कक्षा 12वी NCERT नोट्स जीवविज्ञान अध्याय 13 जीव और जनसंख्या संपूर्ण नोट्स हिंदी में :- ULTIMATE STUDY SUPPORT

पारिस्थितिकी क्या है के जीव संगठन के चार स्तर पारिस्थितिकी की परिभाषा किसे कहते है ?

पारिस्थितिकी (Ecology) :  जीव विज्ञान की वह शाखा जिसमें जीवन तथा भौतिक पर्यावरण के बीच होने वाली पारस्परिक क्रियाओं का अध्ययन किया जाता है |



पारिस्थितिकी

पारिस्थितिकी का अर्थ है पृथ्वी नामक ग्रह के समस्त जातीय एवं स्थलीय अवयवों की पारस्परिक निर्भरता के आधार पर सहजीविता जिसमें सभी अवयव एक दूसरे का उपयोग करते हैं और समग्न संचय की पुनः पूर्ति भी करते रहते हैं। अतः मिट्टी, पानी, पौधे, जीव-जंतु, खनिज, वायुमंडल, ऊर्जा तथा मनुष्य आदि समस्त अवयव एक दूसरे का उपयोग करते हुए पारस्परिक संतुलन बनाए रखते हैं। पृथ्वी पर ये सब अलग-अलग क्रमचयों एवं संचयों में वितरित हैं। ऐसी प्रत्येक इकाई को उसके निदान सूचक एवं विभेदक लक्षणों के आधार पर, एक पारिस्थितिक तंत्र कहा जाता है।

पर्यावरण

मानव जाति अपने आप को (पारिस्थितिक तंत्र के) अन्य अवयवों से पृथक मानती है तथा उन्हें अपने संसाधन भर मान कर संतोष का अनुभव करती है। अतः मिजवाखपाऊजंमा (SWAMPEAH) मानव समाज का पर्यावरण कहलाता है।

पारिस्थितिकी जीव संगठन के चार स्तरों से संबंधित है |

जीव :  पर्यावरण का प्रत्येक जीवित घटक जीव कहलाता है |

समष्टि : एक ही प्रजाति के सजीव समूह को समष्टि कहते हैं |

समुदाय :  एक से अधिक प्रजातियां के प्राणियों एवं पौधों के समूह को समुदाय कहते हैं उदाहरण –  पादप समुदाय ,  जंतु समुदाय एवं सूक्ष्मजीव समुदाय |

 जीवोम : जीवोम क्षेत्रीय समुदाय होते हैं जिसमें लगभग समान जलवायु विय  परिस्थितियां होती हैं इनमें विशिष्ट प्रकार के पादप व जंतु ही निवास करते हैं |  उदाहरण – टुंड्रा ,  मरुस्थल ,  तथा वर्षा वन आदि मुख्य जीवोम  है |

प्रमुख अजैव कारक :

ताप :   ताप जीवो के आधार उपापचय कार्यकीय प्रकार्यों तथा शरीर एंजाइमों की बल गति को प्रभावित करता है ताप सहनशीलता के आधार पर प्राणी दो प्रकार के होते हैं

प्रथुतातापी : वे प्राणी जो अत्यधिक ताप को सहन कर सकते हैं प्रथुतातापी  कहलाते हैं |

तनुतापी  : वीडियो कम ताप में रहते हैं तनुतापी  कहलाते हैं |

जल :  जलीय जीवों के लिए जल की गुणवत्ता महत्वपूर्ण होती है इसके आधार पर प्राणी दो प्रकार के होते हैं |

प्रथुलवणी : वह प्राणी जो अत्यधिक लवणीय [ खारे]  जल में पाए जाते हैं प्रथुलवणी कहलाते हैं

तनु लवणी : वह प्राणी जो कम लवणता वाले जल में पाए जाते हैं|

 प्रकाश :  प्रकाश  प्राणी की वृद्धि जनन वह वर्णकता को प्रभावित करता है प्रकाश की एक सापेक्षिक अवधि [ द्विप्तिकाल] मैं पौधों में पुष्पन प्रेरित होता है |

प्रश्न 1 :  क्या कारण है कि लाल शैवाल अधिकतर समुद्र की गहराई में पाए जाते हैं ?

