जैव विविधता क्या है परिभाषा किसे कहते है ? उदहारण लिखिए ?
जैव विविधता क्या है परिभाषा किसे कहते है ? उदहारण लिखिए ?
जैव विविधता क्या है परिभाषा किसे कहते है ? उदहारण लिखिए ?
परिभाषा : पृथ्वी के विभिन्न आवासों में तरह-तरह के पादप व जंतु जातियों की उपस्थिति को जैव विविधता कहते हैं |
जैव विविधता को कई प्रकार से विभाजित किया जा सकता है जैसे
अनुवांशिक विविधता (Genetic diversity) : अनुवांशिक विविधता का तात्पर्य किसी एक ही जाति में अलग-अलग किस्मों में पाई जाने वाली विभिन्नता से है जैसे सर्पगंधा (राऊवोल्फिया सपेंटाईना )जाति की अलग-अलग किस्मों से अलग-अलग सांद्रता वाला रेसर पिन नामक रसायन प्राप्त होता है जो औषधीय महत्व का होता है इसी तरह भारत में धान की 50,000 से अधिक व आम की 1000 से अधिक किसमें पाई जाती है |
जातीय विविधता (ethnic diversity) : यह विविधता जातीय स्तर पर होती है जैसे पूर्वी घाट की तुलना में पश्चिमी घाट में तरह-तरह की उभयचर जातियां है |
पारिस्थितिकीय विविधता (Ecological diversity) : पारिस्थितिक स्तर पर पाई जाने वाली विविधता पारिस्थितिक विविधता कहलाती है जैसे भारत में रेगिस्तान, वर्षा वन, पतझड़ वन आदि की पारी तंत्र विविधता नार्वे से अधिक है |
पृथ्वी और भारत में कितनी जातियां है :
IUCN (International Union for Conservation of Nature and Natural Resources) के आंकड़ों के अनुसार अभी तक 1.5 मिलियन अर्थार्थ 1500000 जातियां खोजी जा चुकी है ( 2004 के आंकड़ों के अनुसार) |
रॉबर्ट मेय के अनुसार 7 मिलियन ( 70 लाख) जातियां का आकलन हुआ है और इनमें से अभी तक केवल 20% जातियों को खोजा जा सका है |
विश्व में कुछ जातियों का 70% भाग जंतु जातियों वह 22 प्रतिशत भाग पादप प्रजातियों तथा शेष 8:00 प्रतिशत वन्यजीवों से भरा पड़ा है |
भारत विश्व का केवल 2.4 प्रतिशत घेरता है परंतु भारत की पारिस्थितिक विविधता ज्यादा होने से यहां जैव विविधता 8.1 प्रतिशत है भारत में लगभग 45,000 पादप प्रजातियां व इन से दोगुना जंतु जातियां खोजी जा चुकी है परंतु रॉबर्ट मेय के अनुसार भारत में 100000 से अधिक पादप व तीन लाख से अधिक जंतु जातियां खोजी जानी बाकी है |
वर्गिकी : जीव विज्ञान , विज्ञान की एक महत्वपूर्ण शाखा है जो जीवन के अध्ययन से सम्बंधित होती है। जीवन को सामान्यतया परिभाषित करना मुश्किल होता है लेकिन निर्जीव वस्तुओ से सजीवो को विभेदित करना आसान माना जाता है और इसी आधार पर जीवन को भौतिक रासायनिक अस्तित्व के रूप में परिभाषित किया गया है , जिसमे वृद्धि , गति , उत्तेजनशीलता और प्रजनन पाया जाता है। जीव विज्ञान में दो शाखाओ , वनस्पति शास्त्र और प्राणी शास्त्र को सम्मिलित किया गया है।
वनस्पति शास्त्र पादपो के अध्ययन से और प्राणी शास्त्र जन्तुओ के अध्ययन से सम्बंधित होता है।
जीवो को पहचानने और समूहों में रखने की कला , जिससे उनके विशिष्ट लक्षण और सम्बन्ध प्रदर्शित होते है , उसे जैविक वर्गीकरण कहा जाता है। वह वैज्ञानिक जो जीवो के वर्गीकरण के अध्ययन में योगदान देता है उसे सिस्टेमेटिस्ट या टेक्सोनोमिट कहते है और उनके विषय को सिस्टेमेटिक्स या टेक्सोनोमी कहा जाता है।
