कक्षा 12वी हिंदी पाठ 07 हरिवंश राय बच्चन का संपूर्ण महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर CLASS 12TH HINDI HARIVANSH RAY BACHCHAN All Questions and Answer in Hindi : ULTIMATE STUDY SUPPORT
प्रश्न 1.
‘साँसों के दो तार’ प्रतीक हैं –
(अ) जीवन
(ब) जिज्ञासा
(स) विवशता
(द) उपेक्षा
उत्तर:
(अ)
प्रश्न 2.
‘दिन का पंथी’ में अलंकार है –
(अ) उपमा
(ब) रूपक
(स) उत्प्रेक्षा
(द) अनुप्रास
उत्तर:
(यह अंश पाठ्यपुस्तक में नहीं है।)
RBSE Class 12 Hindi सृजन Chapter 7 हरिवंश राय बच्चन अति लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
कवि ने जीवन के लिए किसे आवश्यक माना है?
उत्तर:
कवि ने जीवन में प्यार और मस्ती को आवश्यक माना है। जीवन के प्रति तटस्थ भव को भी कवि आवश्यक मानता है।
प्रश्न 2.
कवि स्नेह-सुधा का पान कैसे करता है?
उत्तर:
कवि अपने सभी परिचितों और परिजनों के प्रति स्नेह का भाव रखता है। यही उसके द्वारा ‘स्नेहरूपी सुधा का पान’ किया जाना है।
RBSE Class 12 Hindi सृजन Chapter 7 हरिवंश राय बच्चन लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
‘निज उर के उद्गार और उपहार’ से कवि का क्या तात्पर्य है? स्पष्ट कीजिए।
उतर:
कवि का तात्पर्य है कि उसकी कविता में लोगों के प्रति जो प्रेम और मस्ती के भाव व्यक्त हुए हैं, वे संसार के लिए उसकी अपूर्व भेंट है। उसके पास भौतिक वस्तुओं के उपहार नहीं है। वह अपने मनोभावों को समर्पित करके लोगों के प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त किया करता है।
प्रश्न 2.
‘शीतल वाणी में आग’-के होने का क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
अभिप्राय है कि कवि की वाणी (कविता) यद्यपि से हृदय को शांति और शीतलता प्रदान करने वाली है किन्तु उसमें प्रियतम के विरह में व्याकुल कवि के हृदय की वेदनारूपी आग भी सुलगती रहती है। इसे केवल कवि ही जानता है।
प्रश्न 3.
कवि ने स्वयं को दीवाना क्यों कहा है?
उत्तर:
कवि नहीं चाहता कि उसे एक कवि के रूप में स्मरण किया जाए। वह तो स्वयं को प्रेम का दीवाना बताता है। केवल काव्य-रचना से संसार में प्रसिद्धि पाना उसका लक्ष्य नहीं है। वह तो संसार को प्रेम और मस्ती का ऐसा संदेश देना चाहता है, जिसे सुनकर सारा संसार झूमने, झुकने और लहराने को बाध्य हो जाय। यही कारण है कि कवि स्वयं को “दुनिया का एक नया दीवाना घोषित करना है।
प्रश्न 4.
“मैं निज रोदन में राग लिए फिरता हूँ’ कहने से कवि का क्या आशय है?
उत्तर:
कवि स्वयं को अपने अज्ञात प्रियतम का वियोगी और उसकी याद में विकल बताता है। उसकी यह विरह व्यथा उसके गीतों में व्यक्त होती रहती है। इस प्रकार वह अपने रुदन या पीड़ा को भी गीत के रूप में ही प्रकट करता आ रहा है।
RBSE Class 12 Hindi सृजन Chapter 7 हरिवंश राय बच्चन व्याख्यात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
“मैं निज रोदन में राग लिए फिरता हूँ…………..भाग लिए फिरता हूँ प्रस्तुत पद की व्याख्या कीजिए।
प्रश्न 1.
“मैं दीवानों का………….लिए फिरता हूँ।” प्रस्तुत पद की व्याख्या करें।
उत्तर:
उपर्युक्त पद्यों की व्याख्याओं के लिए व्याख्या भाग में पद्यांश 6 व.8 का अवलोकन करें।
RBSE Class 12 Hindi सृजन Chapter 7 हरिवंश राय बच्चन अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
RBSE Class 12 Hindi सृजन Chapter 7 हरिवंश राय बच्चन वस्तुनिष्ठ प्रश्न
1. “जग जीवन का भार” से आशय है
(क) जीवन के कष्ट
(ख) चिन्ताएँ
(ग) उत्तरदायित्व
(घ) निराश जीवन
2. कवि ने संसार को बताया है –
(क) अति सुंदर
(ख) अपूर्ण
(ग) संवेदनशील
(घ) निर्दय
3. कवि सीखे हुए ज्ञान को –
(क) निरंतर स्मरण कर रहा है।
(ख) जीवन में उतार रहा है।
(ग) भुलाने की चेष्टा कर रहा है।
(घ) औरों को सिखा रहा है।
4. कवि चाहता है कि संसार उसे अपनाए –
(क) एक महान कवि के रूप में
(ख) मार्गदर्शक के रूप में
(ग) एक नए दीवाने के रूप में
(घ) एक दार्शनिक के रूप में
5. संसार को कवि संदेश देना चाहता है –
(क) मस्ती का
(ख) देश प्रेम का
(ग) सत्य की खोज का
(घ) त्यागमय जीवन का
उत्तर:
(ग)
(ख)
(ग)
(ग)
(क)
RBSE Class 12 Hindi सृजन Chapter 7 हरिवंश राय बच्चन अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
‘जग जीवन का भार’ से कवि का क्या आशय है?
उत्तर:
कवि का आशय है कि संसार में रहकर मुनष्य को अनेक उत्तरदायित्वों का निर्वाह करना होता है। इस कारण जीवन आसान नहीं रह जाता। कर्तव्यों के गुरुतर भार को ही ‘जग जीवन का भार’ कहा गया है।
प्रश्न 2.
कवि ने ‘साँसों के दो तार’ किसे कहा तथा क्यों?
उत्तर:
कवि ने जीवन की तुलना तारों के बाजे से की है। जीवन साँसों के चलने तक उसी प्रकार चलता है जैसे तारों को छेड़ने तक उनसे संगीत की मधुर ध्वनि निकलती रहती है।
प्रश्न 3.
‘मैं कभी न जग का ध्यान किया करता हूँ-कथन से कवि का क्या आशय है? अथवा कवि जग का ध्यान क्यों नहीं करता?
उत्तर:
संसार स्वार्थी है। कवि त्याग और निस्वार्थ प्रेम के आदर्श में विश्वास करता है। संसार का आचरण उससे भिन्न है। अत: कवि जग का ध्यान नहीं करता।
प्रश्न 4.
‘जग पूछ रहा उनको’-संसार किसको पूछता है?
उत्तर:
संसार स्वार्थी है। जो उसके स्वार्थ को पूरा करता है, वही उसे प्रिय लगता है। जो उसके मन के अनुकूल बातें कहता है, जो ठकुरसुहाती कहने में विश्वास रखता है, संसार भी उस व्यक्ति को पसंद करता है।
प्रश्न 5.
‘जग की गाते’ से कवि का क्या तात्पर्य है? ।
उत्तर:
‘जग की गाते’ का तात्पर्य है संसार की इच्छाओं के अनुसार काम करना। दूसरों को प्रिय लगने वाली, चाटुकारितापूर्ण, ठकुरसुहाती बातों को ही कवि ने जग की गाते कहा है।
प्रश्न 6.
