कक्षा 12वी जीवविज्ञान अध्याय 14 पारस्थितिकी तन्त्र । NCERT CLASS 12TH BIOLOGY CHAPTER 14 FULL NOTES IN HINDI : ULTIMATE STUDY SUPPORT

कक्षा 12वी जीवविज्ञान अध्याय 14 पारस्थिकी तन्त्र । NCERT CLASS 12TH BIOLOGY CHAPTER 14 FULL NOTES IN HINDI : ULTIMATE STUDY SUPPORT




 परिभाषा परितंत्र :  वातावरण के जैविक एवं अजैविक घटकों की अंतर क्रियाओं के फलस्वरुप बने तंत्र को पारिस्थितिकी तंत्र या परितंत्र कहते हैं |
परितंत्र संरचना एवं क्रियाशीलता :
[A] उत्पादकता ( प्रोडक्टिविटी) :  प्रति इकाई समय में जीवों द्वारा जैव भार ( बायोमास)  के उत्पादन की दर को उत्पादकता कहते हैं , उत्पादकता को भार g/m2/yr या उर्जा Kcal/m2/yr के रूप में व्यक्त किया जाता है |
उत्पादकता दो प्रकार की होती है
[1]  प्राथमिक उत्पादकता ( प्राइमरी प्रोडक्टिविटी) :  उत्पादकों द्वारा सूर्य की विकिरण ऊर्जा को कार्बनिक पदार्थ के रूप में संग्रहित करने की दर को प्राथमिक उत्पादक कहते हैं यह दो प्रकार की होती है
(i) सकल प्राथमिक उत्पादकता ( ग्रॉस प्राइमरी प्रोडक्टिविटी ) : प्रकाश संश्लेषण द्वारा कार्बनिक पदार्थों के कुल उत्पादन की दर को सकल प्राथमिक उत्पादकता कहते हैं |
(ii)  शुद्ध प्राथमिक उत्पादकता ( नेट प्राइमरी प्रोडक्टिविटी) :
उत्पादकों की श्वसन क्रिया के बाद बचे हुए जैव भार को शुद्ध उत्पादक प्राथमिक कहते हैं |
NPP = GPP – respiration rate
शुद्ध प्राथमिक उत्पादकता =   सकल उत्पादकता – re spiration rate
[2]  द्वितीयक उत्पादकता ( सेकेंडरी प्रोडक्टिविटी) :
उत्पादकों द्वारा संग्रहित ऊर्जा का उपयोग उपभोक्ता करते हैं उपभोकता इस उर्जा का कुछ भाग श्वसन व उत्सर्जन में प्रयुक्त कर लेते हैं उपभोक्ता में शेष बची हुई संग्रहित ऊर्जा द्वितीयक उत्पादकता कहलाती है |
संपूर्ण जीव मंडल की वार्षिक सकल उत्पादकता भार कार्बनिक तत्व ( शुष्क भार)  के रूप में लगभग 170 बिलियन टन आका गया है ,  समुद्र की उत्पादकता 55 बिलियन टन है |
[B] अपघटन ( डी कंपोजीशन) :
वह प्रक्रिया जिसमें  अपघटक द्वारा मृत पादपों वह जंतुओं के जटिल कार्बनिक पदार्थों को सरल अकार्बनिक तत्व , CO2 & जल में बदल दिया जाता है अपघटन कहलाती है |
पादपों के मृत अवशेष ( पत्तियां ,  शाखाएं आदि)  वह जंतुओं के मृत अवशेष अपरद  कहलाते हैं
अपघटक निम्न चरण में होता है
विखंडन : इस प्रक्रिया में अपरद को कुछ अपरद  हारी चीन जैसे केंचुआ द्वारा छोटे-छोटे कणों में खंडित कर दिया जाता है |
अपचय (catabolism) :
 
अपरद में काइटिन व  लिग्निन की अधिक मात्रा अपघटन की दर को कम करती है
अपरद मैं नाइट्रोजन तथा जल विलेय तत्व जैसे शर्करा की अधिकता अपघटन की दर बढ़ाती है
25 डिग्री सेंटीग्रेड से अधिक तापमान पर अपघटन 23 व निम्न ताप अर्थार्थ 10 डिग्री से कम पर अपघटन धीमा हो जाता है |