क्लासिकल वर्गिकी : उपलब्ध सूचनाओं के आधार पर वर्गिकी या वर्गीकरण किया जाता है और जीवो को उनकी उत्पत्ति , विकास और विभिन्नताओं के अनुसार वर्गीकृत किया जाता है वर्गीकरण के इन प्रयासों को क्लासिकल वर्गिकी कहा जाता है। वर्गिकी वैज्ञानिक उत्पत्ति , विकास , विभिन्नता और जीवो के वर्गीकरण के अध्ययन में व्यस्त है जिसे क्लासिकल वर्गिकी कहते है।
वर्गीकरण का इतिहास : जीवो के वर्गीकरण के बारे में हमारे पुराने वेदों और उपनिषदो में विस्तार से विवरण उपलब्ध है जैसा कि हमने पहले भी बताया है कि हमारे वैदिक साहित्य में लगभग 740 पौधों और लगभग 250 प्रकार के जंतुओं अ वर्णन किया गया है।
छान्दोग्य उपनिषद : इसमें जन्तुओ को तीन श्रेणियों में बाँटा गया है , विविपेरस जीवज , ओवीपेरस अण्डज और उद्भिज।
सुश्रुत संहिता : इसमें सभी पदार्थो को स्थावरा (गतिहिन जीव) जैसे पादप और जनगमा (गतिशील जीव) उदाहरण : जन्तुओ में वर्गीकृत किया गया है।
परासरा : एंजियोस्पर्म को द्विमात्रुका (द्विबीज पत्रियो ) और एकमात्रुका (एक बीज पत्री) में विभाजित किया गया है। इन्होने यह भी बताया कि द्विबीजपत्रियो में जालिका पराना होती है अर्थात जालिकावत शिरा विन्यास युक्त पत्तियाँ होती है। और एकबीजपत्री में मौन लपराना अर्थात समान्तर शिराविन्यास युक्त पत्तियाँ होती है।
हिप्पोक्रेटस् और अरस्तु : इन्होने अपने स्केला नेचुँरी में जन्तुओ को चार बड़े बड़े समूहों जैसे कीटो , पक्षियों , मछलियो और व्हेल्स में वर्गीकृत किया था।
परिचय : विभिन्न प्रकार के आवृतबीजी पौधों में पादप प्रारूपों की अनेक विविधताएँ पायी जाती है , जैसे अनेक आवृतबीजी पौधे तो वृक्ष स्वभाव प्रदर्शित करते और काष्ठीय होते है परन्तु बहुसंख्य आवृतबीजी सदस्य शाकीय और कोमल भी होते है। आवृतबीजी पौधों के विभिन्न समूहों की पहचान इनके पुष्पीय लक्षणों और फलों और बीजों के आधार पर की जाती है। जैसा कि हम जानते है आज विश्व में आवृतबीजी पौधों की लगभग 195000 प्रजातियाँ पायी जाती है , जिन्हें दो प्रमुख प्रभागों क्रमशः द्विबीजपत्री और एकबीजपत्री में विभेदीत किया जाता है। इनमें से द्विबीजपत्री पौधों में 240 कुलों और 155000 प्रजातियों के सदस्य और एकबीजपत्री पौधों में 45 कुलों और 40000 प्रजातियों के सदस्य सम्मिलित किये गए है।
एक प्रारुपिक आवृतबीजी पादप अथवा पुष्पधारी पौधे में सुस्पष्ट पादप अक्ष उपस्थित होता है। यह पादप अक्ष दो प्रमुख भागों में विभेदित होता है
(1) भूमिगत मूलतन्त्र (2) वायवीय प्ररोह तंत्र।
मूल तंत्र में मुख्यतया जड़ें और इनकी शाखाएँ पायी जाती है , जबकि प्ररोह तंत्र में तना , शाखाएँ , पत्तियाँ , कलिकाएँ , पुष्प और फलों की शामिल किया जा सकता है। आवृतबीजी पौधे के विभिन्न भागों को अंग के तौर पर निरुपित किया जा सकता है। पौधे के विभिन्न अंगों को सामान्यतया दो प्रमुख श्रेणियों में विभक्त किया गया है –
(A) कायिक या वर्धी अंग
(B) जनन अंग
