कक्षा 09वी हिंदी ईंटो की नीव का संपूर्ण महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर CLASS 09TH Hindi brick foundation All Questions and Answer in Hindi - ULTIMATE STUDY SUPPORT

 वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1.
नींव की ईंटों को धन्य क्यों माना गया है?
(क) लाल रंग होने के कारण
(ख) सुन्दर होने के कारण
(ग) आधारशिला बनने के कारण
(घ) ठोस होने के कारण।
उत्तर:
(ग) आधारशिला बनने के कारण
प्रश्न 2.
सुन्दर सृष्टि हमेशा क्या खोजती है?
(क) अभ्यास
(ख) दौलत
(ग) बलिदान
(घ) मक्कारी
उत्तर:
(ग) बलिदान
 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 3.
लेखक के अनुसार देश को आजाद कराने का श्रेय किसे मिलना चाहिए?
उत्तर:
लेखक के अनुसार देश को आजाद कराने का श्रेय इतिहास में स्थान पाने वाले तथा न पा सकने वाले, सभी बलिदानी लोगों को मिलना चाहिए।
प्रश्न 4.
हमें सत्य की खोज के लिए किस ओर ध्यान देने के लिए लेखक ने प्रेरित किया है?
उत्तर:
लेखक ने सत्य की खोज के लिए हमें अज्ञात बलिदानी लोगों को सामने लाने और उन्हें उचित सम्मान दिलाने की ओर धा यान देने के लिए प्रेरित किया है।
प्रश्न 5.
नींव की ईंट और कँगूरा किन-किन लोगों के सूचक हैं?
उत्तर:
देश की आजादी के लिए आधारशिला बनकर अज्ञात रहते हुए नि:स्वार्थ भाव से बलिदान होने वालों को ‘नींव की ईंट’ तथा ऊँचे पदों पर सुशोभित और प्रशंसा पाने वालों को ‘कंगूरा’ कहा गया है।
प्रश्न 6.
निम्न शब्दों के अर्थ बताइए
(क) निर्वाण – निर्माण
(ख) आवरण – आमरण
(ग) कामना – वासना
(घ) इमारत – इबारत
उत्तर:
(क) निर्वाण – मुक्ति, मृत्यु              निर्माण – रचना, सृष्टि
(ख) आवरण – पर्दा, बाहरी रूप     आमरण – मृत्यु होने तक
(ग) कामना – इच्छा                      वासना – तीव्र इच्छा
(घ) इमारत – भवन                      इबारत – लेख
 लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 7.
“हम जिसे देख नहीं सके, वह सत्य नहीं है, यह मूढ़ धारणा है।” लेखक ने ऐसा क्यों कहा?
उत्तर:
देश की आजादी के लिए अपना तन, मन और धन न्योछावर कर देने वाले ऐसे अनेक देशभक्त हुए हैं जिनका इतिहास में वर्णन नहीं मिलता। लेकिन इससे उनके त्याग और बलिदान को असत्य नहीं माना जा सकता। जिसे हम देख नहीं पाएँ उसे असत्य मान लेना मूर्खता है। हमें सत्य को स्वयं जानना और जनता के सामने लाना चाहिए ताकि उन अज्ञात बलिदानियों को उचित सम्मान मिल सके।
प्रश्न 8.
‘कॅगूरा बनने की होड़ा-होड़ी मची है।” लेखक ने इस कथन के माध्यम से क्या इंगित किया है?
उत्तर:
इस कथन द्वारा लेखक ने भारतीय समाज की वर्तमान अवस्था पर चोट की है। आज चारों ओर पद, प्रतिष्ठा, नेतृत्व और सुख-सुविधाएँ पाने के लिए होड़ मची है। कोई भी व्यक्ति नि:स्वार्थ भाव से देश की उन्नति में भाग लेना नहीं चाहता। नींव की ईंट कोई बनना नहीं चाहता सब गूरा बनना चाहते हैं। इसका परिणाम सामने है। भ्रष्टाचार, अपराध, द्वेष बढ़ रहे हैं। राजनेताओं के हठ और सत्ता के लालच से देश की प्रगति में बाधा आ रही है।
प्रश्न 9.
