NCERT कक्षा 12वी अध्याय 05 पृष्ठिय रसायन संपूर्ण समाधान एवं नोट्स हिन्दी में।। NCERT CLASS 12TH CHAPTER 05 FULL SOLUTION AND NOTES IN HINDI : ULTIMATE STUDY SUPPORT

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कक्षा 12, रसायन शास्त्र, अध्याय 05, पृष्ठीय रसायन हिंदी में

पृष्ठ रसायन परिभाषा : रसायन विज्ञान की वह शाखा जिसके अंतर्गत ठोस या द्रव की सतह पर होने वाले परिवर्तन तथा क्रियाविधि का अध्ययन किया जाता है उसे पृष्ठ रसायन कहते है।
अधिशोषण (adsorption) : इसे निम्न प्रयोग द्वारा समझाया जा सकता है , जल वाष्प से भरे पात्र में सिलिका जैल लटकाने पर उसकी सतह पर जल वाष्प संचित हो जाती है इसे अधिशोषण कहते है।
अतः ठोस या द्रव की सतह पर दूसरे पदार्थ का संचित होना अधिशोषण कहलाता है।
नोट : वह पदार्थ जो ठोस या द्रव की सतह पर संचित होता है उसे अधिशोष्य कहते है तथा जिस पदार्थ पर अधिशोषण की घटना होती है उसे अधिशोषक कहते है।
अवशोषण (absorption ): 
जब अधिशोष्य ,अधिशोषक में समान रूप से वितरित हो जाता है तो उसे अवशोषण कहते है।
उदाहरण :
स्पंज के टुकड़े को जल के संपर्क में रखने पर
कागज़ के टुकड़े को जल के सम्पर्क में रखने पर
NH3गैस को जल के संपर्क में रखने पर
NH3  + H2O  = NH4OH
निर्जल CaCl2 को जल वाष्प के सम्पर्क में रखने पर।
diagram ?
अधिशोषण तथा अवशोषण में अंतर :
 अधिशोषण (adsorption)  अवशोषण (absorption ) 1. यह सतह घटना है अर्थात अधिशोषक की सतह पर घटित होती है। यह स्थूल घटना है अर्थात यह अधिशोषक के सम्पूर्ण भाग में घटित होती है। 2. अधिशोष्य की सांद्रता सतह पर अधिक होती है।
गैसों की प्रकृति :
वे गैस जो सरलता से द्रवित हो जाती है जैसे CO2 , SO2 , NH3 आदि।
नोट : इन गैसों का अणुभार तथा क्रांतिक ताप उच्च होता है।
ठोस का पृष्ठीय क्षेत्रफल :
वे ठोस जो रंध्रयुक्त तथा चूर्णित अवस्था में होते है उनका कुल पृष्ठीय क्षेत्रफल अधिक होता है उससे ठोसों पर गैसों का अतिशोषण अधिक होता है।
ताप :
ठोस की सतह पर गैसों के अधिशोषण से जो ऊष्मा बाहर निकलती है उसे अधिशोषण ऊष्मा कहते है।
ठोस + गैस   = ठोस-गैस + ऊष्मा
लाशातैलिए के नियम से ताप कम करने पर साम्य उस दिशा में जाता है जिधर ताप में वृद्धि हो जाए अर्थात साम्य अग्र दिशा में जाता है।  जिससे ठोस की सतह पर गैसों का अधिशोषण अधिक होता है।
प्रश्न 1 : ताप कम करने पर ठोस की सतह पर गैसों का अधिशोषण अधिक होता है क्यों ?
दाब :
फ्रैन्डलिक ने स्थिर ताप पर ठोस की सतह पर गैसों के अधिशोषण की मात्रा तथा गैस दाब के मध्य एक ग्राफ खिंचा इसे फ्रैंडलिक समतापी वक्र कहते है।
डायग्राम >>>
उपरोक्त ग्राफ से निम्न निष्कर्ष निकलते है।
कम (न्यून) दाब पर अधिशोषण की मात्रा दाब के समानुपाती होती है।
अर्थात  (x/m) ∝ p
उच्च दाब पर अधिशोषण की मात्रा दाब से अप्रभावित होती है।
(x/m) ∝ p0
(x/m) =  kp0
p0  = 1
(x/m) =  k
दाब की मध्यवृत्ति अवस्था में अधिशोषण की मात्रा को निम्न प्रकार से प्रदर्शित करते है।
(x/m) ∝ p1/n
(x/m) = kp1/n
यहाँ  k तथा n नियतांक है।
log लेने पर
log(x/m)  = (1/n)log p  + log k
y  = mx + c
उपरोक्त समीकरण को फ्रैंडलिक समतापी समीकरण कहते है उपरोक्त समीकरण y = mx + c जैसी है।
यह एक सरल रेखा की समीकरण है यदि log(x/n) तथा log p के मध्य ग्राफ खिंचा जाए तो यह निम्न प्रकार आता है।
डायग्राम >>
उपरोक्त ग्राफ का ढाल 1/n के बराबर तथा अन्तः खंड log k बराबर होता है।
ठोस , विलयन में से घुले हुए पदार्थो का अधिशोषण कर लेते है।  जैसे
चारकोल एसिटिक अम्ल के जलीय विलयन में से एसिटिक अम्ल के कुछ अंश को अधिशोषित कर लेते है।
चारकोल अशुद्ध शर्करा विलयन से रंगीन अशुद्धियों को अधिशोषित कर लेते है।
विलयन प्रावस्था से अधिशोषण की सीमा निम्न कारको पर निर्भर करती है(adsorption depends on factors) :
ताप बढ़ाने से अधिशोषक कम होता है।
ठोस अधिशोषक का पृष्ठीय क्षेत्रफल बढ़ने पर अधिशोषण अधिक होता है।
अधिशोषक व अधिशोष्य की प्रकृति।
विलयन की सांद्रता।
उपरोक्त प्रकार के विलयनों के लिए ठोस द्वारा अधिशोषण की मात्रा तथा विलयन की सांद्रता के मध्य सम्बन्ध को फ्रैंडलिक द्वारा निम्न समीकरण व्यक्त किया गया।
(x/m)  ∝ C1/n
(x/m) = k C1/n
log लेने पर
log (x/m) = 1/n log C + log k
 अधिशोषण के अनुप्रयोग (Applications of adsorption):
गैस मास्क में :- कोयले की खान में काम करने वाले श्रमिक गैस मास्क का उपयोग करते है इसमें चारकोल तथा अन्य अवशोषक पदार्थ भरे होते है जो विषैली गैसों को अवशोषित कर लेते है।
व्याधियों के उपचार में :- कुछ मलहम तथा दवाइयाँ कीटाणुओं को अधिशोषित कर लेते है।
रंगीन अशुद्धियों को हटाने में :- चारकोल अशुद्ध शर्करा के विलयन में से रंगीन अशुद्धियों को अधिशोषित कर लेते है।
