आप सभी विद्यार्थी का हमारे इस वेबसाइट ULTIMATE STUDY SUPPORT में स्वागत करते हैं आज हम ठोस वस्तुओं का संपूर्ण अध्ययन कक्षा 12 के भौतिक विज्ञान के पहले अध्याय से करेंगे।
ठोस(solid) :
प्रत्येक ठोस अवयवी कणों से मिलकर बनता है। ये अवयवी कण अणु , परमाणु या आयन होते है। ये closely packed(अच्छे से दबाकर पैक किया हुआ) अर्थात निबिड संकुलित होते है तथा असंपीडिय होते है अतः ठोस कठोर होते हैं।
ठोस के अवयवी कणों के मध्य रिक्त स्थान कम होता है। इनकी स्थिति स्थिर बनी रहती हैं अतः ठोस का आयतन निश्चित बना रहता है।
इनका घनत्व गैस तथा द्रव की तुलना में अधिक होता है। (d =M/V)
इनका गलनांक प्राय: अधिक होता है।
ये माध्य स्थिति के सापेक्ष दोलन करते है।
ठोसों के प्रकार :
ठोस दो प्रकार के होते है
क्रिस्टलीय ठोस
अक्रिस्टलीय ठोस
नोट : ठोसों का यह वर्गीकरण अवयवी कणों की व्यवस्था के आधार पर किया गया है।
क्रिस्टलीय तथा अक्रिस्टलीय ठोसों में अंतर
गुण क्रिस्टलीय (Crystalline) अक्रिस्टलीय (non crystalline) 1. ज्यामितीय आकार इनका ज्यामितीय आकार निश्चित होता है। इनका ज्यामितीय आकार निश्चित नहीं होता। 2. अवयवी कणों की व्यवस्था परासी व्यवस्था होती होती है। परासी व्यवस्था होती होती है 3. प्रकृति ये वास्तविक ठोस है। ये आभासी ठोस या अतिशीतित द्रव है।
अर्थात द्रवों के भाँति बहने वाले।
4. गलनांक इनका गलनांक निश्चित होता है। इनका गलनांक निश्चित नहीं होता ये एक ताप परास पर धीरे धीरे पिघलते है। 5. गलन ऊष्मा गलन ऊष्मा निश्चित होती है। गलन ऊष्मा निश्चित नहीं होती। 6. विदलन गुण तेज धार वाले औजार से काटने पर ये सपाट व चिकनी सतह वाले दो भागो में विभक्त हो जाते है। तेजधार वाले औजार से काटने पर ये समान व चिकनी सतह वाले दो भागो में विभक्त नहीं होते है। 7. दैशिकता
काँच को अतिशीतित द्रव क्यों कहते है ?
उत्तर : कांच एक अक्रिस्टलीय ठोस है इसमें द्रवों की भांति बहने का गुण होता है जैसे पुरानी इमारतों पर लगे शीशे निचे से मोठे व ऊपर से पतले हो जाते है।
समदैशिकता व विषम दैशिकता को स्पष्ट कीजिये।
सम दैशिकता :
ठोसों के भौतिक गुण जैसे अपवर्तनांक विधुत व ऊष्मा की चालकता , यांत्रिक सामर्थ्य आदि के मान किसी ठोस में अलग अलग दिशाओं से ज्ञात करने पर यदि ये मान समान आते है तो इन्हे सम दैशिक ठोस कहते है। और इस गुण को सम दैशिकता कहते है।
नोट : अक्रिस्टलीय ठोस में अवयवी कण निश्चित क्रम में नहीं होते अतः ये सम दैशिक है।
विषम दैशिक :
ठोसों के भौतिक गुण जैसे अपवर्तनांक विधुत व ऊष्मा की चालकता , यांत्रिक सामर्थ्य आदि के मान किसी ठोस में अलग अलग दिशाओं से ज्ञात करने पर यदि ये मान समान नहीं आते है तो उन्हें विषम दैशिक ठोस कहते है इस गुण को विषम दैशिकता कहते है।
डायग्राम ??
चित्रानुसार किसी क्रिस्टलीय ठोस को दिखाया गया है इसका अलग अलग दिशाओं से अपवर्तनांक ज्ञात करने के लिए प्रकाश पुंज को अलग अलग दिशाओ से गुजारते है जब प्रकाश पुंज को A-B दिशा से गुजारते है तो दोनों ओर समान प्रकार के कण पंक्ति बद्ध है जब प्रकाश पुंज को CD दिशा से गुजारते है तो दोनों प्रकार के कण एकान्तर क्रम में पंक्तिबद्ध है। अतः प्रकाश पुंज पर इन कणो का प्रभाव अलग अलग पड़ता है। अतः क्रिस्टलीय ठोस विषम दैशिक होते है।
नोट : क्वार्ट्ज़ , सिलिका का क्रिस्टलीय रूप है इसमें SiO44-
की इकाइयां निश्चित क्रम में व्यवस्थित रहती है जब क्वार्ट्ज़ को पिघलाकर ठंडा करते है तो यह कांच में बदल जाता है इसमें SiO44- की इकाइयाँ नियमित क्रम में नहीं होती अतः कांच अक्रिस्टलीय ठोस है।
क्रिस्टलीय ठोसों का वर्गीकरण या प्रकार :
अन्तराणविक बलों के आधार पर क्रिस्टलीय ठोस चार प्रकारों में वर्गीकृत किया हैं।
(1) धात्विक ठोस या धात्विक क्रिस्टल
(2) सहसंयोजक ठोस या नेटवर्क ठोस
(3) आयनिक ठोस
(4) आण्विक ठोस
आण्विक ठोस 3 प्रकार के होते है
(१) अध्रुवीय ठोस
(२) ध्रुवीय ठोस
(३) हाइड्रोजन बन्ध युक्त ठोस
आइये इन सबके बारे में विस्तार से अध्ययन करते है।
(1) धात्विक ठोस या धात्विक क्रिस्टल :
इसमें धनायन ,इलेक्ट्रान रूप समुद्र में डूबे रहते है।
ये विधुत और ऊष्मा के चालक होते है।
ये कठोर तथा उच्च गलनांक वाले होते है।
ये अघात वर्धनीय तन्य होते है।
उदाहरण : सभी धातु जैसे cu , Al , Fe , Ni , Cr , Mg .
