NCERT कक्षा 12वी अध्याय 03 वैद्युत रसायन संपूर्ण समाधान एवं नोट्स हिन्दी में।। NCERT CLASS 12TH CHAPTER 03 FULL SOLUTION + Notes IN HINDI : ULTIMATE STUDY SUPPORT

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 वैधुत रसायन परिभाषा : रसायन विज्ञान की वह शाखा जिसके अन्तर्गत रासायनिक ऊर्जा को विधुत ऊर्जा में तथा विधुत ऊर्जा को रासायनिक ऊर्जा में तथा उसमे होने वाले परिवर्तनो का अध्ययन किया जाता है उसे वैधुत रसायन कहते है।
जिस पात्र में ये घटनाएं होते है उसे सेल(cell) कहते है।
सेल दो प्रकार के होते हैं (There are two types of cells.)
(1) वैधुत रासायनिक सेल (electrochemical cell)
(2) वैधुत अपघटनी सेल (electrolytic cell)

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(1) वैधुत रासायनिक सेल (electrochemical cell)
वे सेल जो रासायनिक ऊर्जा को विधुत ऊर्जा में बदलते है उसे वैधुत रासायनिक सैल कहते है।
जैसे : गैल्वैनी , वोल्टीरा सेल।
(2) वैधुत अपघटनी सेल (electrolytic cell)
वे सेल जो वैधुत ऊर्जा को रासायनिक ऊर्जा में बदलते है उसे वैधुत अपघटनी सेल (electrolytic cell) कहते है।
बनावट :
इस सेल में दो पात्र होते है , एक पात्र में Zn की छड़ लेकर उसमे ZnSO4 का विलयन भर लेते है। दूसरे पात्र में Cu की छड़ लेकर उसमे CuSO4 का विलयन भर लेते है।  दोनों अर्द्ध सैलों के मध्य उत्पन्न विभवांतर को ज्ञात करने के लिए दोनों छड़ को विभवमापी से जोड़ देते है।
दोनों अर्ध सेलों का सम्बन्ध लवण सेतु से कर दिया जाता है।
नोट : लवण सेतु U आकार की नली है इसमें KCl या अमोनिया क्लोराइड तथा ऐगार ऐगार जैली का पेस्ट भरा होता है।
कार्यप्रणाली :
(1) Zn की तुलना में Cu अधिक सक्रीय होता है अतः Zn (ज़िंक) की छड़ से Zn2+ आयन विलयन में जाते है तथा इलेक्ट्रॉन Zn की छड़ पर शेष रह जाते है।
Zn   =      Zn2+   + 2e–
(2) Zn की छड़ का ऑक्सीकरण होता है अतः इसे एनोड कहते है।
(3) इलेक्ट्रॉन Zn (जिंक ) की छड़ पर शेष रहने के कारण इसे ऋण पोल (pole) कहते हैं।
(4) Zn की छड़ से इलेक्ट्रॉन बाह्य परिपथ से होते हुए Cu की छड़ में जाते है , Cu की छड़ को धन पोल कहते है।
(5) Cu की छड़ पर विलयन में उपस्थित Cu2+ आयन Cu में उपचयित हो जाते है।  Cu की छड़ पर अपचयन होने के कारण इसे कैथोड कहते है।
Cu2+  2e–   =  Cu
(6) विद्युत धारा इलेक्ट्रॉन बहने की दिशा के विपरीत दिशा में जाता है अर्थात विधुत धारा Cu की छड़ से Zn की छड़ की ओर प्रभावित होती है।
(7) सेल अभिक्रिया निम्न है।
बायां इलेक्ट्रोड:Zn(s) → Zn2+    + 2e–ऑक्सीकरणदायां इलेक्ट्रोड:Cu2+   + 2e–    → Cu(s)अपचयन
Zn(s)           +         Cu2+        →Zn2+         +Cu (s)
 
(8) दोनों अर्द्ध सेलों के विभव के अंतर को सेल का विधुत वाहक बल कहते है इसे Ecell से व्यक्त करते है।  डेनियल सैल का मानक विधुत वाहक बल + 1.10 वोल्ट
E0cell   =  E0right   –  E0left
E0cell   =  E0cathode   –  E0anode
E0cell   =  E0Cu2+/Cu   –  E0Zn2+/Zn
E0cell   =  +0.34   –  (- 0.76)
E0cell   =  +0.34 + 0.76
E0cell   = 1.1 volt
(9)  डेनियल सैल का सैल आरेख निम्न है। 
Zn(S) / ZnSO4(aq)(1M) // CuSO4(aq)(1M) / Cu
एनोड                                          कैथोड
(10) यदि सैल को बाह्य विधुत स्रोत से जोड़ दे तो निम्न तीन परिस्थितियाँ सम्बन्ध है।
यदि Eबाह्य  < 1.1 वॉल्ट   है तो इलेक्ट्रॉन ऐनोड से कैथोड की ओर जाते है तथा सेल में निम्न अभिक्रिया होती है।
Zn(s) → Zn2+ + 2e–
यदि  Eबाह्य  = 1.1 वॉल्ट   है तो सेल में कोई अभिक्रिया नहीं होगी।
यदि Eबाह्य  > 1.1 वॉल्ट   है तो इलेक्ट्रॉन Cu की छड़ से Zn की छड़ की ओर जाते है तथा सेल अभिक्रिया विपरीत दिशा में होती है।
Zn2++Cu  →  Zn(s)  +   Cu2+
प्रश्न 1  : लवण सेतु का महत्व लिखो।
उत्तर :
यह सैल के आंतरिक परिपथ को पूर्ण करता है।
यह दोनों अर्द्ध सैलो के विलयनों को मिलने से रोकता है।
यह दोनों अर्ध सेलों में रखे विलयनों की विधुत उदासीनता को बनाये रखता है।
आगे पूछे गए प्रश्नों के लिए आधार 
Cu/CuSO4(1M) // AgNO3(1M)/Ag(S)
तो निम्न के बारे में जानकारी बताइये।
दिया गया है
E0Cu2+/Cu  =  +0.34 वॉल्ट
E0Ag+/Ag   =  0.80 वॉल्ट
तो निम्न जानकारी दीजिये :
प्रश्न 2 : एनोड का नाम ?
उत्तर : Cu
प्रश्न 3 : कैथोड का नाम ?
उत्तर : Zn
प्रश्न 4 : एनोड पर क्रिया ?
उत्तर :
 Cu(s) → Cu2+ + 2e–
प्रश्न 5  : कैथोड पर क्रिया ?
उत्तर : Ag+ + e–  =  Ag
प्रश्न 6   : सैल अभिक्रिया ?
उत्तर :        Cu(s) → Cu2+ + 2e– 
2Ag+ + 2e–  →  2Ag
=    Cu + 2Ag+  → Cu2+  + 2Ag
प्रश्न 7 : इलेक्ट्रॉन के प्रवाह की दिशा ?
उत्तर : Cu की छड़ से Ag की छड़ की ओर
प्रश्न 8  : विधुत धारा प्रवाह की दिशा ?
उत्तर : Ag से Cu की छड़ की ओर
प्रश्न 9  : किस छड़ पर ऑक्सीकरण होता है ?
उत्तर : Cu की छड़ पर ऑक्सीकरण होता है।
प्रश्न 10 : किस छड़ पर अपचयन होता है ?