उच्च निर्वात उत्पन्न करने में :- निर्वात पम्प की सहायता से वायु को निकालकर इसमें चारकोल डाल देते है जो शेष वायु को अधिशोषित कर लेता है जिससे उच्च निर्वात होता है।
आद्रता को कम करने में :- सिलिका जैल व एलुमिनियम जैल आद्रता को अधिशोषित करने में सहायक होते है।
विषमांगी उत्प्रेरण में :- ठोस उत्प्रेरक अपनी सतह पर क्रियाकारक के अणुओं को अधिशोषित कर लेता है जिससे की वे क्रियाफल में बदल जाते है।
वर्ण लेखिकी :- ठोस अधिशोषक मिश्रण के घटको को पृथक्क करने के काम आता है।
अक्रिय गैसों को पृथक्क करना :- नारियल चारकोल अक्रिय गैसों के मिश्रण में से अक्रिय गैसों को पृथक्क करने के काम आता है।
उत्प्रेरण की परिभाषा (Inducing) :
वे पदार्थ जो रासायनिक अभिक्रिया के वेग को परिवर्तित कर देते है परन्तु स्वयं बाहर तथा संगठन की दृष्टि से अपरिवर्तित रहते है उन्हें उत्प्रेरक कहते है इस घटना को उत्प्रेरण कहते है।
उदाहरण : N2 (g)  + 3H2(g)        (M0)      =          2NH3(g)
नोट 1 : वे पदार्थ जो उत्प्रेरक की क्रियाशीलता को बढ़ा देते है उन्हें वर्धक कहते है।  इस क्रिया में M0 वर्धक का काम करता है।
नोट 2 : वे पदार्थ जो उत्प्रेरक की सक्रियता को कम कर देते है उन्हें विष कारक कहते है।
उत्प्रेरण के प्रकार(Types of induction) : 
उत्प्रेरण दो प्रकार का होता है।
समांगी उत्प्रेरण (Homogeneous induction):
जब क्रियाकारक क्रियाफल तथा उत्प्रेरक समान प्रावस्था में हो तो उसे समांगी उत्प्रेरण कहते है।
जैसे : (1)   SO2(g) + O2(g)  =    2SO3(g)           (nitrogen monoxide(NO) Catalyst)
(2)   CH3COO-CH3(l) + H2O (l)  = CH3COOH(l)  + CH3-OH(l)     (HCl Catalyst)
(3)   C12H22O11(aq)  + H2O (l)  =  C6H12O6 + C6H12O6 (तनु H2SO4 Catalyst)
2 . विषमांगी उत्प्रेरण (Catastrophic induction):
जब क्रियाकारक क्रियाफल तथा उत्प्रेरक अलग अलग प्रावस्था में हो तो उसे विषमांगी उत्प्रेरण कहते है।
जैसे : (1)   N2(g) + 3H2(g)  = 2NH3(g)   (Fe & M0 उत्प्रेरक)
(2)   2SO2(g) + O2(g)  =    2SO3(g)           (PE उत्प्रेरक)
(3)   वनस्पति तेल + H2(g)  =  वनस्पति घी (Ni उत्प्रेरक)
(4)   4NH3(g) + 5O2(g)  = 4NO(g) + 6H2O(g)   (Pt उत्प्रेरक)
विषमांगी उत्प्रेरण का अधिशोषण सिद्धांत (adsorption theory of heterogeneous induction):
सर्वप्रथम ठोस उत्प्रेरक की सतह पर क्रिया कारक के अणु विसरित होते है।
उत्प्रेरक की सतह पर क्रियाकारक के अणुओं का अधिशोषण
अधिशोषण के बाद मध्यवर्ती संकुल का निर्माण।
उत्प्रेरण की सतह से उत्पाद का विशोषण।
उत्पाद का उत्प्रेरक से दूर विसरण।
डायग्राम <<
उपरोक्त सिद्धान्त से स्पष्ट है की अभिक्रिया के अंत में उत्प्रेरक के बाहर तथा संघठन में कोई परिवर्तन नहीं होता।
ठोस उत्प्रेरकों की विशेषताएं (Features of Solid Catalysts):
ठोस उत्प्रेरकों में निम्न विशेषताएं होती है।
(1) सक्रियता :
ठोस उत्प्रेरक की सक्रियता से अभिप्राय है की उत्प्रेरक क्रियाकारक के अणुओं को अपनी सतह पर पर्याप्त प्रबलता से अधिशोषित कर सके।
(2) वर्णात्मकता :
वर्णात्मकता से अभिप्राय है की उत्प्रेरक अभिक्रिया को विशेष दिशा में संपन्न करने की क्षमता रखते है।
जैसा की निम्न उदाहरणों से स्पष्ट है।
(1)   CO + H2  = HCHO  ( Cu उत्प्रेरक )
(2)   CO + 2H2 = CH3-OH (ZnO & Cr2O2 उत्प्रेरक )
(3)   CO + 2H2 = CH4 + H2 (Ni उत्प्रेरक )
जिओलाइट में आकार वर्णात्मकता (Size descriptiveness in zeolite) :
वे उत्क्रमणीय अभिक्रियाएँ (Reversible reactions ) जो उत्प्रेरक (Catalyst) के रंध्र , क्रियाकारक व क्रियाफल के अणु के आकार पर निर्भर करती हैं उन्हें आकार वर्णात्मक उत्प्रेरक कहते है।
जिओलाइट(zeolite) आकार वर्णात्मक उत्प्रेरक है।
जिओलाइट की संरचना मधुमक्खी के छत्ते के समान होती है जिसमे असंख्य छिद्र होते है।
जिओलाइट को आकार वर्णात्मक उत्प्रेरक कहते है क्योंकि इसके छिद्रो में क्रियाकारक के वे अणु ही प्रवेश कर सकते है जिनका आकार इन छिद्रों के अनुरूप होता है।
जिओलाइट(zeolite) ल्यूमिनु सिलिकेट है। जिसमे Si-O-Al लिंकेज (linkage ) होती है।
जिओलाइट के उपयोग (Uses of zeolite) :
पेट्रो रसायन उद्योग में जिओलाइट हाइड्रोकार्बन का भंजन तथा समावयवी करण करते है।
ZSM-5 नामक जिओलाइट एथिल एल्कोहल का निर्जलीकरण कर उसे पेट्रोल (गैसोलीन) में बदलता है।
जिओलाइट कठोर जल को मृदु जल में बदलता है।
एंजाइम उत्प्रेरण : नाइट्रोजन के जटिल कार्बनिक पदार्थो को एन्जाइम कहते हैं।
एन्जाइम उच्च अणुभार वाले प्रोटीन है ये पेड़ पौधों व जीव जन्तुओ में होने वाली क्रियाओं को उत्प्रेरित करते है अतः इन्हे जैव रासायनिक उत्प्रेरण भी कहते है।
एन्जाइम से होने वाली क्रियाएँ निम्न है :
