NCERT कक्षा 12वी जीवविज्ञान अध्याय 11 कृषि क्षेत्र में जैव प्रौद्योगिकी का उपयोग , Bt पादप – (बेसिलस यूरेनाजिऐन्सिस) , RNA अन्तरक्षेप संपूर्ण नोट्स हिंदी में : ULTIMATE STUDY SUPPORT

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कृषि क्षेत्र में जैव प्रौद्योगिकी का उपयोग , Bt पादप – (बेसिलस यूरेनाजिऐन्सिस) , RNA  अन्तरक्षेप
 
मानव निर्मित इन्सुलिन , जीव उपचार/जीव थैरेपी , आणिवक निदान- परम्परागत विधि
 
पारजीवी जीव/पारजीववी जीव/GM animals/ट्राँसजैनिक जंतु , जैविक मुद्धे/जैव नैतिकता
परम्परागत रूप से सुअर और अन्य जीवों को मानकर इन्सुलिन प्राप्त की जाती थी। इन्सुलिन में दो पेप्टाइड श्रृंखलताऐं  A व B पायी जाती है जो आपस में डाइसल्फाइड बंध के द्वारा जुडी होती है यह प्राक इन्सुलिन के रूप में होती है जिसमें एक अतिरिक्त फैलाव पेप्टाइड C पाया जाता है।
चित्र
1983 मे अमेरिकी कम्पनी एली लीली ने कृत्रिम इन्सुलिन का निर्माण किया तथा उसे हूमृलिन नाम दिया। E-coli  जीवाणु में इन्सुलिन की पेप्टाइड A और B की पूरक श्रृंखला वाले DNA को संवाहक की सहायता से प्रवेश कराया तथा प्राप्त पेप्टाइड । और ठ को डाईसल्फाइड द्वारा इन्सुलिन इन्सुलिन बनायी गयी।
 जीव उपचार/जीव थैरेपी:-
दोषपूर्ण जीव का प्रतिस्थापन सामान्य जीव के द्वारा करके विभन्न आनुवाँशिक एवं जठिल बीमारियों का उपचार करना जीन उपचार कहलाता है।
उदाहरण:- अमेरिका मे 4 वर्षीय बालिका का 1990 में ।क्। (एडिनोसिन डिएमीनेज) का उपचार किया गया। यह एन्जाइम पतिरक्षा तंत्र से संबंधित है।
परम्परागत रूप से इंजेक्शन के द्वारा इन्जाइम प्रतिस्थापन किया जाता था। अथवा अस्थिमज्जा प्रत्यारोपण के द्वारा उपचार किया जाता था। यह स्थायी समाधान बाकी है।
जीव उपचार के तहत लसिकाणुओं को शरीर से बाहर निकालकर प्रयोगशाला में समर्पित किया गया। इनमें ADA के C-DNA को रेसेवायरस संवाहक की सहायता से प्रवेश कराया गया तथा पुनः शहरर में प्रवेश कराया गया।
सफल स्थायी उपचार हेतु प्रारम्भिक भ्रूणीय अवस्था में ही ADA उत्पन्न करने वाले अच्छे जीवों को अस्थिमज्जा में प्रवेश करायाग गया है।
 आणिवक निदान- परम्परागत विधि:-
1- रक्त परिवक्षण
2- मूत्र परिरक्षण
3- सिरम परिरक्षण


