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(Biotechnology) जैव प्रौद्योगिकी & पुनर्योगज DNA क्या है परिभाषा प्रकार , महत्त्व
जीव विज्ञान की वह नवीन शाखा जिसमें जैव-तकनीक की सहायता से जीव धारियों एवं उनके एंजाइमों के द्वारा मनुष्य के लिए उपयोगी प्रक्रम एवं उत्पाद बडे पैमाने पर बनाये जाते है उसे जैव-प्रौद्योगिकी कहते है।
यूरोपिय जैव-
प्रौद्योगिकी संघ (EFB) के अनुसार कोशिकाओं अंगों आण्विक प्रतिरूपों जीवों तथा प्राकृतिक विज्ञान का समायोजन नये उत्पाद व सेवाओं हेतु करना ही जैव-प्रौद्योगिकी कहलाता है।
जैव-प्रौद्योगिकी के महत्व-
सिमित अर्थ में:- आनुवाँशिक रूपान्तरित जीव का निर्माण (GMO )
व्यापक अर्थ में:-
1- पात्रे निषेचन द्वारा परखनली शिशु का निर्माण।
2- जीन संश्लेषण एवं उपयोग
3- DNA टीके का निर्माण
4- दोष पूर्ण जीन का उपचार।
जैव-प्रौद्योगिकी के सिद्धान्त:- जैव-प्रौद्योगिकी के दो सिद्धान्त है:-
1 आनुवाँशिक अभियाँत्रिकी:- किसी जीव की आनुवाँशिक संरचना में रूपान्तरण करके उसके जीनोटाइप में परिवर्तन करना ही आनुवाँशिक अभियाँत्रिकी कहलाता है । जैसे:- Bt कपास, रोजी गाय।
2 रसायन अभियाँत्रिकी:-
निर्जम दशाओं में वाँछित सूक्ष्म जीवो ंकी अधिक मात्रा में वृद्धि के द्वारा बडे पैमाने पर उत्पाद प्राप्त करना रसायन अभियाँत्रिकी कहलाता है।
उदाहरण:- एंजाइम, हार्मोन, टीके, प्रतिजैविक।
पुनर्योगज DNA :-
वँछित जीन को रूपान्तरण के द्वारा किसी जीव में स्थानान्तरित करके बनाये गये को पुनर्योगज क्छ। कहते है।
प्ुानर्योगज DNA के निर्माण की विधि:- को पुनर्योगज DNA तकनीक कहते है। जैसे जीन स्थानान्तरण एवं जीव क्लोनींग।
उदाहरण:-सर्वप्रथम बनाया गया पुनर्योगज DNA साल्मेनेला टायफीयूरियम के द्वारा
खोजकर्जा:- हरबर्ट बोयर व स्टेनले कोहिन 1972
पुनयोगिज DNA तकनीक का महत्व:-
अलैगिक की तुलना में लैगिक जनन श्रेष्ठ होता है। लैगिक जनन की संकरण प्रक्रिया के द्वारा वाँछित लक्षणों के साथ अवाँछित लक्षण भी प्राप्त हो सकते है किन्तु पुनयोग्ज क्छ। तकनीक के द्वारा हमेषा वाँछित लक्षणों की प्राप्ति होती है।
जैव-प्रोद्योगिकी के साधन और जैव-तकनीक के उपकरण प्रतिबंधन एन्जाइम (RE) की परिभाषा क्या है , विशेषताएं लक्षण/गुण , प्रकार , नामकरण
1 प्रतिबंधन एन्जाइम (RE) : DNA को काटकर छोटे टुकडों में बदलने वाले विषेष एन्जाइम को प्रतिबंधन एन्जाइम कहते है।
RE कीे विशेषताएं लक्षण/गुण:-
1 ये वाँछित क्छ।एवं वाहक DNA को काटते है।
2 ये प्राकृतिक रूप में सूक्ष्म जीवों में पाये जाते है अब तक 900 से अधिक RE ज्ञात किये जा चुके है जो 230 जीवाणुओं के प्रभेदों से प्राप्त हुए।
3 ये जीवाणु DNA का अपघटन नहीं करते है।
4 ये जीवाणुओं पर आक्रमण करने वाले DNA /वायरस के DNA का अपघटन करते है।
5 ये DNA के 4’6 न्यूक्लिओटाइड क्ष्द्वारकों को पहचानते है जिन्हें अभिज्ञेय स्थल पेलिन्ड्रोम न्यक्लिओटाइड कहते है। DNA के 4’6 खण्ड लम्बे क्षारकों के अनुक्रम जिन्हें पडने का अभिविन्यास समान होने पर क्षारकों का क्रम भी समान होता है।
6 RE DNA न्यूक्लिओटाइडो की सम्पूर्ण लम्बाई में निरीक्षण करता है।
7 अभिज्ञेय स्थल के प्राप्त होने पर दोनो लडियों को षर्करा फास्फोरस बंधों के मध्य काट लेता है।
8 DNA लडियो के कटे हुए एक लडिये सिरे चिपचिपे हो जाते है यह चिपचिपान DNA के चिपकने में मदद करता है।
9 दो अलग-अलग DNA के एक लडिये सिरो को लाइगेज एन्जाइम की सहायता से आपस में जोड देते है। इस प्रकार पुनर्योगज DNA प्राप्त होता है।
पुनर्योगज DNA चित्र
RE प्रकार:-दो प्रकार के होते है:-
1-एक्सोन्यूक्लिऐजेज:-ये DNA के सिरो से न्यूक्लिओटाइड को अलग करते है।
2-एण्डोन्यूक्लिऐजेज:- ये DNA को भीतर से विषेष पहचान अनुक्रम पर काटता है।
RE को नामकरण:-
1 RE के नाम का प्रथम अक्षर जिस सूक्ष्म जीव से वह प्राप्त होता है उसका प्रथम अक्षर होता है।
2 RE का दूसरा और तीसरा अक्षर सूख्म जीव की जाति के पहले और दूसरे अक्षर होते है।
3 RE का प्रथम अक्षर बडे अक्षरों में तथा दूसरा और तीसरा अक्षर छोटे अक्षरों में लिखते है।
क्लोनिका संवाहक या वाहन (vector):- वह DNA जिसमें – प्रतिकृति का गुण होता है तथा स्वयं की प्रतिकृति के साथ बाहय DNA की भी प्रतिकृति करा सके उसे क्लोनिंग वाहक कहते है।
उदाहरण:- प्लाज्यिड, काॅस्मिड, फाॅज/फेज (phase) (जीवाणु भोजी)
वायरस के सारे वाहक के रूप में प्रयोग किये जाते है
प्लाज्मिड:- जीवाणु में पाये जाने वाले अतिरिक्त गुणसूत्रीय पदार्थो को प्लाजियक कहते है।
प्लाज्मिड की विषेषता:-
1- जीवाणु में पाया जाता है।
2- अतिरिक्त गुणसूत्रीय पदार्थ पाये जाते है।
3- यह द्विसूत्रीय होता है।
4- यह वृताकार होता है।
5- इसमें प्रतिकृति का गुण होता है।
6- इसमें प्रतिजैविक, प्रतिरोधी जीन पायी जाती है
उदाहरण:- PBR 322
यहाँ P = प्लाज्मिड
B = बाॅलिवर खोज कर्ता
R = राड्रिगज
322 = प्रयोग पर आधारित संस्था
उत्तम वाहक के गुणवधर्म:-
क्लोनिंग संवाहक की विशेषता:-
चित्र
1 प्रतिकृल्पिन की उत्पत्ति ORI:-
विजातीय जीव स्थानान्तरित क्छ। की प्रतिकृति कर सकें। इसके लिए उसमें प्रतिकृति की उत्पत्ति का स्थान होना चाहिए। अतः ऐसा स्थान जहाँ से प्रतिकृति प्रारंभ होती है एवं संतति कोषिका में भी प्रतिकृति होती है उसे प्रतिकृतियन की उत्पत्ति या व्तप कहते है।
2 परणमोतम चिन्हक:-
उत्तम वाहक में पुनर्मोगज एवं अपुनर्योगज में अन्तर करने वाले कुछ लक्षण पाये जाते है जिन्हें वरण योग्य चिन्हक कहते है।
वरणयोग्य चिन्हकों के रूप में प्रतिजैविक प्रतिरोधी जीन पायी जाती है। ये प्रायः अेट्रासाइक्लिन, एम्पिसिलिन, केनामाइसिन, क्लोरोमफेनियाँ आदि प्रतिजैविकों के प्रतिरोधी चिन्हक पाये जाते है।
3 क्लोनिंग स्थल:- वाहक में वह स्थान जहाँ विजातीय क्छ। जुउता है। तथा उसकी प्रतिकृति होती है उसे क्लोनिंग स्थल कहते है।
प्रतिजैविक प्रतिरोधी दो स्थानों में से टेट्रासाइक्लिन प्रतिजैविक प्रतिरोध स्ािल पर यदि ब्राहय क्छ। की प्रतिकृति होता है तो टेट्रासाइक्लिन प्रतिरोध समाप्त हो जाता है अर्थात् पुनर्योगज बन जाता है । इसे अब टेट्रसाइक्लिन युक्त माध्यम में संवर्धन करें तो जीवाणुओं की वृद्धि रूक जायेगी।
वैकल्पिक विधि:- (वर्णोत्पादकी विधि):-
पुनयोग्ज एवं अपुनयोगज में अन्तर करने हेतु नवीन विधि के रूप में मध्यम में वणेत्पादक पदार्थो का प्रयोग करते है जैसे:- ठ.हंस लाइटोसाइडोन की उपस्थिति में नीला रंग उत्पन्न होता है।
विजातीय के निवेषन से वर्णेत्पादकी प्रभाव समाप्त हो जाता है जिसे निवेषी निष्क्रियता कहते है। यदि पुनर्योगज का निर्माण हो जाता है तो रंगहीन काॅलोनी बनती है यदि नीले रंग की काॅलोनी बनती है तो यह अपुनर्योगज होता है।
Hostess (HOST) or Hospitality परपोषी (HOST) या आतिथेय:- E के द्वारा DNA का विलगन , जैल इलेक्ट्रोफोरेसिस
वह कोषिका या जीव जिसमें पुनर्योगज DNA का रूपान्तरण कराया जाता है एवं उसकी प्रतिकृति होती है उसे परपोषी कहते है।
जैव प्रौद्योगिकी (आनुवाँषिक रूपान्तरित जीव) निर्माण/पुनयोगज DNA का बना वाँछित उत्पादन करने की विधि:- पुनर्योगज DNA तकनीक:-
1 वाँछित DNA या जीन की पहचान व उसका पृथक्करण:-
सर्वप्रथम उद्वेश्य के अनुसार वाँछित जीन युक्त जीव की पहचान की जाती है। उस जीव से वाँछित जीन युक्त DNA को पृथक करते है अतः जीव के अनुसार विभिन्न एंजाइमों से क्रिया की जाती है।
जैसे:- जीवाणु में लाइसोजाइम से, पादप मंे सेलुलेज से, कवक में काइटिनेज से क्रिया करते है।
इस प्रकार प्राप्त DNA वृहत अणुओं से मुक्त होना चाहिए अतः को विभिन्न एंजाइमों से संशोधित करते हैं
जैसे:- यदि DNA है तो आरएनेऐज से क्रिया करेगें। प्रोटीन है तो प्रोटिनेज से क्रिया करेगें।
इस प्रकार प्राप्त DNAको द्रुतशीतित एथेनाॅल में परिक्षित करते है यह क्छ। अब दागों के रूप मंे निलम्बित रहता है।
2 RE के द्वारा DNA का विलगन:-
सर्व प्रथम उपयुक्त RE के द्वारा वाँछित DNA ने टुकडे किये जाते है। इसी प्रकार वाहक क्छ। के भी टुकडे किये जाते है इन कटे हुए भागों को जेल इलेक्ट्रोफोरेसिस विधि के द्वारा अलग करते है।
जैल इलेक्ट्रोफोरेसिस:- (जैल विद्युत संचलन):-
कटे हुए DNA खण्डों को माध्यम में विद्युत क्षेत्र लगाकर बलपूर्वक एनोड की तरफ भेजने की क्रिया जैल इलेक्ट्रोफोरेसिस कहलाती है।
चित्र
माध्यम:- एगारोस जैल (समुद्री खरपतवार से प्राप्त)
अभिरंजक:- एथिडियम ब्रोमाइड (चमकीला नीला रंग)
पराबैगनी किरणों से अनावृत
-छोटा अधिक दूरी तक
एमारोस जैल के छलनी प्रभाव को क्षालन इलुसन कहते है।
3. लाभकारी जीन का प्रवर्धन:-
वाँछित या लाभकारी जीन के प्रवर्धन की विधी को PCR (पाॅलीमर चैन रियक्सन) कहते है।
चित्र
1- DNA का निष्क्रियकरण:-
किसी कोषिका ऊतक रक्त की सूखी बूंदी वीर्य परिरक्षित मस्तिश्क कोषिका आदि से प्राप्त DNA का करोडो प्रतिलिपियाँ बनाने के लिए सर्वप्रथम उसे अत्यधिक ताप द्वारा विकृत करते है।
2- उपाकर्मक का जोडना
3. प्रसारण
सूक्ष्म इंजेक्शन, स्थूल इंजेक्शन , अप्रत्यक्ष स्मानान्तरण , रूपान्तरण/पुनयौगज का स्थानान्तरण
परपोषी कोशिका मे ंपुनर्योगज DNA के स्थानान्तरण की क्रिया को रूपानान्तरण (transformational) कहते है।
चित्र
।. प्रत्यक्ष विधि:-
वाहक रहित स्थानान्तरण को प्रत्यक्ष स्थानान्तरण कहते है जिसकी मुख्य विधियाँ निम्न है।
1. सूक्ष्म इंजेक्शन(micro injection):-
इस विधि में पुनः योगज DNA को सूक्ष्म इंजेक्शन के द्वारा जन्तु कोशिका में उसके केन्द्रक के समीप अन्तः स्थापित किया जाता है।
2. जीन-गन/शाॅटगन/कणिकाबन्द्रक प्रोद्योगिकी (micro projectyle) विधि:-
इसमें पुनर्योगज DNA को स्वर्ण या टंगस्टन के सूक्ष्म कणों से विलोपित करके उच्च वेग से परपोषी कोशिम पर बमबारी करते है।
3. रासायनिक विधि:-
DNA जलरानी एवं तहणावेशित होता है। अतः आसानी से परपोषी कोशिका में प्रवेश नहीं करता है। अतः परपोषी कोशिका को सिसंयोजी धनात्मक आयन (Ca++ , Mg++) की उचित सान्द्रता से संसाधित करते है। इस प्रकार पुनयोगज क्छ। परपोषी
कोशिका में स्थानान्तरित हो जाता है।
यदि रूपान्तरण न हो तो कोशिका को पहले बर्फ पर रखते है तथा फिर 420ब् ताप पर गर्म करते है तथा इसे पुनः बर्फ पर रखते है तो रूपानान्तरण की क्रिया हो जाती है।
4 स्थूल इंजेक्शन (macro injection):- पादप कोशिका में, शीर्ष विभज्योतक के समीप।
5 इलेक्ट्रोपोरेशन:- विद्युत तरंगों द्वारा
6 लिपोसोम द्वारा:- ववा के छोटे थैलो द्वारा।
B. अप्रत्यक्ष स्मानान्तरण:-
वाहक द्वारा पुनर्योगज को परपोसी कोशिका में स्थानान्तरित करने की क्रिया DNA अप्रत्यक्ष जीन स्थानान्तरण कहलाती है।
इसमें रोगाजनक समवाहक को अरोगजनक बनाकर उसमें वाँछित जीन को जोडकर परपोसी कोशिका को सवंमित करने दिया जाता है। परपोशी कोशिका में वाँछित जीन का गुणन होता है।
उदाहरण:-
1- पादपों में:-
एग्रोबैक्टिरियम ट्यूमिफेशियंस का F-DNA द्विबीजपत्री पादपों में टयूमर गाँठ उत्पन्न करता है। इसके ज्प्.च्संेउपक को अरोगजनक बनाकर पादपों को संक्रमित करने दिया जाता है इस प्रकारवाँछित जीनक ा गुणन प्रारम्भ हो जाता है।
6- बाहरी जीन उत्पाद को प्राप्त करना/ पुनयोगज उत्पाद प्राप्त करना:-
वाँछित जीन परपोषी कोशिका में रूपान्तरित होकर अभिवयक्त होता है तथा वाँछित उत्पाद बनाता है इस प्रकार प्राप्त उत्पादकों पुनयोजन उत्पाद कहते है जैसे पुनर्योगज प्रोटीन, पुनर्योगज हार्मोन पुनर्योगज एन्जाइम आदि।
कम मात्रा में उत्पाद प्राप्त करने हेतु प्रयोगशाला में भी संवर्धन किया जा सकता है। समर्धन को सतत् रूप से हिलाते रहना आवश्यक है। तथा इसमें संवर्धन माध्यम को एक ओर से निकाल लेते है तथा दूसरी तरफ से नया माध्यम डाल देते है।
बडे पैमाने पर पुनर्योगन उत्पाद करने हेतु बडे पात्रों की आवश्यकता होती है जिन्हें बायोरियेक्टर कहते है इनमें पुनर्योजन वाँछित उत्पाद प्राप्त करने के लिए अनुकूलन परिस्थितियाँ पाई जाती है जैसे ताप च्भ् क्रिया दर लवणीयता, विटामिन आदि बायोरियेक्टर दो प्रकार के होते है।
1 साधारण विलोडक हौज:- ये बेलनाकार होते है।
2 दण्ड:- (विलोडक हौज रियेक्टर):-ये आयताकार होते है तथा इनमें आॅक्सीजन स्थानान्तरण के लिए अधिक सतह पाई जाती है।
चित्र
4 अनुप्रवाह संसाधन:-
वाँछित उत्पाद को बनने के पश्चात् परिष्कृत शुद्ध रूप रूप से तैयार करने एवं विपणन से पूर्व जिन क्रियाओं जैसे:-
पृथक्करण एवं शोधन
परिरक्षक मिलान
संरूपण की जाँच (औषधि हेतू)
गुणवत्ता परिरक्षण