इसु शर्करा का प्रतिलोमन :
(1)   (sucrose)C12H22O11  + H2O  = C6H12O6 (glucose) + C6H12O6(fructose)          (इंवर्टेस एन्जाइम  )
(2)   (maltos)C12H22O11  + H2O  = 2C6H12O6 (glucose)     (माल्टेस एन्जाइम   )
(3)   C6H12O6    = 2C2H5OH + 2CO2 (एथिल एल्कोहल)           (जाइमेस  एन्जाइम  )
(4)   NH2CO NH2  + H2O  = 2NH3 +CO2                       (युरियेस  एन्जाइम )
(5) प्रोटीन  = पेप्टाइड     (पेप्सिन एन्जाइम )
(6) प्रोटीन  = ऐमिनो अम्ल    (ट्रिसिन एन्जाइम )
(7)  दूध     = दही                 (लैक्टोबेसिलस एन्जाइम )
(8) डायस्टेज नामक एन्जाइम स्टार्च को माल्टोस में बदल देता है।
2(C6H10O5)n + nH2O  = n C12H22O11   (डायस्टेज एन्जाइम )
एन्जाइम उत्प्रेरण की विशेषताएं :
एक विशेष अभिक्रिया के लिए विशेष एन्जाइम काम में आता है अतः ये अति विशिष्ठ होते है।
एन्जाइम का एक अणु एक मिनट में क्रियाकारक के दस लाख अणुओं को क्रियाफल में बदल देते है अर्थात ये सर्वोत्तम दक्ष होते हैं।
एन्जाइम 25 से 37 डिग्री सेंटीग्रेट ताप पर अधिक प्रभावशाली होती है इस ताप को इष्टतम ताप कहते हैं।
एन्जाइम 4 से 7 ph पर सबसे अधिक क्रियाशील होते है इसे इष्टतम ph कहते है।
वे पदार्थ जो एन्जाइम की क्रियाशीलता को बढ़ा देते है उन्हें सक्रीय कारक या सह एन्जाइम कहते है।
Na+, CU2+ , Mn2+, CO2+आदि सह एन्जाइम है।
नोट : Na+ ऐमिलेस की क्रियाशीलता को बढ़ा देता है।
वे पदार्थ जो ऐन्जाइम की क्रियाशीलता को कम कर देते है उन्हें सन्दमक या विष्कारक कहते है।
एन्जाइम उत्प्रेरण की क्रियाविधि :
एन्जाइम के अणुओं में अनेक कोटरे होती है ये कोटरे विशेष आकृति की होती है। इन कोटरो में सक्रीय समूह जैसे NH2 , COOH , OH , -SH स्थित रहते है। जहाँ ये समूह होते है उसे सक्रीय केंद्र कहते है।
एन्जाइम के सक्रीय केंद्र से परिपूर्वक आकृति के क्रियाकारक के अणु उसी प्रकार से फिट हो जाते है जिस प्रकार से एक ताले में विशेष चाबी फिट होती है इसलिए इसे ताला-चाबी सिद्धांत कहते है।
एन्जाइम तथा सब्सट्रेट (क्रियाकारक) के अणु मिलकर एन्जाइम क्रियाकारक(सब्सट्रेट) का निर्माण करते है।
E + S = [E-S]
एन्जाइम सब्सट्रेट संकुल टूटकर एन्जाइम तथा क्रियाफल या उत्पाद में परिवर्तित हो जाता है।
E-S =  [E+P ]
कोलाइड (Colloid): थॉमस ग्राहम के अनुसार वे पदार्थ जो जन्तु झिल्ली में से विसरित हो जाते है उन्हें क्रिस्टलॉइड कहते है।  जैसे नमक , यूरिया विलयन।
वे पदार्थ जो जन्तु झिल्ली में से विसरित नहीं होते उन्हें कोलाइड कहते है।
जैसे : स्टार्च , गोंद , जलेडीन आदि।
थॉमस ग्राहम का यह वर्गीकरण उचित नहीं है क्योंकि नमक जल में क्रिस्टलॉइड की तरह जबकि एल्कोहल में कोलाइड की तरह व्यवहार करता है।
उपरोक्त कथन से स्पष्ट है की कोलाइड कोई पदार्थ नहीं है परन्तु पदार्थ की एक अवस्था है जिसके कणों का आकार 1nm से 1000nm या 10-9 meter से  10-6 m होता है।
विलयन के प्रकार :
कणो के आधार पर विलयन तीन प्रकार के होते है।
1. वास्तविक विलयन : इनके कणो का आधार 1nm से कम होता है।
2. कोलाइडी विलयन : इनके कणो का आकार 1nm से 1000nm होता है।
3. विलम्बन : इनके कणो का आकार 1000nm से अधिक होता है , इन कणों को आखों से देख सकते है।
कोलॉइडी विलयन की प्रावस्था (Phase of colloidis):
कोलाइडी विलयन में दो प्रावस्थायें होती है।
1. परिक्षित प्रावस्था :
कोलाइडी विलयन में उपस्थित कोलाइडी कणों की प्रावस्था को परिक्षित प्रावस्था कहते है इसे विलेय के समान माना जाता है।
2. परिक्षेपण माध्यम :
कोलाइडी कण जिस माध्यम में वितरित रहते है उसे परिक्षेपण माध्यम कहते है।  इसे विलायक के समान माना जाता है।
 सहयोजित कोलाइडः वे पदार्थ जिन्हें कम सांद्रण पर एक माध्यम में मिश्रित किया जाता है तो वह सामान्य रूप से व्यवहार करते हैं, लेकिन अधिक सांद्रण पर संगठित कणों के निर्माण की वजह से कोलाइडी अवस्था के गुण रखते हैं तो उन्हें ‘सहयोगी कोलाइड‘ अथवा ‘मिसेल्स‘ कहते हैं। साबुन और कृत्रिम डिटर्जेन्ट इस वर्ग में आते हैं।
 पायसः पायस एक ऐसा कोलाइडल है, जिसमें ‘परिक्षेपित‘ पदार्थ और ‘परिक्षेपण माध्यम‘ दोनों ही द्रव है। पायस का निर्माण दो द्रवों के मिश्रण को कोलाइल मिल से प्रवाहित करके या तेजी से हिलाकर किया जाता है, जिसे समांग कारक कहते हैं।
 परासणः यह विलयन से संबद्ध एक असाधारण परिघटना है। यह विलायक अणुओं का अर्द्धपारगम्य झिल्ली द्वारा कम सांद्रता वाले विलयन से अधिक सांद्रता वाले विलयन की ओर विसरण है।
 मोलर व नॉर्मल विलयनः एक लीटर विलायक में एक मोल विलेय का विलयन मोलर विलयन कहलाता है। एक लीटर जल में 40 ग्राम से एक मोलर विलयन बनता है।
 मोललताः प्रति 1000 ग्राम विलायक में विलेय के मोलों की संख्या को मोललता कहते हैं।