कायिक अंगों जैसे जड़ , तना और पत्तियों का प्रमुख कार्य पौधे के लिए पोषण की व्यवस्था और इसे भूमि में अथवा मिट्टी में स्थिर करना होता है , वही दूसरी ओर जनन संरचनाएँ पौधे की वंशवृद्धि में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है , इनमें पुष्प , फल और बीज उल्लेखनीय है।
विभिन्न आवृतबीजी पौधों में कार्य और आवश्यकता के अनुसार उपर्युक्त संरचनाओं की आकृति , स्थिति और कार्यशैली में पर्याप्त विविधता पायी जाती है। अनेक उदाहरणों में तो कुछ कायिक संरचनाएं अत्यंत अल्प विकसित अथवा अनुपस्थित भी होती है। विभिन्न आवृतबीजियों के जीवन चक्र स्वभाव , आवास और प्रारूपों की विविधताओं का समग्र अध्ययन अग्र प्रकार से किया जा सकता है –
आमाप में विविधता (diversity of size)
अभी तक प्राप्त जानकारी के अनुसार सबसे छोटा आवृतबीजी पादप वोल्फिया है। यह एक जलीय पौधा है जो मुक्त प्लावी अवस्था में पाया जाता है। वोल्फिया के पादप शरीर में पर्णाभस्तंभ के रूप में एक छोटी , अण्डाकार , चपटी और पर्ण जैसी हरे रंग की संरचना पायी जाती है। इस जलोद्भिद पादप में जड़ें अनुपस्थित होती है और सम्पूर्ण पादप शरीर का व्यास लगभग 0.1 mm से लेकर 1.00 mm तक होता है।
सबसे बड़ा या ऊँचा वृक्ष कुल मिर्टेसी का सदस्य यूकेलिप्टस रेग्नेस है , जिसकी ऊँचाई लगभग 375 फीट (114 मीटर) तक होती है। बीजधारी पादपों में इसके बाद एक अनावृतबीजी वृक्ष सिकोइया सेम्परवाइरेन्स का उल्लेख किया जा सकता है जिसका ऊंचाई भी लगभग 112 मीटर तक पायी गयी है। वैसे भी आवृतबीजियों की तुलना में अधिक ऊँचे वृक्ष , अनावृतबीजी पादप समूह में पाए जाते है।
यदि सघनता और क्षेत्रफल के सन्दर्भ में आकलन किया जाए तो बरगद का वृक्ष आवृतबीजियो में सर्वाधिक सघन और घेरदार होता है , जो लम्बे चौड़े क्षेत्र में फैलाव लिए हुए पाया जाता है। इसकी तिरछी , ऊपर की ओर उठी हुई वायवीय शाखाएँ चहुँओर फैलती है। इससे उत्पन्न वायवीय स्तम्भ मूल फैलाव में विशेष रूप से सहायक होती है। ये अप्रस्थानिक जड़े वायवीय तनों या शाखाओं से उत्पन्न होती है और लटकती हुई निचे की तरफ वृद्धि करती है और अंत में जमीन में घुसकर एक मजबूत खम्भे के समान रचना निरुपित करती है जो बरगद वृक्ष को फैली हुई शाखाओं को दृढ़ता और मजबूती प्रदान करती है। अनेक उदाहरणों में इन स्तम्भीय जड़ों का बाहरी व्यास मुख्य तने के बराबर ही देखा गया है। इस तथ्य का आकलन कोलकाता और चेन्नई के प्रसिद्ध वानस्पतिक उद्यानों में पाए जाने वाले बरगद के वृक्षों को देखकर किया जा सकता है।
जैव विविधता के प्रतिरूप कारण , परितंत्र में महत्व :
[1]अक्षांशीय प्रवणता (Latitudinal gradient) :
भूमध्य रेखा के उत्तर व दक्षिण का 3.5 अक्षांश का क्षेत्र उष्णकटिबंधीय क्षेत्र कहलाता है यहां वर्षा अधिक होने से जैव विविधता ज्यादा होती है परंतु भूमध्य रेखा के दोनों ओर 66.5 डिग्री अक्षांश तक जाने पर शीतोष्ण कटिबंधीय क्षेत्र मिलता है यहां उष्णकटिबंधीय क्षेत्र से थोड़ी कम जैव विविधता मिलती है इसी तरह 90 डिग्री अक्षांश तक दुर्गों की ओर जाने पर शीत कटिबंधीय क्षेत्र में सबसे कम विविधता मिलती है |