“सुन्दर सृष्टि हमेशा बलिदान खोजती है।” इस कथन का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
किसी भी सुन्दर वस्तु का निर्माण करने के लिए किसी न किसी वस्तु या व्यक्ति का बलिदान (उपयोग) आवश्यक होता है। अगर कोई सुन्दर भवन बनाना है तो उसकी नींव में लगाने को कुछ सबसे अच्छी ईंटें गड्ढे में दबानी पड़ती हैं। इसी प्रकार अगर किसी देश को फिर से ऊँचा उठाना है तो कुछ देशभक्त, त्यागी लोगों को आगे आकर अपना तन, मन और धन देश की सेवा में समर्पित करना होता है। इस प्रकार ईंटें हों या देशप्रेमी दोनों के बलिदान से ही दो सुन्दर वस्तुएँ साकार हो पाती हैं।
 निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 10.
“उदय के लिए आतुर हमारा समाज चिल्ला रहा है-हमारी नींव की ईंट किधर है?” कथन के आलोक में वर्तमान में समाज की युवाओं से क्या अपेक्षा है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
देश के वर्तमान परिवेश पर लेखक की यह टिप्पणी बड़ी सटीक और मार्मिक है। आज स्वार्थपरता और पदलोलुपता से देश का सामाजिक और राजनीतिक क्षेत्र प्रदूषित है। चारों ओर उच्च पदों को हथियाने की जोड़-तोड़ और होड़ मची हुई है। कोई भी नि:स्वार्थ भाव से देश के नव-निर्माण में योगदान करना नहीं चाहता। हर व्यक्ति विज्ञापन, प्रतिष्ठा और प्रशंसा का भूखा है। ऐसी विषम स्थिति में लेखक को देश के युवावर्ग से ही सच्चे योगदान की आशा है। देश के लाखों गाँवों, हजारों नगरों और हजारों उद्योगों का पुनरुत्थान और नव-निर्माण कर पाना किसी सरकार के वश की बात नहीं।
केवल ऐसे देशप्रेमी और नि:स्वार्थी युवक ही इतने बड़े अभियान को संचालित करते हुए सफल बना सकते हैं जिनके हृदयों में देश को फिर से उन्नति के शिखर पर ले जाने की भावना उमड़ रही हो। जिनको किसी से प्रशंसा पाने की आकांक्षा न हो, जो हर प्रकार की गुटबाजी तथा दलबंदी से दूर हों तथा जिनके मन में उच्च पद, प्रतिष्ठा और प्रतिदान की अभिलाषा न हो। देश का उज्ज्वल भविष्य ऐसे ही नौजवानों पर निर्भर है।
प्रश्न 11.
नींव की ईंट’ पाठ के आधार पर नींव की ईंट के लक्ष्यार्थ को स्पष्ट कीजिए।’
उत्तर:
‘नव की ईंट’ पाठ में लेखक ने नव की ईंट को नि:स्वार्थ त्याग और बलिदान का प्रतीक बताया है। जब किसी सुन्दर भवन पर मनुष्य की दृष्टि पड़ती है, तो वह उसकी विशालता, भव्यता, कलात्मकता आदि में उलझकर रह जाता है। उसका ध्यान उस विशाल और सुन्दर भवन को अपनी छाती पर सम्हालने वाली नींव की ओर नहीं जाता। इस नींव पर ही भवन का होना और न होना निर्भर होता है। नव के विचलित होते ही भवन का सारा सौन्दर्य धराशायी हो जाता है। नींव में गड़ने वाली ईंटों का कोई अपना स्वार्थ या लाभ नहीं होता।
वे तो इस जिन्दगी भर की कैद को इसलिए स्वीकार करती हैं कि संसार को एक भव्य-भवन की सौगात मिले। उनके ऊपर स्थित उनके साथियों को, मुक्त वायु और प्रकाश मिलता रहे। इस प्रकार नव की ईंट परहित और त्याग को अनुपम प्रतीक है। लेखक ने न केवल भवन-निर्माण में अपितु राष्ट्रनिर्माण में भी नींव की ईंट के महत्व पर प्रकाश डाला है। जो लोग प्रसिद्धि और प्रशंसा की चिन्ता किए बिना सर्वप्रथम देश की आजादी के लिए बलिदान हो गए, वे नींव की ईंटें ही तो थे।
अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्नोत्तर 
प्रश्न 1.