(2) सहसंयोजक ठोस या नेटवर्क ठोस :
इसमें परमाणुओं के मध्य सहसंयोजक बंध पाया जाता है। ये परमाणु परस्पर मिलकर विशेष अणु का निर्माण करते है।
ये अत्यधिक कठोर व उच्च गलनांक वाले होते है।
ये ठोस तथा पिघली हुई अवस्था में विधुत के कुचालक होते है।
उदाहरण : हीरा , Sic (सिलिकॉन काबोइड) , AlV (एल्युमीनियम नाइट्राइड)
अपवाद ग्रेफाइड : यह षट्कोणीय परतो के रूप में होता है ये परते एक दूसरे पर फिसलती है अतः ग्रेफाइड नरम होता है इसमें स्वतंत्र इलेक्ट्रान होने के कारण यह विधुत का सुचालक होता है।
(3) आयनिक ठोस :
इनके अवयवी कण आयन होते है।
इनके आयनो के मध्य प्रबल वैधुत आकृषण होता है अतः ये कठोर व उच्च गलनांक वाले होते है।
ये भंगुर होते है।
ये ठोस अवस्था में विधुत के कुचालक परन्तु पिघली हुई अवस्था में विधुत के सुचालक होते है।
उदाहरण : NaCl , KCl , K2SO4 , NH4Cl , CaCl , FeCl3 आदि।
(4) आणविक ठोस :
इनके अवयवी कण अणु होते है ये 3 प्रकार के होते है।
(१) अध्रुवीय ठोस :
इसके अणुओ के मध्य लन्दन बल होते है।
ये कमरे के ताप पर गैस या द्रव होते है।
ये विधुत के कुचालक होते है।
इनका गलनांक कम होता है।
ये मुलायम होते है।
उदाहरण : I2 , Cl2 , C6H6 , CO2 आदि।
(२) ध्रुवीय ठोस :
इनके अणुओ के मध्य द्विध्रुव द्विध्रुव आकृषण होता है।
ये कमरे के ताप पर गैस या द्रव होते है।
ये ठोस अवस्था में विधुत के कुचालक होते है।
उदाहरण : HCl , SO2 आदि।
(३) हाइड्रोजन बंध युक्त ठोस :
इनके अणुओ के मध्य अंतरा अणुक हाइड्रोजन बंध होते है।
ये विधुत के कुचालक होते है।
ये मुलायम होते है।
उदाहरण : बर्फ।
प्रश्न : निम्न ठोसों का वर्गीकरण कीजिये।
Fe , C6H6 , SiC , K2SO4 , NH2-CO-NH2
उत्तर :
ठोस ठोस का प्रकारFe धात्विकC6H6 आणविकSiC सहसंयोजकK2SO4 आयनिकNH2-CO-NH2
आणविक
क्रिस्टल जालक :
परमाणु या आयन का त्रिविमीय नियमित विन्यास क्रिस्टल जालक कहलाता है।
ब्रेवे के अनुसार कुल 14 क्रिस्टल जालक होते है।
क्रिस्टल जालक के लक्षण :
क्रिस्टल जालक में स्थित प्रत्येक बिंदु को जालक बिंदु कहते है।
प्रत्येक जालक बिंदु अणु-परमाणु या आयन को निरूपित करता है।
जालक बिंदुओं को सीधी रेखा से मिलाने पर क्रिस्टल जालक की ज्यामिति बनती हैं।
इकाई कोष्टिका (unit cell ) यूनिट सेल :
क्रिस्टल चालक की छोटी से छोटी इकाई जिसकी बार बार पुनरावर्ती होती है उसे यूनिट सेल (unit cell ) कहते है।
इकाई सेल के पैरामीटर(parameters of unit cell) :
यूनिट सेल की पहचान 6 पैरामीटर से की जाती है।
1. अक्षीय दूरी : इसे abc से व्यक्त करते है।
2. अक्षीय कोण : अक्षो के मध्य बने कोण को अक्षीय कोण कहते है। इन्हे α , β , γ से व्यक्त करते है।

यूनिट सेल के प्रकार(types of unit cell ) :
(A) आद्य मात्रक कोष्ठिका (primitive unit cell):
इस मात्रक कोष्ठिका में घन के आठों कोनों पर आठ परमाणु होते है।

यह यूनिट सेल एक परमाणु की बनी होती है।
इसकी गणना निम्न प्रकार से की जाती है।
कुल परमाणु की संख्या = कोनों पर स्थित परमाणु 8 x 1/8 = 1
(B) केंद्रित मात्रक कोष्ठिका:
ये तीन प्रकार की होती है।
(1) अन्तः (काय ) केंद्रित मात्रक कोष्ठिका(body centered unit cell) :
इस unit cell में घन के आठों कोनो पर आठ परमाणु होते है। तथा घन के केंद्र में एक परमाणु स्थित होता है।

यह यूनिट सेल दो परमाणुओं की बनी होती है।
कुल परमाणुओं की संख्या = (कोनों पर स्थित कुल परमाणु ) 8 x 1/8 + (काय केंद्रित परमाणु ) 1 x 1