‘निज उर के उद्गार’ और ‘निज उर के उपहार’ से कवि का आशय क्या है?
उत्तर:
कवि का आशय है कि वह दूसरों को खुश करने के लिए कविता नहीं लिखता। उसकी कविता में उसके मन के भाव प्रकट होते हैं। कविता में प्रकट उसके प्रेम भरे भाव उसकी ओर से लोगों को दी गई भेंट है।
प्रश्न 7.
‘यह अपूर्ण संसार न मुझको भाता’-इस पंक्ति के अनुसार कवि को यह संसार अधूरा क्यों लगता है?
उत्तर:
इस संसार में सब कुछ अपूर्ण-अधूरा है। कुछ भी स्थायी नहीं है, सभी माया-मोह में फंसे हैं तथा राग-द्वेष और स्वार्थपरता में लीन हैं। कवि का अपना अलग ही सपनों का संसार है। कवि उसी में पूर्णता पाता है।
प्रश्न 8.
‘जला हृदय में अग्नि दहा करता हूँ, में कवि का संकेत किस ओर है?
उत्तर:
इस पंक्ति में कवि का संकेत जीवन में आने वाली समस्याओं तथा चिन्ताओं की ओर है। ये चिन्तायें उसे निरन्तर कष्ट देती हैं।
प्रश्न 9.
‘सुख-दुःख दोनों में मग्न’ से कवि का क्या आशय है?
उत्तर:
कवि का आशय है कि वह सुख और दुःख दोनों में समान भाव से जीवन बिताता है।
प्रश्न 10.
कवि ‘संसार-सागर’ को कैसे पार कर रहा है?
उत्तर:
कवि संसाररूपी सागर से तरने के लिए पुण्यरूपी नावे को सहारा नहीं बनाता। वह तो मस्ती के साथ, लहरों के सहारे जीवन बिता रहा है।
प्रश्न 11.
‘यौवन के उन्माद’ से कवि का आशय क्या है?
उत्तर:
‘यौवन के उन्माद’ से कवि का आशय उसके जीवन में व्याप्त वह उत्साह है जिसके साथ वह मस्ती से जीवन बिता रहा है।
प्रश्न 12.
उन्मादों में अवसाद’ का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कवि के कहने का आशय है कि वह युवावस्था को मस्ती के साथ बिताना चाहता है, किन्तु प्रिय को न पा सकने की व्यथा उसे उदास बनाए रखती है।
प्रश्न 13.
कवि के बाहर से हँसने और भीतर से रोने का कारण क्या है?
उत्तर:
प्रिय की मधुर यादें उसकी कविता में प्रसन्नता व्यक्त कराया करती हैं किन्तु प्रिय के अभाव की उदासी भीतर-ही-भीतर उसे रुलाया करती है।
प्रश्न 14.
“मैं, हाय! किसी की याद लिए फिरता हूँ।” कवि किसकी याद में व्याकुल रहा करता है?
उत्तर:
कवि अपनी पत्नी अथवा परमात्मा की याद में व्याकुल रहता है।
प्रश्न 15.
कवि ने संसार को मूढ़ क्यों बताया है?
उत्तर:
संसार के लोग निरंतर सत्य को जानने का दावा किया करते हैं किन्तु अहंकार के कारण वे सत्य को नहीं जान पाते। फिर भी वे सत्य की खोज में लगे हैं। इसी कारण कवि ने उन्हें ‘मूढ़’ (मूर्ख) कहा है।
प्रश्न 16.
‘दाना’ शब्द का अर्थ क्या है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
‘दाना’ शब्द नादान’ को विपरीत अर्थ वाला शब्द है। ‘दाना’ का अर्थ बुद्धिमान है।
प्रश्न 17.
कवि को संसार के प्रति क्या दृष्टिकोण है?
उत्तर:
कवि संसार के और अपने जीवन-लक्ष्य को विपरीत मानता है। संसार भोगों के प्रति आसक्त है और कवि की भोगों में । कोई रुचि नहीं है।
प्रश्न 18.
‘भूपों के प्रासाद’ कवि किस पर निछावर कर सकता है?
उत्तर:
कवि को अपने व्यथित और उदास जीवन से कोई शिकायत नहीं । वह विलासपूर्ण जीवन (राजभवन) को अपने खंडहर तुल्य जीवन पर निछावर कर सकता है।
प्रश्न 19.
कवि के रोने को लोग गाना क्यों समझ लेते हैं?
उत्तर:
कवि शान्त, शीतल, मधुर वाणी में अपने मन की व्यथा प्रकट करता है, किन्तु लोग उसे उसका गीत समझ लेते हैं।
प्रश्न 20.
‘दीवानों का वेश लिए फिरने’ से कवि का आशय क्या है?
उत्तर:
कवि अपने मन की पीड़ा जताकर किसी की सहानुभूति या दया पाना नहीं चाहता। अत: वह अपने हाव-भाव, व्यवहार और कविता में मस्ती और दीवानगी लिए जी रहा है।
प्रश्न 21.
‘आत्मपरिचय’ में कवि का यह कथन ‘शीतल वाणी में आग लिए फिरता हूँ’ का विरोधाभास स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
यद्यपि आग और शीतलता परस्पर विरोधी हैं, किन्तु कवि को आशय है कि उसकी शांत, शीतल वाणी वाली कविता में, उसके हृदय की व्यथा की आग छिपी है।
प्रश्न 22.
कवि ने ‘आत्मपरिचय’ कविता में क्या संदेश दिया है?
उत्तर:
कवि ने ‘आत्मपरिचय’ कविता में संदेश दिया है कि मनुष्य को अपने सभी सांसारिक कर्तव्य निभाते हुए प्रेम और मस्ती से जीवन बिताना चाहिए।
RBSE Class 12 Hindi सृजन Chapter 7 हरिवंश राय बच्चन लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
कवि बच्चन ने जगत को अपूर्ण क्यों माना है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
पूर्णता के बारे में कवि बच्चन के अपने विचार हैं। जीवन में निरंतर भाग-दौड़-सी मची दिखाई देती है। लोग अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए शुभ-अशुभ सभी प्रकार के उपाय अपनाते हैं। बच्चन का विश्वास जीवन को प्रेम और मस्ती के साथ बिताने में हैं। सुख-भोगों के पीछे भागना उन्हें नहीं सुहाता । इसीलिए उन्हें यह संसार अधूरा-सा लगता है और वह अपने सपनों के संसार में मस्त रहते हैं।
प्रश्न 2.
सुख और दुख को लेकर बच्चन जी का जीवन-दर्शन क्या है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
सामान्य लोग सुख आने पर प्रसन्नता से फूले नहीं समाते और दु:ख आने पर भगवान को भी उलाहना देने से नहीं चूकते। कवि बच्चन इस स्थिति से सहमत नहीं हैं। वह सुख-दु:ख दोनों को समान भाव से सहन करने में विश्वास करते हैं। बच्चन की यह मान्यता उनको गीता से प्रभावित बताती है। गीता में भगवान श्रीकृष्ण भी अर्जुन को यही उपदेश देते हैं। सुख-दु:ख, मान-अपमान, लाभ-हानि, जीत-हार सभी परिस्थितियों में मनुष्य को समान व्यवहार करना चाहिए।
प्रश्न 3.
भव-सागर से तरने के लिए कवि क्या उपाय करता है?