किसी सुन्दर भवन को देखते समय लोगों का ध्यान किस पर नहीं जाता है?
उत्तर:
किसी सुन्दर भवन को देखते समय लोगों का ध्यान उसकी नींव में लगी हुई ठोस आधार बनी हुई ईंटों की ओर नहीं जाता।
प्रश्न 2.
“वह ईंट जो जमीन में इसलिए गड़ गई” पंक्ति से लेखक का क्या आशय है?
उत्तर:
इस पंक्ति द्वारा लेखक ने हमें बलिदानी अज्ञात देशप्रेमियों को प्रकाश में लाने और सम्मानित करने की प्रेरणा दी है।
प्रश्न 3.
एक सुन्दर समाज बनाने के लिए किनके बलिदान की आवश्यकता होती है?
उत्तर:
सुन्दर समाज के निर्माण के लिए समाज के कुछ तपे-तपाये नि:स्वार्थी लोगों के मूक बलिदान की आवश्यकता होती है।
प्रश्न 4.
“सदियों के बाद नए समाज की सृष्टि किए जाने” का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
हमारे देश ने सैकड़ों वर्षों तक विदेशी शासन में रहने के बाद स्वतन्त्रता प्राप्त की है और अब हमें देश में एक नए समाज की रचना करनी है।
प्रश्न 5.
वर्तमान स्थिति में आप क्या बनना चाहेंगे, नींव की ईंट’ या ‘कंगूरा’ ? लिखिए।
उत्तर:
कँगूरा बनने का मार्ग नव की ईंट बनने से ही शुरू होता है। अत: हमें नींव की ईंट बनने को भी तैयार रहना होगा।
प्रश्न 6.
बेनीपुरी जी के अनुसार संसार के हर सुन्दर निर्माण में किसकी आवश्यकता होती है ?
उत्तर:
बेनीपुरी जी के अनुसार संसार के हर सुन्दर निर्माण में किसी न किसी व्यक्ति या वस्तु के त्याग और बलिदान की आवश्यकता होती है।
लघूत्तरात्मक प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
‘नींव की ईंट’ निबन्ध में लेखक ने ‘किन्तु धन्य है वह ईंट’ यह भवन की किस ईंट के बारे में कहा है और क्यों?
उत्तर:
लेखक ने यह भवन की नँव में लगने वाली ईंट के लिए कहा है। यद्यपि भवन के कंगूरे में लगने वाली ईंट भी धन्य है, क्योंकि उसे काट-छाँटकर सुन्दर आकार देकर भवन के ऊपर सजाया जाता है किन्तु नींव की ईंट तो सारे भवन का आधार होती है। पूरा भवन उसी पर टिका रहता है। नींव की ईंट तो सदा के लिए धरती में समा जाती है। उसी के बलिदान से कंगूरे की ईंट सबकी प्रशंसा पाती रहती है। इसीलिए लेखक ने उसे और भी धन्य कहा है।
प्रश्न 2.
नींव की ईंट यह जानते हुए भी कि नींव में गड़ने पर उसका बाहरी जगत् से नाता टूट जाएगा और उसकी उपेक्षा होगी, फिर भी वह क्यों नींव में गड़ना स्वीकार करती है?
उत्तर:
नींव की ईंट’ एक त्याग और बलिदान भरे जीवन का प्रतीक है। लेखक ने नींव की ईंट के माध्यम से समाज या देश के हित में अपने को चुपचाप खपा देने वाले देशभक्तों की त्याग-भावना को व्यक्त कराया है। नींव की ईंट, वह ईंट होती है जो संसार को एक सुन्दर रचना प्रदान करने के लिए जमीन में दब जाना स्वीकार करती है। वह इसलिए धरती में गुमनाम हो जाती है कि उसकी मजबूती भवन को लम्बी अग्यु और सुरक्षा देगी। वह इसलिए सात हाथ नीचे दबना अंगीकार करती है कि उसके ऊपर लगी ईंटें स्वच्छ वायु और प्रशंसा का आनन्द पाएँ।
प्रश्न 3.