= 1 + 1 = 2
(2) फलक केंद्रित मात्रक कोष्ठिका (face centered unit cell) :
इस यूनिट सेल में घन के आठों कोनों पर आठ परमाणु होते है। तथा प्रत्येक फलक के केंद्र में एक एक परमाणु स्थित होता है।

यह यूनिट सेल चार परमाणुओं की बनी होती है इसकी गणना निम्न प्रकार से की जाती है।
कुल परमाणुओं की संख्या = (कोनों पर स्थित कुल परमाणु ) 8 x 1/8 + (फलक केंद्रित परमाणुओं की संख्या ) 6 x 1/2
= 1 + 3 = 4
(3) अन्तः केंद्रित मात्रक कोष्ठिका (base centered unit cell) :
घन के आठों कोनो पर आठ परमाणु होते है तथा आमने सामने के दो फलको के केन्द्र में भी एक एक परमाणु स्थित होता है।

यह unit cell दो परमाणुओं से मिलकर बनी होती है इसकी गणना निम्न प्रकार से की जाती है।
कुल परमाणुओं की संख्या = 8 x 1/8 + 2 x 1/2
= 1 + 1
= 2
क्रिस्टल तंत्र :
ब्रेवे के अनुसार 14 प्रकार के क्रिस्टल जालक होते है तथा 7 क्रिस्टल तंत्र होते है।
क्रिस्टल तंत्र अक्षीय लम्बाई अक्षीय कोण क्रिस्टल जालक उदाहरण 1. घनीय a = b = c α = β = γ = 90′ आद्य , अन्तः , फलक केंद्रित = 3 NaCl , ZnS 2. द्वि समलम्बाक्ष या चतुष्कोणीय a = b ≠ c α = β = γ = 90′ आद्य , अन्तः = 2 Sn , SnO2 , TiO2 3. विषम लंबाक्ष a ≠ b ≠ c α = β = γ = 90 आद्य , अन्तः , फलक अन्तः = 4 विषम लम्बास , KnO3 , BaSO4 4. एकनताक्ष a ≠ b ≠ c α = β = 90′ , γ ≠ 90′ आद्य , अन्तः = 2 एकनताक्ष , गंधक , Na2SO4 5. षट्कोणीय a = b ≠ c α = β = 90′ , γ = 120′ आद्य = 1 ग्रेफाइट 6. त्रिसयनताक्ष a = b = c α = β = γ ≠ 90′ आद्य = 1 HgS , CaCO37. त्रिनताक्ष a ≠ b ≠ c α ≠ β ≠ γ ≠ 90′ आद्य = 1 CuSO4 .5H2O , K2Cr2O7
प्रश्न 1 : सबसे अधिक सममित क्रिस्टल तंत्र है ?
उत्तर : घनीय
प्रश्न 2 : सबसे अधिक असममित क्रिस्टल तंत्र है ?
उत्तर : त्रिनताक्ष
प्रश्न 3 : एकनताक्ष व षट्कोणीय क्रिस्टल तंत्र में अंतर लिखो।
एकनताक्ष षट्कोणीय 1. इसमें अक्षीय लम्बाई
a ≠ b ≠ c
इसमें अक्षीय लम्बाई
a = b ≠ c
2. इसमें अक्षीय कोण
α = β = 90 , γ ≠ 90′
α = β = 90′ , γ = 120′
प्रश्न : एक यौगिक x तथा y दो तत्वों से मिलकर बना है, x परमाणु घन के कोनों पर तथा y परमाणु घन के केंद्र पर स्थित है तो यौगिक का अणुसूत्र होगा।
उत्तर :
x परमाणुओं की संख्या = 8 x 1/8
x परमाणुओं की संख्या = 1
y परमाणुओं की संख्या = 1 x 1
y परमाणुओं की संख्या = 1
अतः यौगिक का अणुसूत्र = xy
प्रश्न : एक मात्रक कोष्ठिका m तथा n दो तत्वों से मिलकर बनता है। m परमाणु घन के कोनों पर तथा n परमाणु फलकों के केंद्र पर स्थित है तो यौगिक का अणुसूत्र बताइये।
उत्तर : m परमाणुओं की संख्या = 8 x 1/8
m परमाणुओं की संख्या = 1
n परमाणुओं की संख्या = 6 x 1/2
n परमाणुओं की संख्या = 3
अतः यौगिक का अणुभार = 3
प्रश्न : यदि घन के एक कोने से एक परमाणु m को हटा दिया जाए तो यौगिक का सूत्र क्या होगा।
उत्तर :
m परमाणुओं की संख्या = 7 x 1/8
m परमाणुओं की संख्या = 7/8
n परमाणुओं की संख्या = 6 x 1/2
n परमाणुओं की संख्या = 3
अतः यौगिक का अणुभार = m7/8 n3 या m7n24
परमाणु अणु आयन को गोलाकार माना जाता है ये इस प्रकार से व्यस्थित रहते है कि इनके मध्य रिक्त स्थान कम से कम हो , इसे निबिड़ संकुलन कहते है।
क्रिस्टलों में निबिड़ संकुलन त्रिविमीय रूप से निम्न प्रकार से होता है।
एक विमा में निबिड संकुलन :
डायग्राम ??
