कक्षा 11वी जीवविज्ञान अध्याय 10 कोशिका चक्र और कोशिका विभाजन संपूर्ण महत्वपूर्ण नोट्स हिन्दी में || Class 11TH Biology Chapter 10TH cell cycle and cell division All theory and Notes in Hindi-ULTIMATE STUDY SUPPORT

अध्याय 10
कोशिका चक्र और कोशिका विभाजन
10.1 कोशिका चक्र


10.2 सूत्री विभाजन अवस्था (M प्रावस्था)

10.3 सूत्री कोशिका विभाजन का महत्व

10.4 अर्धसूत्री विभाजन

क्या आप जानते हैं कि सभी जीव चाहे सबसे बड़ा ही क्यों न हो, जीवन का प्रारंभ एक कोशिका से करता है ? आप आश्चर्यचकित हो सकते हैं कि कैसे एक कोशिका से इतने बड़े जीव का निर्माण होता है वृद्धि व जनन सभी कोशिकाओं का ही नहीं? सभी सजीवों की विशेषता है सभी कोशिकाएं दो भागों में विभाजित होकर जनन करती हैं, जिसमें प्रत्येक पैतृक कोशिका विभाजित होकर दो नई संतति कोशिकाओं का निर्माण करती है ये नव निर्मित संतति कोशिकाएं स्वयं वृद्धि व विभाजन करती हैं एक पैतृक कोशिका और इसकी संतति वृद्धि व विभाजन के बाद एक नई कोशिकीय जनसंख्या का निर्माण करती है दूसरे शब्दों में, इस प्रकार की वृद्धि व विभाजन के कई चक्रों के बाद एक कोशिका से एेसी संरचना का निर्माण होता है, जिसमें कई लाख कोशिकाएं होती हैं

10.1 कोशिका चक्र
कोशिका विभाजन सभी जीवों के लिए एक अत्यंत महत्वपूर्ण प्रक्रिया है एक कोशिका विभाजन के दौरान डीएनए प्रतिकृति व कोशिका वृद्धि होती है ये सभी प्रक्रियाएं जैसे- कोशिका विभाजन, डीएनए प्रतिकृति और कोशिका वृद्धि एक दूसरे के साथ समायोजित होकर, इस प्रकार संपन्न होती हैं कि कोशिका विभाजन सही होता है व संतति कोशिकाओं में इनकी पैतृक कोशिकाओं वाला जीनोम होता हैैै घटनाओं का यह अनुक्रम जिसमें कोशिका अपने जीनोम का द्विगुणन व अन्य संघटकों का संश्लेषण और तत्पश्चात विभाजित होकर दो नई संतति कोशिकाओं का निर्माण करती हैं, इसे कोशिका चक्र कहते हैं यद्यपि कोशिका वृद्धि (कोशिकाद्रव्यीय वृद्धि के संदर्भ में) एक सतत प्रक्रिया है, जिसमें डीएनए का संश्लेषण कोशिका चक्र की किसी एक विशिष्ट अवस्था में होता है कोशिका विभाजन के दौरान, प्रतिकृति गुणसूत्र (डीएनए) जटिल घटना क्रम के द्वारा संतति केंद्रकों में वितरित हो जाते हैं ये सारी घटनाएं आनुवंशिक नियंत्रण के अंतर्गत होती हैं

10.1.1 कोशिका चक्र की प्रावस्थाएं
एक प्ररूपी (यूकेरियोटिक) चक्र का उदाहरण मनुष्य की कोशिका के संवर्द्धन में होता है, जो लगभग प्रत्येक चौबीस घंटे में विभाजित होती है (चित्र 10.1) यद्यपि कोशिका चक्र की यह अवधि एक जीव से दूसरे जीव एवं कोशिका से दूसरी कोशिका प्रारूप के लिए बदल सकती है उदाहरणार्थ- यीस्ट के कोशिका चक्र के पूर्ण होने में लगभग नब्बे मिनट लगते हैं I

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कोशिका चक्र की दो मूल प्रावस्थाएं होती हैंः

1. अंतरावस्था (Interphase)

2. एम प्रावस्था (सूत्री विभाजन) (Mitosis Phase)


सूत्री विभाजन (एम अवस्था) उस अवस्था को व्यक्त करता है, जिसमें वास्तव में कोशिका विभाजन या समसूत्री विभाजन होता है और अंतरावस्था दो क्रमिक एम प्रावस्थाओं के बीच की प्रावस्था को व्यक्त करता है यह ध्यान देने योग्य महत्व की बात है कि मनुष्य की कोशिका के औसतन अवधि चौबीस घंटे की कोशिका चक्र में कोशिका विभाजन सिर्फ लगभग एक घंटे में पूर्ण होता है, जिसमें कोशिका चक्र की कुल अवधि की 95 प्रतिशत से अधिक की अवधि अंतरावस्था में ही व्यतीत होती है