यदि देश के नौजवान नींव की ईंट’ बनने को तैयार हों तो देश के प्रौढ़ लोगों की क्या भूमिका होनी चाहिए? नींव की ईंट’ निबन्ध को ध्यान में रखते हुए उत्तर दीजिए।
उत्तर:
आज हर प्रौढ़ और वृद्ध, जवानों को उनके कर्तव्यों का स्मरण करा रहा है। युवाओं से बड़ी-बड़ी अपेक्षाएँ की जा रही हैं। यदि देश के युवक अपनी जिम्मेदारियों को उठाने को आगे आएँ तो फिर देश के प्रौढ़ और वृद्धों का दायित्व क्या होना चाहिए? निश्चय ही यह विचारणीय प्रश्न है। बड़े लोगों का कर्तव्य है कि वे युवाओं का सही मार्गदर्शन करें। उनकी शक्ति और प्रतिभा का अपने स्वार्थ के लिए प्रयोग न करें। उनको बड़ी से बड़ी जिम्मेदारियाँ सँभालने के लिए प्रशिक्षित करें। उन्हें अधिक से अधिक मौके दें।
प्रश्न 4.
‘ईसाई धर्म उन्हीं के पुण्य-प्रताप से फल-फूल रहा है।’ लेखक ईसाई धर्म के प्रचार-प्रसार का श्रेय किन्हें देना चाहता है?
उत्तर:
सामान्यतः लोगों की मान्यता है कि ईसा के बलिदान ने ईसाई धर्म को आसमान की बुलन्दियों तक पहुँचा दिया। यह ईसा की त्याग-तपस्या का ही परिणाम है कि संसार में ईसाई धर्म अमर है। किन्तु लेखक की मान्यता है कि ईसाई धर्म उन अनाम एवं अज्ञात धर्म-प्रचारकों के पुण्य-प्रताप से फला-फूला है, जिन्होंने ईसा के सन्देश को जन-जन तक पहुँचाने में अपने प्राण निछावर कर दिए। उनमें से अनेक जंगलों में भटकते हुए जंगली जानवरों के शिकार बन गए, कुछ विपरीत परिस्थितियों में भूखे-प्यासे मर गए और कुछ ने विरोधियों की क्रूर यातनाओं के कारण अपने प्राण त्याग दिए।
प्रश्न 5.
क्या आज भी देश की उन्नति के लिए चुपचाप अपने को खपा देने वाले लोगों की आवश्यकता है? युक्ति-युक्त उत्तर दीजिए।
उत्तर:
देश के स्वतन्त्र होने के बाद कुछ वर्षों तक ऐसे ही लोगों की आवश्यकता थी जो देश के नवनिर्माण में अपने को चुपचाप खपा दें। आज परिस्थितियाँ बहुत बदल चुकी हैं। देश ने हर क्षेत्र में उन्नति की है। विश्व में उसकी पहचान बढ़ी है। अनेक कमियाँ और चुनौतियाँ आज भी मौजूद हैं। लेकिन इनका सामना करने के लिए, दृढ़ संकल्प और चरित्रवान ऐसे लोग चाहिए जो खुलेआम जन-बल को साथ लेकर समस्याओं का मुकाबला करें, गुमनाम रहकर नहीं।
 निबंधात्मक प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
‘नींव की ईंट’ नामक निबन्ध में निहित सन्देश को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
‘नींव की ईंट’ निबन्ध में लेखक ने ‘नींव की ईंट’ और ‘कँगूरे’ को सामने रखकर देशवासियों को बड़ा मार्मिक सन्देश देना चाहा है। नींव और कंगूरे दोनों ही भवन के अंग हैं, किन्तु दोनों के भाग्य अलग-अलग हैं। एक का बलिदान अज्ञात रह जाता है। और दूसरे के बलिदान को प्रशंसा और सम्मान का सौभाग्य प्राप्त होता है। यही नियति देश के लिए आत्म – बलिदान करने वाले देशप्रेमियों की भी है। जिन्होंने मौनभाव से अपनी सुख-सुविधा और जीवन को भारतमाता के चरणों में समर्पित कर दिया। ये बलिदानी अपरिचित ही रह गए।
दूसरे वे जिनको प्रशंसा मिली और जो कँगूरों की भाँति स्वतन्त्र भारत के शीर्ष पदों पर सुशोभित हुए। लेखक का संदेश है कि हमें प्रख्यात और प्रशंसित लोगों के साथ ही उन अज्ञात बलिदानियों के योगदान को भी सामने लाना चाहिए, जिन्होंने विदेशी शासन का विनाश करने के लिए अपने जीवन को सहर्ष दान कर दिया। इसके साथ ही लेखक ने देश के युवकों को भी संदेश दिया है कि वे नि:स्वार्थ भाव से देश के नव – निर्माण में अपनी भूमिका निभाएँ।
प्रश्न 2.