उत्तर : Ag की छड़ पर
प्रश्न 11 : सैल का मानक विधुत बल ज्ञात करो।
उत्तर : E0cell   =  E0cathode   –  E0anode
E0cell   =  E0Ag +/Ag    –  E0Cu2+/Cu
E0cell   =  + 0.80  – (+0.34 )
E0cell   =  +0.46 वॉल्ट
सैल आरेख : गैल्वैनी सेल को छोटे रूप में व्यक्त करना सेल आरेख कहलाता हैं , सेल आरेख बनाने के मुख्य बिंदु निम्न हैं।
(1) सैल आरेख में ऐनोड बायीं ओर तथा कैथोड को दायीं ओर लिखा जाता हैं।
(2) ऐनोड को लिखते समय धातु को पहले तथा लवण के विलयन को बाद में लिखते है , दोनों के मध्य एक खड़ी रेखा खींचते है , जैसे डेनियल सैल के लिए
उदाहरण : Zn(S) / ZnSO4(aq)
या
Zn(s) ; ZnSO4(aq)
(3)  कैथोड को लिखते समय विलयन को पहले तथा धातु की छड़ को बाद में लिखते है दोनों के मध्य एक खड़ी रेखा खींचते है।
उदाहरण : CuSO4(aq) / Cu(s)
या
CuSO4(aq) ; Cu(s)
(4) कैथोड व ऐनोड के मध्य दो समान्तर रेखायें लवण सेतु को व्यक्त करती हैं।
(5) सैल आरेख बनाते समय धातु तथा विलयन की भौतिक अवस्था को छोटे कोष्ठक में बंद करके लिखना चाहिए।
(6) सैल आरेख बनाते समय विलयन की सान्द्रता को छोटे कोष्ठक में बंद करके लिखना चाहिए।
जैसे : डेनियल सैल का सेल आरेख निम्न है।
Zn(S) / ZnSO4(aq)(1M) // CuSO4(aq)(1M) / Cu
जब किसी धातु की छड़ को उसके आयनों के विलयन में डुबोया जाता है तो धातु और विलयन के अंतरपृष्ठ के मध्य उत्पन्न विभव को इलेक्ट्रोड विभव कहते हैं।
इसका मान निम्न कारको पर निर्भर करता है।
(1) धातु द्वारा इलेक्ट्रॉन त्यागने की प्रवृति।
(2) विलयन में धातु आयन की सान्द्रता।
(3) विलयन का ताप
इलेक्ट्रोड विभव दो प्रकार का होता है।
(1) ऑक्सीकरण विभव (Oxidation potential ) :
जब धातु ,  धातु आयन में परिवर्तन होती है तो उत्पन्न विभव को ऑक्सीकरण विभव कहते है।
उदाहरण :
Ag → Ag+ + e–   (EAg/Ag+    = – 0.8v)
Cu → Cu2+  + 2e–   (Ecu/Cu2+  = – 0.34v)
(2) अपचयन विभव (reduction potential ):
जब धातु आयन , धातु में परिवर्तन होता है तो उत्पन्न विभव को अपचयन विभव कहते हैं।
उदाहरण :
Ag+ + e–  → Ag (EAg+/Ag    = + 0.8v )
Cu2+  + 2e–  → Cu (ECu2+/Cu  = + 0.34v)
नोट : जब इलेक्ट्रोड विभव को 25 डिग्री सेंटीग्रेट (298k ) ताप तथा एक मोल धातु आयन के विलयन की उपस्थिति में ज्ञात किया जाता है तो उसे मानक इलेक्ट्रोड विभव कहते है इसे E0 से व्यक्त करते है।
नोट : किसी एक धातु का मानक ऑक्सीकरण विभव तथा मानक अपचयन विभव के मान तो समान होते है परन्तु चिन्ह अलग अलग होते है जैसे सिल्वर इलेक्ट्रोड के लिए।
सिल्वर का मानक ऑक्सीकरण विभव EAg/Ag+    = – 0.8v
सिल्वर का मानक अपचयन विभव EAg+/Ag    = + 0.8v
किसी एक धातु का मानक इलेक्ट्रोड विभव आसानी से ज्ञात नहीं किया  सकता , धातु का मानक इलेक्ट्रोड विभव ज्ञात करने के लिए एक अन्य इलेक्ट्रोड काम में लिया जाता है जिसे सन्दर्भ इलेक्ट्रोड कहते हैं।
सन्दर्भ इलेक्ट्रोड के रूप में (SHE) काम लेते हैं।
मानक हाइड्रोजन इलेक्ट्रोड(SHE) में एक प्लेटिनम (pt) की छड़ होती है जिसके एक सिरे पर Pt की पन्नी लगी होती है इस पर (Pt) प्लेटिनम ब्लैक का लेप चढ़ा होता है इसे 1M HCl के विलयन में डुबो देते है।  इस पर (1 atm ) एक वायुमंडलीय दाब तथा 25 डिग्री सेंटीग्रेट ताप पर हाइड्रोजन गैस प्रवाहित करते हैं।
हाइड्रोजन का मानक ऑक्सीकरण विभव तथा मानक अपचयन विभव के मान शून्य होते है।
½ H2(g) = H+  + e–       E1/2H2/H+ = 0
H+  + e–       = ½ H2      EH+/(1/2H2)
(SHE) का सैल आरेख
ऐनोड
Pt(s)/H2(g)(1 atm)/HCl(1M)
कैथोड
(1M) Hd/H2(g)(10atm)/Pt(s)
धातु का मानक इलेक्ट्रोड विभव ज्ञात करना :
जिस धातु का धातु का मानक इलेक्ट्रोड विभव ज्ञात करना होता है उस धातु की छड़ को 1M धातु आयन के विलयन में 25 डिग्री सेंटीग्रेट ताप पर डुबोकर रख देते है , उसे लवण सेतु की सहायता से मानक हाइड्रोजन इलेक्ट्रोड से जोड़ देते है तथा विभव मापी की सहायता से सैल का मानक विधुत वाहक बल ज्ञात कर लेते हैं।
(1) जब अज्ञात इलेक्ट्रोड ऐनोड के रूप में लिया जाए इसमें अज्ञात इलेक्ट्रोड को मानक परिस्थितियों में SHE से जोड़ देते हैं तथा E0 सेल का मान विभव मापी की सहायता से ज्ञात कर लेते है।
उदाहरण : Zn(s) /ZnSO4(1M) // HCl (1M) /H2(g) (1atm) /Pt
यदि E0cell = +0.76 Volt हैं।
तो अज्ञात इलेक्ट्रोड मानक अपचयन विभव निम्न प्रकार से ज्ञात करते है।
E0cell = E0H+/(1/2H2)   –  E0Zn2+/Zn
+0.76  = 0  – E0Zn2+/Zn
E0Zn2+/Zn  = – 0.76 v
(2) जब अज्ञात इलेक्ट्रोड कैथोड के रूप हो अज्ञात इलेक्ट्रोड को मानक परिस्थितियों में SHE से जोड़ देते है तथा E0cell  का मान प्रयोगों की सहायता से ज्ञात कर लेते हैं।
उदाहरण : Pt(s) / H2(g)(1atm) /HCl(1M) // CuSO4 (1M) /Cu(s)
प्रयोगों की सहायता से E0cell  का मान +0.34 वॉल्ट है तो अज्ञात इलेक्ट्रोड का मानक अपचयन विभव निम्न प्रकार ज्ञात करते हैं।