इस व्यवस्था में एक परमाणु दो परमाणुओं से स्पर्श करता है अतः उपसहसंयोजन संख्या 2 होती है।
द्विविमा में निबिड़ संकुलन :
यह दो प्रकार से होता है।
(१) द्विविमा में वर्ग निबिड़ संकुलन :
डायग्राम ??
इस व्यवस्था में उपसहसंयोजन संख्या 4 होती है।
(२) द्विविमा में षट्कोणीय निबिड़ संकुलन :
डायग्राम ??
इस व्यवस्था में उपसहसंयोजन संख्या 6 होती है।
त्रिवीमा में निबिड़ संकुलन :
इसमें तीन प्रकार की सरंचना बनती है।
BCC (body centered cubic ) HCP (hexagonal close packed) FCC या CCP (face centered cubic) 1. केंद्रीय घनीय संरचना षट्कोणीय निबिड़ संकुलन घनीय निबिड़ संकुलन 2. उपसहसंयोजन संख्या =8 12 12 3. कुल दक्षता = 68% 74% 74% 4. रिक्त स्थान =32% 26% 26% X XXXXX
: इस संरचना की मात्रक कोष्ठिका में घन के आठों कोनो पर आठ परमाणु होते है तथा प्रत्येक फलक के केंद्र में एक एक परमाणु होता है।
यह यूनिट सेल (unit cell ) चार परमाणुओं की बनी होती है।
कुल परमाणुओं की संख्या = (8 x 1/8) + (6 x 1/2) = 1+3 = 4
माना यूनिट सेल के किनारो की लम्बाई = a
तथा परमाणु की त्रिज्या = r
ΔABC से
(AC)2 = (AB)2 + (BC)2
(AC)2 = a2 + a2
(AC)2 = 2 a2
AC = √(2 a2)
AC = √2 . a
चित्रानुसार AC = 4r
अतः 4r = √2 . a
a = 4r / √2
a = 2√2 r
r = a/2√2
unit cell का आयतन a3 होता है
अतः
आयतन = (2√2 r)3
solve करने पर
unit cell का आयतन = 16√2 r3
FCC संरचना unit cell 4 परमाणुओं की बनी होती है
अतः चार गोलाकार परमाणुओं का आयतन
एक परमाणु का आयतन = (4/3) π r3
4 परमाणु का आयतन = 4 x (4/3) π r3
संकुलन दक्षता = (चार परमाणुओं का आयतन / unit cell का आयतन ) x 100
चार परमाणुओं का आयतन तथा यूनिट सेल के आयतन का मान सूत्र में रखने पर
FCC या CCP के लिए संकुलन दक्षता = 74%
इस संरचना की unit cell में घन के आठों कोनों पर आठ परमाणु स्थित होते है तथा घन के केंद्र में एक परमाणु स्थित होता है। यह unit cell दो परमाणुओं की बनी होती हैं।
कुल परमाणुओं की संख्या = 8 x 1/8 + 1×1 = 2
अतः
ΔABC से
(AC)2 = (AB)2 + (BC)2
(AC)2 = a2 + a2
(AC)2 = 2 a2
ΔACD से
(AD)2 = (AC)2 + (CD)2
(AD)2 = 2a2 + a2
(AD)2 = 3 a2
(AD) = √(3 a2)
(AD) = √3 . a
चित्रानुसार
AD = 4r
अतः 4r = √3 . a
a = 4r / √3
यूनिट सेल का आयतन a3 होता है।
अतः
यूनिट सेल का आयतन = (4r / √3)3
आयतन = (64r3 )/3√3
चूँकि यूनिट सेल दो परमाणुओं की बनी होती हैं।
एक परमाणु का आयतन = ( (4/3) π r3
अतः दो गोलाकार परमाणुओं का आयतन = 2 x (4/3) π r3
आयतन = (8 /3) π r3
संकुलन दक्षता = (दो परमाणुओं का आयतन /unit cell का आयतन ) x 100
दो परमाणुओं का आयतन तथा यूनिट सेल के आयतन का मान सूत्र में रखने पर
BCC संरचना की संकुलन दक्षता = 68%
इस unit cell में घन के आठों कोनों पर आठ परमाणु होते है। यह यूनिट सेल एक परमाणु की बनी होती है।
कुल परमाणुओं की संख्या = 8 x 1/8 = 1
माना यूनिट सेल के किनारो की लम्बाई = a
परमाणु की त्रिज्या = r
सभी परमाणु एक दूसरे को स्पर्श करते है अतः a = 2r
यूनिट सेल का आयतन = a3
चूँकि a = 2r
अतः
आयतन = (2r)3
संकुलन दक्षता = (एक परमाणु का आयतन /unit cell का आयतन ) x 100
एक परमाणु का आयतन तथा यूनिट सेल के आयतन का मान सूत्र में रखने पर
सरल घनीय या आद्य मात्रक कोष्ठिक के लिए संकुलन दक्षता = 52.4 %
प्रश्न 1 : FCC संरचना के लिए यूनिट सेल के किनारो की लम्बाई व परमाणु त्रिज्या के मध्य सम्बन्ध लिखो।
उत्तर : r = a/2√2
प्रश्न 2 : BCC संरचना के लिए यूनिट सेल के किनारों (कोर) की लम्बाई व परमाणु त्रिज्या के मध्य सम्बन्ध लिखो।
उत्तर : r = √3 . a/4
x किरण विवर्तन विधि :