उत्तर:
भव-सागर को पार करना अत्यन्त कठिन है। संसार भव-सागर तरने को नाव बनाता है परन्तु कवि सागर में उठने वाली लहरों को ही सागर को पार करने का साधन बना लेता है। कवि का तात्पर्य यह है कि वह संसार की कठिनाइयों के बीच से गुजरकर अपनी सफलता की मंजिल पर पहुँचता है।
प्रश्न 4.
कवि के मन में किसकी याद है? इस याद का कवि पर क्या प्रभाव होता है?
उत्तर:
कवि के मन में अपने प्रियतम की याद है। उसके प्रिय ने उसके जीवन में आकर उसे संगीतमय बना दिया है। वह उसी के प्रेम की स्मृतियों में निरंतर मग्न रहता है। अपने प्रियतम की यादें कवि को मन ही मन रुलाती हैं। यों दुनिया को दिखाने के लिए वह बाहर से हँसता रहता है परन्तु प्रेम की पीड़ा उसे अन्दर ही अन्दर रुलाती है।
प्रश्न 5.
सत्य को जानना कवि की दृष्टि में असम्भव क्यों है?
उत्तर:
कवि का मानना है कि सत्य की खोज कठिन कार्य है। ज्ञानी और अज्ञानी दोनों ही सत्य की खोज में लगे हैं, परन्तु उस तक नहीं पहुँच पाते। अज्ञानी तो अज्ञानी हैं ही परन्तु ज्ञानियों को भी वैसा सच्चा ज्ञान नहीं है, जो सत्यान्वेषण के लिए आवश्यक होता है। वे ज्ञानी होने के मिथ्या अहंकार से ग्रस्त हैं, अत: सत्य को नहीं जान पाते।
प्रश्न 6.
‘फिर मूढ़ न क्यों जग जो इस पर भी सीखे?’ -सांसारिक ज्ञान के बारे में कवि का क्या विचार है?
अथवा
कवि ने संसार को मूर्ख क्यों कहा है?
उत्तर:
कवि ने संसार को मूढ़ (मूर्ख) माना है क्योंकि लोग उस सांसारिक ज्ञान के पीछे पड़े हैं जो उन्हें सत्य तक नहीं पहुँचा सकता। वे परमात्मा तक पहुँचाने वाले सच्चे आत्मिक ज्ञान की उपेक्षा कर रहे हैं। अनुपयुक्त साधन (भौतिक ज्ञान) को अपनाकर सत्य (परमात्मा) को पाने की कामना करने वाला यह संसार मूर्ख ही तो है।
प्रश्न 7.
‘मैं सीख रहा हूँ सीखा ज्ञान भुलाना’-कवि ने क्या सीखा है? उसे वह भुलाना क्यों चाहता है?
उत्तर:
कवि ने ज्ञान तो प्राप्त किया है परन्तु उसका ज्ञान भौतिक अनुभवों पर आधारित है। उसमें त्याग नहीं संग्रह की वृत्ति है; गुणों के कारण किसी का सम्मान करने की भावना नहीं, चापलूसों तथा ठकुरसुहाती करने वालों को महत्त्व देने का भाव है। अत: यह लक्ष्य (सत्य) प्राप्ति में बाधक है। कवि इस अपूर्ण ज्ञान को भुला देना चाहता है।
प्रश्न 8.
संसार से कवि का सम्बन्ध कैसा है?
उत्तर:
कवि के आदर्श संसार की मान्यताओं के विपरीत हैं। कहाँ स्वार्थ से घिरा जग और कहाँ त्याग-प्रेम से परिपूर्ण कवि। इस तरह संसार से सम्बन्ध रखना कवि के लिए सम्भव नहीं है। कवि का संसार से विरोधमूलक सम्बन्ध है।
प्रश्न 9.
‘मैं बना-बना कितने जग रोज मिटाता’-से कवि का क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
कवि होने के कारण वह अपनी कल्पना में अनेक लोकों की रचना करता है। अपने रचे हुए जगत् को जब वह अपने आदर्शों के अनुकूल नहीं पाता तो उनको मिटा देता है। यह सृजन और विनाश उसका नित्य का कार्य है। फिर वह उस संसार की चिन्ता क्यों करे जिससे उसके विचार नहीं मिलते।
प्रश्न 10.
कवि संसार को क्यों ठुकराता है?
उत्तर:
यह संसार नित्य वैभव जोड़ने में लगा रहता है। त्याग भावना से दूर रहकर जोड़ने में लगे जगत् को कवि ठोकर मारता है। कवि परहित के लिए त्याग में विश्वास करता है जबकि संसार संग्रह में लगा है। वह तो जग जीवन का भार उठाए हुए भी जगत को प्यार बाँटा करता है। अपने डर के उपहारों से सभी के मन प्रसन्न करना चाहता है। अत: वह धन-संपत्ति के पीछे भागने वाले संसार को कैसे स्वीकार का सकता है?
प्रश्न 11.
शीतल वाणी में आग लिए फिरने’ से कवि का क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
कवि के विचार लोगों में ओज और उत्साह भरने वाले हैं। कवि संसार के हित के लिए अनुचित और अनुपयोगी विश्वासों का विरोध करता है। वह अपनी बात कहने के लिए अप्रिय शब्दों का प्रयोग नहीं करता। वह वाणी की कठोरता में नहीं मधुरता में विश्वास करता है।’आग’ से कवि का संकेत अपने मन की व्यथा भी है। जिसे वह शीतल वाणी में रचित अपने गीतों में छिपाए हुए है।
प्रश्न 12.
भूपों के प्रासाद किस पर निछावर हैं तथा क्यों?
उत्तर:
राजाओं के महलों की सुख-सुविधा कवि को आकर्षित नहीं करती। वह तो अपनी झोपड़ी (खण्डहर) से ही संतुष्ट है। आत्म-संतोष के कारण राजमहलों को वह खण्डहर पर निछावर करता है। कवि के विचार धन के पीछे भागने वाले जगत से नहीं मिलते। उसका त्याग, प्रेम और मस्ती भरे जीवन में ही विश्वास है। इसी कारण उसे महलों की सुख-सुविधाएँ तुच्छ प्रतीत होती हैं।
प्रश्न 13.
क्यों कवि कहकर संसार मुझे अपनाए’–से कवि का क्या आशय है?
अथवा
कवि ने स्वयं को कवि न कहकर क्या मानने का आग्रह किया है?
उत्तर:
कवि स्वयं को कवि नहीं मानता है। वह तो असीम मस्ती का भाव लिए हुए एक दीवाना है। वह अपने गीतों द्वारा संसार को ऐसी मस्ती का संदेश देता है जिसे सुनकर संसार झूम उठे। कवि की दृष्टि में एक कवि रूप से प्रसिद्धि पाने से अधिक प्रिय और श्रेयस्कर, एक प्रेम के दीवाने के रूप में सभी के हृदयों का हार बनकर जीना ही सार्थक है।
प्रश्न 14.
कवि बच्चन ने जीवन के विरोधाभासों को सहजता से निभाया है। ‘आत्मपरिचय’ कविता के आधार पर अपना मत पक्ष या विपक्ष में दीजिए।
उत्तर:
कवि बच्चन के अनुसार उन्हें सांसारिक जीवन का कठिन भार ढोना पड़ रहा है। इतने पर भी उन्हें जीवन से कोई शिकायत नहीं है। उनके हृदय में सभी के लिए प्यार है। इसी प्रकार एक ओर वह जगत पर ध्यान न देने की बात कहते हैं। उसे स्वार्थी, अपूर्ण, मूढ़, आदि कहते हैं और दूसरी ओर उसी संसार को मस्ती का संदेश सुनाते फिरते हैं। इस प्रकार सिद्ध होता है कि कवि ने जीवन के विरोध भासों को सहजता से निभाया है।
प्रश्न 15.