उदासीन, अम्लीय तथा क्षारीय विलयन
 ऐसा विलयन जिसमें हाइड्रोजन आयनों और हाइड्रॉक्साइड आयनों का सांद्रण समान होता है, उदासीन विलयन कहलाता है।
 ऐसा विलयन जिसमें हाइड्रोजन आयनों का सांद्रण हाइड्रॉक्साइड आयनों से अधिक होता है, अम्लीय विलयन कहलाता है। ऐसा विलयन जिसमें हाइड्रॉक्साइड आयनों का सांद्रण हाइड्रोजन आयनों से अधिक होता है, क्षारीय विलयन कहलाता है।
(A) परिक्षित प्रावस्था व परिक्षेपण माध्यम की भौतिक अवस्था के आधार पर :
 परिक्षित प्रावस्था
 परिक्षेपण माध्यम 
 कोलॉइडी का प्रकार या विशिष्ट नाम 
 उदाहरण 
 ठोस 
 गैस 
 ऐरोसॉल 
 आँधी , सिगरेट का धुआँ 
 द्रव 
 सॉल 
 स्वर्ण सॉल , रजत सॉल 
 ठोस 
 ठोस सॉल 
 रत्न , मणि , कांच , मिश्र धातु 
 द्रव 
 गैस 
 ऐरोसॉल 
 कोहरा , बादल 
 द्रव 
 पायस या इमल्सन 
 दुग्ध 
 ठोस 
 जैल 
 मल्हम , colgat gel , पनीर , मक्खन 
 गैस 
 गैस 
 x 
 x 
 द्रव 
 फोम (Foam )
बियर के झाग  
 ठोस 
 ठोस फोम 
 प्यूमिस स्टोन 
प्रश्न 1 : जैल में परिक्षित व परीक्षेण माध्य क्रमशः है।
उत्तर : परिक्षेत प्रावस्था द्रव , परीक्षेण माध्य ठोस।
प्रश्न 2 : बादल किस प्रकार का कोलाइडी विलयन है।
उत्तर : ऐरोसॉल
प्रश्न : ठोस में परीक्षेत ठोस का नाम है ?
उत्तर : ठोस सॉल
(B) परीक्षेत प्रावस्था व परीक्षेत माध्यम के अन्तः क्रिया के आधार पर :
ये दो प्रकार के होते है।
(1) द्रव रागी कोलाइड या द्रव स्नेही कोलाइड :
वे पदार्थ जिन्हे उपयुक्त परीक्षेपण माध्यम में मिलाने पर आसानी से कोलाइडी विलयन बना लेते है उन्हें द्रव रागी कोलाइड कहते है।
यदि कोलाइड कणो को किसी विधि से स्कंधित कर दिया जाए तो परिक्षेपण माध्यम मिलाने पर ये पुन: अपना कोलाइडी विलयन बना लेते है अतः इसे उत्क्रमणीय कोलाइड भी कहते है जैसे गोंद , स्टार्च , जिलेटिन आदि।
(2) द्रव विरागी कोलाइड :
वे पदार्थ जिन्हे परिक्षेपण माध्यम में मिलाने पर वे आसानी से कोलाइडी विलयन नहीं बनाते उन्हें द्रव विरागी कोलाइड कहते है।
यदि कोलाइड कणो कोलाइड कणों को किसी विधि से स्कन्धित कर दिया जाए तो इसमें परीक्षेण माध्यम मिलाने पर ये पुन: अपना कोलाइडी विलयन नहीं बनाते अतः इन्हे अनुत्क्रमणीय कोलाइड भी कहते है।  उदाहरण : धातु , धातु हाइड्रोक्साइड , धातु सल्फाइड आदि।
द्रव रागी और द्रव विरागी कोलाइड में अंतर लिखो 
 द्रव रागी
 द्रव विरागी
 1. इन्हे आसानी से बनाया जा सकता है
 इन्हे आसानी से नहीं बनाया जा सकता।
 2. इन्हे उत्क्रमणीय कोलाइड कहते है।
 इन्हें अनुत्क्रमणीय कोलाइड कहते है।
 3. इनका स्कन्दन आसानी से नहीं होता।
 इनका स्कंदन आसानी से हो जाता है।
 4. ये विलायक संकरित होते है अतः अधिक स्थायी है।
 ये विलायक संकरित नहीं होते है अतः कम स्थायी है।
(C) परिक्षिप्त प्रावस्था व कणों के प्रकार के आधार पर : 
ये तीन प्रकार के होते है।
(1) बहु आण्विक कोलाइड :
ये कई परमाणु या अणुओं के झुण्ड के रूप में होते है इनके कणों का आकार 1nm से भी कम होते है।
उदाहरण : रजत सॉल , स्वर्ण सॉल , असेट सॉल
(2) वृहद आण्विक कोलाइड :
इनके कोलाइडी कण बहुलक का रूप में होते है , ये विलयन रूप में अधिक स्थायी होते है।
स्टार्च , प्रोटीन , सेलुलोज , प्रोटीन एन्जाइम , आदि।
प्राकृतिक वृहद आण्विक कोलाइड है।
जबकि पॉलीथिन , पोली स्टायलीन , नायलॉन आदि मानव निर्मित वृहद आण्विक कोलाइड है।
(3) सहचारी या संगुणित कोलाइड :
वे कोलाइड जो निम्न सांद्रता पर विधुत अपघट्य की तरह परन्तु उच्च सांद्रता पर गोलीय पुंज (मिसेल) बना लेते है उन्हें सहचारी कोलाइड कहते है।
उदाहरण : (1)   C17H35COONa  सोडियम स्टियरेट (साबुन)
(2)   C15H31COONa  (सोडियम पॉइटेट )
(3)   C12H22SO4Na    (सोडियम लॉरिल सल्फेट )

साबुन का रासायनिक नाम (सोडियम स्टियरेट) C17H35COONa    है।  जब जल में इसकी सांद्रता कम होती है तो यह विधुत अपघट्य की तरह काम करता है। 
C17H35COONa    =  C17H35COO– (sodium stearate ) +  Na+
स्टियरेट आयन के दो भाग होते है।  इनमे से एक लम्ब हाइड्रो कार्बन की श्रंखला है।  इसे (पुच्छ ) tail कहते है यह जल विरागी होता है इसे अध्रुवीय शिरा भी कहते है।
जब दूसरा सिरा COO– ध्रुवीय सिरा कहलाता है इसे शीर्ष भी कहते है यह जल रागी होता है।
क्रांतिक मिसेल सांद्रता पर स्टियरेट आयन गोलीय (पुच्छ ) के रूप में व्यवस्थित हो जाते है जिसे मिसेल कहते है।  स्टीयरेट आयन का अध्रुवीय शिरा केंद्र की ओर जबकि अध्रुवीय शिरा सतह पर होता है।  एक मिसेल बनने में 100 से अधिक अणु भाग लेते है।
नोट  : मिसेल का बनना एक निश्चित सांद्रता से अधिक सांद्रता होता है इसे क्रांतिक मिसेल सांद्रता (CMC) कहते है।
नोट : मिसेल का बनना एक निश्चित ताप से अधिक ताप पर होता है इसे क्रॉफ्ट ताप कहते है।