उत्तर :  लाल शैवाल अधिकतर समुद्र की गहराई में पाए जाते हैं क्योंकि इनका मुख्य  वर्णक आर-फाइकोऐरीथ्रिन (r-phycoerythrin) नीले हरे भाग वाली दृश्य प्रकाश की स्पेक्ट्रम का उपयोग प्रकाश संश्लेषण में करता है ,  नीले हरे स्पेक्ट्रम का भाग कम तरंगधैर्य के कारण पानी में गहराई तक पहुंच पाता है लाल शैवाल वहां भी जीवित रह सकते हैं जहां और कोई प्राणी जीवित नहीं रह सकता है |

 मृदा :  मृदा का पीएच(Ph) ,  खनिज लवण ,  स्थल की आकृति आदि किसी क्षेत्र की वृद्धि का निर्धारण करते हैं |

परिभाषाएँ

संसाधन

मानव जाति के लिए, अपने आप के अतिरिक्त, जल, मिट्टी और भूमि, पौधे जंतु, रोगाणु, खनिज तथा वायुमंडल समावेश रूप से एक संसाधन-आधार तैयार करते हैं। गुण एवं परिभाषा, दोनों की दृष्टि से इनके वितरण तथा उत्पादकता में विविधता होती है।

पारिस्थितिक तंत्र

पृथ्वी पर उपर्युक्त संसाधन 40 से अधिक पारिस्थितिक तंत्रों में वितरित हैं। प्रत्येक पारिस्थितिक तंत्र में उपर्युक्त संसाधनों के विभिन्न प्रकार पाए जाते हैं और विकास की यथावधि में उसके विशिष्ट लक्षण बन जाते हैं। ऐसे पारिस्थितिक तंत्रों में वन, मरुस्थल, तराई क्षेत्र, समुद्र, द्वीप, नदियाँ, चरागाह, भूमध्यरेखीय, उष्ण कटिबंधीय, उपोष्ण कटिबंधीय शीतोष्ण कटिबंधीय तथा अन्य भौगोलिक क्षेत्रों की हरित भूमियों आदि को गिनाया जा सकता है जो भिन्न भिन्न अक्षांश एवं देशान्तर रेखाओं से घिरे होते हैं।

विकास

मनुष्य अपने ज्ञान, अनुभव एवं विज्ञान और तकनीकी की प्रायोगिक दक्षता के आधार पर इन विविध पारिस्थितिक तंत्रों में विद्यमान संसाधनों का, अपने उपयोग के लिए निरंतर दोहन करता रहता है। इस प्रकार का उपयोग राजनीतिक सत्ता, प्रशासनिक तंत्र के माध्यम से लोगों के सामाजिक – आर्थिक हितों को ध्यान में रखकर कराती है। परिणामस्वरूप संसाधनों एवं विकास के उत्पादों के वितरण से इन सभी प्रक्रियाओं के ऐसे मूल उपादान का निर्माण होता है जिसमें समानता एवं न्याय सुनिश्चित हों। अतः उद्योग, व्यापार, वाणिज्य एवं व्यापार एक दूसरे से अलग नहीं किए जा सकते हैं। इन प्रक्रियाओं से अनेक परिणाम सामने आए हैं।

परिणाम

यद्यपि विकास जन्म परिवर्तन सभी संबद्ध पक्षों के हितों के लिये होते हैं किन्तु देश और काल के अंतर से उन के परिणाम (क) पृथ्वी के अन्य अवयवों अर्थात् पारिस्थितिक तंत्रों तथा पारिस्थितिकी, (ख) अन्य पारिस्थितिक तंत्रों के अन्य लोगों, (ग) किसी पारिस्थितिक तंत्र के अपने ही लोगों तथा (घ) स्वयं पारिस्थितिक तंत्रों के लिये हानिकारक होने लगते हैं।