[C] ऊर्जा प्रवाह ( एनर्जी फ्लो) :
पृथ्वी पर पहुंचने वाली कुल प्रकाश ऊर्जा का केवल 2 से 10% भाग ही पादपों द्वारा प्रकाश संश्लेषण में उपयोग में होता है कोई भी जीव प्राप्त की गई ऊर्जा का केवल 10% उपयोग कर पाता है और शेष 90% ऊर्जा स्वसन आदि क्रियाओं में नष्ट हो जाती है अतः एक पोषण स्तर में केवल 10% ऊर्जा ही संग्रहित होती है इसे  दशांक्ष  का नियम कहते हैं यह नियम लिंडेमांन ने दिया था
 [D] जैव भू रासायनिक चक्र या पोषकों का चक्रण : विभिन्न खनिज पोषक तत्व जैसे कार्बन ,  नाइट्रोजन , फास्फोरस ,  कैल्शियम आदि का विभिन्न घटकों के माध्यम से चक्र होता रहता है इन पोषक तत्वों के प्रवाह को चलाएं मान रखने के लिए जैविक व अजैविक घटकों ( चट्टानें ,  हवा , पानी,  मृदा) के बीच अंतः क्रिया होती रहती है अतः इन चक्रों को जैव भू रासायनिक चक्र भी कहते हैं |
जैव भू रासायनिक चक्र दो प्रकार के होते हैं
गैसीय चक्र :  वायुमंडलीय गैसों जैसे कार्बन ,  ऑक्सीजन वह नाइट्रोजन के चक्र गैस से चक्कर कहलाते हैं |
हरे पादप प्रकाश संश्लेषण में कार्बन को कार्बन डाई ऑक्साइड के रूप में ग्रहण करके कार्बोहाइड्रेट ( कार्बनिक पदार्थ)  का निर्माण करते हैं
कार्बनिक पदार्थ के कुछ कार्बन को पादप श्वसन क्रिया द्वारा कार्बन डाइऑक्साइड के रूप में निकालते हैं
जब उत्पादक व उपभोक्ता मरते हैं तो अपघटक( जीवाणु) इनके कार्बनिक यौगिकों को अपघटित करते हैं जिससे कार्बन डाइऑक्साइड विमुक्त होती है यह कार्बन डाइऑक्साइड वायु अथवा जल में चली जाती है जिसे पादप  वापस ग्रहण करते हैं |
लकड़ी ,  जीवाश्म ईंधन जैसे कोयला ,  पेट्रोल आदि को जलाने पर कार्बन  कार्बन डाई ऑक्साइड के रूप में मुक्त होकर वायु में आ जाती है और कार्बन चक्र में भाग लेता है प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में अनुमानित 4 x 1013 kg कार्बन का स्थिरीकरण होता है |
[2]  अवसादी चक्र :
ऐसे भू रासायनिक चक्र जिनका संचय स्थल चट्टान या  मृदा होती है इन्हें अवसादी चक्र कहते हैं उदाहरण –  फास्फोरस ,  कैल्शियम ,  व सल्फर आदि के चक्र |
 फास्फोरस जीवो में न्यूक्लिक अम्ल फॉस्फोलिपिड्स , ATP , ADP , आदि योगीको का महत्वपूर्ण घटक है |
फास्फोरस को मृदा बिलियन से फॉस्फेट आयनों के रूप में पौधों द्वारा अवशोषित किया जाता है ,  यह आयन विभिन्न घटकों से होते हुए उपभोक्ताओं में पहुंच जाते हैं |
जब उत्पादकों व उपभोक्ताओं की मृत्यु होती है तो इनके फास्फोरस यौगिकों का अपघटक जीवाणुओं द्वारा अपघटन होता है जिससे फास्फेट उत्पन्न होती है |
फास्फोरस प्राकृतिक भंडार फास्फेट के रूप में फास्फोरस को संचित किए हुए चट्टानें होती है जब चट्टानों का अपक्षय होता है तो  फास्फेट  आयन मृदा में घुल जाते हैं |
प्रश्न 1 :  करकट ( लिटरफाल) किसे कहते हैं लिखिए ?