ठोस सत्य सदा शिवम् है, किन्तु यह हमेशा ही सुन्दरम् भी हो, यह आवश्यक नहीं।’ लेखक का इससे क्या आशय है?
उत्तर:
ठोस सच्चाई को स्वीकार करने और अपनाने से मनुष्य का सदा कल्याण होता है लेकिन यह आवश्यक नहीं कि वह सुन्दर भी हो। कभी – कभी सत्य कठोर और भद्दा भी होता है। किन्तु कठोरता और भद्दापन कोई देखना नहीं चाहता। यही कारण है कि लोग सत्य से आँखें चुराते हैं। एक सुन्दर भवन का मूलाधार उसकी नींव होती है। नींव में कठोर और अनगढ़ ईंटों का प्रयोग होता है। लोग भवन की ऊपरी सुन्दरता पर मुग्ध होकर रह जाते हैं। उनका ध्यान उस नींव की ओर नहीं जाता, जहाँ कठोर अनगढ़ ईंटों में भवन के खड़े रहने की सच्चाई छिपी है। लेखक का आशय यही है कि हमारा ध्यान केवल सुन्दरता पर ही केन्द्रित नहीं रहना चाहिए, बल्कि सच्चाई पर भी जाना चाहिए, भले ही वह कठोर और कुरूप क्यों न हो।
-रामवृक्ष बेनीपुरी
पाठ-परिचय
प्रस्तुत ललित इस निबंध में बेनीपुरी जी ने देश के युवाओं को प्रशंसा, नाम और लाभ की चिन्ता किए बिना, देशरूपी विशाल भवन की नींव की इटों के समान अपने को खपा देने की प्रेरणा दी है। भारत की स्वतंत्रता के साथ ही देश के नवयुवकों पर देश के नवनिर्माण की जिम्मेदारी आ गई है। आज देश को हर क्षेत्र में प्रगति और नवनिर्माण की आवश्यकता है। लाखों गाँवों, हजारों शहरों तथा उद्योगों का उत्थान कोई शासन अकेले नहीं कर सकता। आज कंगूरा बनने के लिए मारामारी मची है। नींव की ईंट बनना कोई नहीं चाहता। अत: देश के उत्साही, नई चेतना से भरपूर, प्रशंसा और दलबंदी से दूर, युवक ही इस महान कार्य को पूरा कर सकते हैं। आज हमें ऐसे ही युवकों की अर्थात् नींव की ईंटों की आवश्यकता है।
शब्दार्थ-आवरण = पर्त, सतह, पर्दा। शिवम् = कल्याण करने वाला। आकृष्ट करना = खींचना। अस्ति-नास्ति = बना रहना या मिट जाना। पायेदारी = टिकाऊपन,. (पैरों पर) खड़ा रहना। शहादत = बलिदान। लाल सेहरा = बलिदान के समय पहनाया जाने वाला मुकुट। खाक छानते = भटकते। मूढ़ धारणा = मूर्खतापूर्ण विचार। अनुप्राणित = उत्साहित, प्रेरित। चेतना = समझ। अभिभूत = भरपूर। वासना = इच्छा। उदय = उन्नति।।
प्रश्न 1.
