व्यापारी विदेशों में अपना माल बेचने जाते थे। भारत से जाने वाले कई व्यापारी विदेशों में जाकर बस गये और कई आते-जाते रहते थे। इन भारतीय व्यापारियों के दूसरे देशों में आने-जाने एवं बसने के साथ-साथ भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति का उन देशों में प्रचार-प्रसार हुआ।
4. राजनीतिक कारण-प्राचीन काल में भारत के कई शासक एवं उनके उत्तराधिकारी दक्षिणी-पूर्वी एशिया के भागों में गए एवं वहाँ उन्होंने अपने राज्य तथा उपनिवेश स्थापित कर दिये। वहाँ उन्होंने भारतीय विचारधारा, भाषा, सभ्यता एवं संस्कृति का प्रचार किया। इस प्रकार वृहत्तर भारत के देशों में भारतीय संस्कृति का प्रचार-प्रसार हुआ।
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