प्रश्न : साबुन वस्त्र को किस प्रकार स्वच्छ करता है ? उपयुक्त चित्र की सहायता से समझाइये। 
उत्तर : गन्दे वस्त्रो पर तेल या ग्रीस की बिंदु लगी होती है जब गंदे वस्त्रो को साबुन के कोलॉइडी विलयन में डुबोया जाता है तो साबुन का जल विरोध भाग तेल की बूंदो के अंदर चला जाता है जबकि जल रागी भाग तेल की बूंदो के ऊपर कांटो की तरह निकला रहता है।  जल रागी भाग जल से अन्तः क्रिया करता है जिससे स्टीयरेट आयन से युक्त तेल की बुँदे वस्त्र से पृथक हो जाती है तथा मिसेल बनाती है।  जिससे वस्त्र स्वच्छ हो जाते है।
प्रश्न : गंदे वस्त्र को साबुन द्वारा स्वच्छ करने की क्रियाविधि कहलाती है ?
उत्तर : पायसीकरण
(A) रासायनिक विधियाँ :
ये निम्न है।
(1) ऑक्सीकरण :
H2S तथा  SO2 गैस मिलाने पर गंधक का कोलाइडी विलयन बनता है।
H2S +  SO2   = 2H2O + 3S
(2) उभय अपघटन :
आर्सेनिक ऑक्साइड के जलीय विलयन से H2S गैस प्रवाहित करने पर आर्सेनिक सल्फाइड का कोलॉइड विलयन बनता है।
AS2O3 + 3H2S  = AS2S3 + 3H2O
(3) जल अपघटन :
फेरिक क्लोराइड के विलयन में जल की बून्द बून्द मिलाने पर फेरिक हाइड्रोक्साइड का कोलॉइडी विलयन बनता है।
FeCl3  + 3H2O = 3HCl + Fe(OH)3
(3) अपचयन :
ऑरिक क्लोराइड में HCHO तथा जल मिलाने पर सोने का कोलाइडी विलयन बनता है।
AuCl3 + 3HCHO 3H2O =  Au + 6HCl + 3HCOOH
(B) विधुतीय विघटन विधि या ब्रेडिंग आर्क विधि :
इस विधि द्वारा Cu , Ag , Au , Pt आदि के कोलॉइडी विलयन बनाये जाते है।  जिस धातु का कोलाइडी विलयन बनाया जाता है उनके दो पतले तार लेकर परिक्षेपण माध्यम में डुबो देते है , दोनों तारो को विधुत स्रोत से जोड़ देते है। दोनों तारो के मध्य विधुत आर्क उत्पन्न करते है , जिससे धातु के तार अत्यंत गर्म हो जाते जिससे धातु की वाष्प बनती है यह परिक्षेपण माध्यम के संपर्क में आ जाती है इस प्रकार धातु का कोलाइडी विलयन बनता है सम्पूर्ण पात्र को हिमा मिश्रण में रख देते है।
(C) पेप्टन या पेप्टीकरण : 
ताजा बने हुए अवक्षेप में विधुत अपघट्य की उचित मात्रा मिलाने पर कोलाइडी विलयन बनता है इस विधि को पेप्टन कहते है।
उदारण : Fe(OH)3 के  ताजा अवक्षेप में F eCl3 मिलाने पर फेरिक हाइड्रोक्साइड का कोलाइडी विलयन बनता है।
व्याख्या :
फेरिक हाइड्रोक्साइड अवक्षेप के कण अपनी सतह पर FeCl3 से प्राप्त Fe3+ आयन को अधिशोषित कर लेते है जिससे प्रत्येक कण धनावेशित हो जाता है ये कण एक दूसरे को प्रतिकर्षित करते है जिससे कोलाइडी विलयन बनता है।
Fe(OH)3 + Fe3+   =  Fe(OH)3.Fe3+
कोलाइडी विलयन में विधुत अपघट्य की अशुद्धियो को हटाना आवश्यक है चूँकि कोलाइडी कण विधुत अपघट्य के आयनों द्वारा स्कन्दित हो जाते है।
कोलॉइडी विलयन के शोधन की निम्न विधियां है।
1. अपोहन (dialysis ) :
कोलाइडी विलयन में उपस्थित विधुत अपघट्य की अशुद्धियो का जंतु झिल्ली में से वितरित होना अपोहन कहलाता है।
जंतु झिल्ली से बनी थैली (अपोहक) में अशुद्ध कोलाइडी विलयन भर लेते है इसे चित्रानुसार जल से भरे पात्र में लटका देते है इस पात्र में जल का आने जाने की व्यवस्था रहती है।
विधुत अपघट्य के आयनो का आकार छोटा होने के कारण ये जंतु झिल्ली में से पृथक हो जाते है जबकि कोलाइडी कणों का आकार बड़ा होने के कारण ये जंतु झिल्ली में से पृथक नहीं होते।  इस प्रकार कोलाइडी विलयन शुद्ध हो जाता है।
2. विधुत अपोहन :
अपोहन की क्रिया में अधिक समय लगता है इस क्रिया की गति बढ़ाने के लिए बाहर वाले पात्र में दो इलेक्ट्रोड स्थापित कर देते है , विधुत धारा प्रवाहित करने पर विधुत अपघट्य के आयन विपरीत आवेशित इलेक्ट्रोड की ओर तेजी से बाहर निकल आते है इस क्रिया को विधुत अपोहन कहते है।
3. अति सूक्ष्म निस्पंदन :
साधारण फ़िल्टर पत्रों का आकार बड़ा होता है। इसे कोलोडियन में डुबोकर बाहर निकाल लेते है जिससे छिद्रो का आकार छोटा हो जाता है।
(एल्कोहॉल ईथर तथा 4% नाइट्रो सेलुलोज के मिश्रण को कोलोडियन कहते है। )
इसमें से विधुत अपघट्य की अशुद्धियाँ तो विसरित हो जाती है परन्तु कोलॉइडी कणों का आकार बड़ा होने के कारण ये विसरित नहीं होते है।
1. टिण्डल प्रभाव (tyndall effect) : जब कोलॉइडी विलयन में प्रकाश पुंज गुजारा जाता है तो प्रकाश पुंज के लंबवत देखने पर प्रकाश पुंज का पथ चमकीला दिखाई देता है इसे टिण्डल प्रभाव कहते है तथा चमकीले पथ को टिंडल कोण कहते है।
उदाहरण :
अँधेरे कमरे में प्रकाश के पुंज पथ में धूल के कोलाइडी कण चमकते दिखाई देते है।
 सिनेमा हॉल में प्रोजेक्टर द्वारा जब पर्दे पर प्रकाश पुंज डाला जाता है तो प्रकाश पुंज का पथ चमकीला दिखाई देता है।
व्याख्या :
कोलाइडी कण प्रकाश को अवशोषित कर उसे चारों ओर प्रकीर्णित करते है।  जिससे प्रकाश पुंज का पथ चमकीला दिखाई देता है।
प्रश्न : वास्तविक विलयन टिण्डल प्रभाव प्रदर्शित नहीं करता क्यों ?