E0cell = E0Cu2+/Cu  –  E0H+/(1/2H2)
+0.34  =  = E0Cu2+/Cu  –  0
E0Cu2+/Cu   = +0.34
सेल का विधुत वाहक बल आयनों की सान्द्रता पर निर्भर करता हैं। अतः विधुत वाहक बल व आयनों की सांद्रता के मध्य सम्बन्ध को जिस समीकरण से व्यक्त किया जाता है उसे नेर्नस्ट समीकरण कहते हैं।
(A) एकल इलेक्ट्रोड के लिए या अर्द्ध सैल के लिए नेर्नस्ट समीकरण :
माना एक अर्द्ध सैल में निम्न क्रिया होती हैं।
Mn+  +  ne–   =  M(s)
अर्द्ध सैल का विभव निम्न सूत्र द्वारा ज्ञात किया जाता हैं।
E Mn+/M   = E0 Mn+/M  – (RT/nF) ln[M]/[Mn+]
चूँकि ठोस के लिए [M] = 1
अतः
E Mn+/M   = E0 Mn+/M  – (RT/nF) ln1/[Mn+]
या
E Mn+/M   = E0 Mn+/M  – 2.303(RT/nF) log 1/[Mn+]
चूँकि 25.c ताप पर
2.303(RT/nF) = 0.059   ( सभी स्थिरांको के मान रखकर )
E Mn+/M   = E0 Mn+/M  – (0.059/n) log 1/[Mn+]
उपरोक्त समीकरण को एकल इलेक्ट्रोड की नेर्नस्ट समीकरण कहते हैं।
प्रश्न 1 : निम्न समीकरण के लिए नेर्नस्ट समीकरण लिखो।
उत्तर : (1)Cu2+  +  2e–   = Cu
E Cu2+/Cu   = E0 Cu2+/Cu  – (0.059/n) log 1/[ Cu2+]
(2)      Ag+  + e–  =  Ag
E Ag+/Ag   = E0 Ag+/Ag  – (0.059/n) log 1/[ Ag+]
Or
E Ag+/Ag   = E0 Ag+/Ag  +  (0.059/n) log [ Ag+]
(3) Cu(s)   =  Cu2+  +  2e–
E Cu/Cu2+   = E0 Cu/Cu2+  – (0.059/n) log [ Cu2+]
(B) किसी सेल के लिए नेर्नस्ट समीकरण :
इसे डेनियल सैल के उदाहरण द्वारा समझाया गया है।
डेनियल सैल का सैल आरेख
Zn(s) / Zn2+(aq) // Cu2+(aq) / Cu(s)
सेल अभिक्रिया
बायां इलेक्ट्रोड:Zn(s) → Zn2+    + 2e–ऑक्सीकरणदायां इलेक्ट्रोड:Cu2+   + 2e–    → Cu(s)अपचयन
Zn(s)           +         Cu2+        →Zn2+         +Cu (s)
उपरोक्त सैल के लिए नेर्नस्ट समीकरण निम्न प्रकार से स्थापित की जाती हैं।
(1)   Zn2+    + 2e–  → Zn(s)
E Zn2+/Zn = E0 Zn2+/Zn  – (0.059/n) log 1/[ Zn2+]
(2)   Cu2+  +  2e–   = Cu
 
E Cu2+/Cu   = E0 Cu2+/Cu  – (0.059/n) log 1/[ Cu2+]
समीकरण 2  में  समीकरण 1  को घटाने पर
E Cu2+/Cu   –  E Zn2+/Zn     = E0 Cu2+/Cu  – E0 Zn2+/Zn  – (0.059/n) log 1/[ Cu2+] + (0.059/n) log 1/[ Zn2+]
चूँकि  Ecell = E Cu2+/Cu   –  E Zn2+/Zn
E0cell  = E0 Cu2+/Cu  – E0 Zn2+/Zn
अतः
Ecell = E0cell  – 0.59/n (log1/ Cu2+ – log 1/ Zn2+)
Ecell = E0cell  – 0.59/n (Cu2+/ Zn2+)
निम्न सैल अभिक्रया के लिए नेर्नस्ट समीकरण लिखो।
(1)   Ni + Cu2+  = Ni2+ + Cu
Ecell = E0cell  – 0.59/n (Ni2+/ Cu2+)
निम्न सैल आरेख के लिए नेर्नस्ट समीकरण लिखो।
Fe(s) / Fe2+(aq) // Ag+(aq) / Ag(s)
बायां इलेक्ट्रोड:Fe  → Fe2+    + 2e–ऑक्सीकरणदायां इलेक्ट्रोड:2 Ag+   + 2e– → 2Ag अपचयन
Fe           +         2 Ag+       →2 Ag          +  Fe2+
Ecell = E0cell  – 0.59/n ([Fe2+]/ [Ag+]2)
डेनियल सैल में निम्न क्रिया होती हैं
Zn + Cu2+    =  Zn2+  + Cu
साम्य अवस्था स्थिरांक (Equilibrium state constant)
Kc = [Zn2+][Cu]/[Zn][Cu2+]
ठोस पदार्थ के लिए
[Cu] = [Zn] = 1 होता हैं।
अतः
Kc = [Zn2+]/[Cu2+]
नेर्नस्ट समीकरण से (from nernst equation)
Ecell = E0cell  – (0.059/n) log([Zn2+]/[Cu2+])
अतः
Ecell = E0cell  – (0.059/n) log Kc
साम्य अवस्था Ecell = 0
0  = E0cell  – (0.059/n) log Kc
(0.059/n) log Kc  = E0cell 
या
E0cell = (2.303RT/nF)log Kc
0.059 log Kc = n E0cell
log Kc =  (n E0cell)/0.059
Kc = एंटीलोग (n E0cell)/0.059
विधुत रासायनिक सेल में रासायनिक ऊर्जा विधुत ऊर्जा में परिवर्तित होती है अर्थात सेल द्वारा कार्य किया जाता हैं।
सेल द्वारा किया गया वैधुत कार्य सेल के विधुत वाहक बल तथा आवेश के गुणनफल के बराबर होता हैं।
अर्थात
W = आवेश x सेल का विधुत वाहक बल
W = nF x Ecell
W = nFEcell        (समीकरण 1 )
उष्मागतिकी के अनुसार सेल द्वारा किया गया कार्य मुक्त ऊर्जा में कमी के बराबर होता हैं।
अर्थात
W = – ΔG           (समीकरण 2 )
समीकरण 1 तथा 2 की तुलना करने पर
– ΔG  = nFEcell  
माइनस (-) से गुणा करने पर
ΔG  = – nFEcell  
जब सेल मानक परिस्थितियों में होता है तब
ΔG  = ΔG0 
Ecell  = E0cell
अतः ΔG0 = – nF E0cell
चूँकि
E0cell = (2.303 RT)nF log(Kc)
अतः
ΔG0 = – nF x (2.303 RT)nF log(Kc)
या
ΔG0 = -RT ln Kc
प्रश्न 1 : Mg(s) / Mg2+ (0.001M) // Cu2+ (0.0001) /Cu(s)
उत्तर : Anode   Mg → Mg2+  + 2e–
Cathode  Cu2+ + 2e–  →  Cu
E0cell =         Mg + Cu2+ → Mg2+ + Cu
नेर्नस्ट समीकरण से
Ecell = E0Cell  – (0.059/n) log [Mg2+/Cu2+]
E0Cell  = E0Cu2+/Cu  – E0Mg2+/Mg
E0Cell  = + 0.34 – (-2.36)
E0Cell  = +2.70
Ecell = +2.70 – (0.059/2)log(0.001)/(0.0001)
Ecell = +2.70 – 0.059/2 log10
Ecell = +2.70 – 0.0295 x 1
Ecell = 2.6705 volt
