प्रश्न 1.
मानव शरीर में प्रतिरक्षी तंत्र में कौन-सी कोशिका, कोशिका मध्यवर्ती प्रतिरक्षी अनुक्रिया में योगदान देती है ?
(अ) रक्ताणु
(ब) मास्ट कोशिका
(स) T-लसिकाणु
(द) थ्रोम्बोसाईट।
उत्तर:
(स) T-लसिकाणु
प्रश्न 2.
प्रतिरक्षी अणु होते हैं-
(अ) शर्करा
(ब) ऐरोमैटिक
(स) न्यूक्लिक अम्ल
(द) प्रोटीन
उत्तर:
(द) प्रोटीन

प्रश्न 3.
एलर्जी अनुक्रिया में कौन-सी एंटीबॉडी योगदान देती है ?
(अ) IgG
(ब) IgA
(स) IgE
(द) IgM.
उत्तर:
(स) IgE
प्रश्न 4.
कौनसी एंटीबॉडी माता से भ्रूण में प्लेसेंटा के माध्यम से स्थानान्तरित होती है?
(अ) IgG
(ब) IgA
(स) IgE
(द) IgM.
उत्तर:
(अ) IgG
प्रश्न 5.
टीकाकरण के फलस्वरूप मानव शरीर में क्या बनते हैं ?
(अ) प्लाज्मा
(ब) हिस्टामिन
(स) प्रतिरक्षी
(द) आविष।
उत्तर:
(स) प्रतिरक्षी

RBSE Class 12 Biology Chapter 39 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
प्रतिरक्षी के साथ प्रतिजन के जुड़ने वाले भाग का नाम बताइए।
उत्तर:
प्रतिजन बन्धन स्थल (Antigen binding site)।
प्रश्न 2.
प्रतिरक्षी अथवा एंटीबॉडी कितने प्रकार के होते हैं?
उत्तर:
पाँच प्रकार के।
प्रश्न 3.
अधिकतम सान्द्रता में पायी जाने वाली प्रतिरक्षी का नाम बताइए।
उत्तर:
अधिकतम सान्द्रता में पायी जाने वाली प्रतिरक्षी IgG है।
प्रश्न 4.
अर्बुद कोशिकाओं द्वारा नाश करने हेतु कौन-सी प्रतिरक्षी अनुक्रियाएँ उत्तरदायी होती हैं, नाम बताइए।
उत्तर:
सहज या प्राकृतिक प्रतिरक्षा ।
प्रश्न 5.
मरे हुए जीवों से निर्मित टीके के नाम बताइए।
उत्तर:
टाइफाइड, हैजा, कुकरखाँसी, हेपेटाइटिस, पोलियो इन्जेक्शन के टीके।

प्रश्न 6.
प्रतिरक्षा जैविकी का जनक किसे माना जाता है?
उत्तर:
एडवर्ड जेनर को।
RBSE Class 12 Biology Chapter 39 लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
प्रतिरक्षी की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
प्रतिरक्षी (Antibody) शरीर की लसीका ग्रन्थियों में स्रावित होने वाले विशिष्ट अमीनो अम्ल श्रृंखलाओं के चार श्रृंखला वाले प्रोटीन अणु अथवा इम्यूनोग्लोब्युलिन जो रुधिर सीरम में स्रावित होकर विदेशी अणुओं के प्रति अनुक्रिया करते हैं, प्रतिरक्षी या एण्टीबॉडी कहलाते हैं।
प्रश्न 2.
प्रमुख शरीरिक बाधाएँ कौन-कौन सी होती हैं?
उत्तर:
प्रमुख शारीरिक बाधाएँ निम्नलिखित हैं-
त्वचा (Skin)
घ्राण रोम (Nasal hair)
श्लेष्मिक झिल्ली (Mucous membrane)
पक्ष्माभ (Cilia)
शरीरिक स्राव (Physiological barriers)।
प्रश्न 3.