लेखक रामवृक्ष बेनीपुरी का संक्षिप्त जीवन-परिचय लिखिए।
उत्तर:
लेखक-परिचय जीवन परिचय-रामवृक्ष बेनीपुरी का जन्म 1899 ई. में बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के बेनीपुर गाँव में हुआ था। ये गाँधीजी तथा जयप्रकाश नारायण से प्रभावित होकर अपने अध ययन को छोड़कर पूर्णतया स्वाधीनता आन्दोलन में सक्रिय रहे। इनकी मृत्यु 1968 ई. में हुई। साहित्यिक विशेषताएँ-बेनीपुरी का साहित्यिक जीवन पत्रकारिता से प्रारम्भ हुआ। आप प्रमुख विचारक, चिन्तक, पत्रकार तथा शुक्लोत्तर युग के प्रसिद्ध साहित्यकार थे। उनकी रचनाओं में जेल के अनुभव के साथ देशप्रेम, साहित्य प्रेम, त्याग की महत्ता आदि को बड़ी खूबी के साथ दर्शाया गया है। उनका साहित्य चिन्तन को निर्भीक तथा कर्म को तेज बनाता है। रचनाएँ-बेनीपुरी जी की प्रमुख रचनाएँ हैं-संस्मरण और निबन्ध : पतितों के देश में, चिता के फूल, कैदी की पत्नी, गेहूँ और गुलाब, माँटी, जंजीरें और दीवारें। नाटक : अम्बपाली, सीता की माँ, संघमित्रा, तथागत, नेत्रदान, अमरज्योति। सम्पादन : विद्यापति की पदावली। जीवनी : जयप्रकाश नारायण।
महत्वपूर्ण गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्याएँ
प्रश्न 2.
निम्नलिखित गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए
1. दुनिया चमक देखती है, ऊपरी आवरण देखती है, आवरण के नीचे जो ठोस सत्य है, उस पर कितने लोगों का ध्यान जाता है ? ठोस सत्य सदा शिवम् है, किन्तु यह हमेशा ही सुन्दरम् भी हो, यह आवश्यक नहीं। सत्य कठोर होता है, कठोरता और भद्दापन, साथ-साथ जन्मा करते हैं, जिया करते हैं। हम कठोरता से भागते हैं, भद्देपन से मुख मोड़ते हैं, इसलिए सत्य से भी भागते हैं। नहीं तो, हम इमारत के गीत, नींव के गीत से प्रारम्भ करते। (पृष्ठ-9)
संदर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘हिंदी प्रबोधिनी’ में संकलित श्री रामवृक्ष बेनीपुरी लिखित ‘नींव की ईंट’ नामक ललित निबंध से उद्धृत है। लेखक व्यंग्य कर रहा है कि लोगों का ध्यान किसी वस्तु की बाहरी चमक-दमक तथा सुन्दरता पर ही रहता है। वे उसके पीछे स्थित ठोस आधार पर ध्यान नहीं देते।
व्याख्या-लोग किसी वस्तु की बाहरी चमक-दमक पर ही मोहित होते हैं। उसके बाहरी रूप-रंग की प्रशंसा में वे उसे बनाए रखने वाले ठोस आधार को भूल जाते हैं। बहुत कम ही लोग ऐसे होते हैं, जो उस बाहरी सौन्दर्य के मूल कारण को महत्व देते हैं। सत्य सदैव मंगलकारी होता है, किन्तु वह सुन्दर भी हो, यह आवश्यक नहीं। सत्य प्रायः कठोर होता है। और कठोरता तथा कुरूपता साथ-साथ पैदा होते हैं और सदैव साथ-साथ रहते हैं। कठोरता और कुरूपता किसी को प्रिय नहीं होती, इसी कारण लोग सत्य का भी सामना करने से कतराते हैं। यदि ऐसा न होता तो किसी सुन्दर भवन की प्रशंसा, उसके बाहरी रंग-रूप से प्रारम्भ न होकर उसकी दृढ़ नींव से हुआ करती। परन्तु वास्तविकता यही है कि भव्य-भवनों के बाहरी सौन्दर्य को धारण करने वाली, भीतर दबी पड़ी नव की प्रशंसा कोई नहीं करता है।
विशेष-
भाषा तत्सम प्रधान शब्दों तथा सुन्दर कहावतों जैसे लगने वाले वाक्यों के सौन्दर्य से परिपूर्ण है।
शैली प्रतीकात्मक, व्यंग्यात्मक और भावात्मक है।