क) पहला परिणाम विद्यमान परिदृश्यों में परिवर्तन के रूप में प्राप्त होता हैं जिसके अंतर्गत संसाधनों का अवक्षय, तंत्रों का निम्नीकरण एवं पारिस्थितिक असंतुलन आदि शामिल हैं जिनमें संसाधनों का स्वामित्व या विकास हस्तान्तरित होते रहते हैं और अन्याय और असंतोष तथा आन्दोलन आदि का बीजारोपण होता है।

ख) दूसरा परिणाम आर्थिक होता है। इसके अंतर्गत आन्तरिक उत्पादन एवं वितरण में पुनरभिविन्यास, विदेशिक व्यापार में कमी, आतंरिक एवं बाहरी ऋण एवं निवेश, ऋण-भार तथा असहाय लोगों पर पड़ने वाली आर्थिक भार आदि शामिल हैं।

ग) तीसरा परिणाम सामाजिक होता है। असमानताएँ, आशाएँ और निराशाएँ, विभाजन, संघर्ष, घृणाओं और हिंसा इसमें शामिल होते हैं। परंपरागत संसाधनों एवं प्रचलनों के साथ-साथ परंपरागत मूल्यों का भी लोप हो जाता है और विश्व, समृद्ध राष्ट्रों एवं गरीब राष्ट्रों, अमीर लोगों एवं दीनहीनों जैसे वर्गों के बीच विद्यमान उभय प्रतिरोधियों के कारण तीन स्तरों में विभक्त हो जाता है। आशाएँ और निराशाएँ शक्ति एवं संपन्न लोगों की सनक के आधार पर बारी-बारी से उदित होती रहती हैं। भलमनसाहत तथा अन्य मानवीय मूल्य निरंतर विलुप्त होते रहते हैं और बहुसंख्यक लोगों के जीवन बेकार हो जाते हैं। पाण्डेकर की गरीबी रेखा का निहितार्थ यही है।

घ) चैथे प्रकार के परिणाम पर्यावरण एवं पारिस्थिक प्रक्रियाओं में पश्चगमन के रूप में होते हैं जिनके शमन की बात तो दूर रही, उन्हें समझना भी मुश्किल होता है। एक बार से घटित हो जाएँ तो इनका पलटना कठिन होता है। अम्लीय वर्षा या ओजोन परत का अवक्षय इसके उदाहरण हैं।

अनुक्रियाएँ

परिणामस्वरूप पारिस्थितिक सुरक्षा को चुनौती देने वाली आपत्तियों के विरुद्ध लोगों की प्रतिक्रियाएँ व्यक्त होती हैं भूग्रह के अनेक भागों में ऐसा पहले होता रहा है और आज भी हो रहा है। ऐसी कुछ अनुक्रियाओं को आगे रेखांकित किया जा रहा है।

ये अनुक्रियाएँ ही चिंता, परामर्श और सावधानी की प्रथम अभिव्यक्तियाँ थीं। अपने विशिष्ट लक्षणों एवं परिमाण की दृष्टि से इन्हीं का क्रमशः स्थानीय, क्षेत्रीय एवं विश्वस्तरीय विरोधों एवं प्रतिरोधों के रूप में विकास हुआ। इन प्रतिसेनों ने न केवल कानूनी रूप एवं सामाजिक आन्दोलन का स्वरूप ही धारण किया वरन् उन्होंने परिवर्तन के लिए सामान्यतः स्वीकृत राजनीतिक तंत्र की सीमाओं का अतिक्रमण भी किया। ये मनुष्य के द्वारा पर्यावरण की सुरक्षा हेतु चलाए गए सामाजिक आन्दोलन या सामाजिक सहमति हेतु पर्यावरण आन्दोलन हैं।

बोध प्रश्न 1

नोटः क) अपने उत्तरों के लिए नीचे दिए गए स्थान का प्रयोग कीजिए।

ख) इस इकाई के अंत में दिए गए उत्तरों से अपने उत्तर मिलाइए।

1) पारिस्थितिकी, पर्यावरण तथा पारिस्थितिक तंत्र से आप क्या समझते हैं?