एम प्रावस्था का आरंभ केंद्रक के विभाजन (कैरियो काइनेसिस) से होता है,जो कि संगत संतति गणसूत्र के पृथक्करण (सूत्री विभाजन) के समतुल्य होता है और इसका अंत कोशिकाद्रव्य विभाजन (साइटोकाइनेसिस) के साथ होता है अंतरावस्था को विश्राम प्रावस्था भी कहते हैं यह वह प्रावस्था है जिसमें कोशिका विभाजन के लिए तैयार होती है तथा इस दौरान क्रमबद्ध तरीके से कोशिका वृद्धि व डीएनए का प्रतिकृतिकरण दोनों होते हैं

अंतरावस्था को तीन प्रावस्थाओें में विभाजित किया गया है ः

• पश्च सूत्री अंतरकाल प्रावस्था (G1 Phase)

• संश्लेषण प्रावस्था (S Phase)

• पूर्व-सूत्री विभाजन अंतरालकाल प्रावस्था (G2 Phase)

पश्च सूत्री अंतरकाल प्रावस्था (जी1फेस) समसूत्री विभाजन एवं डीएनए


पादप व प्राणी अपने जीवन काल कैसे वृद्धि करते हैं? क्या पौधों में सभी कोशिकाएं जीवन भर विभाजित होती रहती हैं? क्या आप सोचते हैं कि कुछ कोशिकाएं सभी पौधों एवं प्राणियों के जीवन में हमेशा विभाजित होती रहती हैं? क्या आप उच्चकोटि के पादप मेें उस ऊतक का नाम व स्थान बता सकते हैं, जिसकी कोशिकाएं जीवन भर विभाजित होती रहती हैं? शीर्षस्थ कोशिका मे पाए जाने वाली कोशिका जीवन भर विभाजित होती रहती है, इसलिए उन्हें विभज्योतिकी ऊतक कहते हैं क्या प्राणियों में भी एेसा ही विभज्योतिकी ऊतक मिलता है?

प्रतिकृतिकरण के बीच अंतराल को प्रदर्शित करता है जी1 प्रावस्था में कोशिका उपापचयी रूप से सक्रिय होती हैं एवं लगातार वृद्धि करती है, परंतु इसका डीएनए प्रतिकृति नहीं करता एस फेस या संश्लेषण प्रावस्था के दौरान डीएनए का निर्माण एवं इसकी प्रतिकृति होती है इस दौरान डीएनए की मात्रा दुगुनी हो जाती है यदि डीएनए की प्रारंभिक मात्रा को 2 C से चिह्नित किया जाए तो यह बढ़कर 4 C हो जाती है, यद्यपि गणसूत्र की संख्या में कोई वृद्धि नहीं होती यदि G1 प्रावस्था में कोशिका द्विगुणित है या 2n गुणसूत्र है तो S प्रावस्था के बाद भी इसकी संख्या वही रहती है, जो G1 अवस्था में थी अर्थात 2n होगी I

प्राणी कोशिका में S प्रावस्था के दौरान केंद्रक में डीएनए का जैसे ही प्रतिकृतिकरण प्रारंभ होता है वैसे ही तारककेंद्र का कोशिकाद्रव्य में प्रतिकृतिकरण होने लगता है कोशिका वृद्धि के साथ सूत्री विभाजन हेतु G2 प्रावस्था के दौरान प्रोटीन का निर्माण होता हैI

आप प्याज की जड़ की शीर्ष पर पाई जाने वाली कोशिका में सूत्री विभाजन का अध्ययन कर चुके होंगे इसकी प्रत्येक कोशिका में 16 गुणसूत्र होते हैं क्या आप बता सकते हैं कि G1 अवस्था, S एवं M प्रावस्था के बाद कोशिका में कितने गुणसूत्र होंगे? यदि कोशिका में M प्रावस्था के बाद डीएनए की मात्रा 2C है तो G1, S तथा G2 प्रावस्था के बाद, इसकी कितनी मात्रा होगी I

प्रौढ़ प्राणियों में कुछ कोशिकाएं विभाजित नहीं होती (जैसे हृदय कोशिका) और अनेक दूसरी कोशिकाएं यदा-कदा विभाजित होती है; एेसा तब ही होता है जब क्षतिग्रस्त या मृत कोशिकाओं को बदलने की आवश्यकता होती है ये कोशिकाएं जो आगे विभाजित नहीं होती है G1 अवस्था से निकलकर निष्क्रिय अवस्था में पहुँचती हैं, जिसे कोशिका चक्र की शांत अवस्था (GO) कहते हैं इस अवस्था की कोशिका उपापचयी रूप से सक्रिय होती है लेकिन यह विभाजित नहीं होती इनका विभाजन जीव की आवश्यकतानुसार होता है

प्राणियों में सूत्री विभाजन केवल द्विगुणित कायिक कोशिकाओं में ही दिखाई देता है हालाँकि, इसमें कुछ अपवाद हैं जहाँ (हैप्लाइड) अगुणित कोशिकाएँ समसूत्री विभाजन द्वारा विभाजित होती हैं, उदाहरण के लिए, नर मधुमक्खियाँ इसके विपरीत पादपों में सूत्री विभाजन अगुणित एवं द्विगुणित दोनों कोशिकाओं में दिखाई देता है पादपों में पीढ़ी एकांतरण (अध्याय 3) के उदाहरणों को याद करते हुए पादप जातियों और अवस्थाओं की पहचान करें, जिनमें अगुणित कोशिकाओं में सूत्री विभाजन दिखाई पड़ता है