उत्तर : वास्तविक विलयन के कणो का आकार छोटा होता है ये प्रकाश को अवशोषित तो कर लेते है परन्तु उसे प्रकीर्णित नहीं कर पाते।
प्रश्न : कोलॉइडी विलयन टिण्डल प्रभाव प्रदर्शित करते है , दो कारक लिखो।
उत्तर :
इनकी परिक्षिप्त प्रावस्था व परिक्षेपण माध्यम के अपवर्तनांक में अधिक अंतर होना चाहिए।
कोलाइडी कणों का व्यास प्रकाश की तरंग दैर्ध्य से अधिक कम नहीं होता।
2. रंग(color) :
कोलाइडी विलयन रंगीन होते है इनका रंग प्रकीर्णित प्रकाश की तरंग दैर्ध्य पर निर्भर करता है , प्रकीर्णित प्रकाश की तरंग दैर्ध्य कणों के आकार पर निर्भर करती है।
जैसे : गोल्ड सॉल का रंग लाल होता है।  कणों का आकार बढ़ने के साथ साथ इसका रंग क्रमशः बैंगनी , नीला , स्वर्णिम हो जाता है।
3. ब्राउनियन गति (Brownian motion) :
कोलाइडी कण परिक्षेपण माध्यम में सीधी रेखा में इधर उधर (zig -zag ) गति करते है।  इस गति को ब्राउनियन गति कहते है।
व्याख्या : कोलाइडी कणो से परिक्षेपण माध्यम के अणु लगातार टकराते रहते है जिससे कोलाइडी कण परिणामी बल की दिशा में गति करते रहते है।  जब ये कण दूसरे कण से टकराते है तो अपनी दिशा परिवर्तित कर लेते है।
नोट : कोलाइडी कणो का आकार छोटा तथा परिक्षेपण माध्यम की श्यानता कम होने पर ब्राउनियन गति अधिक होती है।
कोलॉइडी कणों पर आवेश :
समस्त कोलॉइडी कणों पर एक जैसा आवेश होता है ये एक दूसरे को प्रतिकर्षित करते है जिससे ये परिक्षेपण माध्यम में वितरित रहते है।
आवेश की उपस्थिति के कारण :
अवक्षेप के कण अपनी सतह पर उभयनिष्ठ आयनों का अधिशोषण कर लेते है इस कारण ये आवेशित हो जाते है।
परिक्षेपण विधि में धातुएं इलेक्ट्रॉन को ग्रहण कर लेती है जिससे धातुओं के ऋणावेशित सॉल बनते है।
उदारण :
जब AgNO3 (सिल्वर नाइट्रेट ) के विलयन में बून्द बून्द करके KI का विलयन मिलाते है तो AgI (अवक्षेप) के कण अपनी सतह पर विलयन में उपस्थित Ag+ आयनों का अधिशोषण कर लेते है जिससे धनावेशित सॉल बनता है।  AgI / Ag+
जब KI के विलयन में बून्द बून्द करके AgNO3 (सिल्वर नाइट्रेट ) का विलयन मिलाते है तो AgI के कण अपनी सतह पर I– (आयोडाइड) आयनो का अधिशोषण कर लेते है जिससे ऋणावेशित सॉल बनता है। AgI/ I–
नोट : हैमहॉल्टस के अनुसार अवक्षेप की सतह पर उभयनिष्ठ आयनों अधिशोषण से जो परत बनती है उसे प्राथमिक परत कहते है।  यह परत स्थायी रूप से जुडी रहती है अतः इसे स्थायी परत भी कहते है इस परत के चारो ओर विपरीत आवेशित आयनों की दूसरी परत होती है यह परत अस्थाई रूप से जुडी होती है इसे विसरित परत भी कहते है।
स्थायी परत व विसरित परत के मध्य उत्पन्न विभव को जीटा विभव कहते है।
 धनावेशित  ऋणावेशित  1. जल योजित ऑक्साइड 
Fe2O3 . H2O
Al2O3 . H2O
Cr2 O3 . H2O
 धातु के सॉल तथा धातु के सल्फाइड जैसे 
As2S3  Sb2S3 COS
 2. क्षारीय रंजक मेथिलीन ब्लू

  अम्लीय रंजक इओसिन , कोगोरेड 

 3. हीमोग्लोबिन 5 . विधुत कण संचलन(Modular particle circulation) :
समस्त कोलॉइडी कणो पर एक जैसा आवेश होता है।
विधुत क्षेत्र की उपस्थिति में कोलाइडी कण अपने से विपरीत आवेशित इलेक्ट्रोड की ओर गति करते है इसे विधुत कण संचलन कहते है।
एक U आकार की कांच की नली में As2S3 (आर्सेनिक सल्फाइड ) (ऋणावेशित सॉल ) लेकर इसमें PE के दो इलेक्ट्रोड लगा देते है विधुत धारा प्रवाहित करने पर समस्त कोलाइडी कण एनोड (धन इलेक्ट्रोड ) की ओर गति करते है।
6. स्कंदन(coagulation ) :
कोलाइडी कणों को अवक्षेप में बदलने की क्रिया को स्कंदन कहते है।
नोट : स्कंदन तथा पेप्टन एक दूसरे के विपरीत क्रियाएं है।
व्याख्या :
समस्त कोलाइडी कणों पर एक जैसा आवेश होता है।  जब इसमें विधुत अपघट्य मिलाया जाता है तो विधुत अपघट्य के विपरीत आवेशित आयनो द्वारा कोलाइडी कण उदासीन हो जाते है।  ये गुरुत्वाकर्षण बल के कारण पैंदे में एकत्रित हो जाते है अर्थात स्कंदन हो जाता है।
स्कंदन निम्न प्रकार से होता है :
विधुत कण संचलन की क्रिया में स्कंदन होता है क्योंकि जब कोलाइडी कण विपरीत आवेशित इलेक्ट्रोड की ओर जाते है तो वे वहां उदासीन हो जाते है।
कोलाइडी विलयन को अत्यधिक गर्म करने पर कोलॉइडी कण अपने आवेश को नष्ट कर लेते है जिससे स्कंदन हो जाता है।