2) विकास के परिणाम क्या हुए हैं?

 अजीवीय कारको के प्रति अनुक्रियाएं :

शरीर का आंतरिक पर्यावरण सारे जैव रासायनिक अभिक्रियाओं और कायकीय प्रकार्यों को अधिक दक्षता होने देता है,  यह निरंतरता शरीर के तापमान और तरल पदार्थों की परासरणी सांद्रता के कारण हो सकती है जीव कि यह अवस्था समस्थापन कहलाती है |

जीव  बाह्य वातावरण के प्रति निम्न प्रतिक्रियाएं अपनाते हैं

नियमन करना :  कुछ जीव अपने शरीर का तापमान में परासरण की सांद्रता स्थिर रखते हैं यह क्रिया ताप नियमन व परासरण नियमन कहलाती है उदाहरण –  स्तनधारी प्राणी व पत्तियों में

संरूपण :  कुछ प्राणियों के शरीर का तापमान वातावरणीय तापमान के अनुसार बदलता रहता है इसी तरह जलीय प्राणियों में शरीर के तरल की परासरण सांद्रता परिवेशी जल की परासरणी सांद्रता के अनुसार बदलती रहती है इस प्रक्रिया को संरूपण कहते हैं तथा एक जंतु और पादप समरूपी कहलाते हैं |

प्रश्न 1 :  क्या कारण है कि बहुत छोटे प्राणी ध्रुवीय क्षेत्रों में कम पाए जाते हैं ?

उत्तर :  छोटे प्राणियों का पृष्ठीय क्षेत्रफल उनके आयतन की अपेक्षा ज्यादा होता है इसलिए जब बाहर ठंड होती है तो उनके शरीर की ऊष्मा बहुत तेजी से कम होती है ऐसी स्थिति में उन्हें उपापचय अभिक्रिया द्वारा ऊष्मा पैदा करने के लिए काफी उष्मा खर्च करनी पड़ती है इसलिए छोटे प्राणी ध्रुवीय क्षेत्रों में कम पाए जाते हैं |

प्रवास करना :  प्रतिकूल वातावरण मैं जीव कुछ अवधि के लिए प्रवास करते हैं उदाहरण –  शीतकाल में राजस्थान के भरतपुर में स्थित केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान साइबेरिया से आने वाले प्रवासी पक्षियों का स्वागत करता है |

 निलंबित करना :  प्रतिकूल परिस्थितियों में कुछ प्राणियों का उपापचय तंत्र सुप्तावस्था में रहता है अर्थार्थ निष्क्रिय हो जाता है जैसे –  ठंड से बचने के लिए भालू शीत निष्क्रियता तथा मछलियां गर्मी से बचने के लिए ग्रीष्म निष्क्रियता अपनाते हैं |

कुछ प्राणी प्लवक उदाहरण –  डायटम ,  डायनो प्लेजीलेट ,  की अनेक जातियां उपरति अवस्था अर्थार्थ निलंबित अवस्था में रहती है

जीवाणु,  कवको , वह निम्न पादपों में मोटी बुद्धि वाले बीजाणु बनते हैं जो अनुकूल वातावरण में प्रसुप्ति अवस्था में रखते हैं

अनुकूलन की परिभाषा क्या है : जीव का ऐसा गुण जो उसे अपने आवेश में जीवित बने रहने जनन  करने के योग्य बनाता है उसे अनुकूलन कहलाता है |

अनुकूलन के उदाहरण (Adaptation examples) :

उत्तरी अमेरिका के मरुस्थल कंगारू चूहा अपने शरीर की आंतरिक व वसा के ऑक्सीकरण हुए मूत्र को संतुलित करने की क्षमता के कारण जल की कमी को दूर किया जाता है

अनेक मरुस्थलीय पौधों की पत्तियों की सतह पर क्युटिल  पाई जाती है जिसे वाष्पोत्सर्जन कम होता है इनकी पत्तियों में  रंध्र गर्त  में होते हैं जिससे वाष्पोत्सर्जन से होने वाली जल की हानि कम होती है