question 2 :  Sn(s) / Sn2+(0.05M) // H+(0.020M) / H2(g) / Pt(s)
answer : Anode    Sn → Sn2+  + 2e–
Anode  2H+ + 2e–   → H2
Cell = Sn + 2H+ → H2  +   Sn2+
नेर्नस्ट समीकरण से
Ecell = E0Cell  – (0.059/n) log [Sn2+/ (H+)2]
E0Cell = E0H+/1/2H2       –  E0Sn2+/Sn
E0Cell = 0 – (-0.14)
E0Cell = +0.14 volt
नेर्न्स्ट समीकरण
Ecell = +0.14  – (0.059/2)log (0.050)/(0.02)2
Ecell = +0.14 – 0.05186
Ecell = +0.8
Question 3 : Fe(s) / Fe2+(0.001M) // H+(1M) /H2(g)
Answer : anode Fe → Fe2+ + 2e–
Cathode 2H+ + 2e– → H2
Cell = Fe  + 2H+ → H2 + Fe2+
नेर्नस्ट समीकरण से
Ecell = E0Cell  – (0.059/n) log [Fe2+/( H+)2]
E0Cell = E0H+/1/2H2       –  E0Fe2+/Fe
E0Cell = 0 – (-0.44)
E0Cell = +0.44 volt
नेर्नस्ट समीकरण से
Ecell = +0.44 – (0.059/n) log [0.001M /1M]
तत्वों को मानक अपचयन के बढ़ते हुए क्रम में रखने पर जो श्रेणी प्राप्त होती है उसे विधुत रासायनिक श्रेणी या सक्रियता श्रेणी कहते हैं।
 अभिक्रिया 
 E0(volt) में 
 Li+ + e–
→ Li
 -3.05
K+ +  e–
→ K
 -2.97
 Ca2+ + 2e–
→ Ca
 -2.87
 Na+   +  e– →
Na
 -2.71
 Mg2+ + 2e–
→ Mg
 -2.36
 Al3+  + 3e–
→ Al
 -1.66
 2H2O + 2e–
→  H2
+ 2OH–
 -0.83
 Zn2+ + 2e–
→ Zn
 -0.76
 Cr3+ + 3e–  → Cr
 -0.74
 Fe2+ + 2e–
→ Fe
 -0.44
 Ni2+  + 2e– →
Ni
 -0.25
 Sn2+  + 2e– →
Sn
 -0.14
 Pb2+  + 2e– →
Pb
 -0.13
 2H+ + 2e–
→ H2
 0.0
 AgBr + e– →
Ag + Br–
 +0.10
 AgCl + e– →
Ag + Cl–
 +0.22
 Cu2+  + 2e– →
Cu
 +0.34
 Cu+ + e–
→ Cu
 +0.52
 I2 +  2e– →
2I–
 +0.54
 O2 + 2H+
+ 2e–  →
H2O2
 +0.68
 Fe3+ + e–
→ Fe2+
 +0.77
 Ag+  + e– →
Ag
 +0.80
 2Hg+ + 2e–
→ Hg2
 +0.92
 NO3– +
4H+ + 3e–  →
NO + 2H2O
 +0.97
 Br2 + 2e–  → 2Br–
 +1.09
 MnO2 + 4H+
+ 4e– → Mn2+ + 2H2O
 +1.23
 O2 + 4H+
+ 4e– → 2H2O
 +1.23
 Cr2O72-
+ 14H+ + 6e– → 2Cr3+ +
7H2O
 +1.33
 Cl2 + 2e–
→ 2Cl–
 +1.36
 Au3+ + 3e–  → Au
 +1.40
 MnO4–
+ 8H+ + 5e– → Mn2+ + 2H2O
 +1.51
 H2O
+ 2H+ + 2e– →2H2O
 +1.78
 CO3+ + e–
→ CO2+
 +1.81
 F2 + 2e–  → 2F–
 +2.87
 विधुत रासायनिक श्रेणी के गुण या लक्षण (Electrochemical range properties) :
(1) जिस तत्व का मानक अपचयन विभव कम होता हैं वह प्रबल अपचायक है।  सक्रियता श्रेणी में ऊपर से निचे जाने पर अपचायक गुण कम होते जाते हैं।
(2) ऊपर से निचे जाने पर इलेक्ट्रॉन त्यागने का गुण कम होता जाता है अर्थात सक्रियता कम होती जाती हैं।
नोट : इलेक्ट्रॉन त्यागना अपचायक गुण तथा इलेक्ट्रॉन ग्रहण करना ऑक्सीकारक गुण
(3) विधुत रासायनिक श्रेणी में ऊपर से निचे जाने पर इलेक्ट्रॉन ग्रहण करने की प्रवृति बढ़ती जाती है अर्थात ऑक्सीकारक गुण बढ़ते जाते हैं।
(4) वह धातु जिसका मानक अपचयन विभव कम होता है उसका हमेशा ऐनोड बनाया जाता है तथा जिस धातु का मानक अपचयन विभव अधिक होता है उसका कैथोड बनाया जाता हैं।
(5) किसी रेडॉक्स अभिक्रिया के स्वतः होने का पता लगाना
माना एक अभिक्रिया निम्न है।
Fe  + NiSO4   → FeSO4 + Ni
Or
Fe + Ni2+  → Fe2+ + Ni
Anode      Fe → Fe2+    (+0.44)
Cathode   Ni2+
+ 2e– → Ni     (-0.25)
Cell               Fe  + Ni2+ → Ni + Fe2+     (+0.19)
नोट : E0cell का मान धनात्मक आता है तो रेडॉक्स क्रिया स्वतः होती हैं।
 E0cell का मान निम्न प्रकार से भी ज्ञात किया जा सकता हैं।
E0cell  = E0Ni2+/Ni  + E0Fe2+/Fe
E0cell  = -0.25 – (-0.44)
E0cell  = +0.19
 
प्रश्न 1 : Ni , Cu , Ag में से सबसे अधिक सक्रीय धातु है ?
उत्तर : Ni 
प्रश्न 2 :Br2 , Cl2
, F2 , I2 को ऑक्सीकारक गुणों के बढ़ते क्रम में लिखो। 
उत्तर : I2  < Br2  <  Cl2 < F2
प्रश्न 3  : Mg व zn में से किस धातु का ऐनोड बनाते है। 
उत्तर : Mg का एनोड 
प्रश्न 4  : क्या Cu के विलयन में Fe के पात्र में रखा जा सकता है ?
उत्तर : Cu और Fe में से अधिक सक्रीय धातु Fe है अतः अधिक सक्रीय धातु कम सक्रीय धातु को उसके लवण में से हटा देती है अतः Fe के पात्र  
जब किसी विद्युत अपघट्य के विलायक में विद्युत धारा प्रवाहित करते है तो इलेक्ट्रोड पर पदार्थ इक्कठे (निक्षेपित) हो जाते है इसे विधुत अपघटन कहते हैं।
विधुत अपघटन की क्रियाविधि (working) :
एक पात्र में संगलित (पिघला) नमक लेकर उसमे दो Pt के इलेक्ट्रोड डुबो देते है। दोनों इलेक्ट्रोडो को तारो की सहायता से बैटरी से जोड़ देते है।  बैटरी के धन सिरे से जिस छड़ को जोड़ते है वह धनावेशित होती है उसे ऐनोड कहते है , बैटरी के ऋण सिरे से जिस सिरे को जोड़ते है वह ऋणावेशित होती है उसे कैथोड कहते हैं।
NaCl ⇆    Na+  + Cl–
Cathode reaction  Na+  + e– → Na
Anode reaction  Cl–  → ½ Cl2 + e–
प्रश्न 1 : संगलित नमक का विधुत अपघटन करने पर ऐनोड तथा कैथोड पर कौनसे पदार्थ प्राप्त होते है ?