दो विपरीत आवेशित सॉल को मिलाने पर स्कंदन होता है जैसे As2S3 (आर्सेनिक सल्फाइड ) (ऋणावेशित सॉल ) में जल योजित फेरिक ऑक्साइड सॉल (धनावेशित सॉल ) मिलाने पर कोलॉइडी कण एक दूसरे को उदासीन कर देते है अर्थात स्कंदन हो जाता है।
लगातार अपोहन करने से भी स्कंदन हो जाता है।
कोलॉइडी विलयन में विधुत अपघट्य मिलाने से भी स्कंदन हो जाता है जैसे जल योजित फेरिक ऑक्साइड (Fe2O3 . H2O) (धनावेशित सॉल ) में नमक का विलयन मिलाने पर क्लोराइड आयन द्वारा कोलॉइडी कणो का स्कंदन हो जाता है।
हार्डी शुल्जे का नियम : 
इस नियम के अनुसार स्कन्दित करने वाले आयन की संयोजकता जितनी ज़्यादा होती है उसकी स्कन्दन क्षमता उतनी ही अधिक होती है अतः हार्डी शुल्जे के नियम से
(1) As2S3 सॉल  (आर्सेनिक सल्फाइड ) (ऋणावेशित सॉल ) के स्कन्दन के लिए स्कन्दन क्षमता का बढ़ता क्रम
NaCl < mgcl2  < AlCl3
Or
Na+   <  mg2+  < Al3+
(2) Fe2O3 . H2O जल योजित फेरिक ऑक्साइड (धनावेशित सॉल ) के स्कन्दन के लिए स्कन्दन क्षमता का बढ़ता क्रम
NaCl < Na2SO4  < Na3PO4 < K4[Fe(CN)6–]
Or
Cl– < SO42-  < PO43- < [Fe(CN)6]4
7 . अणु संख्य गुण :
किसी विलयन के वे भौतिक गुण जो विलेय के कणों की संख्या पर निर्भर करते है उन्हें अणु संख्य गुण कहते है 
ये निम्न है 
वाष्पदाब का आपेक्षिक अवनमन
क्वथनांक का उन्नयन
हिमांक में अवनमन
परासरण दाब
वास्तविक विलयन में कणों की संख्या अधिक होती है जबकि कोलॉइडी विलयन में कणों की संख्या कम होती है क्योंकि कोलॉइडी विलयन में कणों की संख्या कम होती है क्योंकि कोलाइडी कण अनेक परमाणु या अणुओं के झुण्ड है।
कोलॉइडी विलयन में कणों की संख्या कम होने के कारण अणु संख्य गुणों के मान भी कम होते है।
द्रव रागी कोलॉइड निम्न दो गुणों के कारण अधिक स्थायी होते है।
1. आवेश
2. विलायक संकरित (जल के अणुओं से घिरना )
यदि दोनों उपरोक्त दोनों गुणों को नष्ट कर दिया जाए तो द्रवरागी कोलाइड का आसानी से स्कंदन किया जा सकता है।
द्रवरागी कोलॉइड से जल की परत हटाने के लिए इसे एल्कोहॉल या एसीटोन की कुछ मात्रा मिला देते है तथा आवेश को हटाने के लिए विधुत अपघट्य की अल्प मात्रा मिला देते है जिससे इनका आसानी से स्कंदन हो जाता है।
द्रव रागी कोलाइड में विधुत अपघट्य की अल्प मात्रा डालने पर ही आसानी से स्कंदन हो जाता है।
रक्षक कोलॉइड तथा रक्षण :
द्रव विरागी कोलॉइड का स्कन्दन आसानी से हो जाता है।  जब द्रव विरागी कोलॉइड में द्रव रागी कोलॉइड की अल्प मात्रा मिला दी जाती है तो द्रव विरागी कोलॉइड का आसानी से स्कंदन नहीं होता इसे रक्षण कहते है।  जबकि द्रव रागी कोलॉइड को रक्षक कोलाइड कहते है।  क्योंकि यह द्रव विरागी कोलाइड की स्कन्दन से रक्षा करता है जैसे स्वर्ण सॉल (द्रव विरागी) में जिलेडिन (द्रवरागी ) में मिलाने पर स्वर्ण सॉल का आसानी से स्कंदन नहीं होता है यहाँ जिलेडिन रक्षक कोलाइड कहलाता है।
नोट : द्रव रागी कोलाइड द्रव विरागी कोलाइड के चारो ओर एक रक्षात्मक परत का निर्माण करता है जिससे द्रव विरागी कोलाइड में विधुत अपघट्य मिलाने पर आसानी से स्कंदन नहीं होता।
पायस या इमल्सन (emulsion ): 
वे कोलाइड जिनमे परिक्षिप्त प्रावस्था व परिक्षेपण माध्यम दोनों द्रव होते है उन्हें पायस कहते। है
जैसे : दूध
पायस दो अमिश्रणीय द्रवों को मिलाने से बनते है ये पायस अस्थाई होते है वे पदार्थ जो पायस का स्थायित्व बढ़ा देते है उन्हें पायसीकारक कहते है यह परिक्षिप्त प्रावस्था के कणो के चारो ओर रक्षात्मक परत का निर्माण कर लेता है जिससे परिक्षिप्त प्रावस्था के अणु आपस में मिल नहीं पाते।
पायस दो प्रकार के होते है :
(1) तेल/जल पायस या O/W पायस :
वे पायस जिसमे परिक्षिप्त प्रावस्था तेल तथा परिक्षेपण माध्यम जल होता है उन्हें O/W पायस कहते है।
जैसे : दूध , वैनिशिंग क्रीम।
नोट : O/W पायस के लिए गोंद ,स्टार्च , जैलेडिन , प्रोटीन आदि पायसी कर्मक है।
(2) W/O , पायस या जल / तेल पायस :
वे पायस जिनमे परिक्षिप्त प्रावस्था जल तथा परिक्षेपण माध्यम तेल होता है उन्हें W/O पायस कहते है।
उदाहरण : मछली का तेल , मक्खन आदि।
नोट : W/O पायस के लिए लम्बी श्रंखला वाले एल्कोहॉल पायसी कर्मक है।
डायग्राम /////
पायस के उपयोग(Use of emulsion) :