10.2 सूत्री विभाजन अवस्था (M प्रावस्था)
यह कोशिका चक्र की सर्वाधिक नाटकीय अवस्था होती है, जिसमें कोशिका के सभी घटकों का वृहद् पुनर्गठन होता है जनक व संतति कोशिका में गुणसूत्रों की संख्या बराबर होती है, इसलिए इसे सम विभाजन कहते हैं सुविधा के लिए सूत्री विभाजन को केंद्रक विभाजन की चार अवस्थाओं में विभाजित किया गया है केरियोकाइनेसिस यहाँ यह समझ लेना आवश्यक है कि कोशिका विभाजन एक प्रगतिशील प्रक्रिया है और इसकी विभिन्न अवस्थाओं के बीच स्पष्ट रूप से विभाजन करना मुश्किल है केरियोकाइनेसिस को चार अवस्थाओं में विभाजित किया गया है ः

• पूर्वावस्था (Prophase)

• मध्यावस्था (Metaphase)

• पश्चावस्था (Anaphase)

• अंत्यावस्था (Telophase)

10.2.1 पूर्वावस्था
अंतरावस्था की S व G2 अवस्था के बाद पूर्वावस्था केरियोकाइनेसिस का पहला पड़ाव है S व G2 अवस्था में डीएनए के नए सूत्र बन तो जाते हैं, लेकिन आपस में गुँथे होने के कारण स्पष्ट नहीं होते गुणसूत्रीय पदार्थ के संघनन का प्रारंभ ही पूर्वावस्था की पहचान है गुणसूत्रीय संघनन की प्रक्रिया के दौरान ही गुणसूत्रीय द्रव्य स्पष्ट होने लगते हैं (चित्र 10.2 अ)

तारककाय व तारककेंद्र जिसका अतंरावस्था की S प्रावस्था के दौरान ही द्विगुणन हुआ था, अब कोशिका के विपरीत धुव्रों की ओर चलना प्रारंभ कर देता है I

पूर्वावस्था के पूर्ण होने के दौरान जो महत्वपूर्ण घटनाएं होती हैं उनकी निम्न विशेषताएं हैंः

• गुणसूत्रीय द्रव्य संघनित होकर ठोस गुणसूत्र बन जाता है गुणसूत्र दो अर्धगुणसूत्रों से बना होता है, जो आपस में सेंट्रोमियर से जुड़े रहते हैं

• अंतरावस्था के समय जिस तारककाय का द्विगुण हुआ है वह कोशिका में विपरीत ध्रुव की ओर जाने लगता है प्रत्येक तारककाय सूक्ष्म नलिकाओं को विकरित करता है, जिसे तारक (एस्टर) कहते हैं ये तन्तु व तारक मिलकर समसूत्री विभाजन यंत्र बनाते हैं पूर्वावस्था के अंत में यदि कोशिका को सूक्ष्मदर्शी से देखा जाता है तो इसमें गॉल्जीकाय, अंतर्दΡव्यी जालिका, केंद्रिका व केंद्रक आवरण दिखाई नहीं देता है

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10.2.2 मध्यावस्था
केंद्रक आवरण के पूर्णरूप से विघटित होने के साथ समसूत्री विभाजन की द्वितीय अवस्था प्रारंभ होती है, इसमें गुणसूत्र कोशिका के कोशिका द्रव्य में फैल जाते हैं इस अवस्था तक गुणसूत्रों का संघनन पूर्ण हो जाता है और सूक्ष्मदर्शी से देखने पर ये स्पष्ट रूप से दिखाई देने लगते हैं यही वह अवस्था है जब गुणसूत्रों की आकृति का अध्ययन बहुत ही सरल तरीके से किया जा सकता हैI

मध्यावस्था गुणसूत्र दो संतति अर्धगुणसूत्रों से बना होता है जो आपस में गुणसूत्रबिंदु से जुड़े होते हैं (चित्र 10.2ब) गुणसूत्रबिंदु के सतह पर एक छोटा बिंब आकार की संरचना मिलती है जिसे काइनेटोकोर कहते हैं सूक्ष्म नलिकाओं से बने हुए तर्कुतंतु के जुड़ने का स्थान ये संरचनाएं (काइनेटीकोर) हैं, जो दूसरी ओर कोशिका के केंद्र में स्थित गुणसूत्र से जुड़े होते हैं मध्यावस्था में सभी गुणसूत्र मध्यरेखा पर आकर स्थित रहते हैं प्रत्येक गुणसूत्र का एक अर्धगुणसूत्र एक ध्रुव से तर्कुतंतु द्वारा अपने काइनेटोकोर के द्वारा जुड़ जाता है, वहीं इसका संतति अर्धगुणसूत्र तर्कुतंतु द्वारा अपने काइनेटोकोर से विपरीत ध्रुव से जुड़ा होता है (चित्र 10.2 ब) मध्यावस्था में जिस तल पर गुणसूत्र पंक्तिबद्ध हो जाते हैं, उसे मध्यावस्था पट्टिका कहते हैं इस अवस्था की मुख्य विशेषता निम्नवत हैः