उत्तर :  वन में भूमि पर उपस्थित पौधों के  व्यर्थ पदार्थ को संचित रुप से करकट कहते हैं ,  करकट मैं नीचे आंशिक रूप से अपघटित करकट को डफ कहते हैं | अधिक अपघटित  डफ  को ह्यूमस कहते हैं |  ह्यूमिफिकेशन के द्वारा निर्मित गहरे रंग के क्रिस्टल रहित तत्व को ह्यूमस कहते हैं
खाद्य श्रृंखला परिभाषा (food chain definition) : किसी परितंत्र में उत्पादक से उच्च उपभोक्ता ताकि खाद्य पदार्थों या खाद्य ऊर्जा के स्थानांतरण के  क्रमबद्ध प्रवाह  के पथ को खाद्य श्रंखला कहते हैं |
खाद्य श्रंखला दो प्रकार की होती है
चारण खाद्य श्रंखला :
उदाहरण :  घास →  बकरी →  मनुष्य
          उत्पादक →  प्राथमिक उपभोक्ता →  द्वितीयक उपभोक्ता
इस प्रकार के खाद्य श्रंखला हरे पादप अथवा उत्पादकों से आरंभ होकर छोटे-छोटे शाकाहारी जीवो से मांसाहारी बड़े जीवो पर आधारित होती है यह खाद्य श्रंखला सौर ऊर्जा पर आधारित होती है |
एक घास वन पारितंत्र की खाद्य श्रृंखला निम्नलिखित प्रकार से है
घास →   टिड्डा →  मेंढक →  सांप →  मोर
उत्पादक →  प्राथमिक उपभोक्ता →  द्वितीयक उपभोक्ता →  तृतीयक उपभोक्ता →  चतुर्थ उपभोक्ता
(2)  अपरद खाद्य श्रंखला :
यह खाद्य श्रंखला मृत पादपों में जंतुओं के मृत अवशेष अर्थार्थ अपरद से शुरू हो कर छोटे उपभोक्ताओं की ओर अग्रसर होती है ,  मृत जीवों के कार्बनिक पदार्थों से पोषण प्राप्त करने के कारण इन छोटे उपभोक्ताओं या अपघटन को मृतकोशी पूर्ति जीवी के नाम से जाना जाता है |  यह खाद्य श्रंखलाएं छोटी होती है |
मृत जंतुओं या पादप अवशेष ( अपरद) →   केंचुआ →  मेंढक →  सर्प →  मोर
खाद्य जाल(Food net) :  
अनेक खाद्य श्रंखलाएं भोजन के लिए आपस में जटिल रूप से एक जाल का निर्माण करती है जिसे खाद्य जाल कहते हैं ,  जैसे अपरद खाद्य श्रंखला के कुछ जीव चारण खाद्य श्रंखला के पशुओं के शिकार बन जाते हैं |
अन्य उदाहरण में जैसे :  एक प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र में कुछ जीव जैसे कॉकरोच व  कांचे सर्वभक्षी होती है अतः इन की खाद्य श्रंखला बनाना असंभव होता है
खाद्य श्रंखला के उत्पादकों एवं उपभोक्ताओं के विभिन्न स्तरों को पोषण स्तर कहते हैं |
पारिस्थितिकी तंत्र के घटक(Components of the ecosystem):
अजैविक घटक :  ताप ,  प्रकाश ,  जल ,  वायु ,  वर्षा ,  वातावरणीय  गैसे ,  खनिज (P, S , Ca  आदि)
जैविक घटक :
उत्पादक :  पादप सौर ऊर्जा ग्रहण करके खाद्य पदार्थ निर्मित करते हैं अतः उत्पादक कहलाते हैं |
उपभोक्ता :  वह प्राणी जो पादपों से आहार पूर्ति करती हैं प्राथमिक उपभोक्ता( शाकाहारी) कहलाते हैं ,  प्राथमिक उपभोक्ताओं से द्वितीयक उपभोक्ता ( मांसाहारी) ,  आहार पूर्ति करते हैं  तृतीयक उपभोक्ता ( सवोच्च मांसाहारी)  दित्य उपभोक्ताओं को खाकर आहार पूर्ति करते हैं |
 पारिस्थितिक पिरामिड की परिभाषा क्या है तथा प्रकार
पारिस्थितिक पिरामिड (Ecological pyramid) :
प्रथम पोषण स्तर ( उत्पादक) को आधार मानकर उत्तरोत्तर पोषण स्तनों को चित्र द्वारा निरूपित किया जाए तो एक स्तूप आकार (pyramid) या पिरामिड मानचित्र प्रदर्शित होता है जिसे पारिस्थितिकी पिरामिड कहते हैं |