‘आत्मपरिचय’ कविता में कवि बच्चन ने अपने स्वभाव का परिचय दिया है। आज के परिप्रेक्ष में ऐसे व्यक्ति के सामने क्या समस्याएँ आ सकती हैं? अनुमान के आधार पर लिखिए।
उत्तर:
आज के परिप्रेक्ष में बच्चन जैसे स्वभाव वाले व्यक्ति को अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। आज समाज में आदर्शवादी और अपने आप में केन्द्रित रहने वाले लोगों को काई नहीं पूछता। भावुकता और कल्पना की दुनिया में विचरण करने वालों को लोग दया और उपेक्षा का पात्र समझते हैं।
प्रश्न 16.
‘आत्म-परिचय’ कविता से हमें क्या प्रेरणा मिलती है?
उत्तर:
आत्म-परिचय’ कविता हमें अपने मन के अनुकूल जीवन जीने की प्रेरणा देती है। हमें सांसारिक जीवन की समस्याओं से जूझते हुए भी सभी से स्नेह करना चाहिए। जीवन के सुख-दुःख को समभाव से सहन करना चाहिए। परछिद्रान्वेषण तथा चाटुकारिता से दूर रहना चाहिए। सत्य की प्राप्ति के लिए अहंकारमुक्त होना चाहिए।
प्रश्न 17.
आत्म-परिचय’ कविता में कवि-कथन को संक्षेप में लिखिए।
उत्तर:
आत्म-परिचय’ कविता में कवि ने संसार से अपना सम्बन्ध प्रीति-कलह का बताया है। उसका जीवन विरोधों का सामंजस्य है। इनको साधते-साधते एक बेखुदी, मस्ती और दीवानगी उसके व्यक्तित्व में उतर आई है। यहाँ कवि ने दुनिया के साथ अपने द्विधात्मक और द्वन्द्वात्मक सम्बन्ध के मर्म का उद्घाटन किया है।
प्रश्न 18.
‘आत्मपरिचय’ कविता का प्रतिपाद्य क्या है?
उत्तर:
‘आत्मपरिचय’ कविता का प्रतिपाद्य संसार से प्रेम करना, उसके हित की चिन्ता करना, स्वयं कष्टों में रहकर भी संसार के प्रति अपना कर्त्तव्य पूरा करना, किसी भी निन्दा-स्तुति से अप्रभावित रहकर सभी के साथ समान रूप से प्रेम का व्यवहार करना तथा अपने लक्ष्य के प्रति समर्पित रहकर आगे बढ़ने की प्रेरणा देना है।
प्रश्न 19.
कवि बच्चन के अनुसार आदर्श जीवन का स्वरूप क्या है?
उत्तर:
मानव-जीवन का आदर्श स्वरूप क्या हो? इस पर विद्वानों और दार्शनिकों के अलग-अलग विचार रहे हैं। धर्म-पालन, परोपकार, त्याग आदि के साथ लगे यश और धन की प्राप्ति को भी जीवन के स्वरूप से जोड़ते रहे हैं। ‘आत्म-परिचय’ कविता से बच्चन जी के आदर्श-जीवन का स्वरूप बहुत कुछ ज्ञात होता है। कवि सबको स्नेह बाँटने वाले, धन संग्रह से दूर रहने वाले, अपनी मस्ती में मस्त, सुख-दुख में समान भाव रखने वाले जीवन को ही आदर्श जीवन का स्वरूप मानता है।
RBSE Class 12 Hindi सृजन Chapter 7 हरिवंश राय बच्चन निबंधात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
क्या आप मानते हैं कि कवि बच्चन का संदेश आज की जीवन-प्रणाली में व्यावहारिक हो सकता है? अपने विचार संक्षेप में लिखिए।
उत्तर:
‘आत्म-परिचय’ कविता में अपना परिचय विस्तार से दिया है। अपनी जीवन-शैली, रुचि, अरुचि, मतभेद और सहमति सभी के बारे में कवि ने विस्तार से बताया है। उनका संदेश है कि मस्ती के साथ-साथ प्यार बाँटते हुए जीवन बिताओ। कवि का संदेश सुनने में तो बड़ा प्रेरक और आकर्षक लगता है, किन्तु आज की परिस्थितियों में इसे निभा पाना आसान नहीं होगा। धन, यश और पद के लिए मची आपाधापी के इस युग में, आने सपनों के संसार के साथ जीना, जीवन के साथ एक मजाक ही माना जा सकता है। मेरे विचार से बच्चन के जीवन-दर्शन अपनाना आज अत्यंत कठिन काम है।
प्रश्न 2.
‘आत्म-परिचय’ कविता के अनुसार जगत’ के बारे में कवि बच्चन के विचारों को संक्षेप में लिखिए।
उत्तर:
‘जग-जीवन’ के प्रति कवि बच्चन के विचारों में कई अन्तर्विरोध दिखाई देते हैं। वह आरम्भ में कहते हैं- “मैं जग-जीवन का भार लिए फिरता हूँ, फिर भी जीवन में प्यार लिए फिरता हूँ।” यहाँ कवि संसार का भार उठाए हुए भी प्यार निभाने का संकल्प व्यक्त कर रहा है। किन्तु अगले ही छंद में वह कह उठता है
मैं कभी न जग का ध्यान किया करता हूँ।” यहाँ ‘जग’ से कवि का आशय जगत के स्वार्थी और मनसुहानी बातें सुनने के आदी लोगों से है। यह लोग उन्हीं को पूछते हैं, सम्मान देते हैं, जो उनके मन को भाने वाली बात कहे। स्वाभिमानी कवि बच्चन को भला यह कैसे स्वीकार हो सकता था।
कवि के जगत से कई मतभेद भी हैं। वह संसार को अपूर्ण मानता है। दान-पुण्यों के सहारे भवजाल पार रखने की चाह रखने वाला, बुद्धिमानी के अहंकार के साथ सत्य की खोज न करने वाला, जगत उन्हें मूर्ख प्रतीत होता है। वह जगत से अपेक्षा रखते हैं कि वह उनको एक कवि के रूप में नहीं, बल्कि एक ‘नए दीवाने’ के रूप में अपनाए।
अंत में वह जगत को मस्ती और मुक्त प्रेम का संदेश भी देते हैं। जगत के प्रति बच्चन जी के दृष्टिकोण का यही सार है।
प्रश्न 3.