• तर्कुतंतु गुणसूत्र के काइनेटोकोर से जुड़े रहते हैं

• गुणसूत्र मध्यरेखा की ओर जाकर मध्यावस्था पट्टिका पर पंक्तिबद्ध होकर ध्रुवों से तर्कुतंतु से जुड़ जाते हैं

10.2.3 पश्चावस्था
पश्चावस्था के प्रारंभ में मध्यावस्था पट्टिका पर आए प्रत्येक गुणसूत्र एक साथ अलग होने लगते हैं, इन्हें संतति अर्धगुणसूत्र कहते हैं जो कोशिका विभाजन के बाद बनने वाले नए संतति केंद्रक का गुणसूत्र बनेंगे, वे विपरीत ध्रुवों की ओर जाने लगते हैं जब प्रत्येक गुणसूत्र मध्यांश पट्टिका से काफी दूर जाने लगता है तब प्रत्येक का गुणसूत्रबिंदु ध्रुवों की ओर होता है जो गुणसूत्रों को ध्रुवों की ओर जाने का नेतृत्व करते हैं, साथ ही गुणसूत्र की भुजाएं पीछे आती हैं (चित्र 10.2 स) पश्चावस्था की निम्न विशेषताएं है :

• गुणसूत्रबिंदु विखंडित होते हैं और अर्धगुणसूत्र अलग होने लगते हैं

• अर्धगुणसूत्र विपरीत ध्रुवों की ओर जाने लगते हैं

10.2.4 अंत्यावस्था
सूत्री विभाजन की अंतिम अवस्था के प्रारंभ में अंत्यावस्था गुणसूत्र जो क्रमानुसार अपने ध्रुवों पर चले गए हैं; असंघनित होकर अपनी संपूर्णता को खो देते हैं एकल गुणसूत्र दिखाई नहीं देता है व अर्धगुणसूत्र द्रव्य दोनों ध्रुवों की तरफ एक समूह के रूप में एकत्रित हो जाते हैं (चित्र 10.2 द) इस अवस्था की मुख्य घटनाएं निम्नवत हैंः

• गुणसूत्र विपरीत घ्रुवों की ओर एकत्रित हो जाते हैं और इनकी पृथक पहचान समाप्त हो जाती है

• गुणसूत्र समूह के चारों तरफ केंद्रक झिल्ली का निर्माण हो जाता है

• केंद्रिका, गॉल्जीकाय व अंतर्दΡव्यी जालिका का पुनर्निर्माण हो जाता है

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चित्र 10.2 स से य सूत्री विभाजन की अवस्थाओ का चित्रात्मक दृश्य


10.2.5 कोशिकाद्रव्य विभाजन (Cytokinesis)
सूत्री विभाजन के दौरान द्विगुणित गुणसूत्रों का संतति केंद्रकों में संपृथकन होता है जिसे केंद्रक विभाजन (Karyokinesis) कहते हैं कोशिका विभाजन संपन्न होने के अंत में कोशिका स्वयं एक अलग प्रक्रिया द्वारा दो संतति कोशिकाओं में विभाजित हो जाती है, इस प्रक्रिया को कोशिकाद्रव्य विभाजन कहते हैं (चित्र 10.2 य) प्राणी कोशिका का विभाजन जीवद्रव्यकला में एक खांच बनने से संपन्न होता है खांचों के लगातार गहरा होने व अंत में केंद्र में आपस में मिलने से कोशिका का कोशिकाद्रव्य दो भागों में बँट जाता है यद्यपि पादप कोशिकाएं जो अपेक्षाकृत अप्रसारणीय कोशिका भित्ति से घिरी होती हैं अतः इनमें कोशिकाद्रव्य विभाजन दूसरी भिन्न प्रक्रियाओं द्वारा संपन्न होता है पादप कोशिकाओं में नई कोशिका भित्ति निर्माण कोशिका के केंद्र से शुरू होकर बाहर की ओर पूर्व स्थित पार्श्व कोशिका भित्ति से जुड़ जाता है नई कोशिकाभित्ति निर्माण एक साधारण पूर्वगामी रचना से प्रारंभ होता है जिसे कोशिका पट्टिका कहते हैं, जो दो सन्निकट कोशिकाओं की भित्तियों के बीच मध्य पट्टिका को दर्शाती है कोशिकाद्रव्य विभाजन के समय कोशिका अंगक जैसे सूत्रकणिका (माइटोकॅाड्रिया) व प्लैस्टिड लवक का दो संतति कोशिकाओं में वितरण हो जाता है कुछ जीवों में केंद्रक विभाजन के साथ कोशिकाद्रव्य का विभाजन नहीं हो पाता है; इसके परिणामस्वरूप एक ही कोशिका में कई केंद्रक बन जाते हैं एेसी बहुकेंद्रकी कोशिका को संकोशिका कहते हैं (उदाहरणार्थ- नारियल का तरल भ्रूणपोश)