पारिस्थितिकी पिरामिड तीन प्रकार के होते हैं
जीव संख्या का पिरामिड
जैव मात्रा( भार) पिरामिड
ऊर्जा का पिरामिड
[1] जीव संख्या का पिरामिड (Pyramid of organisms):
उत्तरोत्तर पोषण स्तर के जीवों की संख्या के अनुपात को प्रदर्शित करने वाला पिरामिड जीव संख्या का पिरामिड कहलाता है ऐसे पिरामिड के आधार पर उत्पादकों की संख्या सबसे अधिक और प्रथम द्वितीयक व तृतीयक उपभोक्ताओं की संख्या क्रमशः कम हो जाती है और पिरामिड उध्र्ववर्ती बनता है|
उदाहरण –  घास के मैदान ,  खेत , एवं तालाब के जीव संख्या के पिरामिड |
[2] जैव मात्रा अथवा जैव भार का पिरामिड (Pyramid of biodiversity or bio mass):
एक खाद्य श्रंखला के उत्तरोत्तर पोषण स्तर मैं जीवो के संपूर्ण जैव भार के अनुपात को प्रदर्शित करने वाले पिरामिड को जैव मात्रा या जैव भार का पिरामिड कहते हैं एक स्थलीय पारिस्थितिकी तंत्र के  जैव भार के पिरामिड  सदैव सीधे व उध्र्ववर्ती बनते हैं क्योंकि उत्पादकों का जैव भार सबसे अधिक होता है |
जलीय पारिस्थितिकी तंत्र जैसे तालाब जैसे समुद्र में जैव भार का पिरामिड (उध्र्ववर्ती)  उल्टा बनता है क्योंकि सर्वोच्च श्रेणी के उपभोक्ताओं का जैव भार सबसे अधिक होता है |
[3] ऊर्जा का पिरामिड (Pyramid of energy) :
पारिस्थितिकी तंत्र में ऊर्जा का पिरामिड हमेशा सीधा ही बनता है क्योंकि उत्पादकों से प्रत्येक उपभोक्ता स्तर पर कुछ मात्रा धीरे-धीरे कम होती जाती है
पारिस्थितिक अनुक्रमण (ecological succession) :
वातावरण में परिवर्तन के कारण पहले के जीवो के स्थान पर नए जीव आ जाते हैं व नया समुदाय स्थापित हो जाता है , इसे पारिस्थितिक अनुक्रमण कहते हैं |
अनुक्रमण एक दीर्घकालीन क्रिया है जिसके अंतिम चरण में एक स्थाई या चरम समुदाय स्थापित होता है |
समुदाय का संपूर्ण क्रम जो दिए हुए क्षेत्र में परिवर्तित होता है उसे क्रमक कहते हैं | तथा परिवर्तनशील समुदायों को क्रमकी चरण या क्रमकी समुदाय कहते हैं |
पारिस्थितिक अनुक्रमण दो प्रकार का होता है
[1] प्राथमिक अनुक्रमण :
ऐसे समुदाय का किसी ऐसे क्षेत्र में स्थापित होना जहां पहले कोई जीव समुदाय नहीं था यह अनुक्रमण किसी भी क्षेत्र में शुरू हो सकता है जैसे ज्वालामुखी के फटने के पश्चात उसका लावा ठंडा होने पर ,  नग्न चट्टानों पर ,  या नए बने तालाब पर नया पादप समुदाय विकसित हो सकता है इसे प्राकृतिक अनुक्रमण कहते हैं इसी अनुक्रमण में हजारों वर्ष लग सकते हैं |
[2] द्वितीयक अनुक्रमण :
यह अनुक्रमण उन क्षेत्रों में शुरू होता है जहां पहले कोई पादप समुदाय निवास करता था लेकिन बाढ़, भूकंप आदि प्राकृतिक आपदाओं से नष्ट हो गया हो इन क्षेत्रों में नए पादप समुदाय उपजाऊ मिट्टी होने से शीघ्र ही विकसित हो जाता है |
पादपों में पारिस्थितिक अनुक्रमण :
आवास की प्रकृति के आधार पर पादप अनुक्रमण निम्न प्रकार के हो सकते हैं
[A]जलारंधी अथवा जल क्रमक
[B] शुष्कतारंधी  अथवा मरू क्रमक
[A]जलारंधी अथवा जल क्रमक
यह अनुक्रमण जल में शुरू होता है अतः जल आरंभी अनुक्रमण कहलाता है ,  जल में प्राथमिक अनुक्रमण के निम्न चरण होते हैं