अक्षांशीय प्रवणता को हम निम्न उदाहरण द्वारा समझ सकते हैं : दक्षिण अमेरिका के अमेजन उष्णकटिबंधीय वर्षा वनों की जैव विविधता सबसे अधिक होती है यहां 40000 पादप जातियां , 3000 मत्स्य , 1300 पक्षी , 427 स्तनधारी , 427 उभयचर , 378 सरीसृप तथा 125000 से अधिक अकशेरुकी जातियां पाई जाती हैं |
इसी तरह भूमध्य रेखीय देश कोलंबिया में 1400 पक्षी जातियां जबकि 40 डिग्री अक्षांश उत्तर में स्थित न्यूयॉर्क में 105 व 70 डिग्री अक्षांश उत्तर में स्थित ग्रीनलैंड में केवल 56 जातियां ही पाई जाती हैं |
भारत भी भूमध्य रेखा के समीप स्थित है इसलिए जहां 1200 पक्षी जातियां पाई जाती हैं |
उष्णकटिबंधीय क्षेत्र में जैव विविधता के कारण (causes of biodiversity in the tropical region) :
[1] अधिक उत्पादकता : सौर ऊर्जा अधिक होने से पादप अधिक प्रकाश संश्लेषण करते हैं अतः उत्पादकता ज्यादा होने से जैवविविधता भी ज्यादा होती है
[2] जातीय क्षेत्र संबंध : जर्मनी के प्रकृति विज्ञानी व भूगोल शास्त्री एलेग्जेंडर वॉन हगबॉल्ट ने बताया कि अन्वेषण क्षेत्र की सीमा बढ़ाने पर अनवेराण क्षेत्र की सीमा बढ़ाने पर जातियों की समृद्धि भी बढ़ती है |
जातीय समृद्धि वह क्षेत्र के बीच का संबंध निम्न समीकरण द्वारा दिखाते हैं
LogS = LogC + zLog A
जहां S = जातीय समृद्धि
A = क्षेत्र
Z = समात्रयन रेखा की ढाल (परिवर्तन गुणांक)
C = y- अंतः खंड
यदि बड़े क्षेत्र हो तो जातीय क्षेत्र संबंध की समात्रयनरेखा की ढलान एकदम तिरछी खड़ी हो जाती है और Z का मान 0.6-1.2 हो जाता है | जैसे उष्णकटिबंधीय वनों के फल हारी पक्षी वह स्तनधारियों के लिए रेखा की ढलान 1.15 होती है |
इस संदर्भ में तिरछी खड़ी ढलान का यह अर्थ है कि जितना बड़ा क्षेत्र होगा वहां जातियों की विविधता या समृद्धि उतनी ही ज्यादा होती है |
सामान्यतया छोटे क्षेत्रों के लिए z का मान 0.1 – 0.2 के आस-पास होता है |
जातीय विविधता का परितंत्र में महत्व (Importance of ethnic diversity in ecology) :
टिलमैन के अनुसार किसी क्षेत्र में जितनी ज्यादा जातीय विविधता होगी उस हिसाब से वहां उत्पादकता भी ज्यादा होगी और परितंत्र भी अधिक स्थाई होगा |
रिवेट पोवर परिकल्पना : स्टैनफोर्ड के पारिस्थितिकविद पॉल एहरलिक ने यह परिकल्पना दी जिसमें उन्होंने वायुयान को परितंत्र कहा और वायुयान में लगे कीलक ( रिवेट ) की तुलना जातियों से की उनके अनुसार अगर वायुयान में लगे रिवेटो को उसमें बैठे यात्री घर ले जाएं तो वायुयान उड़ने योग्य नहीं रह पाएगा इस परिकल्पना में रिवेट ले जाने को पारितंत्र में जातियों के लुप्त होने के रूप में समझाया गया है |
यदि यात्री रिवेट ले जाते रहे ( जातियां लुप्त होती रहे) तो वायुयान ( परितंत्र) नहीं चल पाएगा , वायुयान के पंखों का रिवेट का महत्व मुख्य जातियों की तरह ही होता है तथा इनके बिना वायुयान पारितंत्र बिल्कुल भी नहीं चल पाता |
प्रश्न 1 : यदि पृथ्वी पर 20000 चिट्ठी जातियों के स्थान पर केवल 15000 ही रहे तो हमारा जीवन किस प्रकार प्रभावित होगा ?