निष्क्रिय रूप से उपार्जित प्रतिरक्षा और सक्रियतः उपार्जित प्रतिरक्षा में मध्य मुख्य अन्तर बताइए।
उत्तर:
जब शरीर की रक्षा के लिए बने-बनाए प्रतिरक्षी को शरीर में प्रवेश कराया जाता है तो निष्क्रिय रूप से उपार्जित प्रतिरक्षा प्राप्त होती है, जबकि रोगकारक अथवा एन्टीजन के प्रवेश करने पर शरीर में प्रतिरक्षी बनते हैं तो इसे सक्रिय उपार्जित प्रतिरक्षा कहते हैं।
प्रश्न 4.
ह्यूमोरल इम्यूनिटी के बारे में समझाइए।
उत्तर:
ह्यूमोरल इम्यूनिटी (Humoral Immunity)—इस प्रकार की प्रतिरक्षा में विभिन्न प्रकार के प्रतिरक्षी पदार्थ होते हैं जो कि देह ह्यूमर या देह द्रव्य जैसे लसीका और रक्त सीरम में पाए जाते हैं। यह प्रतिरक्षी पदार्थ जीव द्रव्य कोशिकाओं द्वारा बनते हैं जो कि बदले में B लिम्फोसाइड द्वारा उत्पन्न की जाती हैं। यह कोशिकाएँ प्रत्येक प्रकार के प्रतिजन के लिए विशिष्ट एण्टीबॉडी बनाती हैं तथा अपने जीन अणुओं को पुनर्व्यवस्थित तंत्र द्वारा व्यवस्थित करके ऐसे जीन बनाती हैं जो विशिष्ट प्रकार की प्रतिरक्षी बनाने के लिए आवश्यक होते हैं। यह तंत्र देह द्रव्य में उपस्थित रोगाणु के विरुद्ध सक्रिय होता है।

प्रश्न 5.
T- कोशिका के बारे में बताइए।
उत्तर:
T- कोशिका (T-cell)-एक विशेष प्रकार की श्वेत रुधिर कोशिकाएँ या ल्यूकोसाइट्स जिन्हें लिम्फोसाइट्स कहते हैं। शरीर प्रतिरक्षात्मक तंत्र की मुख्य कोशिकाएँ होती हैं। ये दो प्रकार की होती हैं- B-कोशिका तथा T-कोशिका। T-कोशिकाएँ कोशिकीय प्रतिरक्षा के निर्माण के लिए जिम्मेदार होती हैं। प्रत्येक T-कोशिका एक विशिष्ट प्रतिजन से सम्बन्धित होती हैं इसलिए हमारे शरीर में विशिष्ट प्रकार के प्रतिजनों की अलग-अलग T-कोशिकाएँ 4-5 वर्ष या इससे अधिक समय तक जीवित रहती हैं। T-कोशिकाओं द्वारा उत्पादित एक क्लोन कोशिका प्रतिजन की प्रतिक्रिया की दृष्टि से T-कोशिका के समान होती हैं, लेकिन ये भिन्न-भिन्न कार्य करती हैं।
RBSE Class 12 Biology Chapter 39 लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
प्रतिरक्षा तंत्र की विभिन्न कोशिकाओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
प्रतिरक्षा तंत्र की कोशिकाएँ (Cell of Immune System) श्वेत रुधिर कोशिकाएँ या ल्यूकोसाइट्स (WBCs or Leucocytes), जिन्हें लिम्फोसाइट्स (Lymphocytes) भी कहते हैं; प्रतिरक्षा तंत्र की मुख्य कोशिकाएँ होती हैं। ये दो प्रकार की होती हैं-B-कोशिका तथा T-कोशिका। ये भ्रूणीय अवस्था में यकृत कोशिकाओं तथा वयस्क अवस्था में अस्थिमज्जा की कोशिकाओं द्वारा