पादप पलवक चरण :
किसी जलीय आवास में मृदा की कमी होने से खनिज तत्वों की भी कमी होती है अतः निम्न श्रेणी के पादप प्लवक जैसे  एना वीना , स्पाइरोगाइरा आदि शेवाले उगती है
(2)  जलनिमग्न पादप चरण :
सवालों के नष्ट होने से जल की मृदा में खनिजों की मात्रा बढ़ती है जिसे जल निमग्न पादप जैसे  पोटे मोजिटोन आदि रुकते हैं |
(3) निमग्न मुक्ति खाली पादप चरण :
अब धीरे-धीरे इस जलीय आवास में स्वतंत्र पलवी पौधे जैसे जलकुंभी वुल्फिया एजोला आदि उगते हैं इनके मृत होकर सड़ने बदलने से जल में खाद की मात्रा बढ़ती है |
(4) नरकुल  अनूप चरण :
जल के ज्यादा विगदीकरण से अब जड़ी युक्त जल स्थलीय पौधे जैसे टाइफा ,लिगनोफिला आदि उग जाते हैं |
(5)कच्छ शाद्वल चरण :
अधिक विगदिकरण से जलीय आवास दलदल में बदल जाता है जिसे दलदली पादप पालिगोनम, आईपोमिया  उगते हैं |
(6) कुंज चरण :
अब दलदली आवास एक स्थल में बदल जाता है अब यहां का काष्ठीय झाड़ियां उग जाती है |
(7) वन अवस्था :
अब इस स्थलीय आवास में वृक्षों की अनेक प्रजातियां विकसित होकर चरम समुदाय विकसित करती हैं इसे वनीकरण कहते हैं |
[B]  शुष्कतारंधी अथवा मरूक्रमण :
जल की कमी वाले स्थानों पर होने वाले अनुक्रमण को शुष्कतारंधी अनुक्रमण कहते हैं | वह प्रजाति जो खाली व नग्न चट्टानों पर अनुक्रमण करती है अर्थार्थ पहले  उगती है  उसे मूल अन्वेषक प्रजाति कहते हैं उदाहरण – लाइकेन नग्न चट्टानों पर प्राथमिक अनुक्रमण करती है और विभिन्न प्रकार के अमलो का स्त्राव कर चट्टानों का अपरदन कर उन्हें मिट्टी में बदल देती है , मृदा की इस पतली भारत में छोटे पौधे जैसे ब्रायोफाइट्स उग जाते हैं , समय के साथ इनका स्थान बड़े पौधे ग्रहण करते हैं और अंत में एक स्थिर चरम अवस्था पर एक 1 समुदाय स्थाई हो जाता है |
परितंत्र सेवाएं (ecosystem services) :
वायु व जल को शुद्ध बनाना ,  सूखे व बाढ़ को रोकने ,  भूमि को उर्वर बनाना आदि परितंत्र सेवाएं हैं |
रोबर्ट कॉन्सटेजा व उनके साथियों ने  परितंत्र सेवाओं की 1 वर्ष की कीमत 33 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर तय की है जो वैश्विक  स्कल उत्पाद की कीमत 18 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर से 3 गुना ज्यादा है |
प्रश्न 1 :  एक वृक्ष के जीवो की संख्या का पिरामिड कैसा बनता है ?
उत्तर :  उल्टा बनता है चौकी वृक्ष अकेला मूल उत्पादक है और उसके फलों को खाने वाले पक्षियों अथवा अन्य जंतुओं की संख्या उससे अधिक होता है तथा पक्षियों अथवा जंतुओं पर परजीवी रूप से रहने वाले कीटों की संख्या इन से भी ज्यादा होती है |
प्रश्न 2 :  स्थित शस्य या खड़ी फसल किसे कहते हैं ?
उत्तर:  प्रत्येक पोषण स्तर में जीवित पदार्थ की कुछ खास मात्रा होती है जिसे स्थित शस्य या खड़ी फसल कहते हैं स्थित शस्य को जीवित जैविक ओ की मात्रा से मापा जाता है |

Admin

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NCERT + CGBSE Class 8,9,10,11,12 Notes in Hindi with Questions and Answers By Bhushan Sahu - ULTIMATE STUDY SUPPORT

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