उत्तर : ऐनोड पर क्लोरीन गैस (Cl ) तथा कैथोड पर सोडियम (Na)
विद्युत रासायनिक सेल तथा विद्युत अपघटनी सेल में अंतर
विद्युत अपघटनी सेल :
वे सेल जो विधुत ऊर्जा को रासायनिक ऊर्जा में बदलते है उन्हें विद्युत अपघटनी सेल कहते हैं।
विद्युत रासायनिक सेल :
वे सेल जो रासायनिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में बदलते है उन्हें विद्युत रासायनिक सेल कहते हैं।
विद्युत रासायनिक सेल तथा विद्युत अपघटनी सेल में अंतर लिखो
 विद्युत रासायनिक सेल
 विद्युत अपघटनी सेल
 1. ये रासायनिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में बदलते हैं। 
 ये विद्युत ऊर्जा को रासायनिक ऊर्जा में बदलते हैं। 
 2. इसमें ऐनोड ऋणावेशित तथा कैथोड धनावेशित होता हैं। 
 इसमें ऐनोड धनावेशित तथा कैथोड ऋणावेशित होता हैं। 
 3. इसमें लवण सेतु काम में आता हैं। 
इसमें लवण सेतु काम में नहीं लेते हैं।  
4. इसमें क्रिया स्वतः होती हैं।  
इसमें क्रिया स्वतः नहीं होती हैं।  
5. इसमें दो अलग अलग पात्र लेते हैं। 
इसमें एक ही पात्र काम में लिया जाता है।  

1) फैराडे का प्रथम नियम (Faraday’s first law) :
जब किसी विद्युत अपघट्य के विलयन में विद्युत धारा प्रवाहित की जाती है तो इलेक्ट्रोडो पर निक्षेपित (इकठ्ठा ) होने वाले पदार्थ की मात्रा W आवेश की मात्रा Q के समानुपाती होती हैं।
अर्थात
W  ∝  Q
आवेश की मात्रा = धारा x समय
Q = I x t
अतः
W  ∝   I x t
W = ZIt
यहाँ Z एक स्थिरांक है जिसे विधुत रासायनिक तुल्यांक कहते है इसे निम्न प्रकार से परिभाषित किया जाता हैं।
यदि I = 1 ऐम्पियर तथा t = 1 सेकण्ड है तो
W = Z
अतः जब किसी विधुत अपघट्य के विलयन में 1 एम्पियर की धारा 1 सेकंड तक प्रवाहित की जाती है तो निक्षेपित (इक्क्ठे) पदार्थ की मात्रा को विधुत रासायनिक तुल्यांक कहते है।
(2) फैराडे का द्वितीय नियम(Faraday’s second law) :
जब दो या दो से अधिक विधुत अपघट्य के विलयन में समान मात्रा की विधुत धारा प्रवाहित की जाती है तो इलेक्ट्रोड पर निक्षेपित होने वाले पदार्थ की मात्रा W उनके रासायनिक तुल्यांक (E) के समानुपाती होती हैं।
अर्थात
W ∝  E
प्रथम विधुत अपघट्य के लिए W1  ∝  E1
द्वितीय विधुत अपघट्य के लिए W2   ∝  E2
या 
ये रासायनिक ऊर्जा को विधुत ऊर्जा में परिवर्तित करती है अर्थात ये विधुत रासायनिक सेल है , यहाँ ρ एक स्थिरांक है जिसे विशिष्ठ प्रतिरोध या प्रतिरोधकता(Specific resistance or resistivity) कहते हैं। दो या दो से अधिक सेलों को श्रेणी क्रम में जोड़ने पर बैटरी का निर्मा विशिष्ठ प्रतिरोध या प्रतिरोधकता के व्युत्क्रम को विशिष्ठ चालकत्व या चालकता कहते (1) विधुत लोहे पर जंग लगने की क्रियाविधि & संक्षारण क्या है Corrosion in hindi की रोकथाम Prevention , working
जब धातुओं का सम्पर्क वायु व नमी से होता है तो उसकी सतह पर अवांछनीय पदार्थ जैसे ऑक्साइड कार्बोनेट , सल्फेट , सल्फाइड आदि बन जाते है इसे संक्षारण कहते है।
उदाहरण : (1) लोहे पर जंग लगना।
(2) चांदी का काला पड़ना।
(3) कॉपर व पीतल की सतह पर हरे रंग की परत का बनना।
लोहे पर जंग लगने की क्रियाविधि :
लोहे पर जंग लगने की क्रियाविधि को विधुत रासायनिक सिद्धान्त से समझाया जाता है जब लोहे का सम्पर्क वायु व नमी से होता है तो उसकी सतह पर विधुत रासायनिक सेल का निर्माण हो जाता है।  इस सेल में अशुद्ध लोहा ऐनोड की तरह, शुद्ध लोहा कैथोड की तरह तथा जल की बून्द विधुत अपघट्य की तरह काम करती है।
सेल में निम्न क्रियायें होती है :
एनोड पर  2Fe → 2Fe2+ + 4e–
कैथोड पर  4H+ + 4e– + O2 → 2H2O
कुल अभिक्रिया 2Fe  + 4H+ + O2 → 2Fe2+  + 2H2O
2Fe2+  + 2H2O + (½)O2 → FeO3  + 4H-1
Fe2O3 . xH2O  → Fe2O3 . xH2O ( जंग लगना )
संक्षारण की रोकथाम (Prevention of corrosion):
धातुएं शुद्ध होनी चाहिए।
धातु की सतह चिकनी होनी चाहिए।
धातुओं की सतह पर तेल , गिरिस , पेंट का लेप करना चाहिए।
धातुओं लोहे की सतह पर अधिक सक्रीय धातु Zn का लेप करना , यहाँ Zn अधिक सक्रीय होता है , Zn ज़्यादा सक्रीय होने के कारण यह स्वम् वायु व नमी से क्रिया करता रहता है तथा लोहे को जंग से बचाता है अर्थात लोहे को जंग से बचाने के लिए जिंक अपना बलिदान कर देता है इसे बलिदानी सुरक्षा कहते है।  लोहे पर जिंक का लेप करना गैल्वेनिकरण कहलाता है।
भूमिगत लोहे के पाइप का सम्पर्क अधिक सक्रीय धातु Mg से करने पर लोहे में जंग नहीं लगती।
 अपघट्य की प्रकृति :
वे पदार्थ जिनका आयनन अधिक होता है उन्हें प्रबल विधुत अपघट्य कहते है , इनके विलयनों में आयनों की संख्या अधिक होती है अतः चालकता का मान अधिक होता हैं।
उदाहरण : HCl , HNO3 , H2SO4, NaOH , KOH , KCL , NaCl , NH4Cl , CH3-COONa आदि
वे पदार्थ जिनका आयनन कम होता है उन्हें दुर्बल विधुत अपघट्य कहते है इनके विलयनों में आयनों की संख्या कम होती है अतः चालकता का मान कम होता हैं।
उदाहरण : CH3-COOH , NH4OH , HCN , H2CO3 , HCOOH आदि
(2) ताप :
ताप बढ़ाने से विधुत अपघट्य का आयनन अधिक होता है , आयनों की संख्या अधिक हो जाती है अतः चालकता का मान अधिक होता हैं।
(3) विलायक की श्यानता :
अधिक श्यानता वाले विलायक में आयनों की गति कम होती है अतः चालकता कम होती है।  कम श्यानता वाले विलायकों में विद्युत अपघट्य की चालकता अधिक होती हैं।
(4) सान्द्रता :
किसी सान्द्र विलयन में जल मिलाकर उसे तनु किया जाता है , तनुता बढ़ाने पर विद्युत अपघट्य का आयनन अधिक होता है , जिससे मोलर चालकता का मान बढ़ जाता है।  जैसे की निम्न सूत्र से स्पष्ट है।
Λm  = K * V