पायसीकरण द्वारा साबुन की  साध्यता से वस्त्र को स्वच्छ किया जाता है।
दूध एक पायस है जो हमारे दैनिक आहार का प्रमुख अवयव है।
विभिन्न दवाइयाँ रोगों के निदान में काम आता है।
झाग पल्वन विधि में सल्फाइड , अयस्कों का सान्द्रण किया जाता है। इस विधि में पायस का निर्माण होता है।
हमारे चारो ओर कोलाइड के उपयोग :
(1) आकाश का नीला रंग :
वायु में मिट्टी के कोलाइडी कण होते है ,ये सूर्य के प्रकाश के दृश्य क्षेत्र से प्रकाश को अवशोषित कर लेते है तथा नीले रंग के प्रकाश को प्रकीर्णित करते है इसलिए आकाश नीला दिखाई देता है।
(2) धुंध /कोहरा :
वायु में धूल के कोलाइडी कण होते है , ओलांक से कम ताप पर वायु में उपस्थित जलवाष्प धूल के कणों पर संघनित हो जाती है ये छोटी छोटी बुँदे वायु में तैरती रहती है जिसे कोहरा या धुंध कहते है।
(3) बरसात तथा कृत्रिम बरसात :
बादल एरोसॉल है अर्थात वायु में जल की छोटी छोटी बुँदे परिक्षिप्त रहती है।  जब बादल ठण्डे स्थानों पर जाते है तो छोटी छोटी बुँदे मिलकर बड़ी बूंदो में बदल जाती है तो गुरुत्वाकर्षण बल के कारण पृथ्वी पर गिरती है जिससे बरसात होती है और बरसात कहते है।
नोट : कभी कभी दो विपरीत आवेशित बादल के टकराने से भी बरसात होती है।
नोट : वायुयान की साध्यता से बादलो पर विपरीत आवेशित सॉल का छिड़काव करने से कृत्रिम बरसात होती है।
(4) डेल्टा का निर्माण :
नदी के जल में मिट्टी के ऋणावेशित कोलाइडी कण होते है जब नदी का जल समुद्र के जल के सम्पर्क में आता है तो समुद्र के जल में उपस्थित धनायनों द्वारा मिट्टी के कोलाइडी कणों का स्कंदन हो जाता है ये कण समुद्र के पैंदे में एकत्रित होते रहते है जिससे एक उभार बन जाता है जिसे डेल्टा कहते है।
(5) रक्त स्राव रोकने में :
रक्त एल्बुमिनाइड है यह ऋणावेशित सॉल है जब कटे हुए स्थान पर फिटकरी (पोटाश एलम ) या FeCl3 का चूर्ण लगाते है तो धनायनों द्वारा रक्त का स्कंदन हो जाता है जिससे रक्त का बहना बंद हो जाता है।
(6) मृदा की उपजाऊ क्षमता (उर्वरकता ) बढ़ाने में :
उपजाऊ मृदा में मिट्टी के कोलाइडी आकार के कण होते है इनका पृष्ठीय क्षेत्रफल अधिक होने के कारण अधिशोषण की प्रवृति अधिक होती है अर्थात ये नमी तथा उर्वरको को अधिक अधिशोषित करते है जिससे मृदा की उपजाऊ क्षमता में वृद्धि होती है।
1) जल को स्वच्छ करने में :
प्राकृतिक स्रोतों से प्राप्त जल में मिट्टी के कोलाइडी कण होते है। इसमें फिटकरी (पोटाश ऐलम ) डालने पर फिटकरी के धनायनों द्वारा मिट्टी के कणों का स्कन्दन हो जाता है इन्हें छानकर हटा देते है।
(2) गन्दे वस्त्र को स्वच्छ करने की क्रियाविधि : (अध्ययन कर चुके )
(3) औषधि के रूप में :
कोलॉइडी औषधियाँ अधिक प्रभावी होती है क्योंकि इनमें अधिशोषण की क्षमता अधिक होती है ये निम्न है
 1. Ag सॉल (अर्जिरॉल ) नेत्र संक्रमण उपचार में 2. Sb सॉल कालाजार उपचार में 3.   S8 सॉल चर्म रोग के उपचार में 4. मिल्क ऑफ़ मैग्निशिया उदर रोग के उपचार में 5. Au सॉल अन्तः पेशी इंजेक्शन में
(4) चर्म उद्योग में :
चर्म जैली जैसा पदार्थ है इसमें प्रोटीन के धनावेशित कोलाइडी कण होते है इसे टेनिन अम्ल (ऋणावेशित सॉल ) में डालने पर चमड़ी की सतह पर स्कंदन हो जाता है जिससे चमड़ी कठोर हो जाती है इससे जूते , चप्पल , पर्स आदि बनाये जाते है।
(5) रबर उद्योग में :
रबर के पेड़ से प्राप्त गाढ़े दूधिया द्रव को लेटेक्स या रबर क्षीर कहते है। इसमें रबर के कोलाइडी कण होते है लेटेक्स को गर्म करने पर रबर के कोलाइडी कणों का स्कन्दन हो जाता है अर्थात रबर प्राप्त होता है।
(6) फोटोग्राफी में :
जिलेटिन में AgBr के कोलॉइडी कण होते है इस विलयन का लेप फोटोग्राफी प्लेट पर कर दिया जाता है।
(7) धूम्र के विधुत अवक्षेप में :
कारखानों से निकलने वाले धुँए में कार्बन आर्सेनिक के कण होते है इसे कॉट्रेल अवक्षेप में से गुजारते है। कॉट्रेल अवक्षेप में उच्च विधुत विभव के कारण कार्बन तथा आर्सेनिक के कणो का स्कन्दन हो जाता है ये पैंदे में एकत्रित हो जाते है।

 










 स्टार्च , जिलेटिन , , मृतिका
 

 अधिशोष्य की सांद्रता सभी जगह एक समान रहती है।
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