उत्तर : उन पदार्थों की मात्रा ज्यादा हो जाएगी जिन्हें कुछ विशिष्ट चींटी जातियां ही खाती है इससे खाद्य श्रंखला में विघ्न उत्पन्न होगा और हमारा जीवन प्रभावित होगा |
प्रश्न 2 : पृथ्वी पर चीटियों , बिटिल (भृंग ) , मत्स्य , और ऑर्किड की कितनी जातियां हैं ?
उत्तर : 20000 चीटियां की जातियां , 300000 भृंग , 28000 मत्स्य जातियां है |
जैव विविधता की क्षति (Biodiversity damage) :
IUCN (International Union for Conservation of Nature and Natural Resources) की लाल सूची ( विलुप्त प्राणियों की सूची) के 2004 के आंकड़ों के अनुसार पिछले 500 वर्षों में 784 जातियां ( 338 कशेरुकी , 359 अकशेरुकी , व 87 पादप जातियां) विलुप्त हो चुकी है |
नई विलुप्त जातियों में मौरीसस की ढोढो , रूस की स्टेलर समुद्री गाय , अफ्रीका की कवेगा , ऑस्ट्रेलिया की थाइलेसिन , जावा व केस्वियन के बाघ विलुप्ति के कगार पर है |
विश्व की 15500 से भी अधिक जातियां विलुप्ति के कगार पर है , इस समय 12% पक्षी , 33% स्तनधारी , 32 प्रतिशत उभयचर व 31 प्रतिशत आवृत्तबीजी पादप जातियां विलुप्त हो चुकी है |
जातियों का विलुप्त होना जातीय विलोपन कहलाता है पृथ्वी की उत्पत्ति से लेकर अब तक पांच बार जातियों का विलोपन हो चुका है मानव क्रियाकलापों के कारण 6 विलोपन 100 से 1000 गुना तेजी से हो रहा है |
जैव विविधता की क्षति अथवा जाति विलोपन का कारण :
आवासीय क्षति तथा विखंडन (Residential Damage and Fission) :
उष्णकटिबंधीय वर्षा वनों की क्षति आवासीय शक्ति का सबसे अच्छा उदाहरण हैएक समय वर्षा वन पृथ्वी के 14% क्षेत्र में फैले थे लेकिन अब 6% से अधिक क्षेत्र में भी नहीं है |
विशाल अगेजन वर्षा वन को सोयाबीन की खेती व जानवरों के चारागाहों के लिए काटकर साफ कर दिया गया है यह वन पृथ्वी के वायुमंडल को 20% से भी ज्यादा ऑक्सीजन प्रदान करते हैं |
(2) अतिदोहन (Overdose):
मानव द्वारा प्राकृतिक संपदा का अत्यधिक दोहन होने से पिछले 500 वर्षों में स्टेलर समुद्री गाय , पैसेंजर कबूतर आदि विलुप्त हो चुके हैं |
(3) विदेशी जातियों आक्रमण :
नील नदी की मछली नाइल पर्चको पूर्वी अफ्रीका की विक्टोरिया झील में डाला गया तो उस झील की सिकलिन मछलियां कि 200 से भी अधिक जातियां विलुप्त हो गई |
इसी तरह मछली पालन के उद्देश्य से लाई गई अफ्रीकन कैट फिश , कलैरियश , गैरिपाईनस मछलियां भारत की नदियों की कैटफ़िश मछलियों के लिए खतरा पैदा कर रही है |
(4) महाविलुप्तता (Extinction) :