 कमी:- शरीर में रोग जनकों की संस्था अधिक होने पर रोग के लक्षणों के द्वारा रोग की पहचान होती है
प्रारम्भिक अवस्था में रोग जनकों की पहचान हेतु मासिक निदान तकनीकों का प्रयोग किया जाता है। जो निम्न है:-
 PCR विधि:- 
रोगाणु,, जीवाणु के न्यूक्लिक अम्ल का प्रवर्धन करके रोगजनक की पहचान की जा सकती है। इस प्रकार एडस रोगियों में HIV की पहचान करने में तथा कैसर रोगियों में उत्परिवर्तनयजीव की पहचान की जाती है।
 DNA संपरीक्षित/प्रोब विधि:- में न्यूक्लिक अम्ल के एकता सूत्र को प्रोब्र के रूप में प्रयुक्त करते है तथा उसे अपने पुरक के साथ जोडी बनाने पर स्वविकिरण चित्रण के द्वारा पहचान लिया जाता है ।
 ELISA-  ऐलिजा विधि:- यह प्रतिजन प्रतिरक्षी सिद्धान्त पर आधारित है। इसमें प्रतिजन की पहचान द्वारा अथवा प्रतिवक्षी की पहचान द्वारा रोग का निदान किया जाता है।
पारजीवी जीव/पारजीववी जीव/GM animals/ट्राँसजैनिक जंतु:- जिनके जीन हस्तकौशल के द्वारा परिवर्तित कर दिये जाने तथा उनमें वाँछित लक्षणों की अभिव्यक्ति हो जाये तो उसे ट्राँसजैनिक जन्तु कहते है।
उदाहरण:- GM चूहे 25 प्रतिशत खरगोश, गाय, भैंस, मछली, बकरी भेड, आदि
2 रोगों का अध्ययन- रोग मांडल का विकास:- रोग का विकासएवं निदान तथा उपचार  के अध्ययन हेतु ट्राँस जैविक जन्त बनाये जाते है।
उदाहरण:- ओन्क्रोमाउस केंसर रोग के अध्ययन के लिए इसी प्रकार पुटी रेशमयता, आनावती संधि शोध एल्जाइमर्स आदि रोगों के अध्ययन हेतु भी GMA बनाये गये है।
3 टीका सुरक्षा:- उदाहरण:- पोलियों का टीका
4 रासायनिक (आविषालुप्ता) परीक्षण:- GM जीव अधिक संवेदी होते है अतः कम मात्रा में अधिक प्रभाव उत्पन्न होता है एवं कम समय लगता है।
5 जैविक उत्पाद:- जीवों के लिए लाभदाय जीव होते है।
उदारहण:- 1-GM भेड के दूध में AAT एल्फा -1 एंटी ट्रिप्सिन पाया जाता है जिसके कारण एफाइसीया रोग का उपचार किया जाता है।
1- रोजी गाय:- इसमें मानव दुग्ध प्रोटीन सम्पन्न होती है। 2.4 ग्राम लीटर इसमें ALA एल्फालेक्ट एलेबुमिन पाया जाता है यह अधिक पोष्टिक होता है।
 जैविक मुद्धे/जैव नैतिकता:- मनुष्य द्वारा अपने लाभ के लिए अन्य जीवों का प्रयोग किया जा रहा है इसके सिमित प्रयोग के नियंत्रण संबंधी मुद्धे को जैविक मुद्धे या जैव-नैतिकता कहते है।
जैव तकनीकी एवं इससे संबंधी कार्यो के अनुमोदन के लिए एक समिति बनी हुई है GEAC आनुवाँशिक अभियाँत्रिकी संस्तुति समिति जो कार्यो की वैज्ञानिकता एवं जीवों की सुरक्षा का नियंत्रण करती है।
 मुख्य मुद्धे- अन्य जीवों में सुरक्षा
 जीवों को उद्योग की श्रेणी में रखना।
 उत्पाद से उत्पन्न प्रभावों कापूर्ण अध्ययन नहीं (हानिकारक प्रभाव)
 ळड जीवों के परितंत्र में शामिल होने पर अप्रत्याशित परिणाम
 परितंत्र असंतुलित हो सकता है।
6 एकस्व या पेटेन्ट:-
आनुवाँशिक पदार्थो, पदपों एवं अन्य जैविक संसाधनों से जैव तकनीक के द्वारा बने उत्पादों एवं सक्रमों को विशेष अधिकार को पेटेन्ट जैव पैटेन्ट कहते है।
भारत सरकार ने 1972 से एकस्व कानून लागू किया।
अमेरिका की एक कम्पनी ने 1977 में बासमती चावल का पेटेन्ट प्राप्त करने का प्रयास किया जिसे भारत में सदियों से बोया एवं प्रयोग किया जा रहा है तथा इसका वर्णन हमारे ऐतिहासिक ग्रंथों में है।
भारत में लगभग 27 किस्में एवं धान की 2 लाख किस्मे पायी जाती है।
 बायोपाइरेसी:- बहुराष्ट्रीय
 कम्पनियों और नियमों द्वारा बिना व्यवस्थित अनुमोदन और क्षतिपूर्ति भुगतान के जैविक संसाधनों का प्रयोग करना बायोपाइरेसी कहलाता है।
विकासशील देश जेव विविधता से भरपूर है तथा इनके पास परम्परागत ज्ञान है।


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