10.3 सूत्री कोशिका विभाजन का महत्व
सूत्री विभाजन या मध्यवर्तीय विभाजन केवल द्विगुणित कोशिकाओं में होता है यद्यपि कुछ निम्न श्रेणी के पादपों एवं सामाजिक कीटों में अगुणित कोशिकाएं भी सूत्री विभाजन द्वारा विभाजित होती हैं सूत्री विभाजन का एक प्राणी के जीवन में क्या महत्व है, इसको समझना काफी आवश्यक हैI

क्या आप कुछ एेसे उदाहरण जानते हैं जहाँ आपने अगुणित व द्विगुणित कीटों के बारे में पढ़ा है इस विभाजन से बनने वाली द्विगुणित संतति कोशिकाएं साधारणतया समान आनुवंशिक अवयव वाली होती है बहुकोशिकीय जीवधारियों की वृद्धि सूत्री विभाजन के कारण होती है कोशिका वृद्धि के परिणामस्वरूप केंद्रक व कोशिकाद्रव्य के बीच का अनुपात अव्यवस्थित हो जाता है इसलिए यह आवश्यक हो जाता है कि कोशिका विभाजित होकर केंद्रक कोशिकाद्रव्य अनुपात को बनाए रखे सूत्री विभाजन का एक महत्वपूर्ण योगदान यह है कि इसके द्वारा कोशिका की मरम्मत होती है अधिचर्म की उपरी सतह की कोशिकाएं, आहार नाल की भीतरी सतह की कोशिकाएं एवं रक्त कोशिकाएं निरंतर प्रतिस्थापित होती रहती हैI



10.4 अर्धसूत्री विभाजन
लैंगिक प्रजनन द्वारा संतति के निर्माण में दो युग्मकों का संयोजन होता है, जिनमें अगुणित गुणसूत्रों का एक समूह होता है युग्मक का निर्माण विशिष्ट द्विगुणित कोशिकाओं से होता है यह विशिष्ट प्रकार का कोशिका विभाजन है, जिसके द्वारा बनने वाली अगुणित संतति कोशिकाओं में गुणसूत्रों की संख्या आधी हो जाती है इस प्रकार के विभाजन को अर्धसूत्री विभाजन कहते हैं लैंगिक जनन करने वाले जीवधारियों के जीवन चक्र में अर्धसूत्री विभाजन द्वारा अगुणित अवस्था उत्पन्न होती है एवं निषेचन द्वारा द्विगुणित अवस्था पुनःस्थापित होती है पादपाें एवं प्राणियों में युग्मकजनन के दौरान अर्धसूत्री विभाजन होता है, जिसके परिणामस्वरूप अगुणित युग्मक उत्पन्न होते हैं अर्धसूत्री विभाजन की मुख्य विशेषताएं निम्नवत हैंः

• अर्धसूत्री विभाजन के दौरान केंद्रक व कोशिका विभाजन के दो अनुक्रमिक चक्र संपन्न होते हैं, जिसे अर्धसूत्री I व अर्धसूत्री II कहते हैं इस विभाजन में डीएनए प्रतिकृति का सिर्फ एक चक्र पूर्ण होता है

• S अवस्था में पैतृक गुणसूत्रों के प्रतिकृति के साथ समान संतति अर्धगुणसूत्र बनने के बाद अर्धसूत्री I अवस्था प्रारंभ होती है

• अर्धसूत्री II विभाजन में समजात गुणसूत्रों का युगलन व पुनर्योजन होता है

• अर्धसूत्री II के अंत में चार अगुणित कोशिकाएं बनती हैं अर्धसूत्री विभाजन को निम्न अवस्थाओं में वर्गीकृत किया गया है :

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10.4.1 अर्धसूत्री विभाजन I
पूर्वावस्था I : अर्धसूत्री विभाजन I की पूर्वावस्था की तुलना समसूत्री विभाजन की पूर्वावस्था से की जाए तो, यह अधिक लंबी व जटिल होती है गुणसूत्रों के व्यवहार के आधार पर इसे पाँच प्रावस्थाओं में उपविभाजित किया गया है जैसे-तनुपट्ट (लेप्टोटीन), युग्मपट्ट (जाइगोटीन), स्थूलपट्ट (पैकेटीन), द्विपट्ट (डिप्लोटीन) व पारगतिक्रम (डायकाइनेसिस)

साधारण सूक्ष्मदर्शी द्वारा देखने पर तनुपट्ट (लिप्टोटीन) अवस्था के दौरान गुणसूत्र धीरे-धीरे स्पष्ट दिखाई देने लगते हैं गुणसूत्र का संहनन (कॉम्पैक्शन) पूरी तनुपट्ट अवस्था के दौरान जारी रहता है इसके उपरांत पूर्वावस्था I का द्वितीय चरण प्रारंभ होता है, जिसे युग्मपट्ट कहते हैं इस अवस्था के दौरान गुणसूत्रों का आपस में युग्मन प्रारंभ हो जाता है और इस प्रकार की संबद्धता को सूत्रयुग्मन कहते हैं