ऐलन का नियम : ठंडे जलवायु वाले स्तनधारियों के कान छोटे होते हैं ताकि ऊष्मा की हानि कम  होती है इसे ऐलन का नियम कहते हैं

सील जैसे जलीय स्तनधारियों में त्वचा के नीचे वसा की मोटी परत होती है जो ऊष्मारोधी होती है

अधिक ऊंचाई पर रहने वाले [ उच्च तुंगता],  मनुष्य में अनुकूलन :  अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्र में वायुमंडलीय दाब कम होने से शरीर को ऑक्सीजन नहीं मिलती इसलिए शरीर स्वसन दर बढ़ाकर ,  लाल रुधिर कोशिका का उत्पादन बढ़ा कर ,  हीमोग्लोबिन की बंधनकारी क्षमता घटाकर ऑक्सीजन की कमी पूरी करता है |

समष्टि के लाक्षणिक गुण :

समष्टि घनत्व (populatin density) :  किसी एक विशेष स्थान के इकाई क्षेत्रफल में पाए जाने वाले सचिवों की कुल संख्या को समष्टि घनत्व कहते हैं |

जन्म दर (birth rate) : एक निश्चित समय में समष्टि  में  जन में  जन्मे की संख्या जन्म दर कहलाती है |

मृत्यु दर :  एक निश्चित समय में समष्टि में होने वाली मौतों की संख्या मृत्यु दर कहलाती है |

लिंग अनुपात :  नर व मादा की संख्या का अनुपात लिंग अनुपात कहलाता है ,  किसी निश्चित समय में समष्टि अलग-अलग आयु वाले व्यष्टिया  से मिलकर बनती है अगर समष्टि का आयु वितरण अलिखित किया जाए तो बनने वाली संरचना आयु पिरामिड कहलाती है

समष्टि वृद्धि :  समष्टि का घनत्व 4 मूलभूत प्रक्रमों से घटता और बढ़ता है

जन्म दर

मृत्यु दर

समष्टि के व्यक्तियों की वह संख्या जो निश्चित अवधि के दौरान कही ओर से आए हैं

समष्टि ओके व्यक्तियों की वह संख्या जो निश्चित अवधि के दौरान  आवास छोड़कर कहीं और चले जाते हैं

अगर t  पर समष्टि घनत्व [N]  है तो समय t + 1  पर समष्टि घनत्व

Nt+1 = Nt + [(B + I)] – ( D + E)

वृद्धि मॉडल (growth model) : वृद्धि मॉडल के प्रारूप होते हैं

[1]  चरघातांकी वृद्धि :   जब संसाधन असीमित होते हैं तब समष्टि चरघातांकी या ज्यामितीय वृद्धि करती है ,  इस प्रकार की वृद्धि में समझती व समय के बीच J  आकार का वक्र बनता है अर्थार्थ प्रारंभ में समष्टि वृद्धि तेज गति से होती है और बाद में शून्य हो जाती है |

यदि N साइज की समष्टि में जन्म दरें b तथा मृत्यु दरें d के रूप में निरूपित की जाए तो इकाई समय अवधि t(dN/dt) के दौरान समष्टि में वृद्धि या कमी निम्नलिखित होगी

dN/dt = (b – d) x N

मान लीजिए (b – d) = r

dN/dt = rN

इस समीकरण में r  प्राकृतिक वृद्धि की इट्रिनजिक दर है

चरघातांकी समीकरण को समाकलित रूप से निम्न प्रकार से दिखा सकते हैं

Nt = N0ert

जहां Nt = t समय में समष्टि घनत्व

N0 = शुन्य समय में समष्टि घनत्व

r =  प्राकृतिक वृद्धि को  इट्रिनजिक दर

e =  प्राकृतिक  लघुगुणकों का आधार

[2]  संभार तंत्र  वृद्धि :  सीमित संसाधनों के लिए समष्टि के वष्टियों में प्रतिस्पर्धा होती है इस प्रकार की वृद्धि में प्रारंभ में समष्टि धीरे-धीरे बढ़ती है इसके बाद अचानक ही तेजी से बढ़ती है फिर नियंत्रित होकर समानांतर चलती है इस तरह  समष्टि वह समय के बीच [S]  आकार का सिग्मोइड  वक्र बनता है ,  इससे वृद्धि को निम्न समीकरण द्वारा  प्रदर्शित किया जाता है

dN/dt = rN (K-N/K)