बनती हैं। कोशिका विभेदन के समय जो लिम्फोसाइड कोशिकाएँ, थाइमस ग्रन्थि में प्रवेश कर जाती हैं, ये विकसित होकर B-कोशिकाएँ बनाती हैं। ये दोनों कोशिकाएँ परिपक्वन के बाद शरीर में रुधिर एवं लसीका के साथ परिसंचरित होती रहती हैं। इसमें से T-कोशिकाएँ कोशिकीय प्रतिरक्षा तथा B-कोशिकाएँ प्रतिरक्षियों के निर्माण के लिए जिम्मेदार होती हैं। ये दोनों ही कोशिकाएँ प्रतिजनों से प्रेरित होकर ही अपने-अपने कार्यों को करती हैं। दोनों प्रकार की कोशिकाओं के कार्य निम्नलिखित हैं-
1. B-कोशिकाओं की प्रतिजनों के प्रति प्रतिक्रिया (Mechanism of B-cell to antigens)-जब कोई प्रतिजन शरीर द्रव (रुधिर एवं लसीका) में प्रवेश करता है, तब इनसे B-कोशिकाएँ प्रेरित होकर प्रतिरक्षियों का निर्माण करती हैं। मानव शरीर में हजारों प्रकार के प्रतिजनों के लिए हजारों प्रकार की विशिष्ट B-कोशिकाएँ पायी जाती हैं। जब कोई Bकोशिका किसी प्रतिजन के समर्थन में आती है तो यह तीव्र गुणन करके असंख्य क्लोन प्लाज्मा कोशिकाएँ बनाती हैं। इस क्लोन की अधिकांश कोशिकाएँ एक सेकण्ड में लगभग 2000 प्रतिरक्षी अणुओं का उत्पादन करती हैं। B-कोशिकाओं में प्रतिरक्षियों के उत्पादन की यह क्षमता इन कोशिकाओं के विकास एवं परिपक्वन के दौरान उपार्जित लक्षणों के एकत्रित होने के कारण भ्रूणीय अवस्था में ही बनती हैं।

2.T-कोशिकाओं की प्रतिजनों के प्रति-प्रतिक्रिया (Mechanism of T-cells to antigens)—T-कोशिकाएँ भी B-कोशिकाओं के समान ही क्लोन T-कोशिकाओं के उत्पादन द्वारा प्रतिजनों के प्रति प्रतिक्रिया करती हैं। प्रत्येक T-कोशिका एक विशिष्ट प्रतिजन से सम्बंधित होती हैं। इसलिए हमारे शरीर में विशिष्ट प्रकार के प्रतिजनों के लिए अलग-अलग प्रकार की T-कोशिकाएँ 4-5 वर्ष या अधिक समय तक जीवित रहती हैं। T-कोशिकाओं द्वारा उत्पादित क्लोन कोशिकाएँ (Clone cell) प्रतिजन की प्रतिक्रिया की दृष्टि से जनक T-कोशिका के समान होती हैं, किन्तु ये विभिन्न कार्यों को करती हैं। कार्य के अनुसार ये निम्न प्रकार की होती हैं-
मारक T-कोशिकाएँ (Killer T-cells)—ये प्रतिजन को सीधे ही आक्रमण द्वारा नष्ट करती हैं।
सहायक T-कोशिकाएँ (Helper T-cells)—ये T-कोशिकाएँ B-कोशिकाओं के प्रतिरक्षियों के निर्माण के लिए प्रेरित करती हैं।
दाबक T-कोशिकाएँ (Suppressor T-cell) ये T-कोशिकाएँ प्रतिरक्षात्मक तंत्र द्वारा अपने ही शरीर की कोशिकाओं पर आक्रमण करने से रोकती हैं। इन कोशिकाओं में से कुछ कोशिकाएँ स्मृति कोशिकाओं (Memory Cells) का कार्य भी करती हैं।
प्रश्न 2.