नोट : अनंत तनुता पर विधुत अपघट्य का पूर्ण रूप से आयनन हो जाता है तथा विलयन की मोलर चालकता का मान अधिकतम हो जाता है। मोलर चालकता के इस मान को सीमांत मोलर चालकता या अनंत तनुता पर मोलर चालकता हैं।  इसे Rmसे व्यक्त करते हैं।
तनुता बढ़ाने पर चालकता का मान कम होता है क्योंकि चालकता की परिभाषा के अनुसार 1 घन सेमी विलयन के चालकत्व को चालकता कहते हैं।
तनुता बढ़ाने पर 1 घन सेंटीमीटर विलयन में आयनो की संख्या कम हो जाती है अतः चालकता का मान कम हो जाता है।
डिबाई हकल व आनसागर ने मोलर चालकता पर सान्द्रता के प्रभाव का अध्ययन निम्न समीकरण द्वारा किया।
Λmc  = Λm0  – A √C
उपरोक्त ग्राफ से निम्न निष्कर्ष निकलते है
(1) सामान्य सांद्रताओं पर दुर्बल विधुत अपघट्य के लिए मोलर चालकता का मान कम होता है जबकि प्रबल विद्युत अपघट्य के लिए मोलर चालकता का मान अधिक होता है।
(2) प्रबल विधुत अपघट्यो के लिए बहिर्वेशन विधि द्वारा Λm0 का मान ज्ञात कर सकते है।
(3) दुर्बल विधुत अपघट्य के लिए बहिर्वेशन विधि द्वारा Λm0 का मान ज्ञात नहीं कर सकते। है।  इसे K से व्यक्त करते है।
अर्थात
K = 1/ρ
चूँकि 1/R = G
तथा
1/ρ = K
विशिष्ठ प्रतिरोध या प्रतिरोधकता सूत्र में ये दोनों मान रखने पर
G = KA /L
KA = GL
K = GL /A
चालकता को निम्न प्रकार से परिभाषित किया जाता है ,
यदि L = 1 cm तथा A =  1cm2 है तो K = G
अतः 1cm की दूरी पर स्थित दो समान्तर इलेक्ट्रोड जिनके अनुप्रस्थ काट का क्षेत्रफल 1cm2 है तो उनके मध्य रखे गए विलयन के चालकत्व को ही चालकता (विशिष्ठ चालकत्व) कहते है।
या
एक घन सेंटीमीटर के चालकत्व को ही चालकता या  (विशिष्ठ चालकत्व) कहते है।
चालकता की इकाई(Unit of conductance) : 
K = GL /A
या
चालकता या  (विशिष्ठ चालकत्व) की इकाई  = Ω-1 cm-1 (Ohm -1 cm-1)
नोट : SI मात्रक में चालकता की इकाई Ω-1 m-1 या sm-1
सेल स्थिरांक(Cell constant) :
किसी सेल में दो इलेक्ट्रोडो के बीच की दूरी तथा उनके अनुप्रस्थकाट के क्षेत्रफल के अनुपात को सेल स्थिरांक कहते है।  इसे G*से व्यक्त करते है।
अर्थात
G* = L/A
हम जानते है की
K = GL /A
G* का मान रखने पर
K = G G*
या
K = G* /R
मोलर चालकता (Molar conductance) :
1 सेन्टीमीटर की दूरी पर स्थित दो सामानांतर इलेक्ट्रॉड जिनके मध्य किसी विद्युत अपघट्य का 1mol घुला हुआ है तो उस सम्पूर्ण विलयन की चालकता को ही मोलर चालकता कहते है।  इसे Λm से व्यक्त करते है।
मोलर चालकता निम्न सूत्र से ज्ञात की जाती हैं।
Λm  = K * V (cm3  में )
यदि पदार्थ की सान्द्रता c मोल /लीटर
है तो
V = 1000/c   (cm3  में )
Λm  = (K 1000)/c मोलरता में
Λm की इकाई
Λm  = Ω-1 cm2mol-1
नोट : SI मात्रक में मोलर चालकता की इकाई S . m . 2 mol-1 या Ω-1 m2mol-1
प्रश्न 1 : 290k पर 0.20M KCl विलयन की चालकता 0.0248 s cm-1 है तो इसकी मोलर चालकता ज्ञात करो।
उत्तर : यहाँ दिया गया है C  =   0.20M KCl
K = 0.0248 s cm-1
Λm  = ?
Λm  = (K 1000)/c
Λm  = (0.0248 x 1000) / 0.20
Λm  = 124 Ω-1 cm2mol-1
प्रश्न 2  : 298k पर 1 चालकता सेल जिसमे 0.001M KCl विलयन है का प्रतिरोध 1500 ओम है यदि 0.001 M KCl विलयन की चालकता 0.146 x 10-3 s cm-1  है तो सेल स्थिरांक क्या होगा ?
उत्तर : दिया गया है
R = 1500 Ω
K = 0.146 x 10-3  s cm-1
G* = ?
K = G* /R
G* = K x R
G* =  0.219 cm-1 ण हो जाता है।
अच्छी बैटरी के लक्षण :
इसका वजन कम होना चाहिए।
स्थिर वोल्टता की विधुत प्राप्त होनी चाहिए।
निर्माण लागत कम होनी चाहिए।
बैटरियाँ दो प्रकार की होती है।
(1) प्राथमिक बैटरी या प्राथमिक सेल (Primary battery or primary cell):
वे सेल जिनसे एक बार विधुत प्राप्त करने के पश्चात पुनः आवेशित नहीं किया जा सकता उन्हें प्राथमिक सेल कहते है इन सेलों में होने वाली अभिक्रिया एक ही दिशा में होती है।
अतः इन्हे अनुत्क्रमणीय सेल भी कहते हैं।
जैसे : शुष्क सेल , मर्करी सेल आदि।
 
(2) द्वितीयक बैटरियां (Secondary batteries):
इन सेलो में अभिक्रियाएं अग्र व पश्च दोनों दिशाओं में होती है अतः इन्हे उत्क्रमणीय सेल भी कहते है।
इन सेलों को अनेक बार आवेशित किया जा सकता है।
उदाहरण : सीसा संचायक सेल , निकैल कैडमियम सेल।
शुष्क सेल :
इस सेल में Zn का एक पात्र होता है , जो ऐनोड की तरह काम करता है इसके मध्य में एक ग्रेफाइट (कार्बन) की छड़ लगी होती है जिसके ऊपर पीतल की एक टोपी लगी होती है।  यह कैथोड की तरह कार्य करती है। कार्बन की छड़ के चारों ओर MnO2 व कार्बन का चूर्ण भरा होता है।
ऐनोड व कैथोड के मध्य में ZnCl2 व NH4Cl का पेस्ट भरा होता है। जब सेल से विधुत प्राप्त करते है तो निम्न क्रियाऐं होती हैं।
ऐनोड पर क्रिया  Zn → Zn2+  + 2e–
कैथोड पर क्रिया  2MnO2 + 2NH4+  + 2e–  → 2MnO(OH) + 2NH3
इस क्रिया में बनी अमोनिया गैस Zn2+ आयन से क्रिया कर लेती है तथा [Zn(NH3)4]2+ आयन बना लेती हैं।
नोट : अमोनिया क्लोराइड अम्लीय प्रवृति का होने के कारण यह Zn के पात्र से क्रिया करता है। जिससे Zn के पात्र में छेद हो जाते है तथा विधुत धारा बाहर बहने लगती है अतः शुष्क सेल को (मेटल) धातु के पात्र में रखते है।
नोट : इस सेल से 1.5v की विधुत प्राप्त होती है इन्हे रेडियो में प्रयुक्त किया जाता है।
मर्करी सेल :
इन इन सेलों का उपयोग घड़ियों तथा कैमरों में किया जाता है जहां विधुत की कम आवश्यकता होती है।  मर्करी सेल में ऐनोड Zn , Hg का बना होता है तथा विधुत अपघट्य के रूप में ZnO व KOH का मिश्रण भरा होता है।  सेल में निम्न क्रिया होती है
एनोड पर क्रिया  Zn + 2OH– → ZnO + H2O  + 2e–