अतः यूनिट सेल का आयतन = a3
यूनिट सेल का घनत्व = unit cell का द्रव्यमान / unit cell का आयतन
चूँकि unit cell का द्रव्यमान = यूनिट सेल के परमाणुओं की संख्या x एक परमाणु का द्रव्यमान
= z x m
चूँकि m = परमाणुओं का मोलर द्रव्यमान / आवोगाद्रो संख्या
अतः यूनिट सेल का द्रव्यमान = Z x M /Na
अतः
d = (Z x M) /(Na . a3 )
नोट : उपरोक्त समीकरण में FCC के लिए Z = 4
BCC के लिए Z = 2
सरल घनीय के लिए Z = 1
नोट : यदि यूनिट सेल के किनारो की लम्बाई पिको मीटर में है तो मीटर से सेंटीमीटर में निम्न प्रकार बदले।
a pm = a x 10-12 m = a x 10-10 cm
a mm = a x 10-9 m = a x 10-7 cm
प्रश्न 1 : एल्युमीनियम (Al) , cpp संरचना प्रदर्शित करता है इसकी धात्विक त्रिज्या 125 पिको मीटर है। (a) यूनिट सेल के कोर (किनारों) की लम्बाई ज्ञात करो।
(b) 1 cm3 आयतन में (Al) की unit cell की संख्या ज्ञात करो।
उत्तर : (a) r = 125 pm
a = ?
a = 2 x 1.414 x 125 pm
a = 353.5 pm
a = 353.5 x 10-10 cm
a = 3.535 x 10-8 cm
(b) यूनिट सेल का आयतन = a3
= (3.535 x 10-8cm)3
यूनिट सेल का आयतन = 4.42 x 10-23 cm3
4.42 x 10-23 cm3 आयतन में unit cell की संख्या = 1
1 cm3 आयतन में unit cell की संख्या = 1/4.42 x 10-23
= 2.26 x 1022
प्रश्न 2 : सोना (परमाणु त्रिज्या 0.144 nm ) FCC में क्रिस्टलीकृत है , इसकी कोष्ठिका की कोर (विमाए) की लम्बाई ज्ञात करो।
उत्तर : r = 0.144 nm
a = ?
a = 2√2 r
a = 2 x 1.414 x 0.144 nm
a = 0.407 nm
a = 0.407 x 10-9 m
= 0.407 x 10-7 cm
= 4.07 x 10-8 cm
प्रश्न 3 : Cu FCC जालक में क्रिस्टलीकृत होता है इसके कोर की लम्बाई 3.61 x 10-8 cm है। यह दर्शाये की गणना किये गए घनत्व के मान तथा मापे गए घनत्व 8.92 gm cm-3 में समानता है। परमाणु का मोलर द्रव्यमान 63.5 है।
उत्तर : a = 3.61 x 10-8 cm
FCC के लिए z = 4
M = 63.5
N0 = 6.022 x 1023
d = Z M / a3 N0
मान रखने पर
d = 8.96 gm cm-3
घनत्व का मान मापे गए घनत्व के लगभग समान है।
प्रश्न 4 : एक तत्व का मोलर द्रव्यमान 2.7 x 10-2 Kg mol-1 यह 405 पिको मीटर लम्बाई वाली घनीय एकक कोष्ठिका बनाता है यदि इसका घनत्व 2.7 x 10-3 Kg m-3 है तो घनीय यूनिट सेल की प्रकृति बताइये।
उत्तर :
M = 2.7 x 10-2 Kg mol-1
a = 405 pm = 405 x 10-12 m
d = 2.7 x 10-3 Kg m-3
Z = ?
d = (Z x M) /(Na . a3 )
Z = d (Na . a3 )/ M
सभी मान रखने व solve करने पर
Z = 4
यह घनीय यूनिट सेल FCC प्रकृति का है।
परिभाषा : परम शून्य ताप पर अर्थात 0 (k) केल्विन ताप पर ठोस के अवयवी कण नियमित क्रम में व्यवस्थित रहते है इन्हे आदर्श ठोस कहते है।
सामान्य ताप पर ठोस के अवयवी कण नियमित क्रम में नहीं रहते अर्थात ठोस में अपूर्णताऐं या दोष होते है।
ये दो प्रकार के होते है :
1. बिंदु दोष
2. रेखीय दोष
(1) बिंदु दोष :
जालक बिंदु के चारों ओर परमाणुओं की आदर्श व्यवस्था में विचलन से उत्पन्न दोष को बिंदु दोष कहते है।
(2) रेखीय दोष :
जालक बिंदु को मिलाने वाली पंक्तियों की आदर्श व्यवस्था में विचलन से उत्पन्न दोष को रेखीय दोष कहते हैं।
बिंदु दोष :
बिंदु दोष तीन प्रकार के होते है।
(a) स्ट्राइकियोमिट्री दोष
(b) नॉन स्ट्राइकियोमिट्री दोष
(c) अशुद्धता दोष
आइये बिंदु दोष के इन तीनो प्रकार के दोषो के बारे में विस्तार से पढ़ते है।
(a) स्ट्राइकियोमिट्री दोष : इन दोषों में यौगिक की स्ट्राइकियोमिट्री बनी रहती है।
ये दोष चार प्रकार के होते है।
(१) रिक्तिका दोष :
इस दोष में कुछ स्थानों पर अवयवी कण अपने स्थान से हट जाते है तथा उनके स्थान पर रिक्तिकाएँ बन जाती है।
इस दोष के कारण घनत्व में कमी आ जाती है।
डायग्राम ?
