जीवविज्ञान की अत्यंत महत्वपूर्ण टॉपिक्स :- मोनेरा, आध बैक्टीरिया,यू बैक्टीरिया, रसायन संश्लेषी बैक्टीरिया ।। कवक क्या है, उदाहरण, प्रकार, प्रोटोजोआ, अमीबीय, कशायी, पक्ष्मायी, स्पोरोजोआ ।। माइकोप्लाज्मा क्या है , परिभाषा , प्रकार , प्रॉटिस्टा , क्राइसोफाइट , डाइनो प्लैजिलेट , युग्लिनॉइड ।। अलैंगिक जनन , फाइकोमाइसिटीज , एस्कोमाइसिटीज , बेसिडियोमाइसिटीज , ड्यूटिरोमाइसिटीज की संपूर्ण जानकारी हिंदी में : ULTIMATE STUDY SUPPORT

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मोनेरा, आध बैक्टीरिया,यू बैक्टीरिया, रसायन संश्लेषी बैक्टीरिया



मोनेरा (Monera) : सभी जीवाणुओं को मोनेरा जगत में रखा गया है।  जीवाणु संख्या में अधिक तथा सभी प्रकार के आवासों में पाए जाते है।  जीवाणुओं को उनके आकार के आधार पर चार समूहों में बांटा गया है।  गोलाकार जीवाणुओं को कोकस , घडाकर जीवाणुओं को बेसिलस , सर्पिलाकार जीवाणुओं को स्पाररिलम व कीमाकार जीवाणुओं को तिबिर्थम कहते है।  जीवाणुओं में विभिन्नताए पाई जाती है।
1. सभी जीवाणु एक कोशिकीय अतिसूक्ष्म जीव है , इनकी कोशिका भित्ति म्युक्रोपेप्टाइड की बनी होती है।
2. इनकी कोशिका में सुनिश्चित केन्द्रक का अभाव होता है अर्थात प्रेयोकेरोथिटिक प्रकार की कोशिका पायी जाती है।
3. इनमे डीएनए व RNA दोनों पाए जाते है।
4. इनमें जनन सामान्यत विखण्डन द्वारा होता है।
5. अधिकांश जीवाणु पर्णरहित के अभाव में परपोषित होते है , ये मृतोपजीवी परजीवी है।


इनमे अन्किल्पी अनोक्सीय श्वशन होता है तथा मेथेन उत्पन्न करते है , ये पशुओ की आंत्र में भी पाए जाते है।
युबैक्टीरिया (eubacteria ) : इन्हे वास्तविक जीवाणु भी कहते है , इनमे कठोर कोशिका भित्ति व पक्षमाभ पाये जाते है।
सायोबक्टिरिया : ये स्वपोषी होते है इनमे क्लोरोफिल-ए पाया जाता है , सायोबैक्टीरिया एक कोशिकीय , क्लोनीय व तंतुमय होते है।  जैलिनुमा आवरण से ढके रहते है , ये प्रदूषित जल में अधिक फलते फूलते है।
रसायन संश्लेषी बैक्टीरिया : कुछ जीवाणु जैसे नोस्टॉक , ऐनाबिना , टेटरोसिस्ट द्वारा पर्यावरण की नाइट्रोजन को स्थिर करने की क्षमता रखते है , ये नाइट्रेट , नाइट्राइट एवं अमोनिया जैसे कार्बनिक पदार्थों को ओक्सिकृत कर उनसे मुक्त ऊर्जा को ATP के रूप में संग्रह करते है , ये नाइट्रोजन फोस्फोरस आयरन एवं सल्फर के पुनचक्रण में मदद करते है।
परपोषी जीवाणु प्रकृति में पाये जाने वाले अपघटक होते है , ये लाभदायक एवं हानिकारक दोनों प्रकार के होते है।  ये दूध से दही बनाने में प्रतिजैविको के उत्पादन में नाइट्रोजन स्थिरीकरण में लाभदायक होते है।
कुछ जीवाणु मनुष्य , पादपों व पशुओ में रोग उत्पन्न कर हानि पहुचाते है।
जीवाणुओं में प्रजनन , कोशिका विभाजन , बीजाणुओं द्वारा व लैंगिक जनन द्वारा होता है। 



माइकोप्लाज्मा क्या है , परिभाषा , प्रकार , प्रॉटिस्टा , क्राइसोफाइट , डाइनो प्लैजिलेट , युग्लिनॉइड



mycoplasma in hindi माइकोप्लाज्मा : ये ऐसे जीवधारी होते है जिनमे कोशिका भित्ति नहीं पायी जाती है , ये सबसे छोटे सजीव होते है।  ये ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में भी जीवित रह सकते है।  ये पादपों व जन्तुओं में अनेक रोग उत्पन्न करते है।
प्रॉटिस्टा (protista) : सामान्य लक्षण
1.  इसमें एक कोशिकीय यूकेरियोटिक सजीवों को रखा गया है।
2. इसमें प्रकाश व अप्रकाश संश्लेषी दोनों प्रकार के सजीवों को रखा गया है।
3. इनमे सुसंगठित केन्द्रक व झिल्ली युक्त कोशिकांग होते है।
4. इनमें कोशिका भित्ति उपस्थित अथवा अनुपस्थित होती है।
5. इनमे पोषण स्वपोषी या परपोषी प्रकार का होता है।
6. इनमें चलन पक्ष्माम या कशायिका द्वारा होता है , ये अलैंगिक कोशिका संलयन तथा अलैंगिक जनन द्वारा प्रजनन करते है।



1. क्राइसोफाइट : ये जीव स्वच्छ जल व लवणीय पर्यावरण दोनों में पाये जाते है , इस समूह में डायएटम तथा सुनहरे शैवाल आते है।  डायएटम में दोहरी सिलिकामय भित्ति पायी जाती है जिससे की ये नष्ट नहीं होते है तथा मृत डायएटम बड़ी संख्या में भित्ति अवशेष छोड़ते है , जो डायएटमी मृदा में बदल जाती है , कणमय होने के कारण इस मृदा का उपयोग पॉलिस करने तथा तेलों व सिरप के निस्पंदन में उपयोग किया जाता है।
2. डाइनो प्लैजिलेट : ये मुख्यत समुद्री व प्रकाश संश्लेषी होते है , इनमें पीले , हरे , भूरे , नीले अथवा लाल वर्णक दिखाई देते है , इनकी कोशिका भित्ति सेलुलोस की बनी होती है।  इनमें दो कशाय पाये जाते है , जिनमें एक लम्बवत व दूसरा अनुप्रस्थ रूप से खांच में स्थित होते है , लाल डाइनोप्लैजिलेट में विस्फोटस से समुद्र का रंग लाल दिखाई देता है जिससे निकले विष से बड़ी संख्या में मछली एवं अन्य समुद्री जीव मर जाते है।
उदाहरण : गोनियोलैक्स
3. युग्लिनॉइड : स्वच्छ व स्थिर जल में पाये जाते है इनमें कोशिका भित्ति के स्थान पर प्रोटीन युक्त पेलिकल होती है , जो इनकी संरचना को लचीला बनाती है , इनमें एक छोटा व एक बड़ा दो कशाय होते है।  इनमें कुछ पादपों की तरह हरितलवक होते है अत: ये प्रकाश संश्लेषन कर सकते है। उदाहरण : युग्लिना
4. अवपंक कवक : ये मृतपोषी प्रोटिस्टा होते है , ये सड़ी , गली पत्तियों , टहनियों से अपना भोजन प्राप्त करते है , ये अनुकूल समय में समूह व प्रतिकूल समय में बीजाणु बनाते है।
5. प्रोटोजोआ : ये जीव परपोषी होते है जो प्रॉटिस्टा में रखे रहते है।


कवक क्या है, उदाहरण, प्रकार, प्रोटोजोआ, अमीबीय, कशायी, पक्ष्मायी, स्पोरोजोआ



प्रोटोजोआ : प्रोटिस्टा में रखे गये ये जीव परपोषी होते है , गति करने के आधार पर ये चार प्रकार के होते है।
1. अमीबीय प्रोटोजोआ : ये स्वच्छ जल , समुद्री जल व नम मृदा में पाये जाते है।  कुटपाडो की सहायता से गमन व शिकार करते है , इनके कुछ सदस्य परजीवी होते है।
उदाहरण : अमीबा
2. कशायी प्रॉटोजोआ : ये स्वतंत्र या परजीवी होते है , इनमे गति करने के लिए कशाय पाये जाते है।  इनके कुछ सदस्य निद्रालुरोग उत्पन्न करते है।
जैसे : टिपैनोसीमा।
3. पक्ष्मायी प्रोटोजोआ : ये जलीय व तीव्र गति करने वाले जीव है , इनके शरीर पर हजारों की संख्या में पक्ष्माय पाये जाते है , जिनकी सहायता से ये गति व भोजन प्राप्त करते है।
जैसे : पैरामिशियम


4. स्पोरोजोआ : ये संक्रमणकारी प्रोटोजोआ होते है , इनमे गमन के लिए कोई अक्ष नहीं होते है , ये अपना जीवन चक्र कम से कम दो परपोषीयों में पूरा करते है , ये अधिकांशत रोग जनक होते है।
जैसे : प्लाज मेडियम (मलेरिया परजीवी )
कवक (Fungi ) (Fungi in hindi)
1. कवक में पर्णहरित का अभाव होता है , अत: ये प्रकाश संश्लेषण नहीं कर पाते है।
2. इनकी कोशिका भित्ति सेलुलोस व काइटिन की बनी होती है।
3. इनका शरीर धागे के समान संरचनाओं से मिलकर बना होता है जिन्हें कवक तन्तु कहते है।
4. कवक तन्तु आपस में मिलकर कवक जाल का निर्माण करते है।
5. कवक गर्म , नम , छायदार अथवा कम प्रकाश वाले स्थानों पर पाये जाते है।
6. पोषण के आधार पर कवक परजीवी या मृतोपजीवी होते है।
7. कभी कभी कार्बोहाइड्रेट , प्रोटीन व ग्लाइकोजन भी पाया जाता है।
8. कवक में कायिक जनक खंडन , विखंडन या मुलुकन द्वारा होता है।
9. अलैंगिक जनन बीजाणु (कोनेडिया) द्वारा होता है। 




अलैंगिक जनन , फाइकोमाइसिटीज , एस्कोमाइसिटीज , बेसिडियोमाइसिटीज , ड्यूटिरोमाइसिटीज

(phycomycetes and zygomycetes in hindi) अलैंगिक जनन : लैंगिक जनन समयुग्मी या विषम युग्मी प्रकार का होता है। लैंगिक जनन ऊस्पोर , ऐस्कस , बीजाणु तथा बेसिडियम बीजाणु द्वारा होता है।  बीजाणु सुस्पष्ट संरचनाओ के रूप में उत्पन्न होते हैं , जो फलनकाय बनाते है।  लैंगिक जनन निम्न तीन सोपान (चरण) में होता है।


1. दोचल अथवा अचल युग्मकों के प्रियेप्लाज्म का संलयन होता है जिसे प्लैज्मोजेमी कहते है।


2. दो युग्मकों के केन्द्रको का संलयन होता है जिसे केन्द्रक संलयन कहते है।


3. निषेचन से बने युग्मनज में अर्धसूत्री विभाजन के कारण अगुणित बीजाणु बनते है , जो फलनकाय बनाते है।
फाइकोमाइसिटीज
5. इनका कवक जाल षटयुक्त होता हैं।


6. इनमे कायिक जनन , अलैंगिक जनन व लैंगिक जनन होता है।


7. कोशिका भित्ति काइटिन की बनी होती है।

8. अलैंगिक जनन उलेमाइडोस्पोर कोनिडिया या  ऑइडिया द्वारा होता है।


9. लैंगिक जनन युग्मक धानियो के संपर्क द्वारा होता है।

10. इनका फलनकार  ऐस्कस कहलाता है , जिनमे एस्केस्पोर बनते है।
उदाहरण : यीस्ट , पेनिसिलियम , न्यूरोस्पोरा , एस्परजिलस
बेसिडियोमाइसिटीज
1. इस वर्ग के कवक मिट्टी में , लट्ठों पर तथा वृक्ष के ढूंढो पर या सजीवों में परजीवी के रूप में पाए जाते है।
2. कायिक जाल शाखित तथा परयुक्त होता है।

3. कायिक जनन खण्डन विधि द्वारा होता है।


4. अलैंगिक जनन प्राय: नहीं होता है।


5. लैंगिक अंग इनमें नहीं होता है , परन्तु दो कायिक कोशिकाओं का संलयन होता है जिससे बेसिडियम बनते है। 

6. बेसिडियम फलनकाय में लगे रहते है , जिसे बेसिडियम कॉर्प कहते है।
उदाहरण : एगौरिकम , ऑस्टीलैगो , पाक्सिनिया


ड्यूटिरोमाइसिटीज


1. इन्हे प्राय: अपूर्ण कवक भी कहते है।

2. इन कवको की केवल कायिक प्रावस्था ही ज्ञात है।

3. इस वर्ग के सदस्य केवल अलैंगिक कोनिडिया बीजाणुओं द्वारा जनन करते है।


4. इनका कवक जाल शाखित व पटयुक्त होता है।

5. ये मृतोपजीवी या परजीवी होते है , लेकिन अधिकांश सदस्य अपशिष्ट के अपघटक होते है।


6. ये खनिजों के चक्रण में सहायक होते है
उदाहरण : ऑल्टरनेरिया , कोलीटोट्राइकम , ट्राइकोडर्मा आदि।
 

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2 टिप्पणियाँ

NCERT + CGBSE Class 8,9,10,11,12 Notes in Hindi with Questions and Answers By Bhushan Sahu - ULTIMATE STUDY SUPPORT

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