युग्मपट्ट (जाइगोटीन) : इस प्रकार के गुणसूत्रों के युग्मों को समजात गुणसूत्र कहते हैं इस अवस्था का इलेक्टॅन सूक्ष्मलेखी यह दर्शाता है कि गुणसूत्र सूत्रयुग्मन के साथ एक जटिल संरचना का निर्माण होता है, जिसे सिनेप्टोनिमल सम्मिश्र कहते हैं जिस सम्मिश्र का निर्माण एक जोड़ी सूत्रयुग्मित समजात गुणसूत्रों द्वारा होता है, उसे युगली (bivalent) अथवा चतुष्क (tetrad) कहते हैं यद्यपि ये अगली अवस्था में अधिक स्पष्ट दिखाई पड़ते हैं पूर्वावस्था I की उपर्युक्त दोनों अवस्थाएं स्थूलपट्ट (Pachytene) अवस्था से अपेक्षाकृत कम अवधि की होती हैं इस अवस्था के दौरान प्रत्येक युगली गुणसूत्र के चार अर्ध गुणसूत्र चतुष्क के रूप में अधिक स्पष्ट दिखाई देने लगते हैं

इस अवस्था में पुनर्योजन ग्रंथिकाएं दिखाई देने लगती हैं जहाँ पर समजात गुणसूत्रों के असंतति अर्धगुणसूत्रों के बीच विनिमय (क्रासिंग ओवर) होता है विनिमय दो समजात गुणसूत्रों के बीच आनुवंशिक पदार्थों के आदान-प्रदान के कारण होता है विनिमय एंजाइम द्वारा नियंत्रित प्रक्रिया है व जो एंजाइम इस प्रक्रिया में भाग लेता है, उसे रिकाम्बीनेज कहते हैं दो गुणसूत्रों में आनुवंशिक पदार्थों का पुनर्योजन जीन विनिमय द्वारा अग्रसर होता है समजात गुणसूत्रों के बीच पुनर्योजन स्थूलपट्ट अवस्था के अंत तक पूर्ण हो जाता है, जिसके परिणामस्वरूप विनिमय स्थल पर गुणसूत्र जुड़े हुए दिखाई पड़ते हैंI

द्विपट्ट (डिप्लोटीन) के प्रारंभ में सिनेप्टोनीमल सम्मिश्र का विघटन हो जाता है और युगली के समजात गुणसूत्र विनिमय बिंदु के अतिरिक्त एक दूसरे से अलग होने लगते हैं विनिमय बिंदु पर X आकार की संरचना को काएज्मेटा कहते हैं कुछ कशेरुकी प्राणियों के अडंकों में द्विपट्ट महीनों या वर्षों बाद समाप्त होती हैI

अर्धसूत्री पूर्वावस्था I की अंतिम अवस्था पारगतिक्रम (डायाकाइनेसिस) कहलाती है जिसमें काएज्मेटा का उपांतीभवन हो जाता है, जिसमें काएज्मेटा का अंत होेने लगता है इस अवस्था में गुणसूत्र पूर्णतया संघनित हो जाते हैं व तर्कुतंतु एकत्रित होकर समजात गुणसूत्रों को अलग करने में सहयोग प्रदान करते हैं पारगतिक्रम के अंत तक केंद्रिका अदृश्य हो जाती है और केंद्रक-आवरण झिल्ली भी विघटित हो जाता है पारगतिक्रम मध्यावस्था की ओर पारगमन को निरूपित करता हैI

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चित्र 10.3 अर्द्धसूत्रण की अवस्थाएं

मध्यावस्था I : युगली गुणसूत्र मध्यरेखा पट्टिका पर व्यवस्थित हो जाते हैं
(चित्र 10.3) विपरीत ध्रुवों के तर्कुतंतु की सूक्ष्मनलिकाएं समजात गुणसूत्रों के जोड़ाें के काइनेटोकोर से चिपक जाती हैं

पश्चावस्था I : समजात गुणसूत्र पृथक् हो जाते हैं, जबकि संतति अर्धगुणसूत्र गुणसूत्रबिंदु से जुड़े रहते हैं (चित्र 10.3)

अंत्यावस्था I : इस अवस्था में केंद्रक आवरण व केंद्रिक पुनः स्पष्ट होने लगते हैं, कोशिकाद्रव्य विभाजन शुरू हो जाता है और कोशिका की इस अवस्था को कोशिका द्विक कहते हैं (चित्र 10.3) यद्यपि बहुत से मामलों में गुणसूत्र का कुछ छितराव हो जाता है जबकि अंतरावस्था केंद्रक में पूर्णतया फैली अवस्था में नहीं मिलते हैं दो अर्धसूत्री विभाजन के बीच की अवस्था को अंतरालावस्था (इंटरकाइनेसिस) कहते हैं और यह सामान्यतया कम समय के लिए होती है इसमें डी.एन.ए. का द्विगुणन नहीं होता है उसके बाद पूर्वावस्था II आती है जो पूर्वावस्था I से काफी सरल होती है