जब एक मुख्य प्रजाति विलुप्त होती है तब उस पर आधारित या उस पर निर्भर जाती भी विलुप्त होने लगती है इसे सह विलोपन कहते हैं, जैसे एक परपोषी मछली के विलुप्त होने से उसके परजीवी भी विलुप्त हो जाते हैं |
सह विकसित परागणकारी सहोपकारिता :
एक पादप के विलोपन से परागकण कारी कीट का विलोपन सह विकसित परागणकारी सहोपकारिताका अच्छा उदाहरण है |
जैव विविधता को बचाने के लिए दो विधियां अपनाई जाती है
[1] स्वस्थानी संरक्षण (in situ conservation) :
इस तकनीक में जीव जंतुओं को उनके खुद के प्राकृतिक आवास में सुरक्षित रखा जाता है |
जैव विविधता हॉट विस्फोट (Biodiversity hot explosion) :
विचित्र जिले में बहुत सारी जातियां पाई जाती है और यह जातीय किसी अन्य स्थान पर नहीं मिलती सर्वप्रथम 25 हॉट विस्फोट थे परंतु अब विश्व में इनकी संख्या 34 है , भारत में 3 जैव विविधता है
i पश्चिमी घाट
ii श्रीलंका- इंडो बरगा
iii हिमालय
हॉट विस्फोट की विशेष सुरक्षा से जातियों के विलोपन को 30% कम किया जा सकता है |
भारत में जैव विविधता संपन्न क्षेत्रों के रूप में 14 जीव मंडल संरक्षित क्षेत्र 90 राष्ट्रीय उद्यान और 448 वन्यजीव अभयारण्य मौजूद है |
पवित्र उपवन :
मेघालय की खासी व जयतिया पहाड़ी, राजस्थान की अरावली पहाड़ियां , मध्य प्रदेश की सरगुजा , चंदा व बस्तर क्षेत्र पवित्र उपवन है | इन उपवनों के वृक्ष व वन्य जीव लोगों की धार्मिक मान्यताओं के कारण संरक्षित है इसलिए इन्हें पवित्र उपवन कहते हैं |
[2] बाह्य स्थाने संरक्षण (Protecting External Places) :
संकटग्रस्त जातियों के युग्मको को निम्न ताप परीक्षण ( क्रायोप्रिजर्वेशन) तकनीकों द्वारा लंबे समय तक परिरक्षित किया जा सकता है , परिरक्षित अंड युग्मको को नर युग्मको के साथ पात्रे निषेचन करवाया जा सकता है, इसी तरह पौधों के बीजों को बीज बैंक में रखा जा सकता है इस प्रकार के संरक्षण को बाह्य स्थाने संरक्षण कहते हैं |
वर्ष 1992 में जैव विविधता संरक्षण के लिए रियोडीजेनेरियो हमें हुई जैव विविधता पर पृथ्वी सम्मेलन और 2002 में दक्षिण अफ्रीका के दोहान्स वर्ग में हुए विश्व शिखर सम्मेलन में 190 देशों ने हिस्सा लिया जिसमें सन 2010 तक जैव विविधता की क्षति को कम करने की रापत ली गई |
प्रश्न 1 : जैव विविधता को हमें क्यों संरक्षित करना चाहिए ?
उत्तर : 1. संकीर्ण रूप में उपयोगी – दवाएं , रंग, कीटनाशी
व्यापक रूप से – ऑक्सीजन , परागण, पर्यटन
नैतिक रुप से
Thanks sir ji
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