जहां N = t समय पर समष्टि घनत्व

r =  प्राकृतिक वृद्धि की इट्रिनजिक दर

k =  पोषण  क्षमता

कुछ समष्टि पारस्परिक क्रियाएं :

[1] पर भक्षण :  इस परस्पर क्रिया में एक जंतु दूसरे जंतु का भक्षण करता है इसमें केवल एक जाति [ परभक्षी को लाभ होता है]

अगर परभक्षी ना होते तो शिकार जातियों का सष्टि घनत्व ज्यादा होता अतः पर भक्षण एक जरूरी पारस्परिक क्रिया है |

जैसे 1920 के आरंभ में ऑस्ट्रेलिया में नागफनी ने लाखों हेक्टेयर भूमि में फैलकर तबाही मचा दी बाद में नागफनी खाने वाले परभक्षियों द्वारा इसका नियंत्रण किया गया |

परभक्षियों से बचने के लिए शिकार जातियों ने कुछ रक्षा विधियां अपना ही है जैसे

मोनार्क नामक तितली के शरीर में विशेष रसायन होने के कारण यह अपने परभक्षी पक्षी के लिए स्वाद में खराब होने के कारण बस जाती है

कुछ पादप कैलोट्रोपिस खरपतवार विषैला रसायन ग्लाइकोसाइड उत्पन्न करते हैं जिससे पशु इन्हें नहीं खाते हैं

[2] स्पर्धा :  सीमित संसाधनों के लिए आपस में संबंधित स्पर्धा करती है

कुछ  असंबंधित जातियां भी स्पर्धा जैसे :  दक्षिण अमेरिका की  झीलों की आवासी मछलियां बाहर से आने वाली फ्लेमिंगो जाति के साथ आहार के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं |

गॉसे का स्पर्धी अपवर्धन नियम :

इस नियम के अनुसार एक ही तरह के संसाधनों के लिए स्पर्धा करने वाले संबंधित जातियों में से घटिया जाति विलुप्त हो जाती है उदाहरण :  गैलापेगो द्वीप में बकरियां की अत्यधिक करने की क्षमता के कारण वहां की एबिंग्डन जाति 10 वर्ष में ही विलुप्त हो गई |

संसाधन विभाजन : जब 2 जातियां में से कोई एक जाति भिन्न-भिन्न समय पर अलग-अलग आहार चुनती है तो वह इस पर्दा से बच सकती है जैसे फुदकी (वार्बलर) की पांच संबंधित जातियों ने समय-समय पर आहार में परिवर्तन किया और आपस में स्पर्धा से बच गए |

[3] परजीविता : परजीविता एक ऐसी परस्पर क्रिया है जिसमें परजीवी अपना भोजन परपोषी से प्राप्त करता है और उसे हानि पहुंचाता है अतः परजीवी को लाभ व परपोषी को हानि होती है|

परजीविता अंतर्जातीय हो सकती है

मानव यकृत प्रणाभ  [लीवर फ्लूक] अपने जीवन चक्र को पूरा करने के लिए दो मध्यस्थ पोषकों पर निर्भर रहता है |

परजीवी दो प्रकार के होते हैं

बाह्य परजीवी [  एक्टो  पैरासाइट] : वह परजीवी जो परपोषी की बाहरी सतह से भोजन प्राप्त करते हैं जैसे जू मनुष्य पर ,  कुत्तों पर चिचड़ी ,  पौधों पर अमरबेल वह समुद्री मीन पर  कॉपीपोट्स आदि बाह्य  परजीवी है