10.4.2 अर्धसूत्री विभाजन II
पूर्वावस्था II : अर्धसूत्री विभाजन II गुणसूत्र के पूर्ण लंबा होने के पहले व कोशिकाद्रव्य विभाजन के तत्काल बाद प्रारंभ होता है अर्धसूत्री विभाजन I के विपरीत अर्धसूत्री विभाजन II सामान्य सूत्री विभाजन के समान होता है पूर्वावस्था II के अंत तक केंद्रक आवरण अदृश्य हो जाता है (चित्र 10.4) गुणूसत्र पुनः संहनित हो जाते हैं

मध्यावस्था II : इस अवस्था में गुणसूत्र मध्यांश पर पंक्तिबद्ध हो जाते हैं और विपरीत ध्रुवों की तर्कुतंतु की सूक्ष्मनलिकाएं, इनके संतति अर्धगुणसूत्र के काइनेटोकोर से चिपक जाती हैं (चित्र 10.4)

पश्चावस्था II : इस अवस्था में गुणसूत्रबिंदु अलग हो जाते हैं और इनसे जुड़े संतति अर्धगुणसूत्र काइनेटोकोर से जुड़ी हुयी सूक्ष्म नलिकाओं के छोटा होने से कोशिका के विपरीत ध्रुवों की ओर चले जाते हैं (चित्र 10.4)

अंत्यावस्था II : यह अवस्था अर्धसूत्री विभाजन की अंतिम अवस्था है, जिसमें गुणसूत्रों के दो समूह पुनः केंद्रक आवरण द्वारा घिर जाते हैं कोशिकाद्रव्य विभाजन के उपरांत चार अगुणित संतति कोशिकाओं का कोशिका चतुष्टय बन जाता है (चित्र 10.4)

अर्धसूत्री विभाजन एक एेसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा लैंगिक जनन करने वाले जीवों की प्रत्येक जाति में विशिष्ट गुणसूत्रों की संख्या पीढ़ी दर पीढ़ी संरक्षित रहती है यद्यपि विरोधाभासी प्रक्रिया के परिणाम स्वरूप गुणसूत्रों की संख्या आधी हो जाती है इसके द्वारा जीवधारियों की जनसंख्या में एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक आनुवंशिक विभिन्नताएं बढ़ती जाती है विकास प्रक्रिया के लिए विभिन्नताएं अत्यंत महत्वपूर्ण हैं

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चित्र 10.4 अर्द्धसूत्रण की अवस्थाएं

सारांश
कोशिका सिद्धांत के अनुसार एक कोशिका का निर्माण पूर्ववर्ती कोशिका से होता है इस प्रक्रिया को कोशिका विभाजन कहते हैं लैंगिक जनन करने वाले किसी भी जीवधारी का जीवन चक्र एक कोशिकीय युग्मनज (जाइगोट) से प्रारंभ होता है कोशिका विभाजन जीवधारी के वयस्क बनने के बाद भी रुकता नहीं है; बल्कि यह उसके जीवन भर चलता रहता है उन अवस्थाओं को जिनके अंतर्गत कोशिका एक विभाजन से दूसरे विभाजन की ओर गुजरती है, उसे कोशिका चक्र कहते हैं कोशिका चक्र में दो प्रावस्थाएं होती हैं (1) अंतरावस्था- कोशिका विभाजन की तैयारी की प्रावस्था तथा (2) सूत्री विभाजन- कोशिका विभाजन का वास्तविक समय अंतरावस्था को पुनः G1, S व G2 प्रावस्थाओं में विभाजित किया गया है G1 प्रावस्था में कोशिका सामान्य उपापचयी क्रिया संपन्न करते हुए वृद्धि करती है इस अवस्था में अधिकांश अंगकाें का द्विगुणन होता है S प्रावस्था में डीएनए प्रतिकृति व गुणसूत्र द्विगुणन होता है G2 प्रावस्था में कोशिकाद्रव्य की वृद्धि होती है सूत्री विभाजन को चार अवस्थाओं में विभाजित किया गया है जैसे पूर्वावस्था, मध्यावस्था, पश्चावस्था व अंत्यावस्था पूर्वावस्था में गुणसूत्र संघनित होने लगते हैं साथ ही तारककेंद्र विपरीत ध्रुवों की ओर चले जाते हैं केंद्रक आवरण व केंद्रिक विलोपित हो जाते हैं व तर्कुतंतु दिखना प्रारंभ हो जाते हैं मध्यावस्था में गुणसूत्र मध्य पट्टिका पर पंक्तिबद्ध हो जाते हैं पश्चावस्था के दौरान गुणसूत्रबिंदु विभाजित हो जाते हैं और अर्धगुणसूत्र विपरीत ध्रुवों की ओर चलना प्रारंभ कर देते हैं अर्धगुणसूत्राें के ध्रुवों पर पहुँचने के बाद गुणसूत्रों का लंबा होना प्रारंभ हो जाता है, व केंद्रिक तथा केंद्रक आवरण पुनः स्पष्ट होने लगते हैं यह अवस्था अंत्यावस्था कहलाती है केंद्रक विभाजन के बाद कोशिकाद्रव्य का विभाजन होता है, इसे कोशिकाद्रव्य विभाजन कहते हैं अतः सूत्रीविभाजन को समविभाजन भी कहते हैं, जिसके द्वारा संतति कोशिका में पितृकोशिकाओं के समान गुणसूत्रों की संख्या बरकरार रहती है