2. वह ईंट धन्य है, जो कट-छंटकर कंगूरे पर चढ़ती है और बरबस लोगों को अपनी ओर आकृष्ट करती है। किन्तु धन्य है वह ईंट, जो जमीन से सात हाथ नीचे जाकर गड़ गई और इमारत की पहली ईंट बनी। क्योंकि इसी पहली ईंट पर, उसकी मजबूती और पुख्तापन पर सारी इमारत की अस्ति-नास्ति निर्भर है। उस ईंट को हिला दीजिए, कँगूरा बेतहाशा जमीन पर आ रहेगा। कंगूरे के गीत गाने वाले, आओ, अब नींव के गीत गाएँ। (पृष्ठ-9)
संदर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘हिंदी प्रबोधिनी’ में संकलित श्री रामवृक्ष बेनीपुरी लिखित ‘नींव की ईंट’ नामक ललित निबंध से उद्धृत है। लेखक ईंट, कँगूरा, भवन तथा नींव आदि प्रतीक-शब्दों के द्वारा देश की स्वतंत्रता और उन्नति के लिए अपने जीवन को समर्पण कर देने वाले अज्ञात शहीदों के महत्व को सामने ला रहा है और देशवासियों से इन शहीदों को सम्मान देने का अनुरोध कर रहा है।
व्याख्या-इसमें कोई संदेह नहीं है कि किसी सुन्दर भवन के शीर्ष पर काट-छाँटकर लगाई गई ईंटें बड़ी भाग्यशालिनी होती हैं। इन कंगूरों की ओर लोगों की दृष्टि बरबस चली जाती है। सभी इन ईंटों की प्रशंसा करते हैं। किन्तु इन ईंटों से भी अधिक प्रशंसनीय वे ईंटें हैं जो धरती की गहराई में सर्वप्रथम नव के रूप में गड़ी हैं। ये नींव की ईंटें इसलिए धन्य हैं, क्योंकि इनकी मजबूती पर ही सारा भवन टिका है। यदि ये नींव की ईंटें तनिक भी हिल जाएँ तो भवन के शीर्ष पर इतराने वाले कंगूरे, तनिक-सी देर में ही धरती पर आ गिरेंगे। जिन लोगों ने देश की स्वतंत्रता के लिए अपने जीवन समर्पित कर दिए, आज, जिनके नाम इतिहास में दर्ज नहीं, वे बलिदानी लोग इस देश रूपी भवन की नींव की ईंटों के समान हैं। आज स्वतंत्रता और सम्पन्नता का सुख भोगने वाले देश को सिर्फ कंगूरों अर्थात् उच्च पदों पर स्थित और प्रसिद्ध लोगों का ही गुणगान नहीं करना चाहिए, वरन् उन गुमनाम शहीदों को भी श्रद्धापूर्वक वंदना करनी चाहिए। नव की ईंट बने उन बलिदानियों की त्याग-तपस्या को भुलाना बड़ी कृतघ्नता होगी। अतः देशवासियों का यह कर्तव्य है कि वे कंगूरे बने हुए, सुविधाभोगियों का गुणगान बंद करें और देश के लिए मूक-मौन बलिदान करने वाली नव की ईंटों की प्रशंसा के गीत गाएँ।
विशेष-
भाषा लक्षणाशक्ति से सम्पन्न और ओजपूर्ण है।
शैली प्रतीकात्मक और व्यंग्यात्मक है।
3. सुन्दर सृष्टि! सुन्दर सृष्टि हमेशा ही बलिदान खोजती है, बलिदान ईंट का हो या व्यक्ति की। सुंदर इमारत बने, इसलिए कुछ पक्की-पक्की लाल ईंटों को चुपचाप नींव में जाना है। सुंदर समाज बने, इसलिए कुछ तपे-तपाये लोगों को मौन-मूक शहादत का लाल सेहरा पहनना है। शहादत और मौन मूक! जिस शहादत को शोहरत मिली, जिस बलिदान को प्रसिद्धि प्राप्त हुई, यह इमारत का कंगूरा है-मंदिर का कलश है। (पृष्ठ-9)
संदर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘हिंदी प्रबोधिनी’ में संकलित श्री रामवृक्ष बेनीपुरी लिखित ‘नींव की ईंट’ नामक ललित निबंध से उद्धृत है। लेखक बता रहा है कि संसार के हर सुन्दर निर्माण के लिए किसी न किसी के त्याग और बलिदान की आवश्यकता होती है।
व्याख्या-किसी भी सुन्दर रचना को साकार करने के लिए किसी न किसी व्यक्ति या वस्तु को अपना बलिदान करना पड़ता है। यदि सुन्दर भवन बनाना है तो सर्वोत्तम ईंटों को नींव में जाना होगा और यदि किसी राष्ट्र को स्वतंत्र और उन्नत बनना है, तो कुछ नि:स्वार्थ देशभक्तों को चुपचाप बलिदान देना होता है। एक सुखी-सम्पन्न समाज के निर्माण के लिए कुछ तपे-तपाये देशप्रेमियों को अपनी सुख-सुविधा और जीवन तक को मौन रूप से समर्पित करना पड़ता है। यह कैसी विचित्र बात है कि व्यक्ति का बलिदान अनकहा, अनदेखा और अनजाना रह जाए, परन्तु यही होता आ रहा है। नींव की ईंट का काम करने वाले अज्ञात और अनाम रह जाते हैं और इतिहास में नाम पा जाने वाले लोग राष्ट्ररूपी भवन के कंगूरे बनकर प्रसिद्धि और सम्मान का सुख भोगते हैं। लेखक चाहता है कि लोग केवल साहित्य और इतिहास में नाम पा जाने वालों को ही देश या समाज के लिए सम्माननीय न मानें। वे उन नींव की ईंट के समान चुपचाप बलिदान हो जाने वाले त्यागी देशभक्तों को भी श्रद्धापूर्वक नमन करें, उनका गुणगान करें।
विशेष-
भाषा में हिन्दी और उर्दू के शब्दों की सुन्दर मेल है। शैली भावात्मक और प्रतीकात्मक है।
लक्षणाशक्ति के प्रयोग से कथन हृदय को छू लेता है।
4. अफसोस ! कँगूरा बनने के लिए चारों ओर होड़ा-होड़ी मची है, नींव की ईंट बनने की कामना लुप्त हो रही है। सात लाख गाँवों का नव-निर्माण! हजारों शहरों और कारखानों का निर्माण। कोई शासक इसे सम्भव नहीं कर सकता। जरूरत है ऐसे नौजवानों की, जो इस काम में अपने को चुपचाप खपा दें। जो एक नई प्रेरणा से अनुप्राणित हों, एक नई चेतना से अभिभूत, जो शाबाशी से दूर हों, दलबंदियों से अलग। जिनमें कंगूरा बनने की कामना न हो, कलश कहलाने की जिनमें वासना भी न हो। (पृष्ठ-10)
संदर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘हिंदी प्रबोधिनी’ में संकलित श्री रामवृक्ष बेनीपुरी लिखित ‘नींव की ईंट’ नामक ललित निबंध से उद्धृत है। लेखक देश में पद, प्रसिद्धि और सुख-सुविधाएँ पाने के लिए मची होड़ को देखकर खिन्न है। वह देश के युवाओं को नि:स्वार्थ भाव से देश की प्रगति में जुटे जाने को प्रेरित कर रहा है।
व्याख्या-लेखक यह देखकर बड़ा व्यथित है कि चारों ओर उच्च पद पाने और सुख-सुविधाएँ भोगने की होड़ मची हुई है। नि:स्वार्थ और मौनभाव से देश की सेवा करने की इच्छा समाप्त हो चुकी है। सब कंगूरी बनना चाहते हैं, नव की ईंट बनना कोई नहीं चाहता। आज देश के सामने लाखों गाँवों, हजारों शहरों और उद्योगों का नव-निर्माण करने की विकट समस्या सामने खड़ी है। इसका हल कोई भी सरकार अकेले नहीं कर सकती। यह कठिन कार्य देश के युवा वर्ग के सहयोग से ही पूरा हो सकता है। आज ऐसे युवक चाहिए, जो फल की इच्छा त्यागकर मौनभाव से देशसेवा में समर्पित हो जाएँ, जो देश को आगे ले जाने के नए उत्साह से भरे हों, जिनके भीतर नई चेतना का संचार हो, जो प्रशंसा पाने की इच्छा न रखते हों और किसी भी दल या वर्ग से बँधे न हों, जो अपनी सेवा के बदले उच्च पदों की कामना न रखते हों तथा जिनके मन में सबसे ऊपर विराजने और प्रतिष्ठा पाने की लालसा न हो। आज देश को ऐसे ही, नींव की ईंट बनने वाले युवकों की आवश्यकता है।
विशेष-
भाषा व्यावहारिक एवं लक्षणा-शक्ति से सम्पन्न है।
शैली प्रेरणादायिनी और भावात्मक है।

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