कैथोड पर क्रिया  HgO + H2O + 2e– → Hg + 2OH–
Cell reaction(सेल अभिक्रिया)  Zn + HgO →  ZnO + Hg
नोट : इस सेल से 1.35v की विधुत प्राप्त होती है।
सीसा संचायक सेल :
इस सेल में Pb , Sb के बने दो इलेक्ट्रोड होते है इनमें से एक में स्पंजी लैड (Pb ) व दूसरे में PbO2 भरा होता है , इन्हे क्रमशः   ऐनोड व कैथोड के नाम से जाना जाता है।
दोनों इलेक्ट्रोडो को 38%  H2SO4 के विलयन में डुबो देते है इस प्रकार बने एक सेल से 2 वॉल्ट की विधुत प्राप्त होती है। यदि ऐसे 6 सेलों को श्रेणी क्रम में जोड़ दिया जाए तो 12 वोल्ट की विधुत प्राप्त होती है।
सेल में निम्न अभिक्रिया होती है।
ऐनोड पर सेल अभिक्रिया Pb  + SO42- → PbSO4 + 2e–
कैथोड पर सेल अभिक्रिया  PbO2 + 4H+ + SO42- + 2e–  → PbSO4 + 2H2O
सेल अभिक्रिया Pb(s) + PbO2(s) + 4H+ + 2SO42-  → 2PbSO4 + 2H2O
उपरोक्त अभिक्रिया से स्पष्ट है की जब सेल से विधुत प्राप्त करते है अर्थात सेल डिस्चार्ज होता है दोनों इलेक्ट्रोडो पर PbSO4 बनता हैं।
जब सेल को बाह्य विधुत स्रोत से जोड़ते है अर्थात सेल को आवेशित किया जाता है तो उपरोक्त अभिक्रिया विपरीत दिशा में होने लगती है।
2PbSO4 + 2H2O → Pb(s) + PbO2(s) + 4H+ + 2SO42-
निकेल कैडमियम सेल : 
ये सेल महंगे होते है।
इसका उपयोग मोबाइल में किया जाता है।
इस सेल में निम्न अभिक्रिया होती हैं।
Cd (s) + 2Ni(OH)3 → CdO + 2Ni(OH)2 + H2O
ईंधन सेल :
इन सेलों में ईंधन की रासायनिक ऊर्जा को सीधे ही विधुत ऊर्जा में बदला जाता है।  ईंधन के रूप में H2 , CH4 , C2H6 , C3H8 आदि काम में लेते हैं।
H2-O2 ईंधन सेल :
इस सेल में कार्बन सरंध्र दो इलेक्ट्रोड होते है जिन पर Pt का लेप लगा होता है।  दोनों इलेक्ट्रोडो के मध्य KOH का तनु विलयन भरा होता है।  इसे आयताकार पात्र में बंद कर देते है।  ऐनोड पर H2 गैस तथा कैथोड पर O2 गैस प्रवाहित करते है।
सेल में निम्न अभिक्रिया होती है।
एनोड पर
कैथोड पर H2 → 2H+ + 2e–
2H+ + 2OH– → -2H2O
H2 + 2OH– → 2H2O + 2e–                समीकरण 1
एनोड पर
O2 + 2H2O + 4e– → 4OH–              समीकरण 2
समीकरण 1 को 2 से गुणा कर समीकरण 1 व समीकरण 2 को जोड़ने पर।
2H2 + 4OH–  → 4H2O + 4e–
O2 + 2H2O + 4e– → 4OH–
= 2H2(g) + O2(g) → 2H2O (l)
चालक(conductor) :
वे पदार्थ जिनमे स्वतंत्र इलेक्ट्रॉन या स्वतंत्र आयन होते है उन्हें चालक कहते है ये दो प्रकार के होते है।
1. धात्विक चालक(metal conductor)  :
इनमे स्वतंत्र इलेक्ट्रॉन होते है अतः इन्हे इलेक्ट्रॉनिक चालक भी कहते है ताप बढ़ाने से इनकी चालकता में कमी होती है।  क्योंकि ताप बढ़ाने से इलेक्ट्रॉन के बहने में बाधा आती है।
उदाहरण : Cu , Ag , Na , Au , Ca , Fe , Cr , Ni आदि धातुएं ग्रेफाइट।
2. विधुत अपघटनी चालक(Electrolytic conductor)  :
इनके विलयन में स्वतंत्र आयन होते है।  ताप बढ़ाने से इनकी चालकता बढ़ती है , क्योंकि ताप बढ़ाने पर आयनों में गति अधिक होती हैं।
उदाहरण : NaCl , KCl , HCl , H2SO4, HNO3 , NaCH  आदि
चालकत्व (Conductance) :
प्रतिरोध के व्युत्क्रम को चालकत्व कहते है इसे G से व्यक्त करते है।
G = 1/R
नोट : इसकी इकाई Om-1 या सीमेन्ज(S) होती है।
प्रतिरोध (Resistance) : विधुत धारा के बहने में उत्पन्न रुकावट को प्रतिरोध कहते है। इसे R से व्यक्त करते हैं।
किसी धात्विक तार का प्रतिरोध उसकी लम्बाई के समानुपाती तथा अनुप्रस्थ काट के क्षेत्रफल के व्युत्क्रमानुपाती होता हैं।
चालकता :
जैसा की हम जानते है की विशिष्ठ प्रतिरोध या प्रतिरोधकता
चालकता :
जैसा की हम जानते है की विशिष्ठ प्रतिरोध या प्रतिरोधकता
विशिष्ठ प्रतिरोध या प्रतिरोधकता के व्युत्क्रम को विशिष्ठ चालकत्व या चालकता कहते है।  इसे K से व्यक्त करते है।
अर्थात
K = 1/ρ
चूँकि 1/R = G
तथा
1/ρ = K
विशिष्ठ प्रतिरोध या प्रतिरोधकता सूत्र में ये दोनों मान रखने पर
G = KA /L
KA = GL
K = GL /A
चालकता को निम्न प्रकार से परिभाषित किया जाता है ,
यदि L = 1 cm तथा A =  1cm2 है तो K = G
अतः 1cm की दूरी पर स्थित दो समान्तर इलेक्ट्रोड जिनके अनुप्रस्थ काट का क्षेत्रफल 1cm2 है तो उनके मध्य रखे गए विलयन के चालकत्व को ही चालकता (विशिष्ठ चालकत्व) कहते है।
या
एक घन सेंटीमीटर के चालकत्व को ही चालकता या  (विशिष्ठ चालकत्व) कहते है।
चालकता की इकाई(Unit of conductance) : 
K = GL /A
या
चालकता या  (विशिष्ठ चालकत्व) की इकाई  = Ω-1 cm-1 (Ohm -1 cm-1)
नोट : SI मात्रक में चालकता की इकाई Ω-1 m-1 या sm-1
सेल स्थिरांक(Cell constant) :
किसी सेल में दो इलेक्ट्रोडो के बीच की दूरी तथा उनके अनुप्रस्थकाट के क्षेत्रफल के अनुपात को सेल स्थिरांक कहते है।  इसे G*से व्यक्त करते है।
अर्थात
G* = L/A
हम जानते है की
K = GL /A
G* का मान रखने पर
K = G G*
या
K = G* /R
मोलर चालकता (Molar conductance) :
1 सेन्टीमीटर की दूरी पर स्थित दो सामानांतर इलेक्ट्रॉड जिनके मध्य किसी विद्युत अपघट्य का 1mol घुला हुआ है तो उस सम्पूर्ण विलयन की चालकता को ही मोलर चालकता कहते है।  इसे Λm से व्यक्त करते है।
मोलर चालकता निम्न सूत्र से ज्ञात की जाती हैं।
Λm  = K * V (cm3  में )
यदि पदार्थ की सान्द्रता c मोल /लीटर
है तो
V = 1000/c   (cm3  में )
Λm  = (K 1000)/c मोलरता में
Λm की इकाई
Λm  = Ω-1 cm2mol-1
नोट : SI मात्रक में मोलर चालकता की इकाई S . m . 2 mol-1 या Ω-1 m2mol-1
प्रश्न 1 : 290k पर 0.20M KCl विलयन की चालकता 0.0248 s cm-1 है तो इसकी मोलर चालकता ज्ञात करो।
उत्तर : यहाँ दिया गया है C  =   0.20M KCl
K = 0.0248 s cm-1
Λm  = ?