अंतः परजीवी [ एंटो पैरासाइट] :  वे परजीवी जो परपोषी के शरीर के अंदर यकृत ,  फेफड़ों  व आरबीसी RBC आदि में रहते हैं अंतः परजीवी कहलाते हैं |

पक्षियों में अंड परजीविता : जब परजीवी पक्षी अपने अंडे परपोषी के घोंसले में देता है और परपोषी को अंडे देने देता है तो उसे अंडर परजीविता कहते हैं |

[4] सहभोजिता : ऐसी पारस्परिक क्रिया जिसमें एक जाति को लाभ होता है और दूसरी जाति को न तो लाभ होता है और न ही हानि होती है उदाहरण

आम की शाखा पर पाए जाने वाले अधिपादप आर्केड और व्हेल मछली की पीठ पर रहने वाले बर्नेकल्स को फायदा होता है जबकि आम व व्हेल मछली को इनसे न तो लाभ होता है और न ही हानि

जहां पशु चरते हैं उनके पास बगुले भोजन प्राप्ति के लिए रहते हैं क्योंकि जब पशु वनस्पतियां घास को हिलाते हैं तो कीट बाहर निकलते हैं और बगुले इनकी दो को खाते हैं |

क्लाउन मछली दंशस्पर्शक वाले समुद्री एनीमोन  के बीच छुपी हुई रहती है जिससे कलाउन मछलियां को परभक्षियों से सुरक्षा मिलती है इससे समुद्री एनीमोन को महत्व लाभ होता है और न ही हानि |

 प्रश्न 1 : परजीवियों में परपोषियों  से पोषण प्राप्त करने के लिए क्या-क्या अनुकूल होते हैं ?

उत्तर :  इनमें चूसकांकपाए जाते हैं तथा उच्च जनन क्षमता इन्हें अपनी संख्या बढ़ाने में मदद करती है और इनमें हासिल पाचन तंत्र जैसे  रक्त आहार को शीघ्रता से अवशोषित करने में मदद करता है |

[5]  सहोपकारिता : इस पारस्परिक क्रिया में परस्पर क्रिया करने वाली दोनों जातियों को लाभ होता है

उदाहरण 1.  अंजीर के पेड़ों की अनेक जातियों बर्र की परागण कारी जातियों के बीच सहकारिता पाई जाती है ,  अंजीर की एक विशिष्ट जाति केवल एक विशिष्ट साथी बर्र  की जाति से ही परागित हो सकती है |

कोई दूसरी बर्र जाति उसे परागित नहीं कर सकती

मादा बर्र अंडे देने के लिए अंजीर पुष्प कर्म को परागित करती है बदले में अंजीर कुछ परिवर्धित बीज बर्र  के डिंब ( लार्बा) को आहार के रूप में देती है

उदाहरण 2 :  मेडिटेरेनियन आर्केड वह मक्षिका के बीच सहोपकारिता : मेडिटेरेनियन आर्किड पुष्प की पंखुड़ियां प्रतिरूप में मादा मक्षिका से मिलती-जुलती होती है इसलिए नर मक्षिका आर्केड पुष्प को  मादा मक्षिका समझ कर उस की पंखुड़ियों के साथ  कूट मैथुन करती है परंतु अगर मधुमक्षिका या आर्केड पुष्प की पंखुड़ी का रंग जरा सा भी परिवर्तित होता है तो नर  मक्षिका आर्केड पुष्प को परागित नहीं करता है अतः मेडिटेरेनियन आर्केड पुष्प अपनी पंखुड़ी को  मादा मक्षिका के समान बनाए रखते हैं |

[6]  अंतरजातीय परजीविता : 2 दिन जातियों के अलग-अलग जीवो में पाए जाने वाली परस्पर क्रिया जिसमें एक जाति को नुकसान होता है वह दूसरी जाति को इस से न तो लाभ होता है और न ही हानि होती है जैसे अखरोट की जड़ें Juglone नामक रसायन स्त्रावित करती है इस रसायन से इन जड़ों के संपर्क में रहने वाले पौधों को नुकसान होता है ,  उदाहरण में अखरोट को न तो लाभ होता है और न ही हानि होती है

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