(२) अन्तराकाशीय दोष :
इस दोष में कुछ अवयवी कण अन्तराकाशी स्थान में आ जाते है।
इस दोष के कारण घनत्व में वृद्धि हो जाती है।
डायग्राम ?
नोट : उपरोक्त दोनों दोष नोन आयनिक यौगिकों में पाये जाते है , ये ताप के प्रभाव से उत्पन्न होते है अतः इन्हे ऊष्मा गतिकी दोष भी कहते है।
नोट : आयनिक यौगिकों में निम्न दोष पाए जाते है।
(३) शॉटकी दोष :
इस दोष में जितने धनायन अपने स्थान से हटते है उतने ही ऋणायन भी अपने स्थान से हट जाते हैं।
इस दोष के कारण घनत्व में कमी हो जाती है।
वे आयनिक यौगिक जिनमे धनायन ऋणायन के आकार लगभग समान होता है उनमे यह दोष होता है।
इसे रिक्तिका दोष भी कहते हैं।
उदाहरण : NaCl , CsCl , AgBr आदि।
डायग्राम ?
(४) फ्रैंकल दोष :
इस दोष में धनायान अपने स्थान से हटकर अंतराकाशी स्थान में चला जाता है।
इस दोष के कारण दोष के घनत्व में परिवर्तन नहीं होता।
वे आयनिक यौगिक जिनमे धनायन व ऋणायन के आकार में अधिक अंतर होता है उनमे यह दोष पाया जाता है।
इस दोष के कारण परावैधुतांक कम हो जाता है।
उदाहरण : AgCl , AgBr , AgI , ZnS आदि।
नोट : AgBr में शॉटकी व फ्रैंकल दोनों दोष पाए जाते हैं।
डायग्राम ?
(b) नॉन स्ट्राइकियोमिट्री दोष :
वे त्रुटि युक्त क्रिस्टल संरचनायें जिनमे धनायन व ऋणायन की संख्याओं का अनुपात यौगिक के रासायनिक सूत्र के अनुरूप नहीं होता , उनमे नॉन स्ट्राइकियोमिट्री दोष होते हैं।
उदाहरण : FeO में Fe व O का अनुपात 1:1 न होकर 0.93 से 0.96 : 1 होता है।
ये दोष दो प्रकार के होते है।
(१) धातु आधिक्य दोष :
यह दो प्रकार का होता हैं।
(अ) ऋणायन के अभाव से :
इस दोष के कारण ऋणायन अपने स्थान से हट जाते है तथा उस स्थान पर इलेक्ट्रॉन आ जाते है। जिस स्थान पर इलेक्ट्रॉन रहते है उसे F केंद्र कहते है। अर्थात रंग उत्पन्न करने वाला केंद्र , इस दोष के कारण NaCl हल्का पीला , KCl बैंगनी होता हैं।
डायग्राम ?
नोट : जब नमक को सोडियम वाष्प के संपर्क में लाया जाता है तो उसकी सतह पर सोडियम परमाणु आ जाते है जबकि NaCl में से क्लोराइड आयन हटकर सोडियम के संपर्क में आ जाता है। सोडियम अपना इलेक्ट्रॉन त्यागकर Na+ आयन बना लेता है। यह इलेक्ट्रॉन उस स्थान पर आ जाता है जहाँ से क्लोराइड आयन हटता है।
(ब) अतिरिक्त धनायन के कारण :
अतिरिक्त धनायन के अंतराकाशी स्थान में जाने से ZnO सफ़ेद रंग का होता है। जब इसे गर्म करते है तो कुछ Zn2+ आयन अंतराकाशी स्थान में आ जाते है। ठोस की विधुत उदासीनता को बनाये रखने के लिए कुछ इलेक्ट्रॉन भी अंतराकाशी स्थान में आ जाते है जिससे ZnO का रंग पीला हो जाता है।
(२) धातु न्यूनता दोष :
इस दोष में कुछ धनायन अपने स्थान से हट जाते है। ठोस की विधुत उदासीनता को बनाये रखने के लिए अन्य धातु आयन अपनी ऑक्सीकरण अवस्था को बढ़ा देते है।
नोट : संक्रमण तत्वों के यौगिकों में यह दोष पाया जाता है।
डायग्राम ?
(c) अशुद्धता दोष :
जब NaCl में SrCl2 की अशुद्धि मिली होती है तो कुछ Na+ आयन के स्थान पर Sr+ आयन आ जाते है। ठोस की विधुत उदासीनता को बनाये रखने के लिए उतने ही Na+ आयन हट जाते है।
डायग्राम ?