सूत्री विभाजन के विपरीत अर्धसूत्री विभाजन उन द्विगुणित कोशिकाओं में होता है, जो युग्मक निर्माण के लिए निर्धारित होती हैं इस विभाजन को अर्धसूत्री विभाजन भी कहते हैं इस विभाजन के बाद बनने वाले युग्मकों में गुणसूत्रों की संख्या आधी हो जाती है लैंगिक जनन में युग्मकों के संगलन से पैतृक कोशिका में पाए जाने वाले गुणसूत्रों की संख्या की वापसी हो जाती है अर्धसूत्री विभाजन को दो अवस्थाओं में विभाजित किया गया है अर्धसूत्री विभाजन I व अर्धसूत्री विभाजन II, प्रथम अर्धसूत्री विभाजन में समजात गुणसूत्र जोड़े युगली बनाते हैं तथा इनमें विनिमय होता है अर्धसूत्री विभाजन I की पूर्वावस्था लंबी होती है व पाँच उपअवस्थाओं में विभाजित की गई है ये अवस्थाएं है- तनुपट्ट (लेप्टोटीन), युग्मपट्ट (जाइगोटीन), स्थूलपट्ट (पैकीटीन), द्विपट्ट (डिप्लोटीन) व पारगतिक्रम (डाया काइनेसिस) मध्यावस्था- I के समय युगली मध्यावस्था पट्टिका पर व्यवस्थित हो जाते हैं इसके पश्चात पश्चावस्था I में समजात गुणसूत्र अपने दोनों अर्धगुणसूत्रों के साथ विपरीत ध्रुवों की ओर चले जाते हैं प्रत्येक ध्रुव जनक कोशिका की तुलना में आधे गुणसूत्र प्राप्त करता है अंत्यावस्था I के समय केंद्रक आवरण व केंद्रिक पुनः दिखाई देने लगते हैं अर्धसूत्री विभाजन II सूत्री विभाजन के समान होता है पश्चावस्था II के समय स्तति अर्धगुणसूत्र आपस में अलग हो जाते हैं इस प्रकार अर्धसूत्री विभाजन के पश्चात चार अगुणित कोशिकाएं बनती है


अभ्यास
1. स्तनधारियों की कोशिकाओं की औसत कोशिका चक्र अवधि कितनी होती है?

2. जीवद्रव्य विभाजन व केंद्रक विभाजन में क्या अंतर है?

3. अंतरावस्था में होने वाली घटनाओं का वर्णन कीजिए

4. कोशिका चक्र का Go (प्रशांत प्रावस्था) क्या है?

5. सूत्री विभाजन को सम विभाजन क्यों कहते हैं?

6. कोशिका चक्र की उस अवस्था का नाम बताएं, जिसमें निम्न घटनाएं संपन्न होती हैं-

(i) गुणसूत्र तर्कु मध्यरेखा की तरफ गति करते हैं

(ii) गुणसूत्रबिंदु का टूटना व अर्धगुणसूत्र का पृथक् होना

(iii) समजात गुणसूत्रों का आपस में युग्मन होना

(iv) समजात गुणसूत्रों के बीच विनिमय का होना

7. निम्न के बारे में वर्णन करें

(i) सूत्रयुग्मन (ii) युगली (iii) काएज्मेटा

8. पादप व प्राणी कोशिकाओं के कोशिकाद्रव्य विभाजन में क्या अंतर है?

9. अर्धसूत्री विभाजन के बाद बनने वाली चार संतति कोशिकाएं कहाँ आकार में समान व कहाँ भिन्न आकार की होती हैं?

10. सूत्री विभाजन की पश्चावस्था अर्धसूत्री विभाजन की पश्चावस्था I में क्या अंतर है?

11. सूत्री व अर्धसूत्री विभाजन में प्रमुख अंतरों को सूचीबद्ध करें?

12. अर्धसूची विभाजन का क्या महत्व है?

13. अपने शिक्षक के साथ निम्न के बारे में चर्चा करे-

(i) अगुणित कीटों व निम्न श्रेणी के पादपों में कोशिका विभाजन कहाँ संपन्न होता है?

(ii) उच्च श्रेणी पादपों की कुछ अणुणित कोशिकाओं में कोशिका विभाजन कहाँ नहीं
होता है?

14. क्या S प्रावस्था में बिना डीएनए प्रतिकृति के सूत्री विभाजन हो सकता है?

15. क्या बिना कोशिका विभाजन के डीएनए प्रतिकृति हो सकती है?

16. कोशिका विभाजन की प्रत्येक अवस्थाओं के दौरान होने वाली घटनाओं का विश्लेषण करें और ध्यान दें कि निम्न लिखित दो प्राचलों में कैसे परिवर्तन होता है?

(i) प्रत्येक कोशिका की गुणसूत्र संख्या (N)

(ii) प्रत्येक कोशिक में डीएनए की मात्रा (C)
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