‘आत्म-परिचय’ कविता के आधार पर आपके मन में कवि बच्चन के व्यक्तित्व का कैसा स्वरूप सामने आता है? लिखिए।
उत्तर:
‘आत्म-परिचय’ एक प्रकार से कवि हरिवंशराय बच्चन के व्यक्तित्व को प्रकाशित करने वाले चलचित्र के समान लगता है। कवि ने इस रचना में अपने निजी और सार्वजनिक, दोनों ही जीवनों पर प्रकाश डाला है। बच्चन एक लोकप्रिय कवि रहे, यह बात निर्विवाद है। उनकी प्रारम्भिक रचना ‘मधुशाला’ ने कवि-मंचों से खूब बाहवाही बटोरी थी। धीरे-धीरे उनकी रचनाएँ गंभीर और जीवन के विविध क्षेत्रों को संबोधित करने वाली हो गईं।
‘आत्म-परिचय’ के आधार पर कवि बच्चन एक भावुक कवि तथा एक स्वतंत्र विचारक सिद्ध होते हैं। वह जगत से एक विशेष प्रकार का संबंध बनाना चाहते हैं। जग जीवन अपूर्ण है, मूढ़ है, दिग्भ्रमित है ऐसा मानते हुए भी वह उसे प्रेम का उपहार बाँटना चाहते हैं।
उनके अनुसार ज्ञान और बुद्धिमत्ता का अहंकार त्यागने पर ही सत्य को प्राप्त किया जा सकता है। इसके साथ कवि के अन्तर्मन की झलक भी इस रचना में दिखाई देती चलती है। कवि के हृदय में किसी की व्यथित कर देने वाली याद बनी रहती है। वह अपने स्वप्न जगत और मान्यताओं से संतुष्ट व्यक्ति है। उन्हें जगत के वैभव से कोई लगाव नहीं।
इस प्रकार कवि बच्चन का व्यक्तित्व बहुआयामी है। उनका संदेश भले ही हमें व्यावहारिक न लगे, पर एक मनमोहक लक्ष्य के रूप में स्वीकार हो ही सकती है।
प्रश्न 4.
‘आत्म-परिचय’ कविता के भाव-पक्ष की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
‘आत्म-परिचय’ कवि बच्चन की एक भावुकता से ओतप्रोत रचना है। कवि ने इस कविता के माध्यम से अपनी भावनाओं, विचारों और जीवन-दर्शन को व्यक्त किया है।
कविता के आरम्भ में ही कवि, जीवन के कर्तव्यों के प्रति अपनी संवेदनशीलता और लोगों के प्रति स्नेह के वितरण में कवि आलोचकों की चिंता नहीं करता। कवि समाज की उस प्रवृत्ति के प्रति खेद व्यक्त करता है जो केवल मन-सुहाती बातें करने वालों को महत्व देती है।
कवि को यह संसार अपूर्ण प्रतीत होता है। इसलिए वह अपने सपनों के संसार में ही खोए रहते हैं। बच्चन का जीवन-दर्शन गीता से प्रभावित होता है। वह जीवन के सुख-दुख समान भाव से सहन करते हैं। बच्चन के हृदय में किसी की याद कसकती रहती है। वह एक विरोधाभासी जीवन जीने को विवश हैं। उनकों ऊपर से हँसना और भीतर से रोना पड़ता है।
कवि का स्पष्ट मत है कि ज्ञान और बुद्धिमत्ता के अहंकार को त्यागे बिना सत्य का साक्षात्कार नहीं हो सकता। कवि की शीतल वाणी में भी आग छिपी रहती है। कवि अपने जीवन से संतुष्ट है। उसे भूपतियों के राजमहल नहीं चाहिए।
कवि अपनी पहचान एक कवि के रूप में नहीं बल्कि एक ‘नए दीवाने’ के रूप में चाहता है।
अंत में कवि मस्ती के साथ जीवन बिताने का संदेश देते हुए अपनी भावनाओं के प्रवाह को विराम देता है।
प्रश्न 5.
शिल्प या कला-पक्ष की दृष्टि से ‘आत्म-परिचय’ पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
‘आत्म-परिचय’ यद्यपि एक भाव-प्रधान रचना है फिर भी कवि ने सहज भाव से कविता को सजाने में रुचि ली है।
कविता की भाषा परिमार्जित, प्रवाहपूर्ण, भावानुकूल तथा लक्षणाशक्ति से सम्पन्न है। पूरी कविता में कवि ने अपना परिचय भावात्मक शैली में दिया है। कविता आत्म-प्रकाशन शैली का सुंदर नमूना है।
“कर दिया……………..फिरता हूँ” इन पंक्तियों में लक्षणा का सौन्दर्य मन को गहराई से छूता है। ‘स्नेह सुरा’, ‘स्वप्नों का संसार’, ‘भव-सागर’ में रूपक अलंकार है। और, ‘और’ में यमक, स्नेह-सुरा, मन-मौजों, क्यों कवि कहकर आदि में अनुप्रास अलंकार है। ये सभी अलंकार सहज भाव से आए हैं।
कविता की सबसे आकर्षक विशेषता उसकी विरोधाभासी उक्तियाँ हैं। ‘मार और प्यार’ को साथ-साथ निभाना, उन्मादों में अवसाद लिए फिरना, बाहर हँसाती भीतर रुलाती, रोदन में राग लिए फिरना, शीतल वाणी में आग लिए फिरना, आदि ऐसी ही परस्पर विरोधी उक्तियाँ हैं।
कविता शांत रस का आभास कराती है। छंद भावनाओं के प्रवाह के अनुकूल हैं।
इस प्रकार ‘आत्म-परिचय’ कला की दृष्टि से भी एक सुंदर रचना है।
हरिवंशराय बच्चन कवि परिचय
‘हालावाद’ के प्रवर्तक, कवि-मंच से श्रोताओं को ‘मधुशाला’ का मधुर प्याला पिलाने वाले कवि हरिवंशराय बच्चन का जन्म सन् 1907 में हुआ था। बच्चन जी की प्रारम्भिक रचनाओं पर फारसी के कवि उमर खय्याम के जीवन दर्शन का प्रभाव स्पष्ट देखा जा सकता है। उनकी रचना ‘मधुशाला’ की काव्य मंचों पर धूम मच गई थी। प्रतिभाशाली कवि होते हुए भी उनकी कविता आरम्भ में इश्क, प्यार, पीड़ा और मयखाने तक सीमित रही। आगे उसमें गैम्भीरता और प्रौढ़ चिंतेने को भी स्थान मिला।
रचनाएँ–कवि हरिवंशराय बच्चन की प्रमुख रचनाएँ हैं-मधुशाला, मधुबाला, मधु कलश, निशा निमंत्रण, एकांत संगीत, मिलन यामिनी, सतरंगिणी, आरती और अंगारे आदि हैं। चार खण्डों में बच्चन की आत्मकथा तथा कुछ अनूदित पुस्तकें भी हैं। सन् 2003 में बच्चन जी का देहावसान हो गया।
हरिवंशराय बच्चन पाठ-परिचय
पाठ्यपुस्तक में कवि बच्चन की कविता ‘आत्म-परिचय’ संगृहीत है। इस रचना में कवि ने जीवन के भार उत्तरदायित्वों के साथ प्यार को भी निभाने का संकल्प व्यक्त किया है। संसार की चिंता किए बिना कवि सबको स्नेह की सुरा बाँटता रहता है। कवि को ठकुरसुहाती बातें करना स्वीकार नहीं है। वह अपने सपनों के संसार में ही रहता है और सुख-दुःख दोनों को समान भाव से स्वीकार करता है। मनमौजी कवि, यौवन की मस्ती के साथ-साथ अवसाद को भी सहज भाव से भोगता है। कवि की मान्यता है कि नादान लोग ही सत्य को जान लेने का दावा करते हैं। वह जग की रीति-नीति की परवाह न करके अपने भाव और विचारे जगत में मग्न रहता है। कवि चाहता है उसे कवि के रूप में नहीं अपितु दीवाने के रूप में याद रखें। कवि का संदेश है मस्ती भरा जीवन॥
काव्यांशों की सप्रसंग व्याख्याएँ आत्मपरिचय
1. मैं जग-जीवन का भार लिए फिरता हूँ,
फिर भी जीवन में प्यार लिए फिरता हूँ,
कर दिया किसी ने झंकृत जिनको छूकर,
मैं साँसों के दो तार लिए फिरता हूँ,
मैं स्नेह-सुरा का पान किया करता हूँ,
मैं कभी न जग का ध्यान किया करता हूँ,
जग पूछ रहा उनको, जो जग की गाते,
मैं अपने मन का गान किया करता हूँ।
कठिन शब्दार्थ-जग-जीवन = संसारिक जीवन। भार = उत्तरदायित्व, जिम्मेदारी। झंकृत = उत्पन्न कर दी, मधुर बनाया। साँसों के दो तार = जीवनरूपी वीणा। स्नेह सुरा = प्रेम की मस्ती। पान = पीना, आनंद लेना। जग की गाते = अन्य लोगों को सुहाने वाली बातें करते हैं। मन का गान = अपने मन को सुहाने वाली बातें।
संदर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित कवि हरिवंशराय बच्चन की रचना ‘आत्मपरिचय’ से लिया गया है। कवि बता रहा है कि वह जीवन के उत्तरदायित्वों को निभाते हुए, सभी के प्रति प्यार और कृतज्ञता व्यक्त करता है। वह जग सुहाती बातें न करके अपने मन के गीत गाया करता है।
व्याख्या-कवि बच्चन कहते हैं कि मेरे ऊपर अनेक सांसारिक उत्तरदायित्व हैं, जिनके कारण मेरा जीवन भार-स्वरूप हो गया है परन्तु मेरे मन में सभी के प्रति प्रेम तथा स्नेह के भाव विद्यमान हैं। दुनियादारी में फंसकर मैं अपने प्रेम-भाव की उपेक्षा नहीं करना। चाहता। किसी ने अपने प्रेमपूर्ण स्पर्श से मेरे जीवनरूपी सितार को संगीतमय कर दिया है। उस मधुर प्रेम-राग के सहारे मैं इस जीवन को बिता रहा हूँ।
मैं सदैव प्रेम की मदिरा में मस्त रहता हूँ। मैं इस संसार की अन्य अनावश्यक बातों की चिन्ता कभी नहीं करता। यह संसार उनकी ही प्रशंसा करता है, जो उसकी हाँ-में-हाँ मिलाया करते हैं, अर्थात् वही कवि संसार में प्रशंसनीय होते हैं जो दूसरों को खुश करने वाली कविताएँ लिखते हैं। परन्तु मैं अपने मन को सुख देने वाले विचारों को ही अपनी कविताओं में प्रकट करता हूँ।
विशेष-
(i) कवि को अपने सम्बन्धियों, मित्रों, प्रियजनों से गहरा स्नेह है। यह प्रेम उसके मन पर मदिरा के समान प्रभाव डालता। है और उसे मस्त बना देता है।
(ii) केवि प्रेम को जीवन के लिए आवश्यक मानता है। किसी की निन्दा-स्तुति का उसे कोई भय नहीं है।
(iii) ‘जग-जीवन’, ‘साँसों के तार’ तथा ‘स्नेह-सुरा’ में रूपक अलंकार है। यहाँ लक्षणा शब्द-शक्ति तथा माधुर्य गुण की छटा दर्शनीय है। भाषा सरल, प्रवाहपूर्ण, विषयानुकूल, कोमल, सरस तथा मधुर लय से परिपूर्ण है। प्रस्तुत गीत पर फारसी के कवि उमर खय्याम का प्रभाव स्पष्ट दिखाई पड़ता है।
2. मैं निज उर के उद्गार लिए फिरता हूँ,
मैं निज उर के उपहार लिए फिरता हूँ,
है यह अपूर्ण संसार न मुझको भाता,
मैं स्वप्नों का संसार लिए फिरता हूँ।
मैं जला हृदय में अग्नि, दहा करता हूँ,
सुख-दुख दोनों में मग्न रहा करता हूँ;
जग भव-सागर तरने को नावे बनाए,
मैं भव मौजों पर मस्त बहा करता हूँ।
कठिन शब्दार्थ-निज = अपने। उर = हृदय। उद्गार = भावनाएँ, विचार। उपहार = प्रेमभाव, सद्भावनाएँ। अपूर्ण = अधूरा, मधुर भावनाओं से रहित। न भाता = अच्छा नहीं लगता। स्वप्नों का संसार = मन को सुहाने वाली भावनाएँ। जला हृदय में अग्नि = सांसारिक दुखों से त्रस्त मन। दहा करता हूँ = दुखी हुआ करता हूँ। मग्न = एक भाव से, अप्रभावित। भव-सागर = संसार रूपी सागर, जन्म-मरण का चक्र। तरने को = उद्धार पाने को। नाव = पुण्य कार्य। भव मौजों पर = सांसारिक जीवन की मस्ती॥
संदर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित कवि हरिवंश राय बच्चन की कविता ‘आत्मपरिचय’ से लिया गया है। इसे अंश में कवि कह रहा है कि वह अपनी कविता द्वारा सभी के कल्याण की कामना करता रहता है। वह अपने सपनों के संसार में मग्न रहता है, वह सुख-दुख को समान भाव से ग्रहण करते हुए मस्ती के साथ जीवन बिताया करता है।
व्याख्या-कवि कहता है कि मैं अपने हृदय के भावों को अपनी कविता द्वारा व्यक्त करता रहता हूँ। मेरी कविता में सारे संसार के कल्याण की कामना रहती है। यही संसार को मेरा प्रेम-उपहार है। मेरी दृष्टि में यह संसार अधूरा है, जो मुझे प्रिय नहीं है। इसीलिए मैं अपने सपनों के संसार में मग्न रहता हूँ जहाँ कोई चिन्ता और अभाव नहीं है।
यद्यपि संसार के कष्ट, अभाव और दुख-दर्द उसके मन को निरन्तर जलाते हैं, परन्तु उसके लिए सुख-दुख दोनों समान हैं। लोग इस संसार को माया और भ्रम मानकर इस संसाररूपी सागार से पार होने के उपाय किया करते हैं। वे पुण्य-कार्यों को नाव बनाकर संसार से मुक्ति चाहा करते हैं लेकिन कवि मस्ती के साथ संसार-सागर की लहरों पर बहता रहता है। आशय यह है कि कवि संसार की कठिनाइयों से विचलित न होकर प्रसन्नतापूर्वक उनके बीच से होकर अपनी मार्ग तलाशता है।
विशेष-
(i) यह संसार अपूर्ण है। इसमें प्रेम नहीं है। यह स्थायी नहीं है। इसमें अभाव, चिन्ताएँ और ईर्ष्या-द्वेष हैं। अत: कवि को यह संसार अच्छा नहीं लगता। वह अपने सपनों के प्रेम से भरे हुए संसार में जीना चाहता है।
(ii) भाषा सरल, प्रवाहपूर्ण तथा परिमार्जित खड़ी बोली है। कवि ने परिचयात्मक शैली में अपने मनोभाव व्यक्त किए हैं।
(iii) ‘मन-मौजों पर मस्त’ में अनुप्रास तथा भवसागर’ में रूपक अलंकार है।
(iv) काव्यांश शांत रस की अनुभूति कराता है।
3. मैं यौवन को उन्माद लिए फिरता हूँ,
उन्मादों में अवसाद लिए फिरता हूँ,
जो मुझको बाहर हँसा, रुलाती भीतर,
मैं हाय किसी की याद लिए फिरता हूँ।
कठिन शब्दार्थ-यौवन = जवानी। उन्माद = मस्ती, पागलपन। अवसाद = दुख, वेदना। बाहर = प्रकट रूप में। भीतर = मन में।
संदर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित कवि हरिवंश राय बच्चन की कविता से लिया गया है। कवि इस अंश में अपनी परस्पर विरोधी मनोभावनाओं को व्यक्त कर रहा है।
व्याख्या-कवि कहता है कि वह युवावस्था की मस्ती या उत्साह से भरा हुआ है। उत्साह की अधिकता उसे कभी-कभी पागल-सा बना देती है। वह चाहता है कि सारा जगत् उसी की तरह उत्साह से परिपूर्ण हो जाय। वह सभी को प्रेम की शिक्षा देना चाहता है किन्तु अपने प्रयत्न में सफलता न मिलती देख उसका हृदय निराशा और वेदना से भर जाता है। कवि कहता है कि उसके हृदय में किसी अज्ञात प्रेमी की याद छिपी है। यह याद मुझे प्रकट रूप में तो हँसते रहने को विवश करती रहती है। किन्तु मेरा मन उस अज्ञात को पाने के लिए रोता रहता है।
विशेष-
(i) कवि ने इस अंश में अपने मन के विचित्र अन्तर्द्वन्द्व को व्यक्त किया है। उन्माद और अवसाद दोनों का एक साथ रहना परस्पर विरोधी भाव है। इसका आशय यही है कि कवि जगत में अपने अनुकूल वातावरण न पाकर निराशा से भर जाता है।
(ii) बाहर से हँसना और भीतर से रोना तथा किसी अज्ञात की यादों में खोना, इस अंश में छायावाद और रहस्यवाद की झलक दिख रही है।
(iii) भाषा सरल, परिमार्जित, भावानुकूल और प्रवाहपूर्ण है।
(iv) शैली परिचयात्मक तथा भावुकता में भीगी हुई है।
4. कर यत्न मिटे सब, सत्य किसी ने जाना?
नादान वहीं है, हाय, जहाँ पर दाना!
फिर मूढ़ न क्या जग, जो इस पर भी सीखे?
मैं सीख रहा हूँ, सीखा ज्ञान भुलाना!
कठिन शब्दार्थ–यत्न = उपाय। मिटे = मिट गए, संसार से चले गए। नादान = अज्ञानी । दाना = बुद्धिमान, ज्ञानी । मूढ़ = मूर्ख। सीखे = ज्ञान पाने का यत्न करे। सीख रहा = प्रयत्न कर रहा हूँ॥
संदर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित कवि हरिवंश राय बच्चन की कविता ‘आत्म-परिचय’ से लिया गया है। इस अंश में कवि सत्य की खोज में लगे लोगों को नादान बताते हुए, ज्ञान के अहंकार से मुक्त होने का संदेश दे रहा है।
व्याख्या-कवि कहता है कि संसार में सभी लोग परम सत्य की खोज में लगे हैं परन्तु उनके नानाविध प्रयत्न सफल नहीं होते और वे थक-हारकर बैठ जाते हैं या फिर यत्न करते-करते ही संसार से चले जाते हैं। सांसारिक बातों को जानकर ही लोग स्वयं को ज्ञान सम्पन्न समझते हैं। परन्तु वास्तव में वे अज्ञानी ही हैं। सच्चे ज्ञान के अभाव में सत्य का साक्षात्कार नहीं हो सकता, इस बात को जानकर भी वे अनजान बने रहते हैं। इतने पर भी लोग सांसारिक ज्ञान को सीखने में लगे हुए हैं। ऐसे लोगों को मूर्ख ही कहा जा सकता है। यह जानने के बाद मैंने जो कुछ अब तक सीखा है, उसे भुलाने की चेष्टा कर रहा हूँ।
विशेष-
(i) कवि ने संसार को मूढ़ कहा है। सत्य का साक्षात्कार सच्चे ज्ञान के बिना संभव नहीं है, परंतु यह संसार के लोग सांसारिक ज्ञान में फंसे रहकर भी सत्य को पाने के सपने देखते हैं।
(ii) ‘दाना’ शब्द नादान का विपरीतार्थक शब्द है। नादान नासमझ व्यक्ति को कहा जाता है और दाना बुद्धिमान को।
(iii) उपर्युक्त पद्यांश की भाषा सरल एवं भावानुकूल है। कवि ने तत्सम शब्दावलीयुक्त खड़ी बोली का प्रयोग किया है। गीत छंद का प्रयोग हुआ है। कवि ने लय और तुक का ध्यान रखा है।
(iv) उपर्युक्त काव्यांश में ‘कर यत्न मिटे सब, सत्य किसी ने जाना?’ में प्रश्नालंकार का प्रयोग हुआ है। साथ ही विरोधाभास अलंकार का प्रयोग भी है।
5. मैं और, और जगे और, कहाँ का नाता,
मैं बना-बना कितने जग रोज मिटाता,
जग जिस पृथ्वी पर जोड़ा करता वैभव
मैं प्रति पग से उस पृथ्वी को ठुकराता!
कठिन शब्दार्थ-और = भिन्न, अलग। नाता = संबंध बना-बना = कल्पना कर-कर के। मिटाता = त्याग देता, भुला देता॥ जोड़ा करता = इकट्ठा किया करता है। वैभव = संपत्ति । प्रति = प्रत्येक। पग = पैर। ठुकराता = ठोकर मारता॥
संदर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित कवि हरिवंशराय बच्चन की कविता ‘आत्म-परिचय’ से लिया गया है। कपि अपना तथा संसार का लक्ष्य अलग-अलग बता रहा है। उसे सांसारिक वैभव से कोई लगाव नहीं है।
व्याख्या-कवि कहता है कि इस संसार से उसका कोई सम्बन्ध नहीं है। उसके और संसार के लक्ष्य अलग-अलग हैं। कवि सत्य की खोज के लिए आध्यात्मिक ज्ञान को पाने में लगा है और यह संसार भौतिक सुख-सुविधाओं के संग्रह में लीन है। कवि होने के नाते वह अपनी कल्पना में अनेक लोकों का निर्माण करता है और अनुपयुक्त देखकर उनको मिटा देता है।
| संसार के लोग दिन-रात जिस धरती पर धन-संपत्ति जोड़ने में लगे रहते हैं, उस भौतिक सुखों से पूर्ण धरती से उसे कोई लगाव नहीं है। वह इस वैभव के भूखे सांसारिक जीवन को ठुकराकर सत्य और प्रेम के पथ पर चलते रहना चाहता है।
विशेष-
(i) कवि ने स्पष्ट कहा है कि उसके और इस भौतिक सुखों के संग्रह करने वाले सांसारिक जीवन के रास्ते अलग-अलग हैं। उसने वैभव को ठुकरा कर प्रेम और सत्य के ज्ञान का मार्ग चुन लिया है।
(ii) कवि को जगत की चिन्ता नहीं है। वह तो एक कल्पनाशील कवि होने के कारण नित्य ही नए-नए संसार रचा करता और मिटाया करता है।
(iii) काव्यांश में कवि ने सांसारिक विषयों में अपनी अरुचि का और आध्यात्मिक चिंतन के प्रति आकर्षण का संकेत किया है।
(iv) सरल भाषा में गहन-गम्भीर भावों को व्यक्त किया है।
(v) ‘और’ तथा ‘और’ के अर्थ भिन्न होने के कारण यमक अलंकार है।
6. मैं निज रोदन में राग लिए फिरता हूँ,
शीतल वाणी में आग लिए फिरता हूँ,
हो जिस पर भूपों के प्रासाद निछावर,
मैं वह खंडहर का भाग लिए फिरता हूँ।
कठिन-शब्दार्थ-रोदन = रोना। राग = संगीत शीतल = सुनने में मधुर लगने वाली। वाणी = कविता, बोली। आग = मन की व्यथा। भूप = राजा । प्रासाद = राज-भवन, महल। खंडहर = टूटा हुआ भवन।
संदर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित कवि हरिवंशराय बच्चन की कविता ‘आत्म-परिचय’ से लिया गया है। कवि परस्पर विरोधी कथनों के द्वारा अपनी मनोभावनाओं से परिचित करा रहा है।
व्याख्या-कवि इसी कविता में कह चुका है कि वह किसी अज्ञात प्रिय की याद अपने हृदय में छिपाए जी रहा है। उस प्रियतम (परमेश्वर) के वियोग में व्याकुल कवि का हृदय जब रोता है, तो उसका वह रुदन कवि के गीतों के रूप में सबके सामने प्रकट हो जाता है। कवि के ये गीत सुनने में शीतल और मधुर होते हैं, किन्तु इनके भीतर उसकी विरह व्यथा भी अलग दहकती रहती है। कवि फिर भी अपने खंडहर जैसे जीवन से संतुष्ट है। वह अपने इस जीवन के सामने राजभवनों के सुखों को भी तुच्छ समझता है। वह प्रिय की स्मृतियों से जुड़े, भग्न-भवन जैसे जीवन को संतुष्ट भाव से जिए जा रहा है।
विशेष-
(i) कवि के रुदन में संगीत छिपा है। उसकी शीतल वाणी में आग छिपी है। वह अपने जीवनरूपी खंडहर के एक छोटे से भाग पर राजाओं के महल न्यौछावर कर सकता है। लगता है कवि का हृदय विरोधाभासों का निवास है।
(ii) अपनी कोमल और अति संवेदनशील भावनाएँ, कवि ने अपने सटीक शब्द-चयन से व्यक्त कर दी हैं।
(iii) भाषा सशक्त है। विरोधाभासी शैली मन को चकित करती है।
(iv) काव्यांश में विरोधाभास अलंकार है।
(v) छायावादी झलक काव्यांश में आकर्षण उत्पन्न कर रही है।
7. मैं रोया, इसको तुम कहते हो गाना,
मैं फूट पड़ा, तुम कहते, छंद बनाना,
क्यों कवि कहकर संसार मुझे अपनाए,
मैं दुनिया का हूँ, एक नया दीवाना!
कठिन शब्दार्थ-रोया = अपनी पीड़ा व्यक्त की। गाना = कविता, गीत। फूट पड़ा = मन की वेदना प्रकट की। छंद बनाना = कविता रचना। दीवाना = मस्ती से जीने वाला।
संदर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित कवि हरिवंशराय बच्चन की कविता ‘आत्म-परिचय’ से लिया गया है। इस अंश में कवि चाहता है कि संसार उसे एक कवि के रूप में नहीं एक मस्ती से जीने वाले व्यक्ति के रूप अपनाए।
व्याख्या-कवि कहता है कि जब वह अपने मन की पीड़ा को प्रकट करता है तो लोग उसे गीत कहने लगते हैं। जब उसके हृदय में भरी वेदना गीत बन कर फूट पड़ी तो लोग कहने लगे कि वह काव्य रचना कर रहा है। लोग उसको कवि मानकर उसका सम्मान करना चाहते हैं किन्तु कवि को अपनी यह पहचान स्वीकार नहीं है। वह तो चाहता है कि लोग उसे एक नए प्रेम दीवाने के रूप में जाने। छंदों के रूप में उसकी वेदना ही फूट-फूटकर रोई है। वह कवि नहीं बल्कि एक पागल-प्रेमी है।
विशेष-
(i) कवि रोता है तो उसका रुदन उसके गीतों में प्रकट होता है। लोगों को भ्रम होता है कि वह गीत गा रहा है। उसके हृदय के रुदन को लोग उसका गाना समझ लेते हैं। मैं फूट पड़ा’ से कवि का तात्पर्य है कि उसके मन की पीड़ा ही शब्दों का रूप धारण करके बरबस बाहर आ जाती है। वह उसे रोक नहीं पाता॥
(ii) कवि नहीं चाहता कि लोग उसे कवि माने । वह तो प्रेम-दीवाना है। वास्तव में वह स्वयं को कवि नहीं मानता क्योंकि वह कविता की रचना का प्रयास ही नहीं करता। उसके मन में स्थित विश्व-प्रेम के प्रति दीवानगी के भाव बिना किसी प्रयास के स्वत: ह। हृदय से बाहर आ जाते हैं।
(iii) कवि की गाथा भावों को सटीकता से व्यक्त करने में समर्थ है। ‘फूट पड़ना’, ‘छंद बनाना’, मुहावरे कवि के कथन को प्रभावी बना रहे हैं।
(iv) ‘क्यों कवि कहकर’ में अनुप्रास अलंकार है।
8. मैं दीवानों का वेश लिए फिरता हूँ,
मैं मादकता नि:शेष लिए फिरता हूँ,
जिसको सुनकर जग झूम, उठे, लहराए,
मैं मस्ती का सन्देश लिए फिरता हूँ।
कठिन शब्दार्थ-वेश = रूप। मादकता = मस्ती, मोहकता। नि:शेष = सारी, सम्पूर्ण । झूम = प्रसन्न होकर। झुके = सम्मान दे, महत्त्व स्वीकार करे। लहराए = मस्त हो जाए। सन्देश = विचार, मन की बात॥
सन्दर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुते पद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित कवि हरिवंशराय बच्चन की कविता : आत्म-परिचय’ से लिया गया है। इस अंश में कवि सारे जगत को मस्ती भरे प्रेम का संदेश दे रहा है।
व्याख्या-कवि कहता है कि दीवानगी केवल इसके मन में ही नहीं है, उसकी वेशभूषा से भी दीवानापन झलकता है। उसका सारा जीवन प्रेम और मस्ती से भरा हुआ है। कवि जहाँ भी जाता है, वहाँ लोगों को मस्त रहने और जीवन को अपने अनुसार जीने का संदेश देता है। उसका संदेश लोगों को गहराई से प्रभावित करता है और उसको झूमने, झुकने और मस्ती से लहराने के लिए बाध्य कर देता है।
विशेष-
(i) काव्यांश में लेखक ने जीवन को सहज मस्ती का और सबके प्रति प्रेम-भाव बनाये रखकर जीने का संदेश दिया है।
(ii) संसार के झंझट तो चलते रहेंगे, लेकिन व्यक्ति को मस्ती और प्रेम से जीवन बिताना चाहिए। सुख और दुख दोनों को समान भाव से ग्रहण करना चाहिए। काव्यांश से यह संदेश भी प्राप्त होता है।
(iii) भाषा भावों के अनुरूप और प्रवाहपूर्ण है।
(iv) कथन-शैली, व्यक्तियों के मन में सहज जीवन की प्रेरणा देने वाली है।
(v) ‘झूम, झुके’ में अनुप्रास अलंकार है।