चालकता के मान के आधार पर ठोस तीन प्रकार के होते है।
(1) कुचालकता या विधुत रोधी : इनकी चालकता का मान 10-20 से 10-10 ओम-1 मीटर-1 होता है। इनमे स्वतंत्र इलेक्ट्रॉन या आयनों का अभाव होता हैं।
उदाहरण : लकड़ी , प्लास्टिक , रबड़ , हीरा आदि।
(2) चालक : इनकी चालकता का मान 104 से 107 ओम-1 मीटर-1 होता है। इनमे स्वतंत्र इलेक्ट्रॉन आयन या छिद्र होते है। ये दो प्रकार के होते है।
(A) इलेक्ट्रॉनिक चालक :
इनमे स्वतंत्र इलेक्ट्रॉन होते है।
ताप बढ़ाने से चालकता कम हो जाती हैं।
उदाहरण : सभी धातुयें तथा ग्रेफाइट।
(B) विधुत अपघटनी चालक :
ये पिघली हुई अवस्था या विलयन अवस्था में विधुत के चालक होते हैं।
उदाहरण : NaCl , KCl , KOH , NaOH, H2SO4 आदि।
(3) अर्धचालक : इनकी चालकता का मान 10-6 से 104 ओम-1 मीटर-1 होता है। ये परम शून्य ताप पर विधुत के कुचालक होते है परन्तु ताप बढ़ाने से इनकी चालकता बढ़ जाती है।
उदाहरण : शुद्ध सिलिकॉन (Si) , शुद्ध जर्मेनियम (Ge) .
इस सिद्धान्त के अनुसार जितने परमाणु कक्षक आपस में मिलते है उतने ही अणु कक्षकों का निर्माण होता है। जब बहुत सारे परमाणु कक्षक आपस में मिलते है तो उतने ही अधिक संख्या में अणु कक्षको का निर्माण होता है। इस अणु कक्षको की ऊर्जाओं में अंतर बहुत कम होता है।
ये परस्पर मिलकर एक बैंड का निर्माण कर लेते है। अतः इसे बैंड सिद्धांत कहते हैं।
इस सिद्धान्त द्वारा चालक , कुचालक व अर्द्धचालक की व्याख्या निम्न प्रकार से की जा सकती है।
(1) चालक : चालक में सहसंयोजक बैंड या तो आंशिक भरा होता है या पूर्ण भरा बैंड व खाली बैंड परस्पर मिलकर आंशिक भरे बैंड का निर्माण कर लेते हैं। आंशिक भरे बैंड में इलेक्ट्रॉन स्वतंत्रता पूर्वक गति करते हैं।
(2) कुचालक या विधुत रोधी : कुचालक में पूर्ण भरे बैंड व खाली बैंड के मध्य ऊर्जा का अंतर अधिक होता है। यहाँ इलेक्ट्रॉन स्वतंत्रता पूर्वक गति नहीं करते अतः ये विधुत के कुचालक होते है।
(3) अर्धचालक : इनमे पूर्ण भरे बैंड व खाली बैंड के मध्य ऊर्जा का अंतर कम होता है। परम शून्य ताप पर ये विधुत के कुचालक होते है परन्तु ताप बढ़ाने पर पूर्ण भरे बैंड के इलेक्ट्रॉन खाली बैंड में चले जाते है अतः ताप बढ़ाने से अर्द्धचालक की चालकता बढ़ जाती हैं।

Si तथा Ge शुद्ध अर्धचालक है इन्हे नैज अर्धचालक भी कहते है। यदि इनमे कुछ अशुद्धियाँ मिली होती है तो इनकी चालकता बढ़ जाती है इस विधि को अपमिश्रण कहते है।
नोट : मिलाई जाने वाली अशुद्धि 13वें या 15वें वर्ग की होती है जिससे दो प्रकार के अर्धचालक बनते है।
1. इलेक्ट्रॉन धनी अशुद्धि मिलाकर या n प्रकार के अर्ध चालक :
जब Si में अल्प मात्रा में फॉस्फोरस की अशुद्धि मिली हो तो कुछ स्थान पर फॉस्फोरस के परमाणु आ जाते है।
Si की कक्षा में चार इलेक्ट्रॉन होते है। जिससे प्रत्येक Si चार बंध बना लेता है जबकि फॉस्फोरस (p) के आखिरी कक्षा में पांच इलेक्ट्रॉन होते है , फॉस्फोरस के 5 electron में से 4 इलेक्ट्रॉन तो सहसंयोजक बंध बना लेते है परन्तु एक इलेक्ट्रॉन स्वतंत्र रहता है यह electron विधुत धारा के प्रभाव से सारे क्रिस्टल पर विस्थानिकृत रहता है जिससे अर्धचालक की चालकता बढ़ जाती है।
चूँकि इलेक्ट्रॉन negative (ऋणात्मक) कण है इसलिए इसे n प्रकार का अर्धचालक कहते है।
2. इलेक्ट्रॉन न्यून अशुद्धियाँ मिलाकर या p प्रकार के अर्धचालक :
पिघले हुए Si में बोरोन(B) की अशुद्धि मिलाकर ठंडा कर लेते है जिससे Si की संरचना में कुछ स्थानों पर बोरोन(B) के परमाणु आ जाते है। Si की कक्षा में 4 इलेक्ट्रॉन होते है। जिससे प्रत्येक Si , 4 बंध बनाता हैं जबकि बोरोन (B) की आखिरी कक्षा में 3 electron होते है जिससे बोरोन(B) तीन बन्ध बना लेता है। बोरोन(B) के पास एक इलेक्ट्रॉन की कमी होने के कारण एक धनात्मक छिद्र (positive hole ) बन जाता है। यह धनात्मक छिद्र विधुत धारा के प्रभाव से सारे क्रिस्टल पर विस्थानिकृत रहता है अतः इसे P प्रकार का अर्धचालक कहते है।
अर्धचालको के उपयोग :
(1) n प्रकार के तथा P प्रकार के अर्धचालको को मिलाने से n-p संधि का निर्माण होता है जो प्रत्यावृति धारा को दिष्ट धारा में बदलती है।
(2) npn या pnp प्रकार के अर्धचालको को ट्रायोड कहते है। ये रेडियो तथा श्रव्य तरंगो की पहचान व संवर्धन में काम आते है।
नोट : 12 वें वर्ग व 16 वें वर्ग के तत्वों को मिलाने से भी अनेक प्रकार के अर्धचालक बनाये जाते है।
जैसे : ZnS , CdS
नोट : 13 वें व 15 वें वर्ग के तत्वों को मिलाने पर भी अनेक प्रकार के अर्धचालक बनते है।
जैसे : Alp , GaAs .
प्रश्न 1 : निम्न निखित को n तथा p प्रकार के अर्धचालक में वर्गीकृत कीजिये।
१. In से डोपित Ge
उत्तर : p प्रकार का अर्धचालक (14 वे वर्ग में 13 वें वर्ग की अशुद्धि )
प्रश्न 2 : B से डोपित Si
उत्तर : p प्रकार का अर्धचालक।
पश्न 3 : P से डोपित Si
उत्तर : n प्रकार का अर्धचालक (14 वें वर्ग में 15 वें वर्ग की अशुद्धि मिलाई गयी )
ठोसों में चुंबकीय गुण :
इलेक्ट्रॉन नाभिक के चारों ओर दो प्रकार से गति करता है।
(1) कक्षीय गति
(2) चक्रीय गति
जब भी कोई ऋणावेशित कण नाभिक के चारों ओर चक्कर लगाता है तो उसके चारो ओर एक चुंबकीय क्षेत्र का निर्माण हो जाता है जिससे इलेक्ट्रॉन नन्हे (छोटे) चुम्बक की भाँति व्यवहार करता है। चुंबकीय गुणों को चुंबकीय आघूर्ण से व्यक्त करते है। ठोस पदार्थों को बाह्य चुम्बकीय क्षेत्र में रखने पर वे निम्न प्रकार व्यवहार दर्शाते है।
(अ) अनुचुंबकत्व (paramagnetism) :
ये बाह्य चुंबकीय क्षेत्र द्वारा दुर्बलता से आकर्षित होते है।
इनमे अयुग्मित इलेक्ट्रॉन होते है।
चुंबकीय आघूर्ण का मान निश्चित होता है।
उदाहरण : Fe2+ , Cr3+ , Ni2+ , O2 आदि।
(ब) प्रति चुंबकत्व (diamagnetism) :
ये बाह्य चुंबकीय क्षेत्र द्वारा प्रतिकर्षित होते है।
इनमे सभी इलेक्ट्रॉन युग्मित होते है।
इनका चुंबकीय आघूर्ण शून्य होता है क्योंकि एक इलेक्ट्रॉन का चुंबकीय आघूर्ण दूसरे इलेक्ट्रॉन के चुंबकीय आघूर्ण को नष्ट कर देता है। (चक्रण की दिशा विपरीत होने के कारण )
उदाहरण : NaCl , C6H6 , H2O आदि।
(स) लौह चुंबकत्व (ferromagnetism) :
वे पदार्थ जो बाह्य चुंबकीय क्षेत्र द्वारा प्रबलता से आकर्षित होते है तथा चुंबकीय क्षेत्र हटा लेने के पश्चात स्वयं चुम्बक की भांति व्यवहार करते है उन्हें लौह चुम्बक पदार्थ कहते है।
लौह चुम्बकीय पदार्थो में धातु आयन छोटे छोटे खंडो में समूहित रहते है जिन्हे डोमेन कहते है। बाह्य चुंबकीय क्षेत्र की अनुपस्थिति में ये डोमेन अव्यवस्थित रहते है परन्तु चुंबकीय क्षेत्र की उपस्थिति में सभी डोमेन व्यवस्थित हो जाते है। चुंबकीय क्षेत्र हटा लेने के पश्चात भी यह व्यवस्था बनी रहती है जिससे लौह चुंबकीय पदार्थो से स्थायी चुंबके बनायीं जाती है।
उदाहरण : Fe , CO , Ni , CrO2 आदि
इसे ABABAB संरचना भी कहते है। इसे ABCABCABC संरचना भी कहते है। ये विषम दैशिक होते है।
उदाहरण : पोटेशियम नाइट्रेट , बेन्जोइक अम्ल , कॉपर , चाँदी , लोहा , सोना , नैफ्थलीन , क्वार्ट्ज़ आदि
ये सम दैशिक होते है।
उदाहरण : काँच , लकड़ी , रबड़ , PVC (पोलीविनाइल क्लोराइड) , टेफ्लॉन , रेशा कांच , फाइबर आदि