Λm  = (K 1000)/c
Λm  = (0.0248 x 1000) / 0.20
Λm  = 124 Ω-1 cm2mol-1
प्रश्न 2  : 298k पर 1 चालकता सेल जिसमे 0.001M KCl विलयन है का प्रतिरोध 1500 ओम है यदि 0.001 M KCl विलयन की चालकता 0.146 x 10-3 s cm-1  है तो सेल स्थिरांक क्या होगा ?
उत्तर : दिया गया है
R = 1500 Ω
K = 0.146 x 10-3  s cm-1
G* = ?
K = G* /R
G* = K x R
G* =  0.219 cm-1
अनंत तनुता पर किसी विधुत अपघट्य की मोलर चालकता उसके द्वारा दिए गए धनायन व ऋणायन की मोलर आयनिक चालकता के योग के बराबर होती हैं।
अतः  Λm0 = ν+ λ+0 + ν– λ–0
यहाँ Λm0 सीमांत मोलर चालकता
ν+  व  ν– = धनायन व ऋणायन की संख्या
λ+0 व λ–0  = क्रमशः धनायन व ऋणायन की मोलर आयनिक चालकताएँ है।
कोलराउश नियम(Kohlrausch’s law) के अनुसार अनंत तनुता पर विधुत अपघट्य का पूर्णरूप से आयनन हो जाता है , विलयन की कुल  मोलर चालकता में प्रत्येक आयन अपने हिस्से का योगदान करता है यह योगदान उसकी प्रकृति पर निर्भर करता है न की सह आयन की प्रकृति पर।
उदाहरण :
(1)  NaCl  ⇌ Na+  + Cl–
Λm0 (NaCl) = λNa+0  + λCl-0
(2)  KCl  ⇌ K+  +  Cl–
Λm0 (KCl) = λK+0  + λCl-0
(3)  CaCl2  ⇌ Ca2+  + 2Cl–
Λm0 (CaCl2) = λCa2+0  + 2λCl2-0
(4)  H2SO4  ⇌ 2H+  + SO42-
Λm0 (H2SO4) = 2λH+0  + λSO4(2-)0
(5)  Al2(SO4)3  ⇌ 2Al3+ + 3SO43-
Λm0 (Al2(SO4)3) = 2λAl3+0  + 3λ(SO4)3-0
कोलराउश नियम के अनुप्रयोग(Kohlrausch’s law applications) :
(1) अनंत तनुता पर दुर्बल विधुत अपघट्य की मोलर चालकता का मान ज्ञात करना।
कोलराउस नियम की सहायता से दुर्बल विधुत अपघट्य जैसे CH3-COOH की अनंत तनुता पर मोलर चालकता निम्न प्रकार से ज्ञात करते है।
अनंत तनुता पर CH3-COOH निम्न प्रकार से आयनित होता है।
CH3-COOH  ⇌  CH3COO–  + H+
कोलराउस नियम से
Λm0 (CH3COOH) = λ CH3COO-0  + λ H+0                 (समीकरण 1 )
CH3COONa , HCl , NaCl प्रबल विधुत अपघट्यो की अनंत तनुता की मोलर चालकता की सहायता से CH3COOH  की सीमांत मोलर चालकता ज्ञात की जा सकती है।
CH3COONa  ⇌ CH3COO– + Na+
Λm0 (CH3COONa) = λ CH3COO-0  + λ Na+0                (समीकरण 2  )
HCl  ⇌ H+ + Cl–
Λm0 (HCl) = λ H+0  + λ Cl-0                                           (समीकरण 3  )
NaCl  ⇌ Na+  + Cl–
Λm0 (NaCl) = λ Na+0  + λ Cl-0                                          (समीकरण 4 )
 समीकरण 2 व 3 को जोड़कर  समीकरण 4 घटाने पर
Λm0 (CH3COONa) + Λm0 (HCl) – Λm0 (NaCl)
= λ CH3COO-0  + λ H+0  
अर्थात  हमें Λm0 (CH3COOH) प्राप्त  होता है।
अतः
Λm0 (CH3COOH)  =  Λm0 (CH3COONa) + Λm0 (HCl) – Λm0 (NaCl)
इसी प्रकार के NH4OH लिए
Λm0 (NH4OH)  =  Λm0 (NH4Cl) + Λm0 (NaOH) – Λm0 (NaCl)
इसी प्रकार के H2O लिए
Λm0 (H2O)  =  Λm0 (HCl) + Λm0 (NaOH) – Λm0 (NaCl)
प्रश्न 1 : KCl , HCl , CH3COOk के लिए Λm0 के मान क्रमश: 149.8 , 425.9 , 114.4 S cm2mol-1 है। तो CH3COOH के लिए Λm0 का ज्ञात कीजिये।
उत्तर : Λm0 (CH3COOH)  =  Λm0 (CH3COOk ) + Λm0 (HCl) – Λm0 (kCl)
Λm0 (CH3COOH)  =  Λm0 ( 114.4 + 425.9 – 149.8 )
Λm0 (CH3COOH)  = Λm0 ( 390.5)
दुर्बल विधुत अपघट्य के वियोजन की मात्रा व वियोजन स्थिरांक ज्ञात करना :
विधुत अपघट्य की वह मात्रा जो वियोजित होती है उसे वियोजन की मात्रा कहते है इसे α से व्यक्त करते है।
कोलराउस नियम की सहायता से वियोजन की मात्रा निम्न सूत्र द्वारा ज्ञात करते है।
α  =  Λmc /Λm0
यहाँ Λmc = विशेष सान्द्रता पर मोलर चालकता।
Λm0 = अनंत तनुता पर मोलर चालकता या सीमांत मोलर चालकता।
दुर्बल विधुत अपघट्य का वियोजन स्थिरांक निम्न सूत्र द्वारा ज्ञात करते है।
Ka = (Cα2)/(1- α)





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