प्रतिरक्षा तंत्र की परिभाषा लिखिए। इसके विभिन्न प्रकारों को समझाइए।
उत्तर:
प्रतिरक्षा तंत्र (Immune System)- हमारे शरीर में विभिन्न प्रकार के रोगाणुओं जैसे-जीवाणु (Bacteria), विषाणु (Virus), कवक (Fungi) एवं अन्य सूक्ष्म परजीवियों के संक्रमण से सुरक्षा के लिए एक तंत्र पाया जाता है। इस सुरक्षा तंत्र को प्रतिरक्षा तंत्र कहते हैं।
प्रतिरक्षा (Immunity)शरीर की वह क्षमता जिसके द्वारा यह बाहरी पदार्थों की पहचान कर लेता है व उन्हें अपने ऊतकों को क्षतिग्रस्त करके अथवा बिना क्षति पहुँचाए निष्प्रभावित, निष्कासित अथवा उपापचयित कर देता है, प्रतिरक्षा कहलाती है।
प्रतिरक्षा के प्रकार (Types of Immunity)-प्रतिरक्षा मुख्य रूप से दो प्रकार की होती है-
1. सहज, प्रकृतिक, स्वाभाविक अथवा आनुवंशिक प्रतिरक्षा (Natural or Innate Immunity)—वह प्रतिरक्षा जो जीव में जन्मजात होती है अर्थात् जन्म से ही प्राप्त होती है, उसे सहज यो प्राकृतिक प्रतिरक्षा कहते हैं। इस प्रकार की प्रतिरक्षा हमारे शरीर में बाह्य कारकों के प्रवेश मार्ग में अवरोध उत्पन्न करके प्राप्त होती है।
2. उपार्जित प्रतिरक्षा (Acquired Immunity)—वह प्रतिरोधकता या प्रतिरक्षा जो जीवों के जीवन-काल में विकसित होती है, उपार्जित प्रतिरक्षा कहलाती है। यह दो प्रकार की हो सकती है
सक्रिय प्रतिरक्षा (Active Immunity)- इस प्रकार की प्रतिरक्षा किसी जीव में एक बार रोगाणु द्वारा संक्रमण हो जाने के पश्चात् स्वयं उत्पन्न हो जाती है।
निष्क्रिय प्रतिरक्षा (Passive immunity)—यह प्रतिरक्षा स्वयं के शरीर में विकसित नहीं होती। यद्यपि कुछ मात्रा में प्रतिरक्षण क्षमता संक्रमण के समय होती है किन्तु यह पर्याप्त नहीं होती। अत: इसके लिए बाहरी स्रोत से प्रतिरक्षात्मक पदार्थ शरीर में प्रविष्ट कराए जाते हैं।

प्रश्न 3.
टीकाकरण की परिभाषा बताते हुए इसके विभिन्न प्रकार के टीकों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
टीकाकरण (Vaccination) शरीर को संक्रमण रोगों से बचाने के लिए संक्रमण से पूर्व ही किसी अनुग्र (Non-Virulant), या विनाशित (Killed) या क्षीण (Attenuated) या निष्क्रियत सूक्ष्मजीव या उनके आविषों (Toxins) की अति सूक्ष्म मात्रा को शरीर में प्रविष्ट कराया जाता है; इन्हें टीका (Vaccine) कहते हैं। टीका लगाने की प्रक्रिया को टीकाकरण (Vaccination) कहते हैं।
टीके के प्रकार (Types of vaccine)—आजकल निम्न प्रकार के टीके उपयोग में लाए जाते हैं।
1. जीवित तनुकृत दुर्बलित अथवा क्षीण टीके (Live, Diluted or Attenuated vaccines)-जीवित क्षीण टीके बनाने के लिए। रोगजनक विषाणु (Pathogenic viruses) को ऊतक संवर्धन (Tissue culture) अथवा जन्तु भ्रूण जैसे—मुर्गी के भ्रूण में कई पीढ़ियों तक संवर्धित किया जाता है, जिससे उस विषाणु में मानव में प्रतिकृति (Replication) का गुण समाप्त हो जाता है। परन्तु फिर भी यह विषाणु मानव के प्रतिरक्षी तंत्र द्वारा पहचाना जा सकता है। इस प्रकार के टीके को व्यक्ति में लगाने पर इस प्रकार के संक्रामकों के लिए शरीर में प्रतिरक्षी कोशिकाओं का निर्माण हो जाता है।
उदाहरण के लिए, रूबियेला, खसरा, रोटा वाइरस एवं मुखीय पोलियो (Oral polio) वैक्सीन्स आदि।
2. मरे हुए जीवों अथवा निष्क्रिय जीव टीके (Killed or Inactivated vaccines) इस प्रकार के टीके एक रोगजनक को निष्क्रिय करके बनाए जाते हैं। इसके लिए आमतौर पर रोगकारक को गर्म करके या रासायनिक पदार्थों जैसे–फॉर्मेल्डीहाइड या फॉस्फोरिन का उपयोग करके रोगजनक की विभाजन क्षमता को नष्ट किया जाता है। परन्तु इसमें रोगकारक के प्रतिजैविक (Antigenic) गुणों को बरकरार रखा जाता है ताकि प्रतिरक्षा प्रणाली उसे पहचान सके।
उदाहरण के लिए, टाइफाइड, हैजा, कुकरखाँसी, रेबीज, हेपेटाइटिस व पोलियो इन्जैक्शन आदि।
3. आविष टीके (Toxoid vaccines)-कुछ जीवाणु जनित रोग । सीधे जीवाणुओं के कारण नहीं होते हैं, बल्कि जीवाणुओं द्वारा उत्पादित आविष (Toxin) द्वारा होते हैं। इसका एक अच्छा उदाहरण टिटेनस है। जोकि क्लॉस्ट्रिडियम टिटेनी जीवाणु के लक्षण प्रदर्शित नहीं करता है। किन्तु यह एक न्यूरोटाक्सिन-टिटेनोस्पास्मीन जीवित करता है। इसके द्वारा टिटेनस रोग उत्पन्न होता है। अतः इसके बचाब के लिए आविष टीकों का उपयोग किया जाता है। आविष टीकों का निर्माण आविष को रासायनिक व भौतिक रूप से परिष्कृत करके हानिरहित बनाया जाता है। लेकिन इसका प्रतिरक्षा जन्त्व (Immunogenecity) बना रहता है।
उदाहरण के लिए, डिप्थीरिया एवं टिटनेस के टीके।

4. संयुग्मी एवं इकाई टीके (Conjugated or single vaccines)-संयुग्मी टीके रिकम्बाइनेंट (Recombinant) टीकों के समान होते हैं। इनका निर्माण दो अलग-अलग घटकों के संयोजन का उपयोग करके किया जाता है। इसमें जीवाणुओं के आवरण (Coat) से टुकड़ों का उपयोग किया जाता है। इस संयुग्मन का उपयोग टीके के रूप में किया जाता है।
इकाई टीके में प्रतिरक्षा प्रणाली से प्रतिरक्षी अनुक्रिया को उत्तेजित करने के लिए एक लक्षित रोगजनक का केवल एक हिस्सा ही उपयोग किया जाता है। इसमें एक विशिष्ट रोगाणु से एक विशिष्ट प्रोटीन को पृथक किया जाता है। तथा इसे एक प्रतिजन के रूप में शरीर में प्रविष्ट कराया जाता है। अकोशिकीय पर्टूसिस वैक्सीन (Pertusis vaccine) एवं इनफ्लुएंजा वैक्सीन (Enfluenza vaccine) इकाई वैक्सीन के उदाहरण हैं।
5. अभियांत्रिकी टीके (Engineered vaccines)-आजकल टीकों का बड़े पैमाने पर व्यापारिक उत्पादन पुनर्योगज तकनीकी द्वारा रोगकारक के प्रतिजन (Antigen) को यीस्ट या जीवाणु कोशिका में निर्मित किया जाता है।
उदाहरण-यकृत